प्रयोजनमूलक हिन्दी अर्थ एवं परिभाषा | क्या होती है प्रयोजनमूलक हिन्दी |प्रयोजनमूलक हिन्दी का इतिहास | What is Functional Hindi
प्रयोजनमूलक हिन्दी अर्थ एवं परिभाषा, क्या होती है प्रयोजनमूलक हिन्दी, प्रयोजनमूलक हिन्दी का इतिहास
प्रयोजनमूलक हिन्दी का सामान्य परिचय
- प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ शासकीय तथा कार्यालियी भाषा से है। भारतीय संविधान द्वारा खड़ी बोली को राजभाषा स्वीकार करने के पश्चात् हिन्दी भाषा के प्रति सोच या कहें कि अवधारणा में काफी परिवर्तन हुआ।
- सांविधानिक भाषा बनने से पूर्व हिंदी भाषा का तात्पर्य होता था बोलचाल की हिन्दी या साहित्यिक हिन्दी से। संविधान द्वारा हिन्दी की स्वीकृति के पश्चात् हिन्दी कार्यालय, व्यापार तथा वाणिज्य की भाषा के रूप में व्यवहार होने लगी। भाषा व्यवहार के इस क्रम में कई प्रारंभिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- हिन्दी भाषा के पास पर्याप्त पारिभाषिक शब्द नहीं थे। अपनी शैली और प्रयुक्ति नहीं थे। भाषा नियोजन तथा मानकीकरण की समस्याएँ भी आईं। हिन्दी भाषा के बढ़ते विस्तार के कारण हिन्दी की प्रयुक्तियाँ भी विकसित हुई।
- किसी भी समृद्ध भाषा की पहचान होती है कि उसकी प्रयुक्तियाँ कितनी विकसित हुईं है, इस दृष्टि से हिन्दी भाषा ने अभूतपूर्व विकास किया है। भाषा नियोजन तथा मानकीकरण के हमारे संगठित प्रयास सफल हुए।
- स्वत्रन्ता पूर्व जो हिंदी केवल साहित्यिक स्तर पर समृद्ध मानी जाती थी, आज वह प्रशासनिक तथा व्यापारिक स्तर पर भी समृद्धता के निकस तय कर रही है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी अर्थ एवं परिभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी, अंग्रेजी शब्द 'फंक्शनल हिंदी' का पर्याय है। प्रयोजनमूलक हिंदी का अर्थ क्या हो ? इस पर विचार करने की आवश्यकता है। शाब्दिक ढंग से विचार करें तो इसका अर्थ होगा ऐसी विशेष हिंदी जिसका उपयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए।
- श्री रमाप्रसन्न नायक आदि इसे प्रयोजनमूलक के बजाय व्यावहारिक हिंदी कहना ज्यादा सार्थक समझते है। उनके अनुसार प्रयोजनमूलक कहने से ऐसा आभास होता है जैसे निष्प्रयोजनपरक भाषा का भी कोई रूप होता है। रमाप्रसन्न नायक इस प्रकार की हिंदी के लिए व्यावहारिक शब्द प्रयोग ज्यादा उचित है। प्रयोजनमूलक हिंदी का कामकाजी हिंदी भी कहा गया है।
- डा. नगेन्द्र तथा डा. ब्रजेश्वर वर्मा ने ‘प्रयोजनमूलक' शब्द को ही ज्यादा सार्थक और अर्थगर्भित माना है। डा. नगेन्द्र ने इस संदर्भ में लिखा है- “वस्तुत प्रयोजनमूलक हिंदी के विपरीत अगर कोई हिंदी है तो वह निष्प्रयोजनमूलक नही वरन् आनन्दमूलक हिंदी है। आनन्द व्यक्ति सापेक्ष है और प्रयोजन समाज सापेक्ष आ स्वकेन्द्रित होता है और प्रयोजन समाज सापेक्ष आनन्द स्वकेन्द्रित होता और प्रयोजन समाज की ओर इशारा करता है। हम आनन्दमूलक हिंदी के विरोधी नहीं हैं इसलिए आनन्दमूलक साहित्य के हम भी हिमायती हैं। पर सामाजिक आवश्यकताओं के संदर्भ में हम सम्प्रेषण के बुनियादी आधार के भी अपनी नजर से ओझल नहीं करना चाहते।”
- डा. ब्रजेश्वर वर्मा ने 'प्रयोजनमूलक' शब्द की निहित व्यंजना को अधिक स्पष्ट ढंग से समझाया है। उन्होंने कहा है- “निष्प्रयोजन हिंदी कोई चीज नहीं है रखकर कुछ लेकिन प्रयोजनमूलक विशेषण उसके व्यावहारिक पक्ष को अधिक उजागर करने के लिए प्रयुक्त किया गया ।”
प्रश्न है कि व्यावहारिक हिन्दी क्या है ?
