नवीन लोक प्रबंधन (एन.पी.एम) पर न्यू राईट (New Right) सिद्धान्त। New Right Theory on New Public Management (NPM)

 

नवीन लोक प्रबंधन (एन.पी.एम) पर न्यू राईट (New Right) सिद्धान्त

नवीन लोक प्रबंधन (एन.पी.एम) पर न्यू राईट (New Right) सिद्धान्त। New Right Theory on New Public Management (NPM)




न्यू राईट सिद्धान्त का प्रभाव

 

  • 1950 के दशक से न्यू राईट ने कल्याणकारी राज्य तथा सामाजिक कार्यक्रमों पर प्रहार किया। इसमें ऋणों तथा नगद अनुदानों के द्वारा सार्वजनिक भवनों तथा शिक्षा के लिए सरकारी अनुदानों के स्थान पर सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के निजीकरण के साथ प्रभावी समाज बाजार अर्थव्यवस्था के रूप में स्वतंत्र बाजारों के ध्यय को प्रचारित किया । परम्परावादी कल्याणकारी राज्यों ने कथित रूप से मध्यम वर्ग का हित साधन कियाजबकि इस मॉडल को गरीबों के आर्थिक हितों को प्रोन्नत (Promote) करने वाला कहा गया गया । 

 

  • सरकार के क्षेत्र को सीमित करने वाले न्यू राईट विचारों को इसलिए प्रचारित किया गयाक्योंकि सरकार को कल्याणवाद के उद्देश्य को प्राप्त करने का एक अप्रभावी या गैर कारगर यंत्र माना गया । फ्रैडरिक हायकरार्बट नॉजिक तथा मिल्टन फ्रेडमैन (Friedrich Hayek, Robert Nozick and Milton Friedman) ने अर्थव्यवस्था में सरकार के हस्तक्षेप के मूल विचार को नकार दिया। प्रभावशाली नव उदारवादी अर्थशास्त्रियों के समूह ने बड़ी सरकार की आलोचना की तथा उनका विचार था कि केवल स्वतंत्र बाजार ही एक समाज में अयोग्य या अपूर्ण तत्वों को एक साथ ला सकते हैं। बाजार को प्रभावित करने के लिए राज्य की ओर से कई प्रयास स्वतंत्रता एवं आर्थिक प्रगति को समाप्त करने वाले बताए गए ।

 

  • 1970 के दशक के मध्य में राज्य के आकार को तय करने के उद्देश्य से नीति निमार्ण के पक्ष में वातावरण बनता हुआ नजर आया। अर्थिक चिंतन का प्रभाव नजर आता था जैसा कि हायक तथा फ्रेडमैन जैसे रूढ़िवादी बाजार अर्थशास्त्रियों के विचारों से स्पष्ट था। गॉडर्न टुलॉकविलियम निस्काननजेम्स बुकानन तथा पैट्रिक डनलैवी (Gordon Tullock, William Niskanen, James Buchanan, Patrick Dunleavy ) जैसे लोक चयन सिद्धांत के प्रतिपादकों को प्रसिद्धि प्राप्त हुईजिनके कथन या प्रस्ताव सरकार तथा नौकरशाही को घटाने तथा नमनीय संरचनाओं तथा प्रोत्साहनों के साथ बाजार व्यवस्था या सरंचनाओं पर निर्भरता पर प्रस्तावों या कथनों ने सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम कर दिया तथा कम से कम कार्यों के प्रदान करने तक सीमित कर दिया। इससे बाजार आधारित सार्वजनिक नीतियों को निर्मित करने तथा सरकारी क्रियाकलापों को कम करने तथा नौकरशाह पर प्रहार करने की सैद्धान्तिक आधारशीला रखी गई अब हम न्यू राईट सिद्धान्त के प्रति दृष्टिकोणों पर दृष्टि डालेगेंजिन्होनें एन. पी. एम. को प्रभावित किया है. 

 

लोक चयन दृष्टि (Public Choice Approach)

 

  • लोक चयन राजनीति को समझने के लिए आर्थिक सिद्धांत के प्रयोग के रूप में जाना जाता है। 1940 के दशक में अमेरिका तथा ब्रिटेन (यू.के) में राजनीतिक प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं के अध्ययन में आर्थिक पद्धति के प्रयोग करने पर अनेक लेख लिखे गए। 
  • लोक चयन इस मान्यता पर राजनीतिक व्यवहार की व्याख्या करने तथा भविष्यवाणी करने का प्रयास हैव्यक्ति उपयोगिता को अधिकतम करने वाला व्यक्ति होता है। लोक चयन पद्धति एक दूसरे से संबद्धित दो तत्वों से बनी है। प्रथम पद्धतिगत व्यक्तिवादजो समाज के स्थान पर व्यक्ति को विश्लेषण की इकाई मानता है। यह दृष्टिकोण समाज के अवयवी विचार को मान्यता नहीं देता है। द्वितीय तत्व सार्वजनिक हित की दृष्टि की अपेक्षा निजी लाभ को अधिकाधिक बढ़ाने के दृष्टिकोण से निर्णय निर्माण में तार्किक चयन का प्रयोग है।

