चुम्बक, पृथ्वी के चुम्बकीय तत्व ,चुम्बकीय क्षेत्र और चुम्बकीय बल रेखायें , चुम्बकों के उपयोग
चुम्बकत्व Magnet GK in Hindi
हम सभी साधारण चुम्बकों से परिचित हैं।
लोहे की एक छड़ चुम्बकीय होने पर सरल चुम्बक बन जाती है। चुम्बक लोहे के छोटे
टुकड़ों को आकर्षित करता है और चिपका लेता है किन्तु तांबे की वस्तुओं को आकर्षित
नहीं करता।
चुम्बक द्वारा आकर्षित होने वाले पदार्थ चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं, जैसे- लोहा, कोबाल्ट व - निकिल तथा इनकी मिश्र
धातुएं । किन्तु जो पदार्थ आकर्षित नहीं हो पाते उन्हें अचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं, जैसे- तांबा, लकड़ी, कांच आदि। कुछ अचुम्बकीय पदार्थ भी अधिक तीव्र चुम्बक की उपस्थिति
में अल्प (दुर्बल) चुम्बकत्व दर्शाते हैं। कुछ पदार्थ आकर्षित होते हैं, जबकि अधिकतर पदार्थ बहुत ही कम
प्रतिकर्षित (repelled) होते हैं ।
चुम्बक के गुण
छड़ चुम्बक को धागे से मध्य में बांध
कर लटकाने पर यह कुछ समय तक दोलन कर उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर हो जाता है।
उत्तर की दिशा की ओर के सिरे को चुम्बक का उत्तरी ध्रुव व दक्षिण दिशा की ओर के
सिरे को दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं।
ये ध्रुव वास्तव में सिरे से कुछ अन्दर की ओर जहां चुम्बक का
परिणामी आकर्षण बल केन्द्रित होता है वहां स्थित होते हैं।
चुम्बकीय आकर्षण और अपकर्षण जैसा की हम
जानते हैं कि चुम्बक के समान ध्रुवों के बीच अपकर्षण तथा असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता
है।"
यदि एक चुम्बक को धागे से लटकाकर उसके उत्तरी ध्रुव के पास दूसरे चुम्बक
का उत्तरी ध्रुव लाया जाये तो जैसे-जैसे एक का उत्तरी ध्रुव दूसरे के उत्तरी ध्रुव
के पास आता जाता है दूसरे का उत्तरी ध्रुव घूमकर दूर होता जाता है।
दोनों चुम्बकों
के दक्षिणी ध्रुवों को पास लाने पर भी ऐसा ही होता है। अतः समान ध्रुवों के बीच
अपकर्षण या विकर्षण (repulsion)
होता है।
पृथ्वी एक ऐसे बड़े चुम्बक की तरह
व्यवहार करती है, मानो पृथ्वी के भीतर एक बहुत बड़ा
चुम्बक है और वह चुम्बक उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ है। यह चुम्बक सीधे
उत्तर-दक्षिण दिशा में न होकर भौगोलिक अक्ष के साथ एक छोटा कोण बनाता है।
पृथ्वी
के इस चुम्बक का उत्तरी ध्रुव दक्षिण दिशा में तथा दक्षिणी ध्रुव उत्तर दिशा में
है। इसी कारण लटके हुए चुम्बक का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर हो जाता है, जहां पृथ्वी के चुम्बक का दक्षिणी
ध्रुव है। पृथ्वी के इस चुम्बकत्व को पार्थिव चुम्बकत्व कहते हैं।
ध्रुव सामर्थ्य (pole strength) और चुम्बकीय याम्योत्तर (mag netic meridian)
चुम्बक के ध्रुवों की आकर्षण सामर्थ्य
को ध्रुव-सामर्थ्य कहते हैं। चुम्बकीय अक्ष से होकर जाने वाला कल्पित ऊर्ध्वतल
चुम्बकीय याम्योत्तर कहलाता है।
चुम्बकीय लम्बाई (magnetic length) और चुम्बकीय अक्ष (magnetic axis) :
चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच की
दूरी उसकी चुम्बकीय लम्बाई कहलाती है। चुम्बक के
दोनों ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा चुम्बकीय अक्ष कहलाती है।
पृथ्वी के चुम्बकीय तत्व (Magnetic Elements of the Earth)
( 1 ) क्षैतिज तीव्रता (horizontal intensity):
