धर्म का अर्थ परिभाषा विशेषताएं एवं सिद्धांत |धर्म के संबंध में कार्ल मार्क्स , मैक्स वेबर का सिद्धांत |Religion theory sociology in Hindi

 धर्म का अर्थ परिभाषा विशेषताएं एवं सिद्धांत 

धर्म का अर्थ परिभाषा विशेषताएं एवं सिद्धांत |धर्म के संबंध में कार्ल मार्क्स , मैक्स वेबर का सिद्धांत |Religion theory sociology in Hindi



धर्म का अर्थ क्या होता है ?

 

  • मानव-समाज के इतिहास में धर्म हमेशा रहा है। धर्म संस्कृति का एक भाग होने साथ ही मानव के सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण आयाम है। यह मानव व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए नैतिक आधारों को ग्रहण करता है। अलौकिक सत्ता के अस्तित्व में विश्वास की एक व्यवस्था धर्म है। वे किसी अलौकिक शक्ति से डरने लगें और उसमें विश्वास करने लगे। उस शक्ति को वे अपने से अधिक शक्तिशाली मानते थे।

 

धर्म की परिभाषा

 

मानवशास्त्री टायलर ने धर्म को परिभाषित करते हुए एक अलौकिक सत्ता में विश्वास को धर्म कहा है समाजशास्त्री इस्माइल दुर्खीम के अनुसार धर्म विश्वास की एकबद्धता है और इसमें पवित्र वस्तुओं से संबंधित क्रियाएं होती हैं।

 

धर्म की आधारभूत विशेषताएं

 

धर्म की मुलभूत विशेषताएं निम्नलिखित हैं

 

  • प्राकृतिक शक्ति में विश्वास । 
  • यह विश्वास मन की भावनात्मक दशा जैसे भयप्रसन्नताभक्ति आदि से संबंधित है। 
  • धार्मिक प्रथाओं में बहुत सारी वस्तुएं सम्मिलित हैं। जैसे-वेदीघंटीवस्त्रफूलकेला पत्तियांबलिदानक्रॉसअगरबत्ती आदि ।  
  • जो जीवित वस्तुएं धर्मिक क्रियाओं के लिए प्रयुक्त होती हैं वे प्रत्येक संस्कृति में भिन्न प्रकार की हो सकती हैं। 
  • सामान्यतः धार्मिक अनुष्ठानअकेले में क्रियान्वित होते हैं लेकिन अवसर विशेष पर इनका सामूहिक रूप में आयोजन भी होता है। 
  • प्रत्येक धर्म की अपनी विशिष्ट पूजा विधि है।
  •  प्रत्येक धर्म का विशेष पूजा-स्थल है। 
  • स्वर्ग-नरक और पवित्र अपवित्र की अवधारणा प्रत्येक धर्म में विद्यमान है।

 

धर्म के सिद्धांत

 

  • मानवशास्त्रियों एवं समाजशास्त्रियों ने धर्म की उत्पत्ति के सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। ये सिद्धांत सामान्यतया उद्विकासीय हैं क्योंकि ये धर्म की संस्था के विकास के क्रमिक स्तर का वर्णन करते हैं। ई. वी. टायलर ने अपनी पुस्तक प्रिमिटिव कल्चर में धर्म की उत्पत्ति के विषय में स्पष्टतः अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका धर्म का सिद्धांत आत्मवाद के सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। इनके सिद्धांत के अनुसार धर्म आत्मा की धारणा से उत्पन्न हुआ। मृत्यु के तथ्य एवं स्वप्न की प्रघटना से आदिम लोगों के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि मृत्यु के आत्मा का देहांतरण होता है और सोने के समय ये स्वतंत्र आत्माएं शरीर-आत्मा से संपर्क स्थापित करती हैं। उनके अनुसार स्वप्न इसी अंतःक्रिया की अभिव्यक्ति हैं।

 

  • जे. जी. जर ने अपनी पुस्तक गोल्डन बो में धर्म की उत्पत्ति का सिद्धांत जादू और धर्म के बीच अंतर करते हुए प्रस्तुत किया। जर के अनुसार जादू बलपूर्वक प्रकृति पर नियंत्रण का प्रयास है। इसमें व्यक्ति यह मानकर चलता है कि प्रकृति की शक्ति की अपेक्षा मानव की शक्ति अधिक है। इसके विपरीत धर्म में उस शक्ति को मनुष्य से श्रेष्ठ माना जाता है इसलिए उसे संतुष्ट करने का प्रयत्न किया जाता है फ्रेजर के अनुसार मानव की विचारधारा क्रमश: पहले जादुई अवस्था फिर धार्मिक अवस्था और फिर वैज्ञानिक अवस्था पर विकसित हुई है।

 

  • मैक्समूलर का धर्म की उत्पत्ति का सिद्धांत प्रकृतिवाद के नाम से जाना जाता है। टायलर की ही भांति मैक्समूलर का सिद्धांत भी आदिम मानव की बौद्धिक भूल पर आधारित है। आदिम मानव प्रारंभ में प्रकृति विस्मयकारीडरावनी और आश्चर्यजनक प्रतीत हुई। विस्मय एवं आतंक के इस वातावरण ने प्रारंभिक समय से ही धार्मिक विचार एवं भाषा के लिए मनोवेग प्रदान किया। इसी अनंत अनिश्चितता की संवेदना से धर्म का प्रादुर्भाव हुआ।

