स्वैच्छिक संगठन का गठन एवं कार्यप्रणाली |Working of Voluntary Organisation In Hindi
स्वैच्छिक संगठन का गठन एवं कार्यप्रणालीOrganisation and Working of Voluntary Organisation
स्वैच्छिक संगठनों की संरचना तथा कार्यप्रणाली
- स्वैच्छिक संगठनों की संरचना तथा कार्यप्रणाली सरकारी संगठनों से पूर्ण तथा अलग होती है। भारत में ऐसे कानून बने हैं जिनके अनुसार ऐच्छिक संगठनों को पंजीकृत कर दिया जाता है।
- स्वैच्छिक प्रयासों से निर्मित ये संस्थायें या संगठन सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 अथवा कंपनी अधिनियम या अन्य सहकारी संस्था कानूनों के अंतर्गत होते हैं।
- पंजीकरण किस अधिनियम के तहत होगा यह बात संबंधित ऐच्छिक संगठन के लक्ष्य, कार्यक्रम, प्रक्रिया आदि पर निर्भर करता है। प्रत्येक संस्था (संगठन) का अपना एक प्रशासनिक ढांचा तथा कार्य प्रणाली होती है फिर भी सामान्यतया यह संगठनात्मक ढाँचा होता है।
- प्रत्येक स्वैच्छिक संगठन पंजीकरण के समय ही अपने संविधान, धाराओं तथा ज्ञापन पत्र का निर्माण करता है जो उस संगठन का मूल दर्शन माना जाता है।
- स्वैच्छिक संगठनों के शीर्षक पर सामान्य निकाय (General Body) होता है। उसे साधारण सभा भी कहा जाता है। इसमें उस संगठन के सभी सदस्य सम्मिलित होते हैं।
- ऐच्छिक संगठन की साधारण सभा के सदस्य विशेषज्ञ लोग, व्यावसायिक लोग, दयालू लोग, धनी व्यक्ति, अनुभवी समाज सेवी, राजनीतिक कार्यकर्ता तथा सार्वजनिक हित में काम करने वाले लोग होते हैं। इनकी हित उम्र, सामाजिक समस्या का ज्ञान, वार्षिक चन्दा देने की क्षमता, सामाजिक कार्य करने की रुचि आदि कुछ न्यूनतम योग्यतायें होती है।
- किसी भी स्वैच्छिक संगठन की आमसभा या सामान्य निकाय की संरचना उस संगठन के निर्माण करने वाले व्यक्तियों की इच्छा पर निर्भर करती ।
- प्रायः अधिक वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने वाले इस सभा में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। जो लोक ऐच्छिक अभिकरण के सदस्य बनाये जाते हैं वे इसकी साधारण सभा के सदस्य होते हैं।
- संगठन की नीति तथा कार्यक्रम मुख्यत: सामान्य निकाय से स्वीकृत होते हैं। संगठन के उचित कार्य संचालन के लिये वे एक प्रबंधक समिति, पदाधिकारी एवं अन्य अधिकारियों का चयन करते हैं।
- यह प्रबंध समिति नीति निर्माण कार्यक्रम की क्रियानीति, निरीक्षण, पर्ववेक्षण और निर्देशन के लिये उत्तरदायी होते हैं।
- सामान्य निकाय ही उस संगठन या सभापति या अध्यक्ष का चयन करता है। कुछ सदस्यों की सहायता से एक कार्यकारीसमिति (Excutive Commitee) का निर्माण किया जाता है।
- यह कार्यकारी समिति उस संगठन के लिये धन एकत्र करना, कार्यक्रम संचालन सेगन की दिन प्रति दिन की गतिविधियों, जनसंपर्क, मूल्यांकन, कार्मिक प्रशासन तथा समन्वय के लिये उत्तरदायी होती है।
