बल क्या है , बल के प्रकार-संपर्क बल,असंपर्क बल,गुरुत्वाकर्षण बल,विद्युत चुम्बकीय बल,घर्षण बल | Force GK in Hindi

 बल क्या है , बल के प्रकार-संपर्क बल,असंपर्क बल,गुरुत्वाकर्षण बल,विद्युत चुम्बकीय बल,घर्षण बल 

बल क्या है , बल के प्रकार-संपर्क बल,असंपर्क बल,गुरुत्वाकर्षण बल,विद्युत चुम्बकीय बल,घर्षण बल | Force GK in Hindi



बल (FORCE) किसे कहते हैं 

 

  • 'बल वह बाह्य कारक (external effort) है जो किसी वस्तु की विराम (rest) अथवा गति (motion) की अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है।" दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि - "बल वह धक्का (Push) या खिंचाव (Pull) है जो एक निकाय द्वारा दूसरे निकाय पर आरोपित होता है।" 

 

  • बल का S.I. मात्रक न्यूटन अथवा किग्रा. मी./से.2 होता है। बल आकर्षण (attraction) या प्रतिकर्षण (repulsion) किसी भी प्रकार का हो सकता है।

 

बल के प्रकार (Types of Force)

 

संपर्क बल (Force of contact)

 

  • वह बल जो किसी व्यक्ति, जीव, वस्तु, यंत्र (machine) या निकाय (system) द्वारा किसी व्यक्ति वस्तु, यंत्र या निकाय पर प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा आरोपित (apply) किया जाता है, उसे संपर्क बल (Force of contact) कहते हैं। 


  • ऐसा बल आरोपित करने वाला कारक प्रत्यक्ष होता है। जैसे मनुष्य द्वारा किसी पत्थर को ढकेलना या खींचना, हवा द्वारा वृक्षों को हिलाना, गतिमान वस्तु द्वारा किसी स्थिर वस्तु को गतिमान बनाना या गतिमान बनाने का प्रयास करना इत्यादि। इसके अंतर्गत पेशीय बल (muscular force) आते हैं । 

 

असंपर्क बल (Force without Contact)

 

  • जब बल उत्पन्न करने वाला कारक प्रत्यक्ष दिखता नहीं है बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है तो इसे अप्रत्यक्ष अध्यारोपित बल या असंपर्क बल कहते हैं। जैसे धरती के चुम्बकीय क्षेत्र में दण्ड चुम्बक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर उसका स्वतः घूमकर उत्तर-दक्षिण दिशा में आकर स्थिर हो जाना इत्यादि। यह बल भी कई प्रकार के होते हैं। यथा

 

1. गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force)

 

  • ब्रह्माण्ड में स्थित प्रत्येक कण/पिण्ड (particle/ body) दूसरे कणों/पिण्डों पर आकर्षण प्रकृति का एक बल आरोपित करता है, जिसकी दिशा पिंड के गुरुत्वीय केंद्र (Centre of gravity) की तरफ होती है। इसे हम गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।
  • ब्रह्माण्ड में तारों, ग्रहों व उपग्रहों का जो निकाय (System) या एक निश्चित व्यवस्था (Stable arrangement) स्थापित है, वह इसी का परिणाम है। 
  • इस बल का परिमाण दोनों पिण्डों (जिनके बीच आरोपित बल ज्ञात करना हो) के द्रव्यमानों (mass) के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती (directly proportional) व उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (invertionly proportional) होता है।

 

2. विद्युत चुम्बकीय बल (Electro-magnetic Force)

 

यह बल निम्न बलों का संयुक्त प्रभाव होता

 

(A) चुम्बकीय बल (Magnetic Force) 

(B) स्थिर वैद्युत बल (Electrostatic force) 


(A) चुम्बकीय बल (Magnetic Force)

 

प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव (Poles) होते हैं- उत्तरी ध्रुव (north pole) व दक्षिणी ध्रुव (South pole)। इन दोनों ध्रुवों के मध्य लगने वाले बल को चुम्बकीय बल कहते हैं। 


(B) स्थिर वैद्युत बल (Electrostatic Force) 

  • दो स्थिर (at rest) बिन्दु आवेशों (point (charges) के मध्य लगने वाले बल को स्थिर वैद्युत बल कहते हैं। 


