धर्म और राजनीतिक व्यवस्था Religion and the Political Order in Hindi
धर्म और राजनीतिक व्यवस्था (Religion and the Political Order)
धर्म और राजनीतिक व्यवस्था
- धर्म, राजनीतिक व्यवस्था को परिवर्तित और संरक्षित कर सकता है। हम यह मान कर चलें कि राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता और प्राधिकार के प्रयोग का तरीका भी शामिल है तो राज्य, राष्ट्र और प्रभुसत्ता (आधिराज्य) जैसी अनेक श्रेणियां हमारे विश्लेषण में आ जाती हैं। प्रत्येक धर्म के पास एक राजनीतिक विचार; सामुदायिकता की भावना एवं सत्ता और प्राधिकार का तरीका प्रभुसत्ता की एक विशेष समझ होती है।
- दूसरे शब्दों में परमेश्वर का 'राज्य' और 'दारुल इस्लाम राजनीतिक विचार हैं, प्रत्येक धर्म के पास राजनीति की एक विशिष्ट अवधारणा होती है जिसकी विवेचना या व्याख्या समय-समय पर बदल सकती है, चाहे यह अवधारणा वास्तविक रूप ले या नहीं। इस अर्थ में धर्म को राजनीति से स्पष्टतया अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि कभी-कभी धर्म को इहलौकिक (इस संसार का ) भी होना पड़ता है।
- जैसा कि आप जानते हैं, हिंदू जाति व्यवस्था में क्षत्रिय शासक होता है और उसका धर्म, सामाजिक व्यवस्था की रक्षा और संरक्षण करना होता है। ब्राह्मण को ज्ञान और मूल्यों की व्यवस्था बनाए रखनी होती हैं।
- सिद्धांत के स्तर पर यह आत्मिकता और सत्ता आत्मिकता के अधीन होती है। लेकिन व्यवहार के स्तर पर यह अभिधारणा संदेह के घेरे में आ जाती है। वास्तव में आत्मिकता और सत्ता तथा राज्य और धर्म के बीच चलने वाला तनाव एक सार्वभौमिक दुविधा के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। यूरोप में मध्य युग ( 8वीं से 15वीं शताब्दी) के दौरान अनेक राज्य (और उनके राज्य) स्पष्ट रूप से रोमन कैथोलिक चर्च के प्रधान पोप के प्राधिकार के अधीन रहे।
- यूरोप में सुधारवाद के आने से स्थिति में बदलाव हुआ और शासक अपने-अपने राष्ट्रीय चर्चों के प्रधान बन गए। उदाहरण के लिए, इंगलैंड की महारानी इंगलैंड के प्रोटेस्टैंट ऐंग्लीकन चर्च की प्रधान हैं।
- तमाम दुनिया में उठने वाले अनेक कट्टरपंथी और नवजागरणवादी आंदोलन भी राजनीतिक राज्य के अपने अलग विचारों को परिभाषित कर रहे हैं। कट्टरपंथी और नवजागरणवादी धर्म की पुनः व्याख्या करने वाले हैं। वे जिसे धार्मिक व्यवहार की शुद्ध, मौलिक संहिता समझते हैं उसकी ओर लौट रहे हैं। इसमें एक समग्र विश्व दृष्टि शामिल है। इन विश्वसनीय मूल्यों को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से कट्टरपंथी अन्य सभी मूल्यों की अवहेलना करते हैं।
- उदाहरण के लिए, इस्लाम मुस्लिम समुदाय के व्यवहार के विषय में विशेष रूप से स्पष्ट है। मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं की दुनिया वही है जिसे उनके धर्म ने सिद्ध किया हुआ है, जहां राजनीति और धर्म अभिन्न हैं। हाल के दशकों में इस्लाम के पुनरुत्थान में यह जुड़ाव स्पष्ट होकर सामने आया है।
- बहुधा, दलित समुदाय ही राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के माध्यम के रूप में धर्म का इस्तेमाल करते हैं । यहूदियों का दमन और उसके परिणास्वरूप उनके विसर्जन या छितराव की स्थिति भी उन्हें अपने आपको एक राष्ट्र इस्राइल मानने से नहीं रोक सकी। यहूदियों के राष्ट्रवाद का स्रोत बाइबिल है। इस्राइल की विशिष्ट अस्मिता या पहचान को बाइबिल में देखा जा सकता है और भारत में अनेक विद्वानों का मत है, गांधी ने औपनिवेशिकता के खिलाफ अपने संघर्ष में हिंदू प्रतीकों का प्रवीण ढंग से इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए गांधी ने आत्मनिर्भर, स्वायत्तशासी ग्राम समुदायों की अपनी अवधारणा को रामराज्य का नाम दिया।
