चैतन्य मठ की संगठनात्मक संरचना |Structure of Chaitanya Math

  चैतन्य मठ की संगठनात्मक संरचना

चैतन्य मठ की संगठनात्मक संरचना |Structure of Chaitanya Math


 

चैतन्य मठ के बारे में जानकारी 

  • मठ की एक गद्दी व प्रधान कार्यालय है। ये दोनों एक स्थान पर स्थित नहीं हैं। इसमें दो स्तरीय सदस्यता का प्रावधान है सामान्य व विशिष्ट नियुक्ति व चयन विशिष्ट सदस्यों तक सीमित है जिन्हें प्रबंध निकाय द्वारा चुना जाता है तथा यह चयन प्रधान आचार्य द्वारा संपुष्टि के बाद होता है। एक हजार रुपये तथा इससे अधिक दान देने वाले इसके संरक्षक कहे जाते हैं पर वे इसके प्रबंधन में कोई भूमिका नहीं निभाते।

 

  • शीर्ष पर प्रबंध निकास की अध्यक्षता संस्थापक प्रधान आचार्य तथा उसके सहयोगी द्वारा होती है। सचिव तीन प्रकार के होते है सचिवसह-सचिव तथा सहायक सचिव नियमानुसार सहायक सचिवों का कार्य सदैव भारत भ्रमण पर रहना हैप्रचार कार्य करना तथा मठ की शाखाओं का निरीक्षण करना है।

 

  • स्थानीय मठ की एक शाखा का मुखिया मठ रक्षक होता हैजिसकी नियुक्ति प्रबंधन निकाय तथा प्रधान आचार्य द्वारा की जाती है। उसके नीचे मठ सेवक होते हैं जिनका कार्य खाना पकानासफाई करना तथा मठ के अन्य इस प्रकार के कार्य करना है। उनके लिए यह 'सेवाईश्वर के प्रति सेवा है। 
  • स्थानीय मठ में तीन तरह के लोग होते हैं ब्रहमचारी (छात्र सेवक) वानप्रस्थी तथा सन्यासी ब्रहमचारी के रूप में मठ की सेवा करने के पश्चात सदस्य को गृहस्थाश्रम की ओर लौटने की स्वतंत्रता होती है। 
  • गृहस्थाश्रम का कर्तव्य निभाने के बाद सदस्य वापिस मठ में वानप्रस्थी के रूप में आ सकता है तथा अंत में सन्यास में प्रवेश कर मठ तथा मानवता की सेवा कर सकता है।

 

  • भगवा वस्त्रधारी मठ के कार्यकर्ता प्रभु महाराज कहलाते हैं। वे इस तरह के शासन तंत्र से बंधे हैं जिसका आधार वरिष्ठतासदस्य की आध्यात्मिक उपलब्धि की मान्यतामन के आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा तथा मिशन के उद्देश्य प्राप्ति के लिए की गई सराहनीय सेवा है। 


  • विष्णुपाद की पदवी सर्वोच्च सम्मान का प्रतीक है तथा प्रभुपाद शासन तंत्र में इसके बाद का स्थान रहता है। मिशन के कार्य के प्रति तथा मन तथा वाक् (वाणी) से समर्पित त्रिदंडी स्वामी कहलाता है। आचार्य के पास किसी को मत तंत्र में लेनेविशेष रूप से सन्यासी के रूप में लेने का अधिकार है। यह अधिकार प्रत्यायोजित किया जाता है।


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