इकाई ध्रुव-समर्थ्य(unit pole strength) का कोई उत्तर ध्रुव लें तो चुम्बकीय याम्योत्तर की क्षैतिज दिशा में
उस पर जो बल लगता है उसे पृथ्वी के चुम्बकत्व की क्षैतिज तीव्रता कहते हैं। इस
क्षैतिज तीव्रता का मान भी पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न होता है।
( 2 ) दिकूपात (declination):
चुम्बकीय याम्योत्तर और भौगोलिक
योम्योत्तर दोनों की दिशा एक नहीं होती। दोनों के बीच एक कोण होता है, जिसे दिकपात का कोण कहते हैं। पृथ्वी
के विभिन्न स्थानों में दिक्पात के कोण का मान भिन्न-भिन्न होता है। उन स्थानों को
मिलाने वाली रेखा जहां दिकपात का मान एक ही रहता है समदिकपाती (isogonic line) रेखा कहलाती है। जहां-जहां दिकूपात कोण
का मान शून्य होता है, उन स्थानों को मिलाने वाली रेखा शून्य दिक्पाती रेखा
(agonic line) कहलाती है।
( 3 ) नमन (inclination):
क्षैतिज तल के साथ चुम्बक का अक्ष जो कोण बनाता
है, उसे नमन या नति कहते हैं। पृथ्वी के
विभिन्न स्थानों पर नमन के कोण का मान भिन्न-भिन्न होता है। नमन कोण को नमनमापी (dip circle) से मापते हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र और चुम्बकीय बल
रेखायें
किसी चुम्बक का प्रभाव जहां तक होता है, उसे चुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं और
चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव को चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं। चुम्बक के
पास तीव्रता अधिक और चुम्बक से दूर तीव्रता कम होती है। कुछ दूरी के बादतीव्रता नगण्य हो जाती है। चुम्बकीय
क्षेत्र की तीव्रता ध्रुवों पर सर्वाधिक होती. है, जहां बल-रेखाएं एक-दूसरे से निकट होती हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक
गाँस (gauss) है। इसका SI मात्रक टेसला है। टेसला 10ए000
गॉस के बराबर होता है। पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र सतह पर गाँस होता है। सर्वाधिक
शक्तिशाली स्थायी चुम्बक द्वारा 5,000
गॉस का क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है। एक विद्युत चुम्बक जिसका कोर लोहे का बना
हो 30,000 गॉस का चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर
सकता है। 650.00 गॉस के चुम्बकीय क्षेत्र भी कुछ
क्षणों के लिए उत्पन्न किए जा चुके हैं।
चुम्बकीय बल-रेखा
चुम्बक में असमान ध्रुवों के बीच
आकर्षण तथा समान ध्रुवों के बीच अपकर्षण होता है। अगर अकेला चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव
उपलब्ध होता और उसे हम किसी चुम्बक के उत्तरी ध्रुव के पास रखते तो वह उत्तरी
ध्रुव के द्वारा अपकर्षित तथा दक्षिणी ध्रुव द्वारा आकर्षित होता है और एक विशेष
पथ से चलकर दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचता है। इस प्रकार का पथ चुम्बकीय बल-रेखा कहलाता
है। चुम्बकीय बल रेखाएं काल्पनिक होती हैं। ये रेखाएं चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का
बोध कराती हैं। चुम्बक के चारों ओर इस प्रकार की बल रेखाएं होती हैं, जो उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं और
दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती हैं।
चुम्बकों के उपयोग
कृत्रिम विधि से बनाये गये विभिन्न
आकार के चुम्बकों के अलग-अलग उपयोग होते हैं, जैसे
स्थायी छड़ चुम्बकों का उपयोग दिशा सूचकों में होता है।
