कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा| यांत्रिक ऊर्जा के प्रकार | Work Power Energy in Hindi
कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा
कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा
कार्य किसे कहते हैं
- साधारण बोलचाल में कार्य का अर्थ है कि शारीरिक अथवा मानसिक क्रिया-कलाप यांत्रिकी के संदर्भ में कार्य के लिए हम कह सकते है कि इसमें , गति होती है, उदाहरणार्थ- इंजन द्वारा रेलगाड़ी को खींचना कार्य है। इसी प्रकार, यदि हम दीवार को धकेलें तो चाहे हम थक ही क्यों ना जायें किन्तु दीवार गति नहीं ला पाने के कारण यह माना जाएगा कि हमने कोई कार्य नहीं किया।
- इस प्रकार, जब बल लगाने पर वस्तु में गति (विस्थापन) हो तो बल द्वारा कार्य किया जाता है और बल तथा बल की दिशा में विस्थापन का गुणनफल कार्य को व्यक्त करता है।
- कार्य का SI मात्रक जूल (J) है।
- कार्य = बल x बल की दिशा में चलो गयो दूरी
- W= Fx d
कार्य एक अदिश राशि है
- कार्य एक अदिश राशि है और इसका एस०आई० मात्रक जूल (J) है। कुली द्वारा सामान उठाने में उसे सामान के भार के बराबर ऊर्ध्वाधर (vertical) दिशा में ऊपर की ओर बल लगाना पड़ता है तथा सामान को ठोकर किसी भवन की पहली मंजिल में ऊपर चढ़ाकर ले जाने में कुली को जो कार्य करना पड़ता है उसका माप बल अर्थात् सामान का भार तथा ऊपर चढ़ने में तय की गई कुल ऊर्ध्वाधर ऊंचाई (इसमें तय की दूरी नहीं जो सीढ़ियों अथवा ढालू पथ पर चलने में तय करनी पड़ती है) के गुणनफल के बराबर होगी। अतः इस प्रक्रिया में बल की दिशा में (ऊपर की ओर) तय की गई दूरी को वास्तविक विस्थापन के रूप में लिया गया है।
शक्ति का अर्थ एवं परिभाषा
- कार्य की परिभाषा में उस समय की कोई गणना नहीं है जिस अवधि में कार्य किया गया है। अतः कुली द्वारा भार ढोने में सीढ़ियों अथवा ढालू पथ पर चढ़ने में जो कार्य दौड़कर या चलकर किया गया उसमें उसे कुछ धकान प्रतीत होती है। लेकिन अगर वह दौड़कर कार्य करेगा तो उसे अधिक थकान महसूस होगी। इस प्रकार के अन्तर को स्पष्ट करने हेतु शक्ति की अवधारणा को लागू किया गया। अतः कार्य करने को दर को शक्ति कहते हैं।
- शक्ति = किया गया कार्य/ कार्य को अवधि (समय)
- इस प्रकार, कुली को सामान लेकर दौड़ते हुए ऊपर चढ़ने में अधिक शक्ति व्यय करनी पड़ती है फलस्वरूप उसे धकान प्रतीत होती है। एक समान भार के शक्तिशाली युवक को दुर्बल युवक की अपेक्षा पहाड़ी पर चढ़ने में कम समय लगेगा क्योंकि ताकतवर युवक में अधिक शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता होती है।
- शक्ति का मात्रक वाट (W) है।
ऊर्जा किसे कहते हैं
- घड़ी में चाबी भरने से उसमें लगी कमानी के लपेटन कस जाते हैं और इस प्रक्रिया में किया गया कार्य, घड़ी को चलने की क्षमता प्रदान करता है और इस प्रकार कसी कमानी घड़ी को 24 घंटे से अधिक समय तक चलाए रखती है। परिणामतः हम कह सकते हैं कि कमानी में ऊर्जा संगृहीत हुई है और इस प्रकार, कार्य करने की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा का मात्रक भी जूल (J) ही
यांत्रिक ऊर्जा के प्रकार
यांत्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है-गतिज (kinetic) ऊर्जा एवं स्थितिज (potential) ऊर्जा.
