मुरैना के पर्यटन दर्शनीय स्थल के जानकारी | Tourist places in Morena in Hindi

 मुरैना के पर्यटन दर्शनीय स्थल के जानकारी 
 Tourist places in Morena in Hindi

 मुरैना का इतिहास ( मुरैना के बारे में जानकारी )

  • कुँवारी और चंबल नदी के बीच स्थित मुरैना जिला चंबल संभाग का मुख्यालय भी है। इसका इतिहास प्रागैतिहासिक काल तक जाता है। यहां के पहाड़गढ़ की पहाड़ियों में शैलचित्र पाए गए हैं। 
  • इस जिले में दो महत्वपूर्ण स्थान हैं-शांतनुखेड़ा और कुंतलपुर। 
  • शांतनुखेड़ा चंबल के किनारे स्थित है, जहां भारी संख्या में ईंटों से बनी प्राचीन इमारतें हैं। 
  • कुंतलपुर कुंवारी नदी के किनारे है और माना जाता है, कि यह पांडवों की माता कुंती का जन्मस्थल है।

 

  • मौर्यवंश के बाद यह क्षेत्र नागवंशियों के अधीन था तत्पश्चात् गुप्त वंशों के अधीन पारोली के मंदिरों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इनका निर्माण काल गुप्तवंश से पहले का है। गुप्तवंश के बाद यह इलाका प्रतिहारों के कब्जे में आया। 

  • यशोवर्मन और अमराज ने नरेसर में 23 मंदिरों का निर्माण किया। इसी काल में बटेश्वर में भी सैकड़ों मंदिर निर्मित किए गए। इसके बाद कच्छपों ने इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया। कच्छप साम्राज्य के शासनकाल में भी एती, वाराहवली, अरधौनी, मितावली, अमलेडहा, भैंसोरा और सुहानिया में भी मंदिरों का निर्माण हुआ, जिसमें कंकणमठ, पड़ावली और मितावली के मठ उल्लेखनीय हैं। 
  • दिल्ली के तोमर वंश ने कच्छपों को हराकर ग्वालियर में अपनी सल्तनत बनाने से पहले अपना राज्य स्थापित किया। उन्होंने चंबल के किनारे स्थित ईसा में एक किला भी। बनाया। जो ग्वालियर से 35 कि.मी. की दूरी पर हैं।

 

मुरैना के पर्यटन दर्शनीय स्थल के जानकारी 


पड़ावली Padavali

 

  • मालनपुर से 38 किलोमीटर दूर स्थित यह किला जाट राणा गोहद ने बनवाया था। किले के अंदर स्थित शिव मंदिर अपने शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। शिवजी का यह मंदिर अपने गुफद्वार और नक्काशी की हुई छत व मजबूत खंभों से बेहद खूबसूरत दिखाई पड़ता है।

 


मितावली MItavali

 

  • मालनपुर से 40 किलोमीटर दूर एक गोल चबूतरे पर स्थित यह मंदिर चारों ओर से मजबूत और खूबसूरत नक्काशी वाले खंभों से घिरा है। चारों ओर लगी इस स्तंभावली में हर स्तंभ पर शैव चित्र हैं। 


  • यह मंदिर 14वीं शताब्दी के आस-पास का है। प्राप्त शिलालेख में दिए गए समय 1380 ईस्वी के अनुसार यह मंदिर महाराजा देवापला द्वारा बनाया गया बताया जाता है। माना जाता है, कि संसद भवन की कल्पना इसी मंदिर की तर्ज पर की गई है।

 

मितावली MItavali

पहाड़गढ़ Pahadgarh

 

  • पहाड़गढ़ से 12 मील की दूरी पर 86 गुफाओं की श्रृंखला देखी जा सकती है। इन गुफाओं को भोपाल के निकट स्थित भीमबेटका गुफाओं का समकालीन माना जाता है। सभ्यता के प्रारंभ में लोग इन गुफाओं में आश्रय लेते थे। यहां पुरूष, महिला, चिड़िया, पशु, शिकार और नृत्य से संबंधित अनेक चित्र देखे जा सकते हैं।

 

पहाड़गढ़ Pahadgarh

सबलगढ़ का किला

 

  • मुरैना से लगभग 60 किमी की दूरी पर मध्यकाल का यह किला एक पहाड़ी के शिखर पर बना हुआ है। इस किले की नींव सबल सिंह गुर्जर ने रखी थी, जबकि करौली के महाराजा गोपाल सिंह ने 18वीं शताब्दी में इसे पूरा करवाया था। कुछ समय बाद सिंकदर लोधी ने इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था, लेकिन बाद में करौली के राजा ने मराठों की मदद से इस पर पुनः अधिकार कर लिया। किले के पीछे सिंधिया काल में बना एक बांध है।
सबलगढ़ का किला


 

नोरार Norar

 

  • नोरार 8वीं से 12वीं शताब्दी का जालेश्वर आज का नोरार है। यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में 21 मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं जो पहाड़ी की तीन दिशाओं में है। प्रतिहार नागर शैली में बना जानकी मंदिर यहां का लोकप्रिय मंदिर है। पहाड़ी पर अनेक दुर्लभ कुंड देखे जा सकते हैं। इन कुंडों को पहाड़ी के पत्थरों को काटकर बनाया गया था। यहां अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां भी देखी जा सकती है।

 

लिखिछज Likhichaj

 

  • लिखिछज का अर्थ बाल्कनी के समान आगे मुड़ी हुई पहाड़ी होता है। आसन नदी तट पर अनेक गुफाओं के कारण लिखिछज आकर्षण का केन्द्र बन गया है। नीचता, कुंदीघाट, बारादेह, रानीदेह, खजूरा, कीत्या, सिद्धावली और हवा महल भी लिखिछज के निकट लोकप्रिय दर्शनीय स्थल हैं।

