अरस्तू के चिन्तन पर प्रभाव | Aristotle (Arastu) Ke Chintan par prabhav

  अरस्तू के चिन्तन पर प्रभाव | Aristotle (Arastu) Ke Chintan par prabhav

अरस्तू के चिन्तन पर प्रभाव | Aristotle (Arastu) Ke Chintan par prabhav



अरस्तू के चिन्तन पर प्रभाव

 

अरस्तू एक मौलिक विचारक है फिर भी उसका विचार दर्शन अपने युग की परिस्थितियोंअपने समकालीन व्यक्तियों और पैतृक पृष्ठभूमि से प्रभावित है। अरस्तू पर सबसे अधिक प्रभाव प्लेटो और उसकी दूसरी महानतम् कृति 'लॉजका दिखलाई देता है। यहाँ हम अरस्तू पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करेंगे।

 

अरस्तू के चिन्तन पर प्लेटो का प्रभाव - 

  • अरस्तू पर सर्वाधिक प्रभाव अपने गुरु प्लेटो का दिखलाई देता है। यद्यपि वह अपने गुरु के प्रति अन्धभक्त नहीं था तथापि वह प्लेटो की महान दार्शनिक योग्यता के प्रभाव से ओतप्रोत अवश्य था। अरस्तू ने यद्यपि अपनी कृतियों में प्रत्येक मोड़ पर प्लेटो का खण्डन किया तथापि वह प्रत्येक पृष्ठ पर उसका ऋणी था। उसने अपने जीवन के लगभग 20 वर्ष प्लेटो के चरणों में अध्ययन करते हुए बिताए।
  • जिन दिनों अरस्तू प्लेटो के सम्पर्क में आया उन दिनों प्लेटो 'लॉजकी रचना में लगा हुआ था। वस्तुतः अरस्तू के राजनीतिक विचारों के निर्माण में लॉजमें अभिव्यक्त प्लेटो के विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऐसा कहा जाता है कि जहाँ प्लेटो की 'लॉजकी चिन्तनधारा का अवसान होता हैवहां से अरस्तू के 'पॉलिटिक्सकी विचारगंगा का प्रवाह आरम्भ होता है। 


अरस्तू की 'पॉलिटिक्सतथा 'लॉजमें निम्नलिखित सादृश्य प्लेटो के प्रभाव को सूचित करते हैं-

 

(i) अरस्तू लॉज की भांति कानून की सर्वोच्च प्रमुसत्ता का सिद्धांत तथा शासकों को कानून का संरक्षक और सेवक मानता है।

 

(ii) अरस्तू राज्यहित में मनुष्य को देवता या पशु मानता है। यह 'लॉजके एक सन्दर्भ का रूपान्तर है और ऐसा प्रतीत होता है कि इसे लिखते समय उसके सामने लॉज का उपर्युक्त उद्धरण था।

 

(iii) परिवार से राज्य के विकास का वर्णन करते हुए अरस्तू ने लॉज की तीसरी पुस्तक का अनुसरण किया है और होमर के ग्रन्थ से उद्धरण भी वही दिया हैजो प्लेटो ने दिया था।


(iv) वह प्लेटो की इस युक्ति को दोहराता है कि स्पार्टा की भाँति युद्ध अपने आप में एक लक्ष्य नहीं हैकिन्तु इसका प्रयोजन शान्ति की स्थापना होना चाहिए। (v) मिश्रित संविधान की कल्पना दोनों ग्रंथों में समान रूप से पायी जाती है और दोनों स्पार्टा को इसका उदाहरण बताते हैं। 

(vi) अरस्तू ने कृषि की महत्ताव्यापार और सूदखोरी के बारे में पॉलिटिक्स की पहली पुस्तक में जो बातें लिखी हैं वे 'लॉजकी आठवीं तथा ग्यारहवीं पुस्तक की व्यवस्थाओं से मिलती हैं। 

(vii) पॉलिटिक्स की पहली पुस्तक में वर्णित आदर्श राज्य की लॉज के आदर्श राज्य से गहरी समानता है। इसके कुछ सादृश इस प्रकार है- आदर्श राज्य का समुद्र के पास होना नगर राज्य की इमारतों का वर्णन दोनों में एक जैसा है। अरस्तू की शिक्षा योजना 'लॉजमें प्रतिपादित योजना से मिलती है आदि। 


  • इन समानताओं के आधार पर बार्कर ने यह परिणाम निकाला है कि यद्यपि अरस्तू ने पॉलिटिक्सके आरम्भ में 'रिपब्लिक तथा 'लॉज के सिद्धांतों की आलोचना की हैकिन्तु वह पॉलिटिक्स के सामान्य सिद्धांतों के लिए लॉज का ऋणी है। यद्यपि पॉलिटिक्स उसने अपने दार्शनिक सिद्धांतों के आधार पर लिखी हैकिन्तु इसके अधिकांश विचार प्लेटो के हैं। पालिटिक्स में पूर्णरूप से नई बात इतनी ही कम हैजिनकी मैग्नाकार्टा में है। इनमें कोई भी नया नहीं हैदोनों का उद्देश्य पूर्ववर्ती विकास को संहिताबद्ध करना है।" मैक्सी के शब्दों में, "अरस्तू के अभाव में प्लेटो और उसका विद्यालय अपूर्ण रहता है और प्लेटो के अभाव में अरस्तू और उसका विद्यालय असम्भव ही था ।"