 

  • अपनी पुस्तक दा एलीमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रिलिजियस लाइफ में दुर्खीम ने धर्म की उत्पत्ति के सभी विद्यमान सिद्धांतों को निरस्त कर दिया। उन्होंने धर्म का समाजशास्त्रीय सिद्धांत प्रस्तुत किया। दुर्खीम के अनुसार प्रत्येक धर्म में साधारण और पवित्र के रूप में वस्तुओं का विभाजन होता है। पवित्र वस्तुएं वे हैं जो विशेष और श्रेष्ठ के रूप में संरक्षित एवं पृथक रखी जाती हैं। साधारण वस्तुएं निषिद्ध होती हैं और पवित्र से दूर रखी जाती हैं। किसी वस्तु की पवित्रता उसकी अंतर्निहित विशेषता नहीं होती है। यह उसे दूसरे स्रोतों से प्राप्त होती है।

 

  • दुर्खीम के अनुसार टोटमवाद धर्म का अति प्राचीन रूप था। गिडेंस के अनुसार 'टोटमशब्द की के प्रथम उत्पत्ति उत्तरी अमेरिकन भारतीय जनजातियों में हुई लेकिन इसका व्यापक प्रयोग उन पौधों या पशुओं के संदर्भ में हुआ जिनमें अलौकिक शक्ति मानी गई। टोटम में विचारों की श्रृंखला होती है। उन विचारों में यह है कि एक सामाजिक समूह के लोग एक ही पूर्वज से संबंधित हैं (गोत्रवंश आदि)। टोटम को दर्शाने के लिए प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। समान टोटम के समूह के सदस्यों के बीच यौन-संबंध या विवाह निषिद्ध होता है। टोटम के मारनेखाने तथा समारोह में बलि दिए जाने पर पूर्णतः प्रतिबंध होता है।

 

  • दुर्खीम का मूलभूत तर्क यह है कि सभी धार्मिक विचारों जैसे-टोटम की उत्पत्ति सामाजिक समूह से हुईदेवी-देवतापवित्र तथा अपवित्रस्वर्ग तथा नरक एवं टोटम स्वयं समूह के सामूहिक प्रतिनिधि हैं।

 

  • टोटम का संबंध पवित्रता से माना जाता है क्योंकि यह सामूहिक जीवन का प्रतीक है। लोग टोटम का सम्मान करते हैं क्योंकि वे सामाजिक मूल्यों का सम्मान करते हैं। टोटम सामूहिक संचेतना का प्रतिनिधित्व करता है। दुर्खीम के अनुसार धर्म के सामूहिक उत्सव होते हैं। लोगों का धर्म में विश्वास सामूहिक एकात्मकता को और अधिक दृढ़ करता है।

 

धर्म के संबंध में कार्ल मार्क्स का सिद्धांत -

 

  • यद्यपि कार्ल मार्क्स ने धर्म के उन्मूलन की बात नहीं की ( जिस प्रकार व्यक्तिगत संपत्ति की समाप्ति की बात की) पर उसने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की भांति धर्म में भी मनुष्य के विलगाव (अलगाव) की कल्पना की। 


  • मार्क्स ने कहा है कि मनुष्य जितना ही ईश्वर में विश्वास रखेगा उतना ही स्वयं से दूर होता जाएगा। उसने कहा भी कि धर्म जनता के लिए अफीम है। लोग स्वयं व अन्य मानवों पर किए  गए अन्याय एवं असमानता को ईश्वरेच्छा के रूप में स्वीकृति प्रदान करते हैं और इसके परिणामस्वरूप दमन के विरूद्ध प्रतिरोध कम हो जाता है। धर्म बाद के जीवन के विश्वास दिलाता है। मार्क्स का विचार है कि धर्म असमानता एवं शोषण के विरूद्ध बगावत की संभावना कम कर देता है। 

 

धर्म के संबंध में मैक्स वेबर का सिद्धांत.

 

  • मैक्स वेबर ने आर्थिक विकास में धर्म की उपादेयता की खोज के लिए विश्व के धर्मों का अध्ययन किया जिसमें हिंदू धर्म भी सम्मिलित है।
  • वेबर ने अपनी पुस्तक द प्रोटेस्टैंट इथिक एंड द स्प्रिंट ऑफ कैपिटलिज्म में लिखा है कि पश्चिम में प्रोटेस्टैंट धर्म के उदय के कारण आधुनिक पूंजीवाद का विकास हुआ। 
  • वेबर के अनुसार काल्विनवाद ने उद्यमियों के विकास में सहायता की, क्योंकि प्रोटेस्टैंट धर्म की मान्यता है कि भौतिक सफलता के लिए ईमानदारी से कठोर परिश्रम ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। इसके विपरीत हिंदू धर्म पारलौकिकता के दर्शन और भौतिक संपत्ति के त्याग पर जोर देने के कारण विकास में सहायक नहीं है। 
  • हिंदू धर्म और भारतीय आर्थिक विकास में इसके प्रभाव से संबंधित वेबर के निष्कर्ष सही नहीं हैं। देखा जाए तो देश के अधिकांश प्रारंभिक उद्यमी जैसे मारवाड़ी प्रबल आस्थावान समुदायों में से एक हैं। इस तथ्य में भी सत्यता नहीं है कि पश्चिमी जगत में केवल प्रोटेस्टैंटों ने ही विकास किया, कैथोलिकों ने नहीं।

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