नवीन लोक प्रबंधन के दृष्टिकोण (एन. पी. एम.) | New Public Management Approach
नवीन लोक प्रबंधन के दृष्टिकोण (एन. पी. एम.)
नवीन लोक प्रबंधन की प्रस्तावना
- पूरे विश्व में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में लोक प्रशासन में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं, सूचना तकनीक, संचार, संगणक व्यापार का उदारीकरण बैंकिंग तथा वित्तीय व्यवस्थाओं का अनियमितीकरण, अन्तर्राष्ट्रीय निगमों या कम्पनियों के विकास आदि अनेकों कारकों ने वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है। इसके परिणामस्वरूप, पूरी दुनिया में वस्तुओं, सेवाओं, तकनीक प्रक्रियों तथा क्रियाओं या व्यवहारों के फैलाव में बढ़ोत्तरी हुई है । इसने नई सामाजिक अपेक्षाओं को जन्म दिया है और मूल्य प्रणालियों या व्यवस्थाओं को भी परिवर्तित कर रहा है, जो राज्य तथा शासनिक व्यस्थाओं के स्वरूप को बदल रहा है ।
- वैश्वीकरण, लोक प्रशासनिक व्यवस्था को, जो राज्य की संरचना में अंतः स्थापित (Embedded) हैं, प्रभावित कर रहा है। वैश्विक संस्थाओं के द्वारा लाये गए दवाब भी बहुत अधिक है। इन संस्थानों द्वारा प्रदत्त सहायता, विकासशील देशों के लिए, विशेष रूप से, व्यापक प्रभाव या निहितार्थ हैं, क्योंकि इससे विकासशील देशों की (वित्तीय सैनिक या सेना संबंधी, राजनीतिक ) निर्भरता पश्चिमी जगत पर बढ़ी है। ये परिवर्तन इन देशों के लोगों को भी विकल्पहीन बना देते हैं, अपनी नीतिगत वरीयताओं तथा प्राथमिकताओं को तय करने में असमर्थ बना देते हैं।
- वैश्वीकरण राज्य को वैश्विक मानदंडों तथा व्यवहारों पर चलने की ओर धकेल रहा है। दूसरी तरफ अपने प्रशासन को कुशल तथा प्रभावी बनाने के लिए अमेरिका तथा ब्रिटेन में प्रयुक्त यर अनुमानित संरचना अनुकूलन कार्यक्रम (Structural Adjustment Programme) के परिणाम स्वरूप एक नये प्रारूप (Paradigm) जिसे नवीन लोक प्रबंधन या एन. पी. एम. के नाम से जाना जाता है का उदय हुआ है।
- साथ ही दूसरी ओर आंतरिक सामाजिक तथा राजनीतिक दबाव यह प्रयास कर रहे हैं कि राज्य एवं दूसरी शक्तियों की भूमिका को शासितों के हितों का संरक्षण करने के लिए अधिक मज़बूत करने की आवश्यकता हैं ।
नवीन लोक प्रबंधन का उदय (NPM)
राज्य की बदलती भूमिका तथा नवीन लोक प्रबंधन का
उदय
- राज्य सदैव ही शासन के केन्द्र में रहा है। परम्परागत रूप से, अनेकों राज्यों ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को अपनाया, जिसमें एक ऐसी राजनीतिक व्याख्या की, जिसमें जनसंरचना के कल्याण का भारी मात्रा में उत्तरदायित्व था। 1980 तथा 1990 के दशकों में वैश्वीकरण के प्रसार या फैलाव तथा अनेकों क्षेत्रों में इसके प्रभाव के कारण राज्य की इस भूमिका में महत्वपूर्ण बदलाव आये। अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक शाक्तियों ने राज्य के चरित्र को बदल कर एक प्रतिस्पर्धी राज्य, जो स्थानीय राजनीतिक तथा प्रशासनिक संस्कृतियों की चिंता किए बिना अनियमितीकरण तथा निजीकरण के पक्षकर के रूप में परिवर्तित हो गया।
- बाजार के द्वारा सरकार में विश्वास इस विचार पर टिका है, कि बाजार व्यवस्था स्वाभाविक रूप से सरकार की अपेक्षा के सहारे मानव की आवश्यकताओं तथा आकाक्षांओं को पूरा करने का अधिक अच्छा तरीका है। इस मत का प्रथम उद्देश्य था, अनेक प्रकार की मौद्रिक तथा वित्तीय नीतियों के साथ साथ अनियमितीकरण राज्य के आकार को घटाना तथा बाजार शाक्तियों को मुक्त करना। दूसरा उद्देश्य स्वंय सरकार के संचालन में बाजार अवधारणाओं एवं प्रोत्साहनों को आयात करना। तीसरा उद्देश्य था सार्वजनिक व्यय की वृद्धि तथा सामान्य आकार को कम करने के लिए कदम उठाना तथा सरकार द्वारा निष्पादित कार्यों में कटौती करने के लिए कदम उठाना। राज्य के बदलते स्वरूप के कारण नयी सरंचनाओं तथा विशेषताओं का पदार्पण भी हुआ।
