सतत् और व्यापक मूल्यांकन क्या है? | सतत् और व्यापक उद्देश्य विशेषताएँ कार्य एवं महत्त्व साधन व विधियाँ | CCE Kya Hai
सतत् और व्यापक मुल्यांकन क्या है? सतत् और व्यापक उद्देश्य विशेषताएँ कार्य एवं महत्त्व साधन व विधियाँ
सतत् और व्यापक मूल्यांकन क्या है?
What is Continuous and Comprehensive Evaluation?
- आज हमारे समक्ष पारम्परिक परीक्षा प्रणाली और मूल्यांकन को बदलने की चुनौती उभरकर आई है। माध्यमिक स्तर पर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को अपने सभी विद्यालयों में लागू करते हुए सीबीएसई ने यह स्पष्ट सन्देश दिया है कि मूल्यांकन करते समय विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- अधिगम एक सतत् प्रकिया है इसलिए मूल्यांकन भी सतत् होना चाहिए। मूल्यांकन अध्यापन एवं अधिगम की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में मूलरूप से विद्यार्थी के ज्ञान की परीक्षा के स्थान पर उसके अधिगम की प्रक्रिया को मूल्यांकन के लिए चुना गया है।
- सतत् और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) का अर्थ छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है, जिसमें छात्रों के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं। यह एक बच्चे की विकास प्रक्रिया है, जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य एक ओर मूल्यांकन में निरन्तरता और व्यापक रूप से सीखने के मूल्यांकन पर तथा दूसरी ओर व्यवहार के परिणामों पर आधारित है।
- यहाँ 'निरन्तरता' का अर्थ इस पर बल देना है कि छात्रों की 'वृद्धि और विकास' के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन एक बार के कार्यक्रम के बजाय एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसे सम्पूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित किया गया है और यह शैक्षिक सत्रों की पूरी अवधि में फैली हुई है। इसका अर्थ है मूल्यांकन की नियमितता, अधिगम अन्तरालों का निदान, सुधारात्मक उपायों का उपयोग, स्वयं मूल्यांकन के लिए अध्यापकों और छात्रों के साक्ष्य का फीडबैक अर्थात् प्रतिपुष्टि।
- दूसरा पद 'व्यापक' का अर्थ है शैक्षिक और सह-शैक्षिक पक्षों को शामिल करते हुए छात्रों की वृद्धि और विकास को परखने की योजना। चूँकि क्षमताएँ, मनोवृत्तियाँऔर सोच अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में प्रकट करती है, इसलिए यह पद अनेक साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग को सन्दर्भित करता है (परीक्षणकारी और गैर-परीक्षणकारी दोनों) और यह सीखने के क्षेत्रों में छात्रा के विकास के मूल्यांकन पर लक्षित है जैसे- ज्ञान, समझ, व्याख्या, अनुप्रयोग, विश्लेषण, मूल्यांकन एवं सृजनात्मकता ।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य
- बोधात्मक, मनोप्रेरक और भावात्मक कौशलों के विकास में सहायता। सीखने की प्रक्रिया पर बल देना और याद रखने पर बल नहीं देना।
- मूल्यांकन को अध्यापन अधिगम प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा बनाना। नियमित निदान के आधार पर उपचारात्मक अनुदेशों के बाद छात्रों की उपलब्धि और अध्यापन अधिगम कार्य नीतियों के सुधार के लिए मूल्यांकन का उपयोग करना।
- मूल्यांकन को निष्पादन के वांछित स्तर बनाए रखने के लिए गुणवत्ता
- नियन्त्रण युक्ति के रूप में इस्तेमाल करना।
- सामाजिक उपयोगिता, वांछनीयता या एक कार्यक्रम की प्रभावशीलता का निर्धारण करना और छात्र सीखने की प्रक्रिया तथा सीखने के परिवेश के बारे में उपयुक्त निर्णय लेना।
- अध्यापन और अधिगम प्रक्रिया को छात्र केन्द्रित कार्य-कलाप बनाना।
सतत् और व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएँ
Characteristics of Continuous and Comprehensive Evaluation
