श्योपुर जिले के पर्यटन स्थल |Sheopur tourist places in hindi
श्योपुर जिले के पर्यटन स्थल Sheopur tourist places in hindi
श्योपुर जिले की सामान्य जानकारी
- मध्यप्रदेश के उत्तरी सिरे पर स्थित श्योपुर अपने अनूठे नैसर्गिक सौंदर्य, ऐतिहासिक व पुरातात्विक विरासत, राजस्थान की सतरंगी संस्कृति एवं विलक्षण कला का नायाब नमूना है। यहां के इतिहास की प्रामाणिक जानकारी 9वीं 10वीं शताब्दी से प्राप्त होती है। लेकिन एक तरफ सरका तालाब और भीमसरा से मिले पत्थर के औजार और दूसरी तरफ गुफाओं में मिले भित्ति चित्र यह बताते हैं, कि प्रागैतिहासिक काल में भी यहां मानव का निवास हुआ करता था।
- श्योपुर के इतिहास के संबंध में पहली साहित्यिक जानकारी खड्गरायकृत 'गोपाचाल आख्यान' से प्राप्त होती है। उस समय इस नगर का नाम शिवपुर था । कच्छपघात शासकों की राजधानी चंडोभ नगर या डोभ नगर थी, किन्तु वर्तमान श्योपुर (शिवपुर) में भी मंदिरों का निर्माण किया गया। डोब कुण्ड से प्राप्त कच्छपघात शासक महाराजधिराज विक्रम सिंह के. वि.स. 1145 (ई.सन् 1088) अभिलेख में श्योपुर अंचल के इतिहास का विशद् वर्णन है।
श्योपुर जिले के पर्यटन स्थल की जानकारी
श्योपुर किला Sheopur Fort
- मध्य कालीन भारत के वैभव के प्रतीक श्योपुर किले को सन् 1026 में बनवाया गया था। वर्ष 1301 में अलाउद्दीन खिलजी ने किले को जीत लिया। सन् 1489 में इस पर मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी का अधिकार हो गया। 1542 में शेरशाह सूरी ने किले पर नियंत्रण किया। दीवान ए-आम और दरबार हॉल किले की मुख्य विशेषता है।
- सीप एवं कदवाल नदी के संगम पर बना यह किला प्रस्तर शिल्प का बेजोड़ नमूना है। यह किला रणथंबौर के हमीरदेव, मेवाड़ के राणा कुम्भा, अलाउद्दीन खिलजी और शेरशाह सूरी जैसे अनेक राजाओं के लिए चुनौती का विषय रहा है। थोड़े समय के लिए यह किला मालवा सल्तनत का भी हिस्सा बना।
- सन् 1567 में यह किला मुगल साम्राज्य के सुपुर्द कर दिया गया और 18वीं सदी में जब मराठा सत्ता के शीर्ष पर थे, यह बंगाल के गौर राजपूतों के हाथों में रहा। बाद में सिंधिया राजाओं ने इस पर आधिपत्य किया और आजादी के बाद यह कि ला राज्य पुरातत्व विभाग के पास आ गया।
नरसिंह महल Narsingh Mahal
- श्योपुर जिले में सीप नदी के किनारे स्थित यह खूबसूरत इमारत, अलग-अलग शासकों, जिन्होंने 16वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक यहां राज किया, के समय की बदलती हुई वास्तुशैली का जीवंत उदाहरण है। कुछ लोग इस महल को 11वीं सदी का बताते हैं, तो कुछ और लोगों के अनुसार इसे 16वीं सदी में गौर राजपूतों ने बनवाया था।
- नरसिंह महल के सामने स्थित चार बाग मुगल शैली के स्थानीय स्वरूप का नमूना है, तो गुजरी महल के झरोखे और बंगलदार छतें राजपूत शैली का प्रतिनिधित्व क रती हैं। दीवान-ए-आम और दरबार हॉल सिंधिया शासकों की पसंद जाहिर करते हैं। फिलहाल दरबार हॉल में एक संग्रहालय है जिसमें सहरिया जनजातीय समुदाय की संस्कृति और जीवनशैली की झलक देखी जा सकती है ।
मानपुर का किला Manpur Ka Kila
श्योपुर से 45 किलोमीटर दूर राजा मानसिंह द्वारा बनाया गया यह किला बाद मे श्योपुर
के गौड़ राजाओ के आधिपत्य में आ गया, सन 1809 ई मे दौलतराव सिंधिया ने इसे जीत लिया
किले मे स्थित मानेश्वर महादेव मंदिर तथा राग रागनियो के चित्र महत्वपूर्ण हैं.
