संज्ञान एवं संवेग अर्थ परिभाषा प्रकार प्रकृति विशेषताएँ घटक|संवेगों का शिक्षा में महत्त्व | बालकों में संज्ञानात्मक विकास | Cognition and Emotion
संज्ञान एवं संवेग अर्थ परिभाषा प्रकार प्रकृति विशेषताएँ घटक
संज्ञान का अर्थ
- समझ या ज्ञान होता है।
- शैक्षणिक प्रक्रियाओं में अधिगम का मुख्य केन्द्र संज्ञानात्मक क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में अधिगम उन मानसिक क्रियाओं से जुड़ी होती है जिनमें पर्यावरण से सूचना प्राप्त की जाती है। इस प्रकार इस क्षेत्र में अनेक क्रियाएँ होती हैं जो सूचना प्राप्ति से प्रारम्भ होकर शिक्षार्थी के मस्तिष्क तक चलती रहती हैं। ये सूचनाएँ दृश्य रूप में होती हैं या सुनने या देखने के रूप में होती हैं।
- संज्ञान में मुख्यतः ज्ञान, समग्रता, अनुप्रयोग विश्लेषण तथा मूल्यांकन पक्ष सम्मिलित होते हैं।
ज्ञान
- ज्ञान का सम्बन्ध सूचना के उच्च चिन्तन से होता है। किसी विषय क्षेत्र में विशिष्ट तत्वों का पुनमरण या पुनर्पहचान अर्थात् स्मरण स्तर की क्रियाएँ इसके द्वारा होती हैं।
समग्रता
- सूचना तब तक महत्त्वपूर्ण नहीं होती, जब तक उसे समझा नहीं जाता। इस स्तर पर तथ्यों, सम्प्रत्ययों, सिद्धान्तों एवं सामान्यीकरण का बोध होता है।
अनुप्रयोग
- सूचना उस समय और महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब इसे नई परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है। इस स्तर पर मानसिक क्रियाओं में सम्प्रत्यय, सिद्धान्तों, सत्य सिद्धान्त आदि का प्रयोग होता है। आजकल छात्रों की अनुप्रयोग क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। सामान्यीकरण का प्रयोग समस्या को हल करने के लिए किया जाता है। उत्तरों को मापने के लिए पूर्व ज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है अर्थात् छात्रों ने वास्तविक जीवन में जो कुछ सीखा है उसका वे प्रयोग करते हैं।
विश्लेषण
- सृजनात्मक चिन्तन एवं समस्या समाधान विश्लेषण चिन्तन से आरम्भ होते हैं। अब सूचना प्राप्त होती है तो इनको विभिन्न अवयव तत्वों में विभाजित किया जाता है, जिससे विभिन्न भागों का आपसी सम्बन्ध किया जाता है। इस प्रक्रिया को सूचना का विश्लेषण कहते हैं। अधिगम के इस स्तर पर छात्र, सम्प्रत्यय और सिद्धान्तों का विश्लेषण कर सकता है।
संश्लेषण
- इसके अन्तर्गत सम्प्रत्ययों, सिद्धान्तों या सामान्यीकरण के अवयवों या भागों को एकसाथ मिलाया जाता है जिससे यह पूर्ण रूप बन जाए।
मूल्यांकन
- इस स्तर पर निर्णयों के लिए मानसिक क्रियाएँ होती हैं जो स्थायित्व या तर्क के क्षेत्र पर आधारित हो सकती हैं या मानक या प्रमापों में तुलना हो सकती है। निर्णय करना अधिगम के स्तर का सर्वाधिक जटिल कार्य है।
बालकों में संज्ञानात्मक विकास Cognitive Development in Children
- संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य बच्चों के सीखने और सूचनाएँ एकत्रित करने के तरीके से है। इसमें अवधान में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिन्तन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।
- पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के अनुसार हमारे विचार और तर्क अनुकूलन के भाग हैं।
संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाओं का वर्णन
संज्ञानात्मक विकास एक निश्चित अवस्थाओं के क्रम में होता है। पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाओं का वर्णन किया है
- संवेदी - गतिक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष)
- पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष)
- प्रत्यक्ष संक्रियात्मक अवस्था ( 7 से 11 वर्ष)
- औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11 + वर्ष)
प्रारम्भिक बाल्यकाल (2 से 6 वर्ष) में संज्ञानात्मक विकास
Cognitive Development in
Infancy (2 to 6 Years)
- इस काल में बच्चे, शब्द जैसे प्रतीकों, विभिन्न वस्तुओं, परिस्थितियों और घटनाओं को दर्शाने वाली प्रतिमाओं के प्रयोग में अधिक प्रवीण हो जाते हैं।
