भारत में सामुदायिक विकास के विभिन्न कार्यक्रम |Rural Development Programs in India
भारत में सामुदायिक विकास के विभिन्न कार्यक्रम
- राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ग्रामीण विकास को महत्व प्रदान करने की दृष्टि से हाल के वर्षों में सुधार के कदम उठाए गए हैं, ताकि असंतुलन को दूर किया जा सके। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा स्थायी विकास लाने के लिए बड़ी मात्रा में पूंजी लगाई है। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गरीब समर्थित नीति में ग्रामीण गरीबों को उनके अपने परिपूर्ण विचार और क्षेत्रीय परिस्थितियों के उनके अनुभवों को लेकर शुद्ध साधन की तरह विकास रणनीति का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। इस प्रक्रिया में समाज के सबसे पिछड़े वर्ग को उच्च प्राथमिकता दी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को कायम रखने के लिए ग्रामीण विकास के प्रावधान में भारी मात्रा में वृद्धि की गई है।
भारत में ग्रामीण विकास हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
(1) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
- सरकार द्वारा मई 2013 में इस परिकल्पना के साथ पीएमजीएसवाई-II की शुरुआत की गई कि लोगों, वस्तुओं और सेवाओं के लिए परिवहन सेवाओं के प्रदाता के रूप में इसकी समग्र दक्षता में सुधार के लिए मौजूदा ग्रामीण सड़क नेटवर्क का समेकन किया जाए। इसमें उनकी आर्थिक क्षमता और ग्रामीण बाजार केद्रों तथा ग्रामीण हबों के विकास को प्रोत्साहित करने में इनकी भूमिका के आधार पर मौजूदा चयनित ग्रामीण सड़कों का उन्नयन करने की परिकल्पना की गई है। पीएमजीएसवाई-II की परिकल्पना केंद्र और राज्यों के बीच साझा आधार पर की गई थी।
- पीएमजीएसवाई-II, पीएमजीएसवाई-I के तहत निर्मित/अद्यतन की गई सड़कों, पीएमजीएसवाई-I के तहत पात्र माध्यम मार्गों/संपर्क मार्गों परंतु जिन्हें अभी तक स्वीकृत नहीं की किया गया हो और यातायात भीड़भाड़ और विकास केंद्र संभावना पर निर्भर करते हुए 5.5 मीटर तक के मौजूदा कैरिजवे से अपग्रेड किए जाने के लिए संशोधित जिला ग्रामीण सड़क योजना (डीआरआरपी) में नए सिरे से चिह्नित माध्यम मार्गों/ संपर्क मार्गों पर केंद्रित है।
- इसमें प्रशासनिक तथा प्रबंधन लागत सहित, 33,030 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत (2012-13 कीमतों पर) पर पीएमजीएसवाई-II कार्यक्रम के तहत कुल 50,000 कि.मी. सड़कों की लंबाई को समाहित किया जाना प्रस्तावित किया गया था। केंद्र और राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के बीच मैदानी क्षेत्रों में यह लागत 75:25 के अनुपात में और विशेष क्षेत्रों के लिए 90:10 के अनुपात में साझा की जाएगी। बाद में, निधि साझा करने के पैटर्न को मैदानी राज्यों के लिए 60:40 और विशेष श्रेणी राज्यों और पहाड़ी राज्यों के लिए 90:10 में बदल दिया गया। इस कार्यक्रम के तहत सभी राज्य और संघ शासित प्रदेश पात्र हैं।
( 2 ) ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम
- ग्रामीण निवास स्थानों में पेयजल सुविधाऐं राज्य स्कन्ध न्यूनतम आव यकता कार्यक्रम के तहत प्रदान की जाती हैं। केन्द्र द्वारा प्रायोजित त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के तहत सहायता प्रदान कर केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के प्रयासों को बल प्रदान करती है। साथ ही राज्यों को जलापूर्ति योजनाओं के नियोजन तथा कियान्वयन के लिए अधिकार दिए गए हैं।
( 3 ) केन्द्र द्वारा प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम
- ग्रामीण स्वच्छता राज्य का विषय होने के कारण ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम राज्य क्षेत्र के न्यूनतम आव यक कार्यक्रम के तहत राज्य सरकारों द्वारा कियान्वित किया जाता है। केन्द्र द्वारा प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के जरिये वित्तीय तथा तकनीकी सहायता प्रदान करके केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रयासों को मजबूत करती है।
( 4 ) इन्दिरा आवास योजना
- गांवों में रहने वालों की आवास सम्बन्धी आव"यकताओं की पूर्ति के लिए मई, 1985 में जवाहर योजना की उप-योजना के रूप में इन्दिरा आवास शुरू की गई। 01 जनवरी, 1996 से यह स्वतंत्र योजना के रूप में लागू है। इस योजना का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जातियों / जनजातियों, मुक्त बंधवा मजदूर और गैर- अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में आने वाले ग्रामीण गरीबों को आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद करना है, जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है। वर्ष 1995-96 में इन्दिरा आवास योजना के लाभ युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं या निकटतम संबंधी को भी दिये जाने लगे हैं।
5 स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
- एक समग्र स्वरोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती के नाम से 1 अप्रैल, 1999 को शुरू हुई। इस योजना में पूर्व से चल रहे निम्नांकित छह विषयों का विलय किया गया - समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार प्रििक्षण, कार्यक्रम ट्राइसेम, ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम डवाकरा, ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजार किट आपूर्ति कार्यक्रम, गंगा कल्याण योजना, दस लाख कुंआ योजना। योजना का उद्दे”य गरीबों की पारिवारिक आय को बढ़ाना तथा आधारभूत स्तर पर लोगों की स्थानीय जरूरतों व संसाधनों को सुगमता प्रदान करना है। योजना का बुनियादी मकसद गरीबी रेखा से नीचे के हर स्वरोजगारी को आय पैदा करने के लिए सहायता देना है। स्वर्ण जयन्ती स्वरोजगार योजना पंचायती राज संस्थाओं, बैंकों और स्वयंसेवी संगठनों की सक्रिय भागीदारी के साथ जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों के जरिये क्रियान्वित की जा रही है।
