शिक्षण का अर्थ | शिक्षण अधिगम प्रक्रिया | Teaching Learning Process in Hindi
शिक्षण का अर्थ , शिक्षण अधिगम प्रक्रिया
शिक्षण का अर्थ Teaching
- शिक्षण का अर्थ होता है अधिगम कराने या शिक्षित करने की प्रक्रिया।
- शिक्षण को अध्यापन भी कहा जाता है।
- शिक्षण का कार्य प्रायः शिक्षकों/अध्यापकों के द्वारा किया जाता है, जो सुनिश्चित पाठयक्रम पर आधारित होता है।
- शिक्षण के द्वारा बालक के ज्ञानात्मक पक्ष के विकास पर जोर दिया जाता है। चूँकि अध्यापन प्रक्रिया में अध्यापक और छात्र में अन्तः क्रिया होती है, अतः शिक्षकों का प्रशिक्षित होना आवश्यक है।
शिक्षा तथा स्कूलन, अधिगम, प्रशिक्षण, अध्यापन तथा अनुदेशन में संकल्पनात्मक भेद
Constructive Differences in Education and Schooling, Learning, Training, Teaching and Instruction
सामान्यतः लोग शिक्षा की अवधारणा को स्कूलन, अधिगम, अध्यापन अथवा अनुदेशन के रूप में समझने की भूल कर बैठते हैं। यद्यपि इन शब्दों तथा शिक्षा की प्रक्रिया के मध्य गहरा सम्बन्ध है, तथापि इन सभी के अर्थों में भिन्नता है।
शिक्षा Education
- व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवनभर चलती रहती है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत ज्ञान, अनुभव, कौशल तथा अभिवृत्तियाँ सभी कुछ आते हैं। इस प्रकार जीवन के सभी अनुभव सम्भवतः शैक्षिक बन जाते हैं तथा शिक्षा की प्रक्रिया वैयक्तिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार की अवस्थाओं में चलती रहती है। शिक्षा के इस अर्थ में उन सभी मूल्यों, अभिवृत्तियों तथा कौशलों, जिन्हें समाज बच्चों में डालना चाहता है, को विकसित करने सम्बन्धी सभी प्रयत्न सम्मिलित हैं।
स्कूलन Schooling
- स्कूलन वह क्रिया है जिसमें चेतन रूप में मूल्य, ज्ञान तथा कौशलों को बच्चों में एक औपचारिक स्थिति की रूपरेखा के अन्तर्गत प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है। विद्यालयों द्वारा कुछ ऐसे विशेष विषय क्षेत्रों में सुविचारित व क्रमबद्ध प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जो अन्य लोगों की जीवन प्रक्रिया या अनुभवों द्वारा प्राप्त न किया जा सके। इस तरह स्कूलन एक ऐसा शैक्षिक कार्य है जिसमें दिए जाने वाले अनुभवों की एक निश्चित सीमा है तथा जो मानव जीवन की एक विशिष्ट अवधि तक सीमित है। स्कूलन हमारी शिक्षा का एक अंग मात्र है।
अधिगम Learning
- अधिगम एक ऐसी प्रकिया है जिसके द्वारा अभ्यास अथवा अनुभव व्यवहार में परिवर्तन सम्भव होता है। शारीरिक परिवर्तन को अधिगम के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता। शिक्षा के द्वारा अधिगम प्रक्रियाओं को सुसंगत व्यक्तित्व विकास जैसे अपने व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
प्रशिक्षण Training
- प्रशिक्षण ऐसी क्रियाओं की एक क्रमबद्ध शृंखला है जिसमें अनुदेशन, अभ्यास आदि सम्मिलित होते हैं तथा जिनका उद्देश्य जीवन अथवा व्यवसाय के किसी विशेष पक्ष से सम्बन्धित वांछनीय आदतों को उत्पन्न करना या व्यवहार प्रकटीकरण होता है। उदाहरण के लिए शिक्षण में पारंगत होने के लिए व्यक्ति अध्यापक प्रशिक्षण का सहारा लेता है, जबकि तकनीकी कौशलों के विकास के लिए वह तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करता है। प्रशिक्षण के द्वारा विशिष्ट कौशलों का विकास तथा संवर्धन होता है ताकि प्रशिक्षण पाने वाले को सम्बन्धित क्षेत्र अथवा कार्य में विशेषज्ञ बनाया जा सके।
शिक्षण तथा अनुदेशन Teaching and Instruction
- ऐसे साधन रूप हैं जिनका उपयोग मानव व्यवहार में अभीष्ट परिवर्तन लाने के लिए किया जाता है। शिक्षण तथा अनुदेशन में अध्येता को विचारों, मूल्यों, कौशलों, सूचनाओं तथा ज्ञान का सम्प्रेषण कराना सम्मिलित होता है। अध्ययन तथा अनुदेशन का उद्देश्य विद्यार्थियों अथवा अध्येताओं को शिक्षित करने की दृष्टि से उनके अधिगम को प्रभावी बनाना होता है। इस प्रकार अध्यापन तथा अनुदेशन व्यक्तियों को शिक्षित करने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला एक साधन मात्र है।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया Teaching Learning Process
- अध्यापन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी के व्यवहार को उचित दिशा में प्रभावित करन अर्थात् उसके अधिगम को उचित दिशा में प्रभावी बनाना होता है।
- अधिगम को प्रभावी बनाने तथा व्यवहार को परिवर्तन करने की उचित दिशा क्या हो, इसका निर्णय विद्यालय और अध्यापक मिलकर शैक्षिक उद्देश्य निर्धारित करते समय करते हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को शिक्षा के लक्ष्य और उसके उद्देश्यों के बारे में पता हो। साथ ही अध्यापक को इस योग्य होना चाहिए कि वह विद्यार्थी के सीखने के लिए प्रभावशाली साधनों का निर्माण कर सके। और अन्त में वह यह निर्धारित कर सके कि इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किस सीमा तक जाना है?