 

  • लोक चयन दृष्टिकोण की मूल मान्यता यह है कि व्यक्ति उपयोगिता या हितों को अधिकाधिक बढ़ाने वाले होते हैंउसमें राजनीतिक नेता अपने मतों को अधिकाधिक बढ़ाने वाले तथा नौकरशाह स्वहित को बढ़ाने वाले होते हैं और इसलिए अधिक बढ़े बजट की सरकारलोक हित में काम न करने को ओर प्रवृत होती है जैसे राजनीतिज्ञोंनौकारशाहों तथा अन्य हित समूहों के हितों तथा वरीयताओं की पूर्ति के लिए विस्तृत होता है।
  • लोक चयन सिद्धांत की मान्यता है कि व्यक्ति अहमवादी (Egoistic) स्व केन्द्रित (Self-regarding) होते हैं तथा वे लोग अपने निर्णयों से अधिकतम संभव फायदा या व्यक्तिगत लाभ लेने का प्रयास करते हैंजिनमें कम से कम संभव लागत सन्निहित होती है।

 

  • लोक चयन सिद्धांतवादी की मान्यता है कि व्यक्ति जो मतदाताराजनीतिक नेतानौकरशाह या लॉबिस्ट ( Lobbyist) या अपने पक्ष में जनमत तैयार करने वाले हो सकते हैंस्वहित से निर्देशित होते हैं। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र में उचित पारितोषित तथा प्रोत्साहनों का काफी सीमा तक अभाव नौकरशाही तथा राजनीतिज्ञों को हतोत्साहित करने वाला कहा गया है। इसका प्रायः परिणाम यह होता है कि नौकरशाही लागतों में कमी करने में कोई रुचि नहीं दिखाते या व्यय को नियमित भी नहीं करतेजिसके कारण बढ़ा-चढ़ा बजट बनता है।

 

  • लोक चयन इस प्रकार बाजार शक्तियों को प्रधामता तथा सरकार को न्यूनतम भूमिका प्रदान करती है। नौकरशाही की तुलना में बाजार को अधिक उत्तरदायी माना जाता है तथा राज्य को वित्तीय बोझ से स्वंत्रत करने तथा सेवाओं की सार्वजनिक पूर्ति को कम करने के लिएनिजीकरण सेवाओं को बाहरी स्त्रोत से प्राप्त करने तथा ठेके पर देने पर महत्व दिया जाता हैं।


  • नौकरशाही का एक अधिक परिमार्जित या परिष्कृत लोक चयन मॉडल जिसे ब्यूरो शेंपिंग मॉडल (Bureau Shaping Model) के नाम से जाना जाता हैपैट्रिक डनलेवी के द्वारा विकसित किया गया है। यह मॉडल उस पूर्व विचार को नकारता हैजिसके अंतर्गत यह कहा गया कि नौकरशाह बजट को बढ़ाना चाहते हैं। अपितु इसका कहना है कि एक बड़े संगठन का प्रबंध करने के अतिरिक्त नौकरशाह राजनीतिक नेताओं को सलाह देकर अपने स्तर या पद प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी करने की ओर अभिमुख होते हैं।

 

प्रिसिपल – एजेंट दृष्टिकोण (Principal Agent Approach ) 

  • प्रिन्सिपल रूप में अर्थशास्त्र में सहमत पक्षों के बीच स्वैच्छिक विनिमय पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। सहमत पक्ष व्यक्ति संगठन या फिर राष्ट्र कोई भी हो सकते हैं। विभिन्न पक्षोंजैसे खरीदार या विक्रेताओं के पास एक समझौते या विनिमय की विशेषताओं के बारे में उपलब्ध जानकारी अलग अलग होती है। इस प्रकार की विषय या अपूर्ण या अधूरी सूचना की स्थितियों तथा विभिन्न आर्थिक एजेडों के बीच विनिमयों या संबंधों की स्थितियों के विश्लेषण सूचना के अर्थशास्त्र के रूप में जाना जाने लगा है। इस रूपरेखा के भीतर प्रिन्सिपल एजेंट (Principal Agent) दृष्टिकोण समाहित है।


  • प्रिन्सिपल एजेंट के बीच संबंधों की गतिशीलता को समझने का प्रयास हैं। एजेंट को प्रिन्सिपल के सर्वाधिक हित में काम नहीं करने वाला कहा गया है। विशेषकर उस स्थिति मेंजबकि कर्मचारी के पास सूचना होने का लाभ हो तथा उसके हित प्रिन्सिपल के हितों से अलग हों ।