- सतत् और व्यापक मूल्यांकन के 'सतत्' पहलू के अन्तर्गत मूल्यांकन के 'सतत्' और 'आवधिक पहलू का ध्यान रखा जाता है।
- निरन्तरता का अर्थ है शिक्षा के प्रारम्भ में विद्यार्थियों का निर्धारण (स्थापन मूल्यांकन) और शिक्षण प्रक्रिया के दौरान निर्धारण (रचनात्मक मूल्यांकन), जो मूल्यांकन की बहुविद् तकनीकों का उपयोग करके, अनौपचारिक रूप से किया जाता है।
- नियतकालिकता का अर्थ है कार्य निष्पादन का निर्धारण, जो यूनिट / अवधि के समाप्त होने पर बार-बार किया जाता है (सारांशात्मक ) ।
- सतत् और व्यापक मूल्यांकन 'व्यापक' संघटक बच्चों के व्यक्तित्व के सर्वतोमुखी विकास के निर्धारण का ध्यान रखता है। इसमें विद्यार्थियों के विकास के शैक्षिक और इसके अलावा सह-शैक्षिक पहलुओं का निर्धारण शामिल है।
- शैक्षिक पहलुओं में पाठ्यक्रम के क्षेत्र अथवा विषय सापेक्ष क्षेत्र शामिल होते हैं, जबकि सह-शैक्षिक पहलुओं में जीवन कौशल, सह-पाठ्यचर्या अभिवृत्तियाँ और मूल्य शामिल होते हैं।
- शैक्षिक क्षेत्रों में निर्धारण, निरन्तर और नियतकालिक रूप से मूल्यांकन की बहुविद् तकनीकों का इस्तेमाल करके अनौपचारिक और औपचारिक रूप से किया जाता है। नैदानिक मूल्यांकन यूनिट/ परीक्षा के समाप्त होने पर किया जाता है। कुछ यूनिटों में घटिया कार्य-निष्पादन के कारणों का पता नैदानिक परीक्षणों का उपयोग करते हुए लगाया जाता है। इसके बाद उपयुक्त रूप से हस्तक्षेप किया जाता है और कार्यवाही की जाती है और तत्पश्चात् पुनः परीक्षण किए जाते हैं।
- सह-शैक्षिक क्षेत्रों में निर्धारण निर्धारित मानदण्डों के आधार पर बहुविद् तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए किया जाता है, जब जीवन-कौशलों का निर्धारण के सूचकों और जाँच-सूचियों के आधार पर किया जाता है।
- यह देखा गया है कि आमतौर पर किसी विषय के तथ्यों, उसकी संकल्पनाओं, उसके सिद्धान्तों आदि के ज्ञान और उनकी समझ जैसे शैक्षिक क्षेत्रों का मूल्यांकन किया जाता है। सह-शैक्षिक तत्वों को या तो मूल्यांकन की प्रक्रिया से बिल्कुल बाहर रखा जाता है अथवा उनकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। मूल्यांकन को व्यापक बनाने के लिए, शैक्षिक और सह-शैक्षिक दोनों क्षेत्रों को महत्त्व दिया जाना चाहिए। संवृद्धि के सह-शैक्षिक पहलुओं के मूल्यांकन के सरल और प्रबन्धकीय तरीकों को व्यापक मूल्यांकन स्कीम में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्बन्धी दस्तावेज 1986 जिसका 1992 में संशोधन किया गया है, में इस बात का उल्लेख किया गया है कि मूल्याकंन योजना में शिक्षा के विषयों और सह-शिक्षा के सभी शिक्षण सम्बन्धी अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए।
- व्यापक मूल्यांकन के लिए अनेक प्रकार की तकनीकों और साधनों का उपयोग करना जरूरी होगा। इसका कारण यह है कि शिक्षार्थी की संवृद्धि के विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों का मूल्यांकन कतिपय विशेष तकनीकों के जरिए किया जा सकता है।
सतत् और व्यापक मूल्यांकन के कार्य एवं महत्त्व
Functions and Importance of Continuous and Comprehensive Evaluation
अध्यापन शिक्षा प्राप्ति प्रक्रिया में, मूल्यांकन से शैक्षिक और सह-शैक्षिक पहलुओं का ध्यान रखने की अपेक्षा की जाती है। यदि कोई किसी क्षेत्र में कमजोर है, तो नैदानिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए और उपचारी उपाय अपनाए जाने चाहिए।
सतत् और व्यापक मूल्यांकन के कार्य एवं महत्त्व ये हैं
- यह अध्यापक को प्रभावकारी कार्यनीतियाँ आयोजित करने में सहायता देता है।
- सतत् मूल्यांकन शिक्षार्थी की प्रगति की सीमा और मात्रा को नियमित रूप से आँकने में सहायता देता है (विशिष्ट शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्रों के सन्दर्भ में योग्यता और उपलब्धि )