- "शैक्षिक प्रक्रिया के तीन मुख्य बिन्दु हैं उद्देश्य, अधिगम अनुभव क्रियाएँ एवं विद्यार्थी का मूल्य निर्धारण ।
शैक्षिक प्रक्रिया को सामान्य रूप में
इस प्रकार समझा जा सकता है
- उद्देश्य
- अधिगम अनुभव
- विद्यार्थी की जाँच
- उपरोक्त चित्रण गतिमय है। इसमें तीनों मुख्य अंगों की पारस्परिक अन्तःक्रिया दिशा-तीरों के द्वारा बताई गई है। उद्देश्य यह निर्धारित करते हैं कि विद्यार्थी को कौन-से वांछित व्यवहार को प्राप्त करने की दिशा में चलना चाहिए? अधिगम अनुभव वे क्रियाएँ और अनुभव हैं जो वांछित व्यवहार प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को करने चाहिए।
- अध्यापन अनुभव प्रदान करने में अध्यापक का योगदान महत्पूर्ण होता है। अध्यापन अनुभवों में विद्यार्थी और विषय सामग्री के बीच अन्तः सम्बन्ध स्थापित करना निहित है।
- अध्यापक विद्यार्थियों को अधिगम अनुभव प्रदान करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाता है। इन अनुभवों से विद्यार्थियों में व्यवहारगत परिवर्तन होते हैं। अतः अधिगम में विद्यार्थियों के व्यवहार में आया परिवर्तन शामिल है। विद्यार्थियों में उल्लेखनीय अधिगम होने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षण प्रभावी हो ।
- विद्यार्थियों में विषय सामग्री के अधिक आदान-प्रदान के लिए अध्यापक को उचित विधियों और माध्यम को अपनाना चाहिए। इस प्रकार प्रभावशाली अध्यापन वही है जो उचित और सफल अधिगम अनुभवों की ओर ले जाए।
- अध्यापन के अतिरिक्त शैक्षिक अनुभव प्राप्त करने के लिए और भी साधन अपनाए जा सकते हैं, जैसे लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, रेडियो, फिल्में, विज्ञान क्लब और भ्रमण जैसे या अन्य वास्तविक जीवन से सम्बन्धित सीखने की परिस्थितियाँ।
विद्यार्थी जाँच का प्रयोजन यह जानना है कि उद्देश्यों को किस सीमा तक प्राप्त कर लिया गया है?
- शैक्षिक प्रक्रिया यह बताती है कि प्रत्येक शिक्षण बिन्दु दूसरे के साथ कैसे जुड़ा है ?
- शैक्षिक प्रक्रिया के तीनों बिन्दुओं का आपसी सम्बन्ध अच्छी तरह जान लेना चाहिए। उद्देश्यों से आरम्भ करें, तो जो तीर अधिगम बिन्दुओं की ओर इशारा करते हैं वे बताते हैं कि शैक्षिक अनुभवों को चुनने अथवा बनाने में वे किस प्रकार सहायक होते हैं?
- चित्र में जो तीर उद्देश्यों से विद्यार्थी की जाँच की ओर इशारा करता है वह बताता है कि मुख्य संकेत इस बात का सबूत हैं कि कार्यक्रम के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त कर लिए गए हैं? जिस प्रकार शैक्षिक उद्देश्य अधिगम के अनुभवों की सीमा रेखा निर्धारित करते हैं उसी प्रकार, वे विद्यार्थी की जाँच की सीमा भी निर्धारित करते हैं।
- त्रिभुज में जो तीर विद्यार्थी जाँच से उद्देश्यों की ओर और फिर अधिगम अनुभवों की ओर संकेत करते हैं वे विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। पहली दशा के तीर यह बताते हैं कि जाँच के तरीकों से उद्देश्य किस सीमा तक पूरा किया गया है? साथ ही जाँच यह संकेत देती है कि कुछ उद्देश्यों को ठीक प्रकार से निर्धारित करने की आवश्यकता है और कुछ को बिल्कुल निकाल देने की ।
विद्यार्थी की जाँच से निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर का पता लगाने में सहायता मिलती है
- उद्देश्यों में संशोधन करना चाहिए या उन्हें हटा देना चाहिए।
- क्या ये उद्देश्य किसी वर्ग विशेष के लिए उपयुक्त हैं?
- क्या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक सन्दर्भ प्राप्त हैं ?
- चित्र
में जो तीर शिक्षार्थी की जाँच से अधिगम अनुभवों की ओर इशारा करता है, उससे पता लगता है कि अधिगम अनुभव किस
सीमा तक सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं? अतः
इससे हमें शैक्षिक अनुभवों को सुधारने या बिल्कुल हटाने में सहायता मिल सकती है।
जो तीर जाँच से अधिगम अनुभव की ओर संकेत करता है वह बताता है कि मूल्यांकन
विशेषज्ञ द्वारा छाँटी गई क्रियाएँ और समस्याएँ कौन-कौन से अधिगम अनुभवों की ओर
संकेत करती हैं?
- त्रिकोण का अन्तिम तीर जो अधिगम
अनुभवों से उद्देश्यों की ओर इशारा है, यह
बताता है कि अधिगम अनुभवों के प्रभाव से शिक्षक, विद्यार्थी और शिक्षण सामग्री कैसे प्रभावित होते हैं और कैसे नये
उद्देश्यों के लिए सुझाव मिलते हैं ?
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