- प्रयोजनमूलक हिंदी की व्यावहारिक उपयोगिता को ध्यान में 'व्यावहारिक हिन्दी' भी कहते है। प्रश्न है कि व्यावहारिक हिन्दी क्या है ? व्यावहारिक हिन्दी का तात्पर्य हो सकता है ऐसी हिन्दी से जो दैनिक जीवन में कार्य-साधन के लिए प्रयुक्त की जाती है ऐसी भाषा जिसमें व्याकरण की अनिवार्यता के बजाय व्यावहारिक उपयोगिता अधिक हो। इसके विपरीत प्रयोजनमूलक भाषा में प्रशासन, संपर्क तथा सम्प्रेषण आवश्यक तत्व के रूप में निहित होता है।
- आज हम जिस 'प्रयोजनमूलक हिन्दी' शब्द का व्यवहार करते हैं वह अंग्रेजी शब्द 'फक्शनल लैंग्वेज' के हिन्दी पर्याय के रूप में सर्वस्वीकृत सा हो चुका है। प्रयोजनमूलक हिन्दी पाठ्यक्रम के आरम्भिक प्रस्तावकों में से एक मोटूरि सत्यनारायण ने लिखा है- “जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हिन्दी ही प्रयोजनमूलक हिन्दी है।”
- सामान्यतः भाषा के तीन मुख्य प्रकार्य होते हैं। एक भाषा का सम्बन्ध सामान्य जीवन की व्यावहारिक क्रियाओं को करने के लिए लाई जाने वाली शब्दावली से है। दूसरे प्रकार की भाषा का सम्बन्ध विचार तथा आनन्द प्रदान करने का व्यवहार करने से है, वह सामान्य प्रकार की भाषा से भिन्न होता है। प्रथम तथा द्वितीय भाषा से इतर तीसरे प्रकार की भाषा का संबंध हमारी जीविका तथा प्रशासन से जुड़ा हुआ है। व्यापार, प्रशासन तथा कार्यालय में हम जिस भाषा का व्यवहार करते है, वह दैनिक बोलचाल तथा साहित्यिक भाषा से भिन्न होती है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी का इतिहास
- प्रयोजनमूलक हिन्दी का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है। चूँकि मनुष्य सचेतन प्राणी है, इसलिए उसके सारे सामाजिक प्रयास (भाषाई प्रकार्य भी) किसी-न-किसी सार्थक प्रयोजन से जुड़े होते है। इस दृष्टि से देखा जाये तो प्रयोजनमूलक भाषा का व्यवहार समृद्ध संस्कृति से मुक्त देशों ने बहुत पहले से ही शुरु कर दिया था। व्यापार की भाषा, कानून की भाषा, अध्यात्म की भाषा, न्याय शास्त्र की भाषा रोजमर्रा जिन्दगी की भाषा, साहित्य की भाषा इत्यादि भाषाएँ अपने उद्देश्यगत प्रयोजन के कारण परस्पर भिन्न रही हैं। भाषा वस्तु के आधार पर अपने शैली का चुनाव करती है। प्रयोजन, वक्ता, संदर्भ के अनुसार भाषा अपना अर्थ सुनिश्चित करती है।
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा 14 सितम्बर 1949
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। ( 14 सितम्बर 1949 ई) तब से हिन्दी के प्रयोग और भूमिकाओं में वृद्धि हुई। उसके पूर्व हिन्दी केवल साहित्य की भाषा के रुप में ही प्रतिष्ठित थी। राजभाषा बनने के उपरान्त हिंदी अन्य क्षेत्रों में भूमिका के लिए तैयार होने लगी।
- उस समय हिन्दी के विरोधियों द्वारा यह प्रश्न भी खड़ा किया गया कि क्या हिन्दी भाषा में इतनी सामर्थ्य है कि वह अन्य सामाजिक व्यवहारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है ? इस शंका में थोड़ी सच्चाई भी थी, क्योकि उस समय तक हिन्दी भाषा ने अपनी प्रयुक्ति, उप - प्रयुक्ति का समुचित निर्माण कार्य नहीं किया था। भारत सरकार द्वारा सरकारी कामकाजों के निर्वाह के लिए शब्दावली आयोग का निर्माण किया गया, जिसके माध्यम से हिन्दी के शब्द भंडार में काफी वृद्धि हुई |
- हिन्दी के मानक व्याकरण का निर्माण, कोश निर्माण कार्य के अतिरिक्त व्यापार, कानून, सरकारी कार्य के अनुरुप हिन्दी शब्दों का निर्माण किया गया। एक विषय के रुप मे प्रयोजनमूलक हिन्दी को प्रतिष्ठित करने का श्रेय श्री मोटूरि सत्यनारायण को जाता है जिन्होंने सन् 1975 में केंद्रीय हिन्दी संस्थान के माध्यम से इस विषय को राष्ट्रीय मान्यता प्रदान की। इसी वर्ष प्रयोजनमूलक हिन्दी पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी संस्थान ने किया, जिसके माध्यम से प्रयोजनमूलक हिन्दी के पाठ्यक्रम की रुपरेखा तैयार हुई।
