स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति , स्वयं सहायता समूहों का गठन | SHG Kya Hote Hain
स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति, स्वयं सहायता समूहों का गठन
स्वयं सहायता समूह के बारे में जानकारी
- स्वयं सहायता समूह 15-20 सदस्यों का विशेषकर आर्थिक दृष्टि से एक समान ग्रामीण निर्धनों का छोटा समूह होता है। इस समूह की ज़रूरतें समूह के भीतर एक जैसी होती हैं और सब मिलकर सामूहिक रूप से एक ही कार्य करना चाहते हैं।
- दूसरे शब्दों में, इस समूह के सदस्य अपने विकास की साझी रणनीतियाँ तय करते हैं। स्वयं सहायता समूह स्वप्रेरणा से बचत के लिये बनाया गया समूह है जिसके सभी सदस्य एक साधारण निधि (Common Fund) में योगदान करने पर सहमत होते हैं। इस निधि से स्वयं सहायता समूह के निर्णय के अनुसार जरूरतमंद सदस्यों को उत्पादक तथा उपभोग के प्रयोजनों के लिये ऋण दिये जाने का प्रावधान होता है ताकि उनकी आय में वृद्धि हो और उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।
स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य
- स्वयं सहायता समूह का उद्देश्य केवल वित्तीय मध्यस्थता (Financial intermediation) ही नहीं बल्कि यह स्वप्रबंधन व विकास के ज़रिये कम लागत वाली वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लक्ष्य को लेकर संचालित होता है। दूसरे शब्दों में, इसका उद्देश्य ग्रामीण निर्धनों की ऋण की जरूरतों की पूर्ति के लिये पूरक ऋण नीतियाँ बनाना है। इसके साथ ही बैंकिंग गतिविधियों को बढ़ावा देना, बचत तथा ऋण के लिये सहयोग करना तथा समूह के सदस्यों के भीतर आपसी विश्वास और आस्था बढ़ाना भी इनके उद्देश्यों में शामिल है।
स्वयं सहायता समूहों का गठन
- स्वयं सहायता समूहों का गठन सामान्यतया गैर-सरकारी संगठनों अथवा सरकारी निकायों द्वारा किया जाता है। ये अनौपचारिक समूह (Informal Groups) होते हैं जिनके अधिकतम 20 सदस्य भारतीय विधिक प्रणाली के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह के रूप में अपना पंजीकरण कराते हैं। परिवार का कोई एक सदस्य, पुरुष या स्त्री स्वयं सहायता समूह का सदस्य बन सकता है। स्वयंसेवी संगठन इन समूहों को आपस में कर्ज देने, वसूली करने, बचत खाता खोलने आदि में प्रशिक्षण देते हैं और निकट के बैंक से जोड़कर समूह का खाता खुलवाते हैं। सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद बैंक इनकी कैश क्रेडिट लिमिट या ऋण साख तय कर देते हैं फिर स्वयं सहायता समूह उस धन से सदस्यों में कर्ज बाँटता है। बैंक को किश्त अदा करने की जिम्मेदारी स्वयं सहायता समूह की होती है।
स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति (Origin of Self Help Groups)
- स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति भारत में 1970 के दशक में हुई। वर्ष 1972 में डॉ. ईला भट्ट द्वारा सेल्फ इम्प्लॉयड वीमन्स एसोसिएशन (सेवा) का गठन किया गया जिसने निर्धनता उन्मूलन, महिला रोज़गार व महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन अधिक संगठित व व्यवस्थित रूप में स्वयं सहायता समूह आंदोलन की शुरुआत बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में हुई। इनकी कार्य प्रणाली ने पूरे विश्व को प्रभावित किया। इसने लोगों में बचत की आदत डालने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की।
स्वयं सहायता समूह-बैंक संयोजन कार्यक्रम
- भारत में स्वयं सहायता समूह-बैंक संयोजन कार्यक्रम एक पायलट कार्यक्रम के रूप में एस.के. कालिया समिति की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1992 में नाबार्ड द्वारा शुरू किया गया। इस मॉडल के आधार पर नाबार्ड ने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से गरीब महिलाओं को लघु वित्त (micro finance) की सुविधा उपलब्ध कराते हुए उन्हें संगठित बैंकिंग सेवा से जोड़ने का प्रयास किया है। इस व्यवस्था के अंतर्गत सर्वप्रथम 10-12 महिलाएं अपनी छोटी-छोटी बचतों को एकत्रित कर कोष बना लेती हैं। फिर इसका उपयोग सदस्यों के द्वारा अपनी उत्पादक या उपभोग संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये किया जाता है। निश्चित समयांतराल पर इन समूहों को बैंकों से संबद्ध करके ऋण प्रदान किया जाता है। यही नहीं, ऋण का सार्थक उपयोग करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए सरकार द्वारा महिलाओं के प्रशिक्षण हेतु ‘राष्ट्रीय प्रादेशिक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों’ की स्थापना की गई है। एसएचजी-बैंक लिंकेज प्रोग्राम के उद्देश्यों को निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।
- ग्रामीण निर्धनों व बैंकरों के मध्य पारस्परिक विश्वास व आत्मविश्वास को विकसित करना।
- अनौपचारिक साख प्रणाली (Informal Credit System) के स्थान पर संगठित, संस्थागत व औपचारिक साख प्रणाली का विकास जिससे न्यायपूर्ण रूप से वित्तीय सेवाएँ मिल सकें।
- निर्धनता का उन्मूलन एवं महिला सशक्तीकरण तथा साख प्रवाह (credit flow) का विस्तार करना। ग्रामीण निर्धनों को कम लागत पर वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना।
- स्वयं सहायता समूह-बैंक संयोजन कार्यक्रम के कई मॉडल हैं जिनमें पहले मॉडल के तहत बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों का गठन भी किया जाता है और उनका वित्तीयन (Financing) भी। इस मॉडल में बैंक खुद ही स्वयं सहायता समूहों के बैंक खाते खोलता है और उन्हें ऋण प्रदान करता है।
स्वयं सहायता समूह-
- बैंक संयोजन कार्यक्रम के दूसरे मॉडल के तहत् इन समूहों का गठन तो गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) द्वारा किया जाता है पर इन्हें वित्तीय सहायता प्रत्यक्ष रूप से बैंकों द्वारा दी जाती है। इस मॉडल के तहत सरकारी निकायों (government agencies) द्वारा भी स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जा सकता है। इन निकायों द्वारा ही इन समूहों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके उपरांत बैंक इन समूहों की साख अवशोषण क्षमता (Maturity to absorb credit) और उनके कार्यों को देखते हुए इन्हें ऋण प्रदान करता है।
- 1992 में प्रारंभ किये गए इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) और सरकारी बैंक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उल्लेखनीय है कि स्वयं सहायता समूह-बैंक संयोजन कार्यक्रम को विश्व के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रम के रूप में देखा जाता है।
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