- स्कूल जाने तक बच्चों की शब्दावली पर्याप्त अच्छी हो जाती है। वास्तव में बच्चे विभिन्न सन्दर्भों में अन्य भाषाएँ सीखने में अधिक ग्रहणशील हो जाते हैं। अनेक बार वे द्विभाषी या बहुभाषी के रूप में विकसित होते हैं। वे एक भाषी बच्चों की अपेक्षा भाषा की अच्छी समझ वाले होते हैं।
- प्रारम्भिक बाल्यकाल में स्थायी अवधान में वृद्धि हो जाती है। एक 3 वर्ष का बच्चा चित्रांकनी से रंग भरने, खिलौने से खेलने या 15-20 मिनट तक टेलीविजन देखने की जिद कर सकता है। इसके विपरीत एक 6 वर्ष का बच्चा किसी रोचक कार्य पर एक घण्टे से अधिक कार्य करता देखा जा सकता है।
- "बच्चे अपने अवधान में अधिक चयनात्मक हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उनके प्रत्यक्षात्मक कौशल भी उन्नत होते हैं।
- चिंतन और अधिक तर्कपूर्ण हो जाता है और याद रखने की क्षमता और की प्रक्रिया भी उन्नत होती है। वातावरण से अन्तःक्रिया द्वारा बच्चा सामाजिक व्यवहार के सही नियम सीखता है जो उसे विद्यालय जाने के लिए तैयार करते हैं।
- प्रारम्भिक बाल्यकाल, 2 से 6 वर्ष में बच्चा पूर्व क्रियात्मक अवस्था द्वारा प्रगति करता है।
पूर्व-क्रियात्मक अवस्था की 2 उप-अवस्थाएँ होती हैं
- प्रतीकात्मक क्रिया (2 से 4 वर्ष)
- अन्तःप्रज्ञा विचार ( 4 से 7 वर्ष )
- प्रतीकात्मक क्रिया, उप-अवस्था में, बच्चे वस्तुओं का मानसिक प्रतिबिम्ब बना लेते हैं और उसे बाद में उपयोग करने के लिए सम्भाल कर रख लेते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चा एक छोटे कुत्ते की आकृति बनाए या उससे खेलने का नाटक करे, जोकि वहाँ उपस्थित ही नहीं है। बालक उन लोगों के विषय में बात कर सकते हैं जो यात्रा कर रहे हैं या जो कहीं अन्य स्थान पर रहते हों। वे उन स्थानों का भी रेखाचित्र बना सकते हैं, जो उन्होंने देखे हैं, साथ ही साथ अपनी कल्पना से नये दृश्य और जीव भी बना सकते हैं।
- बच्चे अपनी वस्तुओं के मानसिक प्रतिबिम्ब का भी खेल में भूमिका निभाने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
मध्य बाल्यकाल में संज्ञानात्मक विकास Cognitive Development in Childhood
- मध्य बाल्यकाल में बच्चे उत्सुकता से भरे होते हैं और बाहरी वस्तुओं को ढूँढने में उनकी रुचि होती है। स्मरण और सम्प्रत्यय ज्ञान में हुई वृद्धि तर्कपूर्ण चिन्तन को तात्कालिक स्थिति के अतिरिक्त सहज बनाती है।
- बच्चे इस अवस्था में संवेदी क्रियाओं में भी व्यस्त हो जाते हैं जैसे- संगीत, कला और नृत्य एवं रुचियों की अभिवृत्ति की रुचियातें का भी विकास इस अवस्था में हो जाता है।
पियाजे के सिद्धान्त में, मध्य बाल्यकाल में इन्द्रयगोचर सक्रियात्मक अवस्था कीविशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- तार्किक नियमों को समझना।
- स्थानिक तर्क में सुधार।
- तार्किक चिन्तन, यथार्थ और इन्द्रियगोचर स्थितियों तक सीमित।
- मध्य बाल्यकाल में भाषा विकास कई तरीकों से प्रगति करता है। नये शब्द सीखने से अधिक, बच्चे जिन शब्दों को जानते हैं, उनकी अधिक प्रौढ़ परिभाषा सीख लेते हैं। वे शब्दों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। समानार्थी और विपरीतार्थी शब्दों को और उपसर्ग एवं प्रत्यय जोड़ने पर शब्दों के अर्थ कैसे बदल जाते हैं, को भी समझ लेते हैं।
संवेग का अर्थ Emotion Meaning
- 'संवेग' अंग्रेजी भाषा के शब्द इमोशन का हिन्दी रूपान्तरण है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'इमोवेयर' शब्द से है, जिसका अर्थ है 'उत्तेजित होना'। इस प्रकार 'संवेग' को व्यक्ति की 'उत्तेजित दशा' कहते हैं। इस प्रकार संवेग शरीर को उत्तेजित करने वाली एक प्रक्रिया है।
- मनुष्य अपनी रोजाना की जिन्दगी में सुख, दुःख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि का अनुभव करता है। वह ऐसा व्यवहार किसी उत्तेजनावश करता है। यह अवस्था संवेग कहलाती है।
संवेग Emotion की परिभाषा
- वुडवर्थ के अनुसार “संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
- ड्रेवर के अनुसार “संवेग, प्राणी की एक जटिल दशा है, जिसमें शारीरिक परिवर्तन प्रबल भावना के कारण उत्तेजित दशा और एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने की प्रवृत्ति निहित रहती है”।