- 1980 1990 के दशक में ब्रिटेन तथा अमरीका में बाजार की पक्षधर तथा राज्य विरोधी-निजी अच्छा तथा सार्वजनिक दोषपूर्ण (Private Good and Public Bad) का दर्श प्रचलित या प्रबल होने लगा। इसने नवीन लोक प्रबंधन के रूप में एक नवीन केन्द्रीय कर्त्ता के उदय को देखा ।
- न्यू राईट दर्शन, जैसे संस्थागत अर्थशास्त्र तथा लोक चयन दृष्टिकोण के नवीन लोक प्रबंधन के ऊपर प्रभाव स्पष्ट है। यदि परम्परागत रूप में देखें या कहें तो लोक प्रशासन का सदैव ही नागरिकों को संवदेनशीलता, प्रतिनिधत्व तथा समानता का आश्वासन देते हुए सार्वजनिक हित को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी या कर्तव्य रहा है। परन्तु समय के साथ इसकी नौकरशाही के ऊपर आवश्यकता से अधिक निर्भरता पदसोपान नियम एवं विनियमों पर अत्याधिक निर्भरता ने इसकी सक्षमता तथा प्रभावशीलता पर प्रश्नचिंह लगा दिए । सोवियत संघ के विघटन के साथ ही बढ़ते हुए सार्वजनिक खर्चों तथा करों एवं नौकरशाहीं के कार्य करने के ढंग से असंतोष ने इस विचार को बलवान बना दिया कि राज्य का परम्परागत मॉडल उचित नीतियों के कार्यान्वयन तथा प्रभावी ढंग से सेवाएं पहुँचाने में असफल रहा है।
- इस प्रकार एक वैकल्पिक मॉडल की आवश्यकता अधिक अनुभव की गई। इसी मॉडल को जिसका बल प्रवधन प्रकृति के रूप में राज्य के स्थान पर बाजार पर आधारित विकास की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर था, नवीन लोक प्रबंधन या जैसा हमने कहा एन. पी. एम. कहलाया।
एन. पी. एम. का उद्देश्य
- एन. पी. एम. का उद्देश्य मितव्ययता, कार्यकुशलता तथा प्रभावशीलता (Economy, Efficiency and Effectiveness (3'Es ) के तीन प्रमुख उद्देश्यों के प्रति समर्पित बाजार आधारित लोक प्रशासन का निर्माण करना है।
- एन. पी. एम. परम्परागत लोक प्रशासन को एक असफल प्रशासन करार करके निंदा करता है। यह इस मान्यता से प्रारंभ होता है कि परम्परागत नौकरशाही स्वरूप में संगठित लोक प्रशासन, निराशावान तथा खंडित या टूटा फूटा है, तथा परिणामस्वरूप जनता का सरकार में विश्वास समाप्त हो गया है। (गोर - Gore, 1993 ) |
- इस प्रकार रूढ़िवादी या पुरातन लोक प्रशासन को एन. पी. एम. के रूप में एक नया सुधार प्रतिस्थापना मिल गया है।
लोक प्रशासन की जटिलताओं एवं पेचीदगियों ने एक नई सोच के
लिए रास्ता बनाया है, जो निम्न पर केन्द्रित हैं :
- वर्तमान बदलती हुई परिस्थितियाँ जिन्हें शासकीय सुधारों की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक संगठन, जिन्हें कार्यों के मात्र कार्यान्वयन से निष्पादमोन्मुख की मानसिकता में बदलने आवश्यकता हैं।
- सार्वजनिक संगठनों में सेवा परकता उद्देश्य उन्मुखता तथा खतरा उठाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार एन. पी. एम. प्रतिस्पर्धी राज्य दृष्टिकोण के एक प्रमुख प्रकटीकरण के रूप में उदित हुआ है। यह नया प्रतिमान (Paradigm ) जो पुनः खोज, पुनर्रचना, गुणवत्ता प्रबंध तथा निष्पादन प्रबंध जैसे अलग अलग शीर्षकों से व्यापक प्रयोग में आया, मूलतः सरकार की संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं में परिवर्तनों पर ध्यान केन्द्रित करता है। पदसोपानकृत, कठोरतापूर्वक संगठित तथा अनमनीय व बरीय नौकरशाही का स्थान नमनीय संगठनात्मक संरचना विकेन्द्रीयकरण, उद्देश्य प्राप्ति, कुशलता तथा प्रभावशीलता ने ग्रहण कर लिया है। प्रबंध सुधारों ने व्यापार प्रबंध तकनीकों तथा बाजार तंत्रों को लाने पर ध्यान केन्द्रित किया है, नवीन लोक प्रबंधन के शीर्षक के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा तथा ग्राहकोन्मुखता को प्रमुखता मिलनी प्रारंभ हुई हैं।
विषय सूची :-
नवीन लोक प्रबंधन (एन.पी.एम) पर न्यू राईट (New Right) सिद्धान्त
नवीन लोक प्रबंधन की अवधारत्मक रूपरेखा
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