- औपनिवेशिक राज्य के खिलाफ अनेक जनजातीय विद्रोहों और क्रांतियों में स्पष्ट रूप से धार्मिक पुट देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, बाहरी लोगों के हाथों मुंडाओं के शोषण के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले बिरसा मुंडा ने यह कह कर शुरुआत की कि उसे परमेश्वर की ओर से इलहाम हुआ। उसने परमेश्वर होने का दावा किया (धरती अब्बा का अर्थ है 'संसार का पिता) और चमत्कार करने के प्रयास भी किए।
धर्म और राजनीतिक आन्दोलन तीन सामान्य सिद्धांतों पर आधारित है-
- 1) संसार में इतने बड़े पैमाने पर मनुष्य दुख भोग रहे हैं कि अमेरिका जैसे अमीर समाजों के अपेक्षाकृत सुरक्षित और सुखी लोगों के लिए उसकी कल्पना करना भी लगभग असंभव है। सर्वप्रथम मुक्ति धर्म विज्ञान मनुष्यों की ऐसी दशा की सच्चाई की पहचान करने पर आधारित है।
- 2) मुक्ति धर्म विज्ञानियों के अनुसार, इतने बड़े पैमाने पर मनुष्यों की दुखद ईसाई धर्म के नैतिक सिद्धांतों से मेल नहीं खाती। सीधे सादे शब्दों में आज की दुनिया में पाई जाने वाली घोर सामाजिक विषमताएं ईसाई धर्म की समस्त मानवजाति की एकता से मेल नहीं खाती।
- 3) मुक्ति धर्म विज्ञान का यह दावा है कि विश्वास और विवेक (या अंतरात्मा) की अभिव्यक्ति के रूप में ईसाइयों को इस दुख को दूर करने की दिशा में आवश्यक कार्य करना चाहिए। ऐसी व्यावहारिक रणनीतियां अवश्य बनानी चाहिए जिससे बदलाव आए, और इसमें राजनीतिक कारवाई करना आवश्यक हो जाता है।
- अतः मुक्ति धर्मविज्ञानियों की बढ़ती संख्या ने ऐसे शासन वर्ग के विरूद्ध चलाए गए राजनीतिक संघर्ष में खुद को निर्धन वर्ग से जोड़ लिया है जहां पूंजी पर मुट्ठी भर लोगों धनी शासन वर्ग और इसके साथ-साथ रोमन कैथोलिक चर्च ने मुक्ति धर्म विज्ञान का जोरदार खंडन किया ।
- बहुत से मुक्ति धर्मविज्ञानी ऐसी व्यापक हिंसा में मारे गए जिसने लेटिन अमेरिका का विनाश कर डाला। रोमन कैथोलिक चर्च ने धर्म और राजनीति के मेल का जोरदार खंडन किया। रोमन कैथोलिक प्राधिकरण का मानना है कि मुक्ति धर्म विज्ञान राजनीतिक वाद-विवादों में शामिल होने के लिए ईसाई धर्म के अन्य वैश्विक मुद्दों से ध्यान हटाने पर जोर देता है। फिर भी मुक्ति धर्म विज्ञान आन्दोलन सिद्धांत और व्यवहार दोनों में लेटिन अमेरिका में विकास करता ही रहा है। इस के पीछे यह विश्वास है कि ईसाई धर्म और मानवीय न्याय की भावना दोनों ही दुनिया के गरीबों की दयनीय हालत को बदलने की लिए प्रयास की मांग करते हैं।
- धर्म सत्ता के ढांचे को स्थिरता प्रदान कर सकता है और साथ ही साथ इसका इस्तेमाल सत्ता के ढांचे को बदलने के लिए भी किया जा सकता है। अभी तक हमने इसे विस्तार से और खुल कर बताया है। फिर भी, धर्म और राजनीतिक व्यवस्था के आपसी संबंध की कुछ सीमाओं को समझना आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के लिए, दुनिया में फैले धर्मों को ही लें । विभिन्न स्थानीय / राष्ट्रीय धार्मिक समुदायों के बीच विशिष्ट राजनीतिक मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में, आपको धर्म को एकाश्म या अखंड समझने से बचना चाहिए, क्योंकि विभिन्न स्थानीय कारकों के फलस्वरूप धर्मों में सत्ता के ढांचे के साथ संबंध को लेकर अंतर हो सकता है।
- सार्वभौमिक राज्य कैथोलिक चर्च हर जगह दूसरे धर्मेतर क्षेत्रों के साथ संबंधों का संसार बुन कर सत्ता के ढांचे को स्थिरता प्रदार करता है। लेकिन लेटिन अमेरिकी देशों में कैथोलिक चर्च परंपराविरोधी भूमिका निभाता हुआ शोषणकारी स्थानीय सत्ता के ढांचों के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए दलित वर्गों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलता है।
- कैथोलिक चर्च का यह परंपरा विरोधी रूझान ईसाई सिद्धांतों की एक विशेष आधुनिक व्याख्या का परिणाम है, जिसे मुक्ति के धर्म विज्ञान के रूप में जाना जाता है। कुछ इसी तर्ज पर ध्यान से देखने पर आपको पता चलेगा कि इस्लाम मलेशिया और इंडोनेशिया में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का समर्थन करता है, जबकि ईरान में इस्लाम तुलनात्मक रूप से अनुदार और रूढ़िवादी है।
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