सुकरात का नीतिशास्त्र |सुकरात के अनुसार सद्गुण |Sukraat (socrates) ka nitishastra
सुकरात का नीतिशास्त्र, सुकरात के अनुसार सद्गुण
सुकरातीय नीतिशास्त्र Sukraat (socrates) ka Nitishastra
- सुकरात का नीतिशास्त्र प्रधानतः मानव केन्द्रित है। यद्यपि यह दृष्टि ग्रीक दार्शनिक परम्परा में नई नहीं थी, फिर भी सुकरात ने मनुष्य पर एक भिन्न दृष्टिकोण से विचार किया है। उनके नीतिशास्त्र का केन्द्र सदगुण की अवधारणा है।
- सद्गुण सुकरात के अनुसार एक गहनतम एवं सर्वाधिक मूलभूत प्रवृत्ति है। यह सद्गुण ज्ञान है।.... यदि कोई भी शुभ वस्तु ज्ञान से असंबंधित और भिन्न है, तब सद्गुण अनिवार्यतः ज्ञान का प्रकार नहीं हो सकता। दूसरी दृष्टि से, यदि ज्ञान शुभ को पूर्णतः धारण करता है, तब हम पूरी तरह से कह सकते हैं कि सदगुण ज्ञान है।" यदि सदगुण ज्ञान हैं तो इसे जाना जा सकता है और इसकी हम शिक्षा दे सकते हैं। यही "अपने आप को जानों" इस प्रबोध- वाक्य का अर्थ है। अपने आप को जानों का अर्थ है कि (हम) आन्तरिक आत्मा को प्रकाशित करें। ज्ञान के द्वारा मानव आत्म-नियन्त्रण कर स्वयं का स्वामी बन जाता है।
सद्गुण ही ज्ञान है
- सुकरात के अनुसार सद्गुण मानव जीवन में प्राप्त किया जाने वाला सर्वोत्तम शुभ और सर्वोच्च लक्ष्य है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि यदि यह परम लक्ष्य है और परम शुभ है, तो इसमें सार्वभौम संगति होगी तथा यह सभी के लिए एक जैसा होगा सुकरात का यह मानना है कि स्वास्थ्य, धन, सुन्दरता, साहस और संयम, जो शुभ के विभिन्न रूप माने जाते हैं, वस्तुतः शुभ तभी हैं जब ये विवेकसम्मत होते हैं। मूढ़ता के साथ जुड़कर ये अशुभ के रूप हो जाते हैं।
- जैसा कि हम पूर्व में देख चुके है कि संप्रत्यय बुद्धि के द्वारा प्रदत्त होते हैं न कि किसी विशेष तथ्य के प्रत्यक्ष से अब चूंकि संप्रत्यय मानव मन में पहले से ही विद्यमान है, इसलिए उन्हें जाग्रत करने के लिए प्रश्न-विधि उपयोगी है। यदि नैतिकता शुभ के प्रत्यय का संप्रत्ययों के द्वारा ज्ञान है, तब इसे कौन प्राप्त कर सकता है ?