  • विद्युत व चुम्बकीय बल मिलकर विद्युत चुम्बकीय बल (electro-magnetic force) की रचना करते हैं। ये आकर्षण (attractive) या प्रतिकर्षण (repulsive) प्रकृति के हो सकते हैं। यदि दोनों आवेशों की प्रकृति समान हो तो बल प्रतिकर्षी तथा आवेशों की प्रकृति विपरीत होने पर बल आकर्षी प्रकृति का होता है।

 

  • ध्यातव्य है कि आवेश यदि स्थिर है तो इनके मध्य लगने वाला बल स्थिर वैद्यत बल (electro static force) तथा यदि आवेशों के बीच सापेक्ष गति होती है तो इनके बीच लगने वाले बल को विद्युत चुम्बकीय बल (electro magnetic force) कहा जाता है। विद्युत चुम्बकीय बल फोटॉन नामक कणों के माध्यम से कार्य करते हैं।

 

3. नाभिकीय बल (Nuclear Force) 

  • परमाणु के नाभिकों के संयोजन (composition) या वियोजन या क्षय (decay) के लिए जिम्मेदार बलों को नाभिकीय बल कहते हैं। संयोजन व वियोजन के ही आधार पर इन्हें दो रूपों में बांटा जा सकता है।

 

(i) प्रबल बल (Strong Force) 

  • नाभिक में प्रोटानों व न्यूट्रॉनों को बांधे रखने के लिए जिम्मेदार बल को प्रबल बल कहते हैं। यह दो प्रोटानों, दो न्यूटानों या प्रोटान व न्यूट्रॉन के मध्य लगता है। जिसका परास (Range) बहुत कम (1015m of (order) व प्रबलता बहुत अधिक होती है।

 

  • उदाहरण स्वरूप यदि दो प्रोटान एक फर्मी (1015m) की दूरी पर हों तो इनके बीच कार्यकारी प्रबल बल जो कि आकर्षण प्रवृत्ति का होता है, दोनों के बीच लगने वाले प्रतिकर्षी स्थिर वैद्युत बल का दस गुना होता है। यही कारण है कि प्रोटॉन में रहने कणों के बीच लगने वाला प्रबल बल दूरी बढ़ने पर बहुत तेजी से घटता है। यदि दोनों के बीच दूरी 15 फर्मी हो जाय तो यह मत नगण्य ((negligible) हो जाता है। माना जाता है कि प्रबल बल दो क्वार्कों की पारस्परिक क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। ये बल प्रकृति (nature) में सबसे शक्तिशाली माने जाते हैं।"

 

(ii) दुर्बल बल (Weak force)-

  • रेडियोऐक्टिव प्रक्रिया (Radioactivity) के दौरान निकलने वाले B-कणों या इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन (ernition) तब होता है जब नामिक का कोई न्यूट्रॉन व प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन व एण्टीन्यूट्रीनों के रूप में परिवर्तित होताब है। 

 

  • इलेक्ट्रानों व एण्टीन्यूट्रिनों के बीच होने वाली पारस्परिक अभिक्रिया (Interaction), दुर्बल बलों के कारण ही होती है। इन्हें दुर्बल या क्षीण बल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका मान बहुत कम (प्रबल बलों का 1/1013 गुना) होता है। ऐसा माना जाता है कि ये बल W-बोसॉन नामक कण के आदान-प्रदान द्वारा उत्पन्न होते हैं। इन बलों को क्षीण बल भले ही कहा जाता है, परन्तु इनका परिमाण गुरुत्वाकर्षण बल का लगभग 1025 गुना होता है। साथ ही इनका कार्यकारी परास (acting range) बहुत कम होता है जो कि प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के आकार (फर्मी) से भी कम होता है।



घर्षण बल (Force of Friction)

 

  • जब किसी वस्तु की सतह पर किसी को गति कराने का प्रयास किया जाता है या गति कराया जाता है तो सतह से समान्तर गति न होने पर बल) की दिशा के विपरीत एक गति अवरोधक (motion opposing force) कार्य करता है जिसे घर्षण बल कहते हैं। 


घर्षण बल तीन प्रकारका हो सकता है-

 