बंजारा डैम Bajara Dam Sheopur
- सीप नदी पर स्थित बंजारा डैम एक किंवदंती के अनुसार लख्खी बंजारे द्वारा बनाया गया था परन्तु इस डैम के निर्माण का वास्तविक प्रमाण सन 1728 ई मे राजा इन्द्रसिंह गौड़ द्वारा बनवाये जाने का मिलता है |बाद मे जनकोजीराव सिंधिया के समय इस डैम की उंचाई बढाई गयी जिसका शिलालेख बंजारा डैम की दीवार पर लगा हुआ है.
ईदगाह
- शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित ईदगाह श्योपुर के प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में शामिल है। आज भी ईद के दिन इसमें श्योपुर के हजारों मुस्लिम नमाज पढ़ते हैं।
सिपहसालार का मकबरा
- सन् 1554 में शेरशाह सूरी के सिपहसालार गूगोर के शासक मुनव्वर खान का यह मकबरा भी प्रस्तर शिल्प का सुंदर नमूना है। इस मकबरे का निर्माण शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह के समय में पूरा हुआ। यह राज्य पुरातत्व स्मारक भी है ।
रामेश्वर का त्रिवेणी संगम
- श्योपुर से 40 कि.मी. दूर सीप, चंबल व बनारस की नदियों का यह पालन संगम जन- जन की आस्था का केन्द्र है। संगम के इस पार मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित लक्ष्मीनाथ व रामेश्वर महादेव का मंदिर तथा उस पार राजस्थान में बना चतुर्भुज मंदिर दर्शनीय है। यहां सिंधिया शासकों द्वारा बनाया डाक बंगला भी स्थित है। 12 फरवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अस्थि कलश भी यहां विसर्जित किया गया, जो इसके महत्व को रेखांकित करता है।
कूनो वन्यजीव अभयारण्य अब कूनो राष्ट्रीय उद्यान
- श्योपुर और विजयपुर तहसील में स्थित यह अभयारण्य कुल 344.68 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। जिले के जीव जंतुओं के संरक्षण के लिए इस अभयारण्य को 1981 में स्थापित किया गया था। अभयारण्य में बाघ, तेंदुआ, चीतल, सांभर, काला हिरण, चिंकारा, भालू, नीलगाय, चौसिंहा, जंगली बिल्ली, बंदर, भेड़िए, लोमड़ी, लकड़बग्घा, जंगली सूकर, कोबरा नाग, मोर, काला तीतर, आदि पशु-पक्षियों को देखा जा सकता है। गुजरात के गिर से बब्बर शेर (एशियाटिक लॉयन) लाकर यहां बसाने की योजना पर भी काम चल रहा है।
- म.प्र.शासन के राजपत्र में 14/12/2018 को जारी अधिसूचना के अनुसार कूनो-पालपुर अभ्यारण्य को “कूनो राष्ट्रीय उद्यान” घोषित किया गया है साथ ही करैरा अभ्यारण्य (शिवपुरी) को डिनोटिफिकेशन किया गया तथा कुछ अभ्यारण्य के कुछ क्षेत्रों को भी डिनोटिफिकेशन किया गया है।
- ‘कूनो राष्ट्रीय उद्यान’ बन जाने से प्रदेश में जहाँ राष्ट्रीय उद्यानों की संख्या 11 से बढ़कर 12 हो गयी, वहीं दो अभ्यारण्य (कूनो पालपुर और करैरा) कम होनेसे अभ्यारण्य की संख्या (प्रस्तावित सहित) 31 से घटकर 29 रह गयी है।
- नवीन परिवर्तन से प्रदेश में सोन चिड़िया के लिए संरक्षित दो अभ्यारण्य करैरा तथा घाटीगांव में से करेरा के डिनोटिफिकेशन के बाद केवल घाटीगांव अभ्यारण्य ही सोन चिड़िया के लिए आरक्षित अभ्यारण के रूप में रह गया है।
- मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में 4 सितम्बर, 2018 को हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में करैरा अभयारण्य के गठन की अधिसूचना को रद्द कर (डिनोटिफिकेशन), सोनचिड़िया अभ्यारण्य, घाटीगाँव के आंशिक क्षेत्र का डिनोटिफिकेशन तथा अन्य विकास योजनाओं में उपयोग में आ रही अभ्यारण्य/ राष्ट्रीय उद्यान की भूमि के समतुल्य भूमि को संरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान/ अभ्यारण्य) के रूप में शामिल करते हुए कूनो राष्ट्रीय उद्यान के गठन को मंजूरी दी।
कूनो डाक बंगला
- ग्वालियर रियासत के तत्कालीन महाराजा माधोराव सिंधिया द्वारा घने जंगल में कूनो नदी के तट पर इस डाक बंगले का निर्माण कराया गया। इसमें रेलवे कोच को भोजन कक्ष के रूप में उपयोग किया गया है। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता - है जैसे किसी स्टेशन पर रेल आकर रुकी हो। इस डाक बंगले से प्रकृति का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।
सोंई व राजपुरा की गढ़ियां
- राजपुरा की गढ़ी का निर्माण राजा गोपाल दास गौड़ ने करवाया था। उस राजा की दानवृत्ति के कारण शाहजहां ने उसे मान्धाता का खिताब दिया था। सोंई के गढ़ का निर्माण सन् 1667 ई. में कृष्ण सिंह गौड़ ने करवाया था। सोंई में प्राचीन नाथों की छतरियां प्रस्तर शिल्प का सुंदर नमूना हैं। सैकड़ों की संख्या में सती स्तम्भ, मजारें यहां के पुरातात्विक वैभव के प्रतीक हैं।
पालपुर का किला Palpur Fort Sheopur
- कूनो नदी के बाएं किनारे पर पालपुर का किला स्थि है। यह स्थान पालपुर की गढ़ी के नाम से जाना जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से इस गढ़ी का भारी पत्थरों से निर्माण किया गया है। बगल से बहती कूनो नदी के कारण भी यह एक सुरक्षित किला है। गढ़ी के भीतर एक मंदिर और कचहरी आज भी मौजूद हैं ।
मानपुर का किला
- श्योपुर से 35 कि.मी. दूर राजा मानसिंह द्वारा बनाया यह किला बाद में श्योपुर के गौड़ राजाओं के आधिपत्य में आ गया। सन् 1809 ई. में दौलतराव सिंधिया ने इसे जीत लिया। किले में स्थित मानेश्वर महादेव मंदिर तथा राग-रागनियों के चित्र दर्शनीय हैं।
पुरानी हवेली, नयागांव
- श्योपुर से 20 कि.मी. की दूरी और श्योपुर बड़ौदा मार्ग पर यह पुरानी हवेली स्थित है। यहां पहुंचने के लिए बसें उपलब्ध हैं, हवेली का निर्माण 18वीं सदी में हुआ है। दो मंजिला इस इमारत का निर्माण बड़ौदा के गौर राजपूत वंश द्वारा हुआ है। हवेली चूने पत्थर और ईंटों से बनी है। इसके प्रवेश द्वार पर स्तंभों पर अर्द्धगोलीय आकार के दरवाजे हैं। इस इमारत में दूसरी मंजिल और छत पर पहुंचने के लिए यहां रेलिंग सहित सीढ़ियां बनी हुई हैं। इमारत के कक्षों में झरोखे भी हैं ।
बड़ौदा का किला Baroda Ka KIla
- खीची राजाओं द्वारा निर्मित इस किले को राजा इन्द्र सिंह गौड़ ने जीत कर श्योपुर रियासत का एक भाग बना दिया। सन् 1809 ई. में दौलतराव सिंधिया के जागीरदार बन कर रह गये। किले में शीश महल, हवा महल, शंकर महल दर्शनीय हैं।
हासिलपुर का मंदिर व छत्री
- हासिलपुर में देवा का एक प्राचीन मंदिर है। जिसमें पुरातात्विक महत्व के कई प्रस्तर खण्ड व मूर्तियां रखी हैं। यहां लगभग 250 वर्ष पुराना सीताराम मंदिर स्थित है। मंदिर के पास महंत चरण दास (सन् 1776 ई.) हरीदास एवं रामदास की सुन्दर छत्रियां बनी हैं।
हरिपुरा के प्राचीन मंदिर
- घनघोर जंगल में स्थित हरिपुरा में दो जैन व एक शिव मंदिर बने हैं। 10वीं- 11वीं शताब्दी के ये मंदिर भग्नावस्था में हैं।