 

 अरस्तू के चिन्तन पर समकालीन परिस्थितियों का प्रभाव

  • अन्य दार्शनिकों की भांति अरस्तू भी अपने युग का शिशु था। अतः उसकी रचनाओं पर उसके युग का पर्याप्त मात्रा में प्रभाव पड़ा है। अरस्तू के जीवन के 62 वर्ष (384 ई.पू 322 ई.पू.) यूनानी इतिहास के अत्यन्त महत्वपूर्ण और हलचल वाले वर्ष थे। यूनानी नगर राज्यों के जीवन में वह हास का काल थास्वतंत्रता के अवसान तथा पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े जाने का काल थायह वह काल था जिसमें स्पार्टा का पतन हुआ यूनानी नगर राज्यों को मेसेडोनिया का रक्षण स्वीकार करना पड़ा। यह वह युग था जिसमें नगर राज्यों पतन प्रारम्भ हो चुका था।
  • इन परिस्थितियों ने अरस्तू को यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि यूनानी नगर राज्यों के पतन के क्या कारण थे। अरस्तू ने अपने अनुशीलन से यह मत प्रतिपादित किया कि एकता के अभाव के कारण ही यूनानियों को इस प्रकार के बुरे दिन देखने पड़े हैं। समकालीन परिस्थितियों में राजनीतिक चिन्तन का आदर्श नगर राज्य ही थे।
  • यद्यपि अरस्तू ने मेसेडोनिया के साम्राज्यवाद के दर्शन कर लिये थेफिर भी वह यूनानियों के हृदयों में नगर राज्यों के प्रति पाये जाने वाले सहज झुकाव से अपने को नहीं बचा सका। अतः नगर राज्य को ही उसने अपने अनुशीलन का केन्द्र बिन्दु बनाया। तात्कालिक परिस्थितियों तथा दासों की मेहनत पर आधारित सभ्यता में पला अरस्तू दास प्रथा को प्राकृतिक घोषित करे तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।

 

अरस्तू के चिन्तन पर पैतृक पृष्ठभूमि का प्रभाव - 

  • अरस्तू के राजनीतिक दर्शन के निर्माण में उसकी पैतृक पृष्ठभूमि का भी गहरा प्रभाव रहा है। अरस्तू में जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण परिलक्षित होता हैवह एक बड़ी सीमा तक उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की ही देन थी। इसी पृष्ठभूमि के कारण उसे अपने विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिक अध्ययन को आगे बढ़ाने के समुचित अवसर प्राप्त होते चले गये। बार्कर के अनुसारचूंकि चिकित्सक का पैसा अरस्तू के परिवार में अनेक पीढ़ियों ( उसके पिता मैसीडोन के राजा एवं सिकन्दर के दादा अमितास द्वितीय के दरबार में राज-वैद्य थे) से चला आ रहा थाअतएव अपने चिन्तन में अरस्तू ने जीव विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति में जो दिलचस्पी दिखलाई उसका सम्भवतः उस पर अपने पारिवारिक वातावरण का ही प्रभाव था।"

 

 अरस्तू के चिन्तन पर समकालीन व्यक्तियों का प्रभाव

  • अरस्तु अपने समय के कतिपय मित्रों और प्रभावशाली व्यक्तियों से भी प्रभावित हुआ है। वह अपने समय के दो शासकों हेरमियास तथा सिकन्दर महान् एवं शासनाधिकारी एण्टीपीटर के निकट सम्पर्क में आया था। हेरमियास उसका अभिन्न मित्र था। उसकी जीवन लीला का जिस निर्मम ढंग से अन्त हुआउस दुःखद घटना का अरस्तू के विचारों तथा शिक्षाओं पर अमिट प्रभाव पड़ा है। सिकन्दर के एक अधिकारी एण्टीपीटर का अरस्तू पर इतना अधिक प्रभाव था कि बार्कर ने लिखा है, "एण्टीपीटर के विचारों तथा सिद्धांतों ने अरस्तू के विचारों को भी प्रभावित किया है। जहां तक सिकन्दर के प्रभाव का प्रश्न इस सम्बन्ध में विद्वानों में काफी मतान्तर है। 
  • कुछ विद्वान यह मानते हैं कि गुरु ने शिष्य को पूर्ण प्रभावित किया है। इसके विपरीत बट्टैण्ड रसेल की मान्यता है कि गुरु का शिष्य पर सम्भवतः कोई प्रभाव न पड़ा। इसका कारण यह है कि जहाँ अरस्तू एक नगर राज्य का समर्थक था वहां सिकन्दर को एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने की धुन थी। इस सम्बन्ध में बार्कर ने लिखा हैजहाँ तक सिकन्दर का प्रश्न हैऐसा प्रतीत होता है कि न तो वह (अरस्तू) सिकन्दर को कुछ अधिक दे सका और न ही उसे सिकन्दर से कुछ महत्त्वपूर्ण प्राप्त हो सका। दोनों में अल्पकाल तक कुछ मधुर सम्बन्ध अवश्य ही रहे थेकिन्तु जीवन के अन्तिम काल में उनमें कटुता भी बड़ी मात्रा में पैदा हो गयी थी।

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