 

  • यह दृष्टिकोण इस मान्यता पर आधारित हैकि किसी सेवा की पूर्ति में दो व्यक्ति सम्मिलित होते हैंतथा वे कानूनी दृष्टि से समान स्तर पर नहीं होते हैं। वह पक्ष तो दूसरे को नियुक्त करता हैप्रिन्सिपल या नियोक्ता तथा वह पक्ष जो नियुक्त होता हैएजेंट कहलाता है । दोनों सेवा पूर्ति में शामिल होते हैं। परन्तु कानूनी दृष्टि से एक समान पद या स्तर नहीं रखते हैं। यह दृष्टिकोण प्रमुखतः उन मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करता हैजो उस समय उत्पन्न होते हैंजबकि एजेंट प्रिन्सिपल की तरफ से कार्य करता हैतथा दोनों पक्षों की आपसी सहमति वाली सेवाओं को प्रदान करने का वचन देता है।

 

  • प्रिन्सिपल तथा एजेंट के बीच सम्बन्ध उस समय परिपूर्ण कहे जाते हैंजब सूचना का निर्वाह प्रवाह हो तथा प्रिन्सिपल एजेंट के निष्पादन की निगरानी रखने तथा दंड एवं प्रोत्साहनों की एक श्रेणी या सैट निर्मित करने में समर्थ हो । परन्तुसूचना के अभाव में निगरानी रखने में कुछ समस्याओं के पैदा होने की सम्भावना होती है। प्रिन्सिपल तथा एंजेट के बीच एक प्रभावी समझौते या सविंदा के लिए यह आवश्यक है कि दोनों के बीच जोखिमों का वितरण या बटवारा एक कुशल तथा आपसी स्वीकार्य ढंग से हो ।

 

विनिमय लागत दृष्टिकोण (Transaction Cost Approach)

 

  • एक अन्य प्रमुख आर्थक दृष्टिकोण जिसका वर्तमान प्रबंधकीय परिवर्तनों पर कुछ प्रभाव पड़ा हैलेनदेन लागत (Transaction Cost) है । लेनदेन में वे सभी लागत आती हैजो विनिमय के कार्यान्वयन में खर्च की जाती है। जहाँ पर निष्पादन के लिए किए गए भुगतान पर आधारित सेवाओं तथा वस्तुओं का आदान-प्रदान होता हैविनिमय या लेन-देन लागत दृष्टिकोण आंतरिक तथा बाह्य सेवा आपूर्ति की विनिमय लागत की तुलना करने की आवश्यकता को रेखांकित करता हैतथा उसके पश्चात बाहर से प्राप्त करने की आवश्यकता तय करता है ।


  • इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रतिपादक जॉन विलियमसन् हैजिन्होंने अपने एक विस्तृत अध्ययन में विलियमसन् एवं आऊची (Williamson and Ouchi, 1983) यह तर्क प्रस्तुत करते हैंकि निर्माण या खरीद के निर्णय आंतरिक बनाय बाह्य आपूर्ति की लेन-देन लागतों की तुलना द्वारा तय किए जाने चाहिए।

 

  • विलियमसन के कथनानुसार फर्म (Firm) अपनी विनिमय लागत व्यय करने के लिए काम करती हैक्योंकि यह उनकी कुशलता तथा लाभदायिकता के लिए आवश्यक है। यह रूपरेखा (Framework ) वैकल्पिक शासन संरचनाओं तथा संस्थागत व्यवस्थाओं की कुशलता की समीक्षा करने के लिए उपयोगी है।

 

  • विनिमय लागत रूपरेखा का प्रयोग ठेकेदारी या संविदा से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को कम करने में सरकारों को सक्षम बनाता है। यह ठेकेदारों को चुननेसंविदा रूपरेखा बनानेतथा सेवाओं की मात्रा तथा गुणवत्ता तय करने वाले विनिर्देश में सहायक होता है । करार की प्रक्रिया की ठेकेदारी के लाभों को प्राप्त करने तथा ठेकेदारी की अवसरवादी प्रवृत्तियों को कम करने के उद्देश्य से यथोचित समीक्षा तथा पुनर्रचना की जा सकती है।

 

  • एन. पी. एम. कुशलता पर बल देने का प्रयास करता है तथा जन-सेवा आपूर्ति (Delivery ) में ठेकों को महत्वपूर्ण संस्थागत रूपान्तरों के रूप में प्रयोग करता । ये मॉडल वैकल्पिक संस्थागत व्यवस्थाओं के प्रयोग की प्रभावशीलता की समीक्षा करनेसंविदात्मक संबंधों से जुड़ी जटिलताओं तथा निहित दुविधाओं को समझने तथा संविदा या ठेके की कुशलता तथा जवाबदेयता के आयामों में संतुलन बनाने में सहायक होते हैं।

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