- जे. एस. रॉस के अनुसार "संवेग, चेतना की वह अवस्था है, जिसमें रागात्मक तत्व की प्रधानता रहती है।"
- जरसील्ड के अनुसार “किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं।"
संवेग के प्रकार Types of Emotion in Hindi
संवेगों का सम्बन्ध मूल प्रवृत्तियों से होता है। चौदह मूल प्रवृत्तियों के चौदह ही संवेग हैं, जो इस प्रकार हैं
- भय
- वात्सल्य
- घृणा
- कामुकता
- करुणा व दुःख
- आत्महीनता
- क्रोध
- आत्माभिमान
- अधिकार भावना
- भूख
- आमोद
- कृतिभाव
- आश्चर्य
- एकाकीपन
संवेगों की प्रकृति Nature of Emotions
- हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने अच्छे और बुरे अनुभवों के प्रति दृढ़ भावनाओं का अनुभव करते हैं।
- संवेगों के उदाहरण हैं खुश होना, शर्मिन्दा होना, दुःखी होना, उदास होना आदि।
- संवेग हमारे प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करते हैं।
संवेगों की प्रमुख विशेषताएँ
- संवेग परिवर्तनशील प्रवृत्ति के होते हैं।
- संवेग में दुःख, सुख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि की भावना निहित होती है।
- संवेगों में तीव्रता का गुण पाया जाता है।
- संवेग मानव व्यवहार में परिवर्तन हेतु उत्तरदायी संवेग क्षणिक होते हैं।
- संवेगों में अस्थाई प्रवृत्ति का गुण पाया जाता है।
- संवेग सार्वभौमिक हैं।
संवेगों के घटक Factors/Components of Emotions
शारीरिक परिवर्तन Physical Changes
- जब एक व्यक्ति किसी संवेग का अनुभव करता है तब उसके शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं जैसे- हृदय गति और रक्त चाप बढ़ जाना, पुतली का बड़ा हो जाना, साँस तेज होना, मुँह का रूखा हो जाना या पसीना निकलना आदि। सोचिए जब आप किसी परीक्षा केन्द्र गए थे और परीक्षा दी थी या जब आप अपने छोटे भाई से नाराज हुए थे, तब शायद आपने ये शारीरिक परिवर्तन अनुभव किए होंगे।
व्यवहार में बदलाव और संवेगात्मक
अभिव्यक्ति
Changes in Behaviour and
Emotional Expression
- इसका तात्पर्य बाहरी और ध्यान देने योग्य चिह्नों से है, जो एक व्यक्ति अनुभव कर रहा है। इसमें चेहरे के हाव-भाव, शारीरिक स्थिति, हाथ के द्वारा संकेत करना, भाग जाना, मुस्कुराना, क्रोध करना एवं कुर्सी पर धम्म से बैठना सम्मिलित हैं। चेहरे की अभिव्यक्ति के छः मूल संवेग हैं भय, क्रोध, दुःख, आश्चर्य, घृणा एवं प्रसन्नता । इसका तात्पर्य है कि यह संवेग विश्वभर के लोगों में आसानी से पहचाने जा सकते हैं।
संवेगात्मक भावनाएँ Emotional Feelings
- संवेग उन भावनाओं को भी सम्मिलित करता है जो व्यक्तिगत हों। हम संवेग को वर्गीकृत कर सकते हैं जैसे प्रसन्न, दुःखी, क्रोध, घृणा आदि। हमारे पूर्व अनुभव और संस्कृति जिससे हम जुड़े हुए हैं हमारी भावनाओं को आकृति प्रदान करते हैं। जब हम किसी व्यक्ति के हाथ में छड़ी देखते हैं, तो हम भाग सकते हैं या अपने आपको लड़ाई के लिए तैयार कर लेते हैं, जब यदि एक प्रसिद्ध गायक आपके पड़ोस में रहता है, तो आप उससे अपने प्रिय गीत सुनने के लिए चले जाएँगे।
संवेगों का शिक्षा में महत्त्व Importance of Emotions in Education
- शिक्षक, बालकों के संवेगों को जाग्रत करके, पाठ में उनकी रुचि उत्पन्न कर सकता है।
- शिक्षक, बालकों के संवेगों का ज्ञान प्राप्त करके, उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।
- शिक्षक, बालकों में उपयुक्त संवेगों को जाग्रत करके, उनको महान कार्यों को करने की प्रेरणा दे सकता है।
- शिक्षक, बालकों की मानसिक शक्तियों के मार्ग को प्रशस्त करके, उन्हें अपने अध्ययन में अधिक क्रियाशील बनने की प्रेरणा प्रदान कर सकता है।
- शिक्षक, बालकों के संवेगों को परिष्कृत करके उनको समाज के अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता प्रदान कर सकता है।
- शिक्षक, बालकों को अपने संवेगों पर नियन्त्रण करने की विधियाँ बताकर, उनको शिष्ट और सभ्य बना सकता है।
- शिक्षक, बालकों के संवेगों का विकास करके, उनमें उत्तम विचारों, आदर्शों, गुणों और रुचियों का निर्माण कर सकता है।
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