सीप नदी के सुरम्य घाट
- श्योपुर को अर्द्ध चन्द्रकार घेरे में लिये सीप यहां की जीवनदायिनी नदी है। इस नदी के किनारे राजा किशोर दास द्वारा सन् 1775 ई. में बनाए गए सोहन घाट सहित कर्बला घाट, जत्ती घाट, गिरिराज घाट, पंडित घाट, तिनमिश्री घाट, सुरम्य दृश्यों से युक्त होने के साथ-साथ धार्मिक आस्था एवं सांस्कृतिक उत्सवों के केन्द्र हैं। कर्बला घाट पर मोहर्रम पर ताजियों का विसर्जन होता है, तो गिरिराज घाट पर भादों की दशमी पर लोक देवता तेताजी का मेला भरता है । जत्ती घाट प्रसिद्ध संत मधुबन दास की कर्मस्थली है। श्योपुर के संत मगनानंद की साधना स्थली मोतीकुई, कलंदर शाह पीर की बगीची, गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, नवलखा, कानूपीर की चरगाह सहित कई प्राचीन मंदिर, मस्जिद व दरगाहें धार्मिक आस्था के केन्द्र हैं।
सहरिया संग्रहालय Sahariya Museum
श्योपुर किले में अत्यंत पिछड़ी सहरिया जनजाति की संस्कृति के संरक्षण के लिए सहरिया विकाश प्राधिकरण एवं पुरातत्वा एवं संस्कृति संरक्षण समिति के तत्त्वाधान मे सहरिया संग्रहालय की स्थापना की गयी है यह सहरिया संस्कृति का शोध केंद्र भी है.
छिमछिमा हनुमान मंदिर
- घने वन में स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र के लोगों की आस्था का केन्द्र है। भादप्रद अमावस्या के बाद पडने वाले मंगलवार या शनिवार को यहां विशाल मेला भरता है।
ढोढ़र की गढ़ी
- करौली के राजा गोपाल सिंह गोण्ड द्वारा निर्मित यह गढ़ी इक्का-दुक्का महलों को छोड़ भग्नावस्था में पहुंच गई है, परन्तु इसमें बना गिर्राज मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र है।
रामेश्वर का संगम
- पार्वती और चंबल नदी के संगम स्थल को रामेश्वर का संगम कहा जाता है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण यह स्थान समुद्र तल से 959 फीट की ऊंचाई पर है। प्रत्येक वर्ष यहां एक स्थानीय मेला लगता है। मेले में राजस्थान से भी पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं।
डोबकुण्ड
- श्योपुर से 55 किमी. दूर गोरस- यामपुर मार्ग पर स्थित डोब कुण्ड प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल तक की सभ्यताओं का साक्षी रहा है। यहां पानी के दो प्राकृतिक कुण्ड हैं जिनके किनारे 8 से 10 हजार वर्ष पूर्व आदि मानव के प्राचीन आवास शैलाश्रय हैं, जिनमें उनके द्वारा बनाए गए शैलचित्र हैं। 9 वीं-10वीं शताब्दी में डोब कच्छापघात राजाओं की राजधानी रहा है।
- संवत् 1045 में विक्रमसिंह कच्छापघात द्वारा बनाए गए जैन मंदिर, हरगौरी मंदिर, तथा अन्य मंदिरों के भग्नावशेषों के अतिरिक्त तत्कालीन महाराजा माधवराव सिंधिया द्वारा पालतू शेरों को रखने के लिए बनाए गए विशाल पिंजरे के साथ-साथ सघन वन और प्रकृति की अनमोल संपदा के संपन्न डोबकुण्ड दर्शनीय है।
जगदीश मंदिर, बगल्दा
- श्योपुर से 35 कि.मी. दूर बागल्दा में अहेली नदी के किनारे जगदीश मंदिर स्थित है। यहां श्री कृष्ण, बलराम व सुदामा की प्रतिमाएं जगन्नाथपुरी की तरह लकड़ी की बनी हैं, जिनमें सुन्दर चित्रकारी है। गांव में प्राचीन कौड़ी बावड़ी, रतन बावड़ी, तथा मोतु कुआं स्थित है।
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