- सुकरात यह मानते थे कि सोफिस्टों को इसकी प्राप्ति इसलिए नहीं हुई, क्योंकि वे बुद्धि की अपेक्षा प्रत्यक्ष पर आश्रित थे। सुकरात का विश्वास था कि सत्य एवं शुभ को वही प्राप्त कर सकता है, जो बुद्धि से संचालित होता है, प्रत्यक्ष से नहीं। जो बुद्धि से संचालित होता है अपने मन में पहले से ही उपस्थित वह शुभ के प्रत्यय का पुर्नस्मरण करता है। अपनी ज्ञानमीमांसा के अनुरूप ही वे यह भी मानते हैं कि शुभ का यथार्थ संप्रत्यय शुभ के प्रत्यय पर चिन्तनशील पुर्नस्मरण द्वारा प्राप्त होता है।
सद्गुण एक है अर्थात सद्गुण की एकता
- सुकरात के अनुसार नीतिशास्त्र का एक अन्य आयाम और भी है। यहाँ हम केवल शुभ के प्रत्यय के ज्ञानमात्र से ही संतुष्ट नहीं होते। वास्तव में शुभ के प्रत्यय का ज्ञान अन्य प्रत्ययों को नियन्त्रित करने का कार्य करता है तथा इच्छा और भावना सहित संपूर्ण मानव का पथ-प्रदर्शन करता है तथा शुभ कार्यों के लिए उसे प्रेरित करता है। अतः नैतिक ज्ञान आत्मा को सुसंस्कृत ओर सुशिक्षित करता है तथा उसको अपनी विशुद्ध महिमा में स्थापित कर देता है। इसलिए सुकरात उद्घोषित करते हैं कि कोई भी ज्ञानपूर्वक दुष्कृत्य नहीं कर सकता" तथा "ज्ञान ही सद्गुण है।"
- सुकरात कहते हैं कि सद्गुण या शुभत्व एक है, यद्यपि हम उसे विभिन्न प्रकार से आचरण में लाते हैं। प्लेटो की कृति प्रोटागोरस में सुकरात कहते हैं कि सद्गुण प्रज्ञा, संयम, साहस, न्याय तथा पवित्रता आदि अनेक मुख्य प्रकार हैं, लेकिन उन सब में एक ही तत्व व्याप्त है। इसी प्रकार प्लेटो की कृति मेनो में सुकरात एक ऐसे सद्गुण का अन्वेषण करना चाहते हैं, जो सब सद्गुणों में व्याप्त रहता है।
- सुकरात इसे एक स्वस्थ शरीर के उदाहरण से समझाते हैं। उनके अनुसार एक स्वस्थ शरीर जिस प्रकार तमाम शारीरिक कौशलों के लिए उत्तरदायी होता है, उसी प्रकार आत्मा की स्वस्थता से सभी प्रकार के सद्गुणों का संकेत मिलता है। आत्मा के स्वास्थ्य का क्या अर्थ है? आत्मा की अनेक क्रियायें हैं। इन क्रियाओं का सुव्यवस्थित संयोजन ही आत्मा की स्वस्थता है। प्लेटो की कृति गार्जियस में हम सुकरात को यह कहते हुए पाते हैं कि आत्मा की मुख्य क्रियायें, तार्किकता, संयम और इच्छा हैं। तार्किकता प्रज्ञा की ओर अग्रसर करती है, संयम साहस ओर तरफ तथा इच्छा सौम्यता की ओर। आत्मा का स्वास्थ्य इन सभी क्रियाओं के संगतिपूर्ण संयोजन पर निर्भर रहता है। इन क्रियाओं का संयोजन इस प्रकार है; प्रज्ञा आदेश देती है तथा संयम इसके अनुपालन में सहायक होता है, जबकि इच्छा इन आदेशों के क्रियान्वयन के लिए भौतिक आधार का काम करती है।
- सद्गुण की एकता का लक्ष्य व्यक्ति को आत्याधिक प्रसन्नता प्रदान करता है। "विवेक के नियन्त्रण में सामंजस्यपूर्ण गतिविधियों का सफल क्रियान्वयन प्रसन्नता को जन्म देता है।" इस प्रकार सद्गुण की एकता की सुकरातीय अवधारणा का अर्थ है कि “एक अच्छे मनुष्य की आत्मा उसकी समस्त क्रियाओं की सावयविक एकता को प्रदर्शित करती है।"
सुकरात के इस विचार से कि 'सद्गुण एक है' यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य के सभी स्वाभाविक नैतिक कर्मों में शुभत्व का एक अकेला प्रत्यय व्याप्त है। प्लेटो की कृति रिपब्लिक में सुकरात इसे इस प्रकार कहते हैं :
- ज्ञान के क्षेत्र में कठिनाई से जानी जाने वाली अन्तिम जानने योग्य वस्तु शुभ का प्रत्यय है और जब यह जान ली जाती है, तब निशचिन्त रूप से यह निकर्ष निकलता है कि यही सर्वसुन्दर और सदा उचित वस्तुओं का कारण है। शुभ ही दृश्य जगत में प्रकाश को जन्म देता है। प्रकाश का जनक होने के कारण यह बौद्धिक जगत में सत्य और बुद्धि का प्रामाणिक स्रोत है तथा प्रत्येक वह व्यक्ति जो वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में बुद्धिमत्ता पूर्ण आचरण करना चाहता है उसे इससे अवश्य ही परिचित होना चाहिए।
Post a Comment