शांति और सुरक्षा: भारतीय उपागम |संविधान में शांति और सुरक्षा | Bharat Shanti aur Suraksha
शांति और सुरक्षा: भारतीय उपागम
शांति और सुरक्षा भारत के संदर्भ में
- किसी अन्य देश की तरह भारत में भी शांति और सुरक्षा चिन्ता का एक प्रमुख विषय रहा है। आप आखबारों में पढ़ते होंगे या रेडिया और टेलीविजन से जानकारी प्राप्त करते होंगे कि हमारे देश में शांति और सुरक्षा को बाह्य और आंतरिक खतरे का सामना करना पड़ रहा है। भारत की भौगोलिक स्थिति तथा विश्व शक्ति के रूप में इसका उदय इसे बाहरी ख़तरों के प्रति अतिसंवेनशील बनाता है।
- भारत को सिर्फ चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ युद्ध ही नहीं लड़ना पड़ा है बल्कि अन्तराष्ट्रीय आतंकवाद से भी जूझना पड़ा है। आजादी से ही भारत विद्रोही एवं अलगाववादी आंदोलनों के आंतरिक खतरे का सामना करता रहा है। अपनी स्वतंत्रता के दो दशकों के बाद ही भारत ने नक्सली गतिविधियों का अनुभव किया जिसने अब भयावह रूप धारण कर लिया है। इस संदर्भ में शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने का उपागम काफी पहले से, वास्तव में स्वतंत्रता आंदोलन से ही शुरू हो गया था। संविधान में भी यह उपागम देखा जा सकता है। हालांकि जरूरतों और आवश्यकताओं के अनुरूप इस उपागम में कालांतर में परिवर्तन होते रहें हैं।
1 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शांति और सुरक्षा के उपागम का विकास
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपागम के विचार और दृष्टिोण की शुरूआत हुई। नेतृत्व ने यह अनुभव किया कि स्वतंत्रता के उपरान्त लोकतांत्रिक व्यवस्था की शर्तों को पूरा किया जाये। शांति कायम रखते हुए ही विकास प्रक्रिया को गति दी जा सकती है। इसलिए स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्व ने विचार व्यक्त किया कि स्वतंत्र भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को कायम रखने तथा बढ़ावा देने के लिए एड़ी चोटी का जोड़ लगा देगा। उन्होने विश्व में उपनिवेशवाद विरोधी तथा जातिभेद विरोधी सभी आंदोलनों का खुलकर समर्थन किया तथा लोकतंत्र को बढ़ावा दिया। उन्होने विश्व में उपनिवेशवाद विरोधी तथा जातिभेद विरोधी सभी आंदोलनों का खुलकर समर्थन किया तथा लोकतंत्र को बढ़ावा दिया।
- सामाजिक न्याय तथा पंथनिरपेक्षता पर बल देते हुए सामाजिक आर्थिक विकास के लिए समाजवादी उपागम अपनाने पर हुई आम सहमति का लक्ष्य ऐसी शर्तें तैयार करना था जो शांति के लिए आंतरिक खतरों के विरूद्ध सुरक्षा को बढ़ावा दें।
2 संविधान में शांति और सुरक्षा
- संविधान निर्माण की प्रक्रिया काफी हद तक स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विकसित विचारों से प्रभावित है। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व अध्याय में शांति और सुरक्षा की चर्चा की गई है। संघीय व्यवस्था तथा ग्रामीण और शहरी स्थानीय सरकारों की स्थापना ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि शक्ति का और केन्द्रीकरण न हो क्योंकि केन्द्रीकरण क्षेत्रीय और स्थानीय असंतोष को जन्म देता है जो आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। संघीय व्यवस्था में सामाजिक आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय राज्य सरकारें लेती हैं जो राज्य के लोगों की सभी आशा और आकांक्षाओं को पूरा करने की स्थिति में हैं। स्थानीय सरकारें विकास के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में जन सहभागिता सुनिश्चित करती हैं तथा सभी जरूरतों और आवश्यकताओं का ख्याल रखती हैं।
- शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत ने इसतरह एक बहुआयामी उपागम और विधि अपनायी । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसने अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढावा देने की नीति अपनायी। शांति, न्यायोचित आर्थिक विकास, मानवाधिकार को बढावा तथा आतंकवाद का उन्मूलन करने वाले प्रयासों का समर्थन करता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर, यह स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय, पंथनिरपेक्षता, न्यायोचित आर्थिक विकास तथा सामाजिक विषमाताओं को दूर करने के प्रति बचनबद्ध है। यह अपने सभी नागरिकों को सिर्फ चुनावों में ही नहीं बल्कि विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी भाग लेने का समान अवसर प्रदान करता है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है ताकि समाज का कोई भी वर्ग यह अनुभव न करे कि उसके विरूद्ध कोई भेदभाव हो रहा है या उनके हितों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा क्योंकि यही भेदभाव की भावना असंतोष को जन्म देती है और विद्रोह और राजनीतिक हिंसा की ओर ले जाती है जो शांति और सुरक्षा के लिए प्रमुख खतरा है।
संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार :
“राज्य प्रयास करेगा:
(क) अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
(ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का
(ग) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अन्तराष्ट्रीय विधि और संघि बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का और
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का ।
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