गतिज ऊर्जा-
- वस्तु की गति से उत्पन्न ऊर्जा, गतिज ऊर्जा कहलाती है।
- गतिज ऊर्जा K.E. = 1/2 m v2
- जबकि वस्तु का द्रव्यमान m तथा उसका वेग है।
- गतिमान बन्दूक की गोली अथवा गतिमान पत्थर के टुकड़े में गतिज ऊर्जा होती है।
- गतिज ऊर्जा के व्यंजक पर ध्यान दें तो इसमें वेग का वर्ग आता है, जिसका अर्थ है कि यदि किसी वस्तु के वेग को दुगना करें तो उसकी गतिज ऊर्जा चार गुना हो जायेगी। 60 किमी० /घण्टा की गति से चलती एक कार की गतिज ऊर्जा उसी कार की 30 किमी० / घण्टा की चाल की गतिज ऊर्जा की चार गुना होगी।
स्थितिज ऊर्जा –
- किसी वस्तु की अपनी स्थिति (बल क्षेत्र में) के कारण जो ऊर्जा होती है, वह स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। स्थितिज ऊर्जा का एक सामान्य रूप किसी वस्तु का पृथ्वी की सतह से ऊपर स्थित होने पर, उसमें स्थितिज ऊर्जा होती है। इसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (PE) कहते हैं।
- स्थितिज ऊर्जा = mgh
- जहां m वस्तु द्रव्यमान, g गुरुत्वीय त्वरण तथा पृथ्वी की सतह से वस्तु की ऊचाई है।
- स्थितिज ऊर्जा के अनेक उदाहरण हैं, जिनमें से सामान्य हैं- पृथ्वी की सतह से कुछ ऊंचाई पर पकड़कर रखा गया पत्थर व ऊपर स्थित जलाशय का जल, दोनों में स्थितिज ऊर्जा है। सितार के तने हुए तार एवं कसी हुई कमानी, दोनों में स्थितिज ऊर्जा है।
- यांत्रिक निकाय की 'गतिज ' एवं 'स्थितिज' ऊर्जाओं की सामान्य कल्पना की तुलना में ऊर्जा की संकल्पना बहुत वृहत है क्योंकि यांत्रिक ऊर्जा (गतिज, स्थितिज) के अतिरिक्त ‘ऊर्जा' के कई अन्य रूप भी हैं, जैसे-ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाशीय ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि ।
ऊर्जा संरक्षण–
- ऊर्जा को न तो समाप्त तथा न ही उत्पन्न किया जा सकता है; अपितु इसे एक से दूसरे रूप (प्रकार) में रूपांतरित किया जा सकता है और इस प्रकार कुल (संपूर्ण) ऊर्जा एक समान (संरक्षित) बनी रहती है ।"
- पत्थर के टुकड़े का ऊंचाई पर स्थित होने से उसमें ऊर्जा पूर्णतः स्थितिज ऊर्जा है। पत्थर के नीचे गिरने से उसमें गति के कारण गतिज ऊर्जा (KE) आती जाती है और ऊंचाई में कमी के कारण स्थितिज ऊर्जा (PE) कम होती जाती है। अत: स्थितिज ऊर्जा में हानि के फलस्वरूप गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है। यदि वायु में घर्षण के कारण ऊर्जा हानि को नगण्य लें तो स्थितिज ऊर्जा की हानि के बराबर ही गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है । पत्थर के पृथ्वी पर टकराने के ठीक पूर्व उसकी संपूर्ण ऊर्जा गति ऊर्जा हो जाती है। अब पत्थर के पृथ्वी पर टकराते ही उसकी यांत्रिक ऊर्जा, आन्तरिक ऊर्जा (ऊष्मा) तथा कुछ ध्वनि ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यह ऊर्जा संरक्षण का एक अच्छा उदाहरण है।
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