 

मंदिर समूह, बटेश्वर Batteshwar Temple

 

  • मुरैना से महज 25कि.मी. दूर जंगलों के बीच लगभग 2 सौ छोटे-बड़े मंदिरों का समूह है, जो एक पहाड़ी के ढलान पर 25 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। ये मंदिर 8वीं से लेकर 10वीं शताब्दी के बीच गूर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा बनवाए गए थे, जो अपने आप को लक्ष्मण का वंशज मानते थे। ये मंदिर भगवान शिव व विष्णु को समर्पित हैं।

 

  • पहले यह इलाका डाकू निर्भय सिंह गुर्जर के कब्जे में था, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद के. के. की समझाईश पर वह अपने पूवर्जों द्वारा बनावाए गए इन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए यह जगह खाली करने को हो गया। इसके बाद करीब सौ मंदिरों को उनकी वास्तविक स्थिति में लाया जा चुका है।

 

मंदिर समूह, बटेश्वर Batteshwar Temple

नूराबाद Nurabaad

 

  • नूराबाद जहांगीर के शासनकाल में एक छोटी चौकी वाला इलाका था और इसका नामकरण संभवतः जहांगीर की पत्नी नूरजहां के नाम पर किया गया। इस गांव में शंख नदी के ऊपर एक सुंदर पुल है, जिसे अष्टकोणीय छत्रियों से सजाया गया है।
  • मध्यकाल में दिल्ली और आगरा से ग्वालियर, चंदेरी और दक्खन जाने के लिए मुगल सेना इसी पुल पर से गुजरती रही होगी। नूराबाद गांव में एक महल है, जिसे सराय भी कहा जाता है और जो किलेनुमा दीवारों से घिरा हुआ है। माना जाता है, कि इसे औरंगजेब के किसी सेनापति ने बनवाया होगा। इस महल की अब केवल दीवारें ही सलामत हैं, जबकि पुल अभी भी मजबूत स्थिति में है। गांव के बाहर नूराबाद के वजीर की पत्नी गन्ना बेगम का मकबरा है, जो सन् 1775 में बना था।

 

कंकनमठ, सिंहोनिया Kanka Math Sihoniya

 

  • इस गांव को सुहानिया के नाम भी जाना जाता है। प्राप्त अभिलेखों से ज्ञात होता है, कि सिंहोनिया या सिहुनिया कुशवाहों की राजधानी थी। इस साम्राज्य की स्थापना 11वीं शताब्दी में 1015 से 1035 के मध्य हुई।
  • कछवाह राजा ने यहां एक शिव मंदिर बनवाया था, जिसे कंकनमठ नाम से जाना जाता है। माना जाता है, कि मंदिर का निर्माण राजा कीर्तिराज ने रानी कंकनवटी की इच्छा पूरी करने के लिए करवाया था। 
  • खजुराहो मंदिर की शैली में निर्मित यह मंदिर 115 फीट ऊंचा है और अपने शिल्प वैभव के लिये प्रसिद्ध है। 
  • सिंहोनिया जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां 11वीं शताब्दी के अनेक जैन मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। इस मंदिरों में शांतिनाथकुंथुनाथ, अराहनाथ, आदिनाथ, पार्श्वनाथ आदि जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

 

कंकनमठ, सिंहोनिया Kanka Math Sihoniya

सुमावली का किला Sumavali Ka Kila

 

  • आगरा- मुंबई मार्ग पर नूराबाद से 17 कि.मी. की दूरी पर यह किला स्थित है। किले और उसके भीतर महल का निर्माण मुगलों के शासनकाल के बाद किया गया है। किले का सिर्फ मुख्य प्रवेश द्वार ही बचा है और सुरक्षा की दीवारें भी ध्वस्त हो चुकी हैं। प्रवेश द्वार विशाल है, जिसमें लाखोड़ी ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। महल छोटा है, किन्तु इसके बड़े और छोटे कक्ष को बनाने में स्तंभों का इस्तेमाल किया गया है। इसी तरह दूसरी मंजिल की छतों का भी निर्माण किया गया है।

 

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य

 

  • लगभग साढ़े 5 हजार वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य की स्थापना जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से संपन्न नदी के पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए की गई थी। मछलियों की विभिन्न प्रजातियों के अलावा डॉल्फिन, मगरमच्छ, घडियाल, कछुआ, ऊदबिलाव जैसी जलीय प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं। देवरी का मगरमच्छ केन्द्र हाल ही में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। यहाँ डेढ़ हजार से भी अधिक घड़ियाल हैं और पक्षियों की डेढ़ सौ प्रजातियां हैं। इस तरह पक्षी प्रेमियों के लिए भी यह जगह स्वर्ग से कम नहीं है। नवंबर से मार्च के दौरान हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी यहां देखे जा सकते हैं। नदी में नौकायन का आनंद भी उठाया जा सकता है।

 

एती का सूर्य मंदिर

 

  • 11वीं-12वीं शताब्दी में रिठौराकलां के कच्छप राजवंशकालीन शिल्प से निर्मित यह सूर्य मंदिर 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। मंदिर के ऊपर ललाट बिम्ब के रूप में सूर्यदेवता की आकृति है और इसके मध्य में उमा-महेश्वर की प्रतिमा और सप्तमातृकाओं की भी आकृतियां हैं ।

 

कुतवार Kutwaar

 

  • चंबल घाटी का यह सबसे प्राचीन गांव कुंतलपुर के नाम से भी जाना जाता है। यहां के दर्शनीय स्थलों में प्राचीन देवी अंबा या हरीसिद्धी देवी मंदिर तथा आसन नदी पर बना चन्द्राकार बांध है।

 

Also Read.....







No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.