- सतत् मूल्यांकन कमजोरियों का निदान करने का कार्य करता है और अध्यापक को अलग-अलग शिक्षार्थियों की शक्तियों और कमजोरियों और उसकी आवश्यकताओं का पता लगाने में सहायता देता है। यह अध्यापक को तत्काल फीडबैक मुहैया कराता है, जो तब यह फैसला कर सकता है कि कोई विशेष • यूनिट अथवा संकल्पना समूची कक्षा को फिर से पढ़ाए जाने की आवश्यकता है अथवा केवल कुछ शिक्षार्थियों को उपचारी शिक्षा की आवश्यकता है।
- सतत् मूल्यांकन के द्वारा, बच्चे अपनी शक्तियों और कमजोरियों को जान सकते हैं। यह बच्चों में अध्ययन में अच्छी आदतें विकसित करने, गलतियों को सुधारने और अपने क्रिया-कलापों को वांछित लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में मोड़ने के लिए अभिप्रोरित कर सकता है। इससे शिक्षार्थी को शिक्षा के उन क्षेत्रों को निर्धारित करने में सहायता मिलती है, जिनमें अधिक जोर दिए जाने की आवश्यकता हो ।
- सतत् और व्यापक मूल्यांकन अभिरुचियों और प्रवृत्ति वाले क्षेत्र अभिज्ञात करता है। यह अभिवृत्तियों और मूल्य प्रणालियों में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने में सहायता देता है।
- यह विषयों, पाठ्यक्रमों और जीवनवृत्तियों (कैरियर) के चुनाव के बारे भविष्य के लिए फैसले करने में सहायता देता है।
- यह शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्रों में विद्यार्थियों की प्रगति के बारे में सूचना/रिपोर्ट देता है अर इस प्रकार शिक्षार्थी की भावी सफलताओं के बारे में पूर्वानुमान लगाने में सहायता देता है।
- सतत् मूल्यांकन समय-समय पर बच्चे, अध्यापकों और माता-पिता को उपलब्धि के बारे में जागरूक बनाने में सहायता देता है। यदि उपलब्धि में कोई कमी हुई हो तो वे उसके सम्भाव्य कारणों की जाँच कर सकते हैं और शिक्षा के उस क्षेत्र में जिसमें अधिक जोर देने की आवश्कयता हो, उपचारी उपाय कर सकते हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ वैयक्तिक कारणों, पारिवारिक समस्याओं अथवा समायोजन की समस्याओं के कारण, बच्चे अपने अध्ययन की उपेक्षा करना शुरू कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी • उपलब्धि में अचानक गिरावट आ जाती है। यदि अध्यापक, बच्चे और माता-पिता को उपलब्धि में अचानक आई गिरावट का पता न चले, तो बच्चे द्वारा अपने अध्ययन की उपेक्षा लम्बे समय तक की जाती रहती है और इसके परिणामस्वरूप उपलब्धि घटिया हो जाती है और बच्चे की शिक्षा प्राप्ति में स्थायी रूप से त्रुटि रह जाती है।
- सतत् और व्यापक मूल्यांकन का मुख्य जोर विद्यार्थियों की निरन्तर संवृद्धि पर और उनका बौद्धिक, भावनात्मक, शारीरिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने पर होता है और इसलिए यह विद्यार्थी की केवल शैक्षिक उपलब्धियों को आँकने तक सीमित नहीं होगा। इस मूल्यांकन का उपयोग शिक्षार्थियों को अन्य कार्यक्रमों के लिए अभिप्रेरित करने, सूचना प्रदान करने, फीडबैक की व्यवस्था करने और शिक्षा में शिक्षा प्राप्ति में सुधार करने के लिए अनुवर्ती कार्यवाही करने और शिक्षार्थी के विवरणों की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करने के एक साधन के रूप में करता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के साधन व विधियाँ
Resources and Methods of Continuous and Comprehensive
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के अन्तर्गत अपरिक्षेपी उपकरणों या तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जैसे निरीक्षण, प्रश्नावली, साक्षात्कार, जाँच सूची, विवरण आदि ।
निरीक्षण Observation
- गुडे तथा हाट के अनुसार, विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और अपने तथ्यों की पुष्टि के लिए अन्त में निरीक्षण का सहारा लेता है।