(I) स्थैतिक चर्पण (Static Friction)- 

  • जब एक स्थिर पर स्थित किसी वस्तु को लगाकर गतिमान करने का प्रयास किया है, परन्तु वस्तु गतिमान नहीं होती। इस दशा में बल के बराबर विपरीत दिशा में जो घर्षण है उसे स्थैतिक घर्षण कहते हैं।

 

(ii) सर्पी घर्षण (Sliding Friction)- 

  • किसी सतह पर जब कोई वस्तु गतिमान होती है तो सतह के समानान्तर व विपरीत दिशा में जो घर्षण कार्य करता है उसे सर्पी घर्षण बल कहते हैं।

 

(iii) लोटनिक घर्षण बल (Rolling Friction)- 

  • जब कोई गोलाकार वस्तु किसी सतह पर लुढ़कती है तो दोनों सतहों के बीच व गति की विपरीत दिशा में लगने वाले घर्षण बल को लोटनिक घर्षण कहते हैं।

 

अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal Force) 

  • किसी वृत्तीय मार्ग पर एक समान चाल से गति करते हुए पिण्ड पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा सदैव केंद्र की ओर रहती है। इस बल को अभिकेंद्रीय बल कहते हैं। इस बल की अनुपस्थिति में वृत्तीय गति संभव नहीं। 

 

अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force) 

  • जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है तो वृत्तीय मार्ग के केंद्र के विपरीत दिशा में एक बल का अनुभव होता है जिसे अपकेंद्रीय बल कहते हैं। यह एक आभासी बल है जिसकी उत्पत्ति वस्तु के जड़त्व के गुण के कारण होती है। जैसे- यदि कोई व्यक्ति कार से यात्रा कर रहा है और कार अचानक बायीं ओर घूम जाये तो व्यक्तियों को दायीं ओर की तरफ एक झटका लगता है जो कि अपकेंद्रीय बल के कारण होता है। वाशिंग मशीन में कपड़े इसी सिद्धान्त पर साफ होते हैं।" 

 

तनाव बल (Tension Force)

 

  • जब किसी स्थिर (fix) वस्तु से किसी वस्तु को बाँध कर नीचे की तरफ लटकाया जाता है अथवा किसी दिशा में खींचा जाता है तो उस वस्तु में बांधी गई वस्तु के भार या खींचने के लिए लगाये गये बल का विरोध किया जाता है, फलस्वरूप विपरीत दिशा में एक तनाव बल उत्पन्न होता है जो संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। जैसे रस्सी में बांधकर किसी पत्थर को लटकाना। इसे ही तनाव बल कहते हैं।

 

बलों का संतुलन (Balance of Force)

  • यदि किसी वस्तु पर एक से अधिक बल एक साथ कार्य कर रहे हो परन्तु उनका कोई प्रभाव न हो तो कहा जाता है कि बल संतुलन में है। ऐसी स्थिति में बलों का परिणामी बल (resultant force) शून्य होता है।

 

  • जैसे रस्साकसी के खेल में जब दो टीमें रस्से को बराबर बल से अपनी-अपनी ओर खींचती हैं, तो रस्सा तथा दोनों टीमें अपने स्थानों पर स्थिर रहते हैं। इस स्थिति में दोनों टीमों द्वारा रस्से पर लगाये गये बल संतुलित होते हैं।


जड़त्व (Inertia) किसे कहते हैं 

 

  • जड़त्व किसी वस्तु का वह गुण है जिसके कारण वह अवस्था परिवर्तन अर्थात् किसी निकाय द्वारा लगाये गये बल का विरोध करता है। वस्तुओं की इस प्रवृत्ति का नाम 'जड़त्व' गैलीलियो द्वारा दिया गया है। 
  • वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान (mass) पर निर्भर करता है। द्रव्यमान जितना अधिक होता है, वस्तु में जड़त्व अर्थात् बल का विरोध करने की प्रवृत्ति या क्षमता उतना ही अधिक होती है। इसीलिए अधिक भारी वस्तुओं को विरामावस्था से गति में लाने या गत्यावस्था से विरामावस्था में लाने में अधिक बल की आवश्यकता होती है। इस प्रकार किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है।

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