- कार्यकारी समिति तथा सामान्य निकाय के मध्य एक अध्यक्ष अथवा सभापति होता है जो मुख्यतः उस संगठन का नियंत्रणकर्त्ता है।
- संगठन के प्रतिवेदन के प्रशासनिक कार्यों को शीघ्रतापूर्वक क्रियान्वित करने के लिये निदेशकयासचिव का पद भी होता है। एक कोषाध्यक्ष या संयुक्त सचिव और अभिकरण के कार्यभार के अनुसार अन्य अधिकारी भी होते हैं।
- बहुत से संगठनों में अध्यक्ष पद अवैतनिक रूप से स्वीकार कर लिया जाता है तथा निदेशक या सचिव पद प्रायः वैतनिक होता है।
- वेतन भोगीकर्मचारी (Paid Employes) और प्रशिक्षित कर्मचारियों को (जो पूर्वकालीन होते हैं) ऐच्छिक संगठनों में नियुक्त करने की व्यवस्था अपेक्षाकृत नई है। इसमें पूर्व कल्याणकारी अभिकरणों में समस्त कार्य स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं द्वारा सम्पन्न किया जाता था।
- सामाजिक विज्ञानों के विकास और नई आवश्यकताओं तथा समस्याओं के जन्म लेने से वेतनभोगी कर्मचारियों की आवश्यकता हुई। कुछ अभिकरणों में मुख्य कार्यपालिका एक निर्वाचित व्यक्ति होने की अपेक्षा वरिष्ठ वेतनभोगी व्यक्ति होता है।
- स्वैच्छिक संगठनों के उद्देश्य तथा लक्ष्यों के आधार पर ही विभागों का निर्माण तथा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जाती है। नये संगठन प्रायः कार्यकर्त्ताओं को स्थायी नियुक्ति नहीं देते हैं लेकिन लम्ब अवधि तक स्थापित हो चुके स्वैच्छिक संगठनों के कार्यकर्त्ता प्राय: सरकारी संगठनों की तरह ही स्थायी होते हैं ।
- छोटे संगठनों में अनेक विभाग तथा क्षेत्रीय शाखायें नहीं होती हैं। किन्तु बड़े संगठनों में अनेक क्षेत्रीय शाखायें तथा सामाजिक कार्यकर्त्ता भी अधिक होते हैं। अधिकांश स्वैच्छिक संस्थाओं के पास वित्तीय समस्यायें बनी रहती हैं। अतः उनके पास उच्च शिक्षा प्राप्त या विशिष्ट कार्य में प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारी नहीं मिलते हैं।
- स्वैच्छिक संगठनों के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों की तरह वेतनमान तथा पदोन्नति देय नहीं होती। कर्मचारी एक बंधी हुई राशि वेतन के रूप में अध्यक्ष या सचिव द्वारा नियुक्ति के बाद प्राप्त करते हैं।
- सरकारी अनुदान प्राप्त करने वाली इन संस्थाओं को सरकारी नियमों के तहत लेखा एवं हिसाब किताब रखना पड़ता है तथा सरकारी दिशा निर्देश भी मानना पड़ता है।
- इन संगठनों का नामकरण स्थानीय भाषा, संस्कृति, संगठन के उद्देश्यों पर तथा निर्माण करने वाले व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। प्रत्येक स्वैच्छिक संगठन अपना लेखा-जोखा परीक्षण करवाता है तथा अपने कार्यों का प्रचार के लिये वार्षिक रिपोर्ट भी तैयार की जाती है।
स्वैच्छिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली Working or Functions of Voluntary Agencies