- दक्षिण भारत में प्रयोजनमूलक का पाठ्यक्रम दक्षिण भारत प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के हैदराबाद और धारवाड़ परिसरों में एम. ए. स्तर पर सर्वप्रथम चला है। पुणे विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में एम. ए. पाठ्यक्रम भी बहुत शुरु हो चुका था। बी.एच.यू ने प्रयोजनमूलक हिन्दी में एम. ए. पाठ्यक्रम की शुरुआत सन् 1999 से की। यू. जी.सी,ने स्नातक स्तर पर प्रयोजनमूलक हिन्दी के पाठ्यक्रम को अब तो हर विश्वविद्यालय के लिए अनिवार्य कर दिया है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र
- हमने पढ़ा कि प्रयोजनमूलक हिन्दी का अर्थ क्या है तथा विभिन्न विद्वानों के उस पर क्या अभिमत हैं। हमने यह भी अध्ययन किया कि सामान्य बोलचाल की भाषा और प्रयोजनमूलक भाषा का क्या अन्तर है। आइए अब हम प्रयोजनमूलक हिन्दी का शब्द-सपंदा के आधार पर निर्मित क्षेत्र का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करें।
- हमने अध्ययन किया कि जीविकोपार्जन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा ही प्रयोजनमूलक भाषा है। अब प्रश्न यह है कि इस भाषा के क्षेत्र कौन से हैं। सामाजिक जीवन क्रम में, विकास की स्थिति में, भाषा विस्तार की स्थिति में भाषा के कई क्षेत्र हो जाते है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी के दो मुख्य भेद
डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा के अनुसार प्रयोजनमूलक हिन्दी के दो
मुख्य भेद होते हैं और उसके अनेक उपभेद होते हैं। डॉ. व्रजेश्वर वर्मा ने
प्रयोजनमूलक हिन्दी के दो मुख्य भेद किए है
1. Core Hindi
2. Advanced Hindi
Core Hindi
Core Hindi को डॉ. वर्मा ने पुनः चार उपभेदों में विभाजित किया है-
क. कार्यालयी हिन्दी
ख. व्यावसायिक हिन्दी
ग. तकनीकी हिन्दी
घ. समाजी हिन्दी
एम. सत्यनारायण ने प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र विभाजन करते हुए लिखा है-
1. सामान्य सम्प्रेषण माध्यम
2. सामाजिक
3. व्यावसायिक
4. कार्यालयी
5 तकनीकी
6. सामान्य साहित्य
डॉ. भोलानाथ तिवारी तथा विनोद गोदरे ने प्रयोजनमूलक हिन्दी के क्षेत्र विस्तार को स्पष्ट रूप से समेटते हुए उसके प्रमुख भेद स्वीकार किए हैं-
1. बोलचाल की हिन्दी - इसके अंतर्गत बोलचाल के सामान्य रुप की हिन्दी भाषा आती है।
2. व्यापार की हिन्दी -व्यापार की हिन्दी
के अंतर्गत बाजार, सर्राफे एवं मंडी की भाषा - आती है।
3. कार्यालय हिन्दी - कार्यालय हिन्दीके अन्तर्गत कार्यालय में प्रयोग की
जाने वाली भाषा आती है।
4. शास्त्रीय हिन्दी- प्रयोजनमूलक इस भाषा के अन्तर्गत विभिन्न काथ कलाएँ तथा मानवीय एवं सामाजिक विज्ञान के विषयों से संबंधित भाषा आती है।
5. वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी- प्रयोजनमूलक हिन्दी के इस रूप के अन्तर्गत इंजीनियरिंग के विभिन्न क्षेत्र तथा विज्ञान के विविध क्षेत्रों की भाषा आती हैं।
6. समाजी हिन्दी- प्रयोजनमूलक हिन्दी के इस क्षेत्र के अन्तर्गत समाज के
उच्च क्रिया कलाप का अध्ययन किया जाता है।
7. साहित्यिक हिन्दी -प्रयोजनमूलक हिन्दी के इस क्षेत्र के अन्तर्गत
कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी जैसी विधाओं की भाषा आती हैं।
8. प्रशासनिक हिन्दी -प्रयोजनमूलक हिन्दी के इस क्षेत्र के अन्तर्गत
प्रशासनिक कार्यों में प्रयुक्त भाषा एवं उसकी पारिभाषिक शब्दावली का अध्ययन किया
जाता है।
9. जनसंचार माध्यम की हिन्दी
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के इस क्षेत्र के अन्तर्गत जनसंचार माध्यमों जैसे दूरदर्शन, रेडियो, कम्प्यूटर एवं समाचार पत्रों की भाषा आती है। विनोद गोदरे द्वारा रचित ' प्रयोजनमूलक हिन्दी ' पुस्तक में हिन्दी के प्रयोजनमूलक उपर्युक्त भेद मिलते हैं। क्षेत्र विभाजन के इस भेद में अतिव्याप्ति दोष है। प्रयोजनमूलक भाषा के अंतर्गत साहित्यिक हिन्दी, बोलचालीय हिन्दी तथा समाजी हिन्दी को भी समाविष्ट कर लिया गया हैं। वस्तुतः प्रयोजनी हिन्दी के अंतर्गत ऐसी भाषा को ही समाविष्ट किया जा सकता है जो व्यापक रूप से रोजगार, व्यवसाय एवं तकनीक से जुड़ी हुई हो।
Post a Comment