(6) ग्रामीण विकास और पर्यावरण का अभिनव कार्यक्रम
- किफायती, पर्यावरण-अनुकूल, वैज्ञानिक रूप से परीक्षित और प्रभावी स्वदे”ी व आधुनिक डिजाइनों में प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्दे”य से 01 अप्रैल, 1999 से ग्रामीण आवास और पर्यावरण विकास का अभिनव कार्यक्रम शुरू किया गया है। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में नवीन व प्रमाणित आवास प्रौद्योगिकियों, डिजाइनों और सामग्रियों को बढ़ावा देना / प्रचारित करना है। वर्ष 2002-03 के दौरान 10 करोड़ रूपये का प्रावधान रखा गया है, जिसमें से 0.32 करोड़ रूपये विभिन्न परियोजनाओं पर खर्च किए गए हैं।
(7) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना
- यह योजना 01 अप्रैल, 1999 से लागू हुई, ताकि पूर्व में चल रही जवाहर रोजगार योजना, 1986 को पुनःगठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप प्रदान किया जा सके। इस योजना को सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में मिला दिया गया है। इस योजना का मौलिक उद्देश्य गांवों में मांग पर आधारित सामुदायिक अवसंरचना का सृजन करना है। इसका प्राथमिक उद्दे" य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार एवं अल्प बेरोजगार व्यक्तियों के लिए लाभकारी रोजगार अवसरों का सृजन करना है। इस योजना को दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़ समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू किया गया है।
(8) जिला ग्रामीण विकास एजेंसी प्रशासन
- 01 अप्रैल, 1999 से केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना जिला ग्रामीण विकास एजेंसी प्रासन शुरू की गई। योजना का उद्देय जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों को सक्ति बनाना तथा इन्हें इनके क्रियान्वयन के लिए अधिक व्यावसायिक बनाना है। जिला ग्रामीण विकास एजेंसी प्रासन के लिए का आवंटन केन्द्र व राज्यों के बीच 75:25 के आधार पर होता है।
(9) राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम एवं अन्नपूर्णा
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 को अस्तित्व में आया था। यह केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना और राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना से मिलकर बनाया गया, जिसका मकसद वृद्धों को सामाजिक सुरक्षा देना और घर के मुखिया की मौत के मामले में सहायता करना था। राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेन्सन योजना में 65 वर्षीय उपेक्षित वृद्ध को प्रति माह 75 रूपये की सहायता देने का प्रावधान किया गया था और राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना घर के पालनकर्ता की मौत पर घर वालों को कुल 10 हजार रूपये लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया।
(10) जन सहयोग और ग्रामीण प्रौद्योगिकी उत्कर्श (कपार्ट)
- ग्रामीण विकास में स्वैच्छिक क्रियाकलापों के प्रोत्साहन, प्रवर्तन और सफलता के उद्दे”य से तथा ग्रामीण समृद्धि में वृद्धि के लिये नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर ध्यान केन्द्रित करने के लिये सरकार ने जन-सहयोग और ग्रामीण प्रौद्योगिकी उत्कर्ष परिषद (कपार्ट) की स्थापना की। यह ग्रामीण विकास विभाग के तहत एक पंजीकृत संस्था है।
- कपार्ट की नौ प्रादेशिक समितियां / प्रादेशिक केन्द्र हैं, जो जयपुर, लखनऊ, अहमदाबाद, भुवने"वर, पटना, चण्डीगढ़, हैदराबाद, गुवाहाटी और धारवाड़ में स्थित हैं। प्रादेशिक समितियों को अपने अपने प्रदे" में स्वयंसेवी संस्थाओं की 20 लाख रूपये तक के परिव्यय वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने की शक्तियां प्राप्त हैं।
( 11 ) एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम
- एकीकृत बंजर विकास कार्यक्रम वर्ष 1989-90 से चलाया जा रहा है। 01 अप्रैल, 1995 से यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। 01 अप्रैल, 2000 से यह पूर्णतया केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है। योजना में संसाधनों का बंटवारा केन्द्र और राज्य में 92:8 के अनुपात में है। इस कार्यक्रम में बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करने में भी मदद मिलती है।
- इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ग्राम / सूक्ष्म जलसंभर योजनाओं पर आधारित एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम का क्रियान्वयन करना है। भूमि क्षमता, स्थल परिस्थितियों तथा स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रख कर भागीदार इन योजनाओं को बनाते हैं।
(12) सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम
- सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम 1977-78 में रेगिस्तानी व ठंडे दोनों क्षेत्रों में गर्म रेगिस्तानी क्षेत्रों के राजस्थान, गुजरात और हरियाणा तथा ठंडे रेगिस्तानों के ग्रामीण क्षेत्र जम्मू–क"मीर और हिमाचल प्रदेश से शुरू हुआ था । वर्ष 1995-96 से इस योजना का विस्तार आन्ध्र प्रदेा और कर्नाटक के कुछ और जिलों में हुआ।
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