ऐच्छिक संगठन आवश्यकतामन्द, निराश्रित, अजाहिज, वृ तथा कमजोर लोगों के लिये सामाजिक सेवायें प्रदान करते हैं। ये सेवायें व्यक्तियों, या कल्याणकारी अभिकरणों द्वारा प्रदान की जाती हैं। परन्तु इनकी सेवायें और प्रकृति समय-समय पर बदलती रहती है। देश की राजनीतिक स्थिति, संस्था के वित्तीय साधन और लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार इसमें परिवर्तन होता है। संकट के समय राहत कार्य भी सामाजिक सेवा माने जाते हैं।
भारत में ऐच्छिक अभिकरण केंद्रीय, राज्य तथा स्थानीय स्तरों पर महत्वपूर्ण कार्य प्रणाली का वर्णन यहाँ किया जा रहा है -
(1) शिशुकल्याण सेवायें ( Child Welfare Service) :
- व्यापक अर्थ में शिशु कल्याण के अंतर्गत बच्चे का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण आते हैं। परम्परागत रुप से शिशु कल्याण की दृष्टि से ऐच्छिक अभिकरण अनेक सेवायें प्रस्तुत करता है। ये सेवायें बच्चों की प्रकृति और विकास के लिये आवश्यक होती हैं। बच्चों के पुनर्वास की दृष्टि से ऐच्छिक अभिकरणों द्वारा ये प्रयास अथवा कार्य किये जाते हैं गोद लेना, बच्चे को न्यूनतम शिक्षा देना, बच्चों के लिये मनोरंजन की सुविधायें उपलब्ध कराना। बहुत सारी ऐच्छिक संगठन बच्चों के लिए बाल भवन, बाल पुस्तकालय सांस्कृतिक केंद्र इत्यादि की भी व्यवस्था करती है। यह सच है कि बालकों के लिये ऐच्छिक संगठनों के द्वारा अनेक सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही है। परन्तु अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
(2) महिलाओं के लिए कल्याणकारी सेवायें (Welfare Services for Women) :
- भारत की लगभग 50% जनसंख्या महिला वर्ग है। अतीत काल में महिलाओं के प्रति सामाजिक अन्याय और अमानवीय व्यवहार रहा है। समाज में महिलाओं की गिनती दलित वर्ग में की गई। प्रारंभिक समाज सुधारक राजा रामोहन राय, केशव चन्द्र सेन, पं० रामा बाई, स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि सभी महिलाओं के सामाजिक स्तर और शिक्षा सुविधाओं के लिये लड़े। इन सुधारकों के परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी में अनेक ऐच्छिक संगठनों ने महिला कल्याण का काम हाथम लिया। स्वतंत्रता के बाद राज्य ने भी कानून बनाकर और विभिन्न संस्थायें स्थापित करके महिला कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया काम करने वाली महिलाओं के लिये होस्टल बनाये गये, सांस्कृतिक एवं मनोरंजक केंद्र खोले गये, परिवार कल्याण केंद्र स्थापित किये गये। महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिये प्रयास किये गये। महिलाओं के लिये संक्षिप्त पाठ्यक्रम निर्धारित किये गये। इस प्रकार परिवर्तित सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार महिला कल्याण के कार्यक्रम बनाये गये.