आरंभिक कम्प्यूटरों में
वृत्तीय चुम्बकों का बड़े पैमाने पर उपयोग सूचनाओं को संगृहीत रखने के लिए किया
गया था।
विद्युत् चुम्बकों का उपयोग वहां होता है जहां हमेशा चुम्बकत्व की
आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरणतया किसी क्रेन के हुक या घुंडी में लगा विद्युत्
चुम्बक तभी कार्य करता है जब चुम्बक से होकर विद्युत् का प्रवाह होता है।
नाल
चुम्बकों (horse-shoc
magnets) का
उपयोग छोटी विद्युत् मोटरों एवं रडार में होता है। चकती के आकार के चुम्बकों का
उपयोग रेडियो तथा टेलीविजन के लाउडस्पीकरों में किया जाता है।
1 भू-चुम्बकत्व क्या होता है
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि
स्वतंत्र रूप से लटका छड़ चुम्बक लगभग उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होता है, इसका कारण है पृथ्वी का चुम्बकत्व
पृथ्वी के इस चुम्बकत्व के विषय (आधार) में वैज्ञानिक अभी भी स्पष्ट रूप से ज्ञात
नहीं कर पाए हैं किन्तु ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी के अन्दर कोर (core) में पिघली अवस्था में पदार्थों के कारण
उत्पन्न विद्युत् धाराओं से यह चुम्बकत्व उत्पन्न होता है। कुछ भू-वैज्ञानिक मानते
हैं कि इन विद्युत धाराओं के उत्पन्न होने के कारण पृथ्वी का चूर्णत है। कुछ अन्य
मानते हैं कि पृथ्वी के चुम्बकत्व का कारण पृथ्वी अतिरिक कोर से पन्न होने वाली
ऊष्मा है। इस ऊष्मा का कारण बाहरी कोर में वाली संवहनीय धाराएं हैं।
पिछले पदार्थ में आयनों एवं इलेक्ट्रॉन
की गति के कारण चुंबकीय क्षेत्र "उत्पन्न होता है। यह संभवतः संवहनीय धारा
एवं पृथ्वी के पूर्णन के प्रभाव के आपसी संयोजन से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र है।
पृथ्वी के किसी स्थान पर चुम्बकीय
उत्तर सामान्यत: ठीक भौगोलिक उत्तर दिशा में नहीं होता। इन दोनों दिशाओं के बीच के
कोण को दिकपात (dec
lination) कहते
हैं इसीलिए समुद्र यात्रा में नाविकों द्वारा सही उत्तर दिशा ज्ञात करने हेतु
कम्पास के प्रयोग में दिकपात का सगंजन करना पड़ता है। स्वतंत्र रूप से लटकी छड़
चुम्बक से ओ क्षैतिजीय कोण बनता है, वह
उस स्थान की नति (dip) कहलाती है। इस प्रकार इस झुकाव अर्थात
क्षितिज से नमन (अर्थात् झुकाव कोण) को उस स्थान का चुम्बकीय नमन (dip) कहते हैं । विषुवत् रेखा पर नमन तो
शून्य तथा ध्रुवों पर नमन 90° होता है ।
2 चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग ( एम.आर.आई.)
एक विशेष प्रकार का चिकित्सकीय परीक्षण
है, जो चिकित्सकों को उन बीमारियों का पता
लगाने एवं उनका उपचार करने में सहायता करता है, में
जिनका अन्य विधियों; जैसे- एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड या कैट स्कैनिंग आदि से प
पता नहीं लग पाता है।
एम. आर. इमेजिंग में शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों (यथा-हृदय, यकृत, वृक्क, तिल्ली, पैंक्रियास आदि) एवं कोमल ऊतकों, अस्थियों
एवं अन्य सभी भागों की संरचना की विस्तृत तस्वीर प्राप्त करने के लिय एक शक्तिशाली
चुंबकीय क्षेत्र, रेडियो आवृत्ति, धड़कने एवं एक कंप्यूटर होता है।
आंतरिक अंगों का कंप्यूटर के मॉनिटर पर भलीभांति परीक्षण करके इन चित्रों के
प्रिंट लिये जा सकते हैं या फिर उन्हें कंप्यूटर में कॉपी किया जा सकता है। इस
तकनीक में एक्स-रे का उपयोग नहीं होता है ।
Post a Comment