- इस विधि के द्वारा सामूहिक व्यवहार तथा जटिल समस्याओं का अध्ययन भी सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
- निरीक्षण विधि में अध्ययन सावधानीपूर्वक होता है, क्योंकि अध्यापक स्वयं प्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। इस विधि में सामूहिक व्यवहार की जाँच भी की जाती है।
- यह विधि पूर्व बाल्यकाल में मूल्यांकन के लिए अत्युत्तम है क्योंकि इसमें छात्रों को मूल्यांकन किए जाने का अहसास भी नहीं होता और अध्यापक प्राकृतिक परिस्थिति में बालक का मूल्यांकन कर पाते हैं।
- इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं वस्तुनिष्ठता, निश्चयात्मकता, क्रमबद्धता, प्रमाणिकता एवं विश्वसनीयता ।
प्रश्नावली Questionnaire
- प्रश्नावली एक प्रकार का उत्तर प्राप्त करने का साधन है जिसके द्वारा उत्तरदाता स्वयं उसकी पूर्ति करता है।
- यह प्रश्नों की सुनियोजित सूची होती है जिसके आधार पर बच्चों का मूल्यांकन किया जाता है।
- 0-6 वर्ष की अवस्था में बच्चों को चित्र प्रश्नावली दी जाती है जिसमें प्रश्न चित्रों के रूप में होते हैं, बच्चे सही लगने वाले चित्रों को अंकित करते हैं।
साक्षात्कार Interview
- साक्षात्कार वह विधि है जिसके द्वारा मौखिक अथवा लिखित सूचना प्राप्त की जाती है।साक्षात्कार द्वारा अध्यापक बालक की प्रगति को ज्ञापित कर पाता है। परन्तु इसमें प्रश्न इस प्रकार से दैनिक जीवन से सम्बन्धित होते हैं कि बालक को यह ज्ञात नहीं हो पाता है कि यह उसका मूल्यांकन हो रहा है।
- इस विधि से बालक अध्यापक के करीब आता है और निर्भय होकर बात कर पाता है। इस विधि द्वारा विभिन्न मनोवैज्ञानिक विधियाँ भी दूर की जा सकती हैं।
जाँच-सूची Check List
- जाँच-सूची में अध्यापक बालक के सभी तथ्यों जैसे- भाषा के प्रयोग, सामाजिकता, संवेगात्मकता, खेल के दौरान व्यवहार आदि को लिखते जाते हैं जिसको बाद में एकत्रित कर बालक का मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि से बालक का उचित मूल्यांकन होता है।
विवरण Interpretation
- विवरण में विद्यार्थी के कुछ समय के कार्य का नमूना एकत्र किया जाता है। यह नमूना दिन-प्रतिदिन के कार्य से भी किया जा सकता है या शिक्षार्थी के बेहतरीन कार्य से भी किया जा सकता है।
विवरण का लाभ Advantage of Interpretation
- संचित रिकॉर्ड उपलब्ध करें। इस प्रक्रिया में यह दिखाएँ कि किस प्रकार कौशल और ज्ञान का विकास होता है।
- इससे विद्यार्थी अपने अधिगम और प्रगति का दूसरों को प्रदर्शन कर सकता/सकती है।
- क्या बच्चा अधिगम और मूल्यांकन में सक्रिय प्रतिभागी बनता है?
विवरण सम्बन्धी सुझाव Siggestion Related to Interpretation
- विवरण में रखे जाने वाले चयनित कार्य का विशेष कारण होना चाहिए। कार्य के सभी कागज-पत्रों/मदों को शामिल नहीं करना होता है। इससे अव्यवस्था हो जाएगी।
- विवरण की विषय-वस्तु के चयन में विद्यार्थी की प्रतिभागिता को प्रोत्साहित किया जाए और विषय-वस्तु के चयन के मापदण्ड तय किए जाएँ।
- बच्चे के विकास के साथ-साथ उसके विवरणों को भी अद्यतन किया जाता हो।
- जिन बातों का प्रदर्शन किया जाना है, उनके साथ विवरण सम्बन्धी सामग्री चिन्तापूर्वक रखी जानी चाहिए।
- सहज सन्दर्भ के लिए विषय-वस्तु पर स्पष्ट 'लेबल' लगाना चाहिए और उस पर संख्या अंकित की जानी चाहिए।
वर्णनात्मक रिकॉर्ड Descriptive Record
- अध्यापक/बच्चे को साथी शिक्षार्थी के अनुभव का वर्णनात्मक विवरण भी लिखना चाहिए। इससे बच्चे के जीवन कौशल के प्रत्येक पहलू का पता लगाने में उन्हें अवसर दिया जाता है और वे शिक्षार्थी की और अधिक सम्पूर्ण छवि का सृजन करने के लिए उसके पिछले विवरण को साक्ष्य के रूप में उसका उपयोग कर सकते हैं और संचयी रिकॉर्ड तैयार करने में उपयोग में लाया जा सकता है।
Also Read...
Post a Comment