3 युवाकल्याण ( Youth Welfare ) :
- युवा वर्ग की शक्ति और उत्साह को रचनात्मक कार्य में लगाने के प्रयास भी ऐच्छिक संस्थायें करती रही हैं। अनेक अखिल भारतीय और स्थानीय एच्छिक संगठन इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड इन संगठनों को पर्याप्त सहायता देता है।
(4) वृद्ध एवं दुर्बलों कीसेवा (Services for the Aged and weak People) :
- भारत में अभी भी संयुक्त परिवार होने के कारण अभी ये परम्परायें हैं कि वृ एवं दुर्बल व्यक्तियों की देखभाल परिवार द्वारा की जाती है। परन्तु फिर भी बहुत सारे वृ और दुर्बल लोग निर्धारित रह जाते हैं। इनकी सेवा करने के लिये समाज कल्याण सेवायें आयोजित करना राज्य और समाज का दायित्व है। स्वतंत्रता के पहले से ही समाज कल्याण सेवाओं के लिये अनेक स्वैच्छिक संगठन इस कार्य में लगे हुए थे। मुख्य रूप से इसाई मिशनरियों द्वारा इन कार्यों का संचालन किया जा रहा था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने इनके लिये अनेक योजनायें बनाई, किन्तु अनेक कारणों से ये सफल नहीं हो पाई। ऐसी स्थिति में ऐच्छिक संस्थायें आगे आई और उन्होंने वृ एवं दुर्बलों की सेवा करने के कार्य को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई।
(5) विकलांगों के लिये कल्याण सेवायें (Welfare Services for the Handicapped)
- विकलांग या अपंग या अपाहिज लोग वे कहे जाते हैं जो अपने शरीर के किसी अंग का पूरी तरह अथवा अंशतः प्रयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी-कभी मानसिक रूप से भी क्षमताहीन होते हैं। इनमें अन्धे, बहरे, गूंगे, लंगड़े तथा पागल व्यक्ति सम्मिलित हैं। पुराने समय में तो धार्मिक ख्याल के कारण इनलोगों की सेवा की जाती थी। इसे मोक्ष का साधन माना जाता था। इस दिशा में किये गये कार्य मुख्य रूप से ऐच्छिक संगठनों को ही जाता है। विकलांग लोगों के लिये जनता में सहानुभूति तथा दयाभाव होने पर भी उनके कल्याण के लिये अधिक काम नहीं किया जा सका है।
- विकलांग लोगों के कल्याण के लिये ऐच्छिक संगठनों द्वारा ही कार्य किये जा रहे हैं। सरकार इस क्षेत्र में बहुत बाद में आई है। उसका कार्य ऐच्छिक अभिकरणों के कार्य को विकसित करने और सुधारने के लिये उनकी वित्तीय तथा तकनीकी सहायता तक सीमित है। महाराष्ट्र में इस प्रकार के ऐच्छिक संस्थाओं की संख्या सबसे अधिक है उसके बाद उत्तर प्रदेश में, और कुछ राज्यों में तो इसका अभाव है।
(6) सामाजिक सुरक्षा (Social Devence) :
सामाजिक सुरक्षा के प्रयास कानून विरोधी व्यक्तियों की गतिविधियों से उत्पन्न सामाजिक बुराइयों से समाज की रक्षा करना है। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत मुख्य रूप से सेवायें प्रदान की जाती हैं -
- बाल अपराधों की रोकथाम एवं उपचार,
- वयस्क अपराधियों के लिये कल्याणकारी सेवायें,
- महिलाओं तथा अविवाहित माताओं के अनैतिक व्यापार का दमन,
- भिक्षावृत्ति का निवारण,
- उक्त सभी श्रेणियों के लिये उत्तर- रक्षा सेवाएँ आयोजित करना
- सामाजिक सुरक्षा के प्रायः इन सभी क्षेत्रों में मुख्य कार्य सरकार द्वारा किया जाता है। परन्तु ऐच्छिक संगठन इस क्षेत्र में ज्यादा अच्छी तरह कार्यों का सम्पादन करते हैं। सरकार बहुत से स्थानों पर नहीं पहुँच पाती, अतः ऐच्छिक संस्थायें इन कठिन क्षेत्रों में सरकार की सहायता करने का कार्य करती हैं। ये बात अपराध निवारण के लिये तथा उत्तर- रक्षा सेवाओं के लिये विभिन्न संस्थाओं को स्थापित करता है। ये कानून को कार्यान्वित करने तथा जनता को शिक्षा देने में प्रशासन की सहायता करने का कार्य भी करते हैं। और अन्त में वे सेवायें संपन्न करते हैं जो अभी तक कानून के क्षेत्र से बाहर हैं तथा सरकार ने अभी जिनका दायित्व नहीं सम्भाला है। अतः सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में ऐसे बहुत से कार्य हैं जिन्हें एच्छिक संस्थायें ही सही तरीके से कर सकती हैं, क्योंकि इन्हें सरकार की तरह बन्धनों में नहीं रहना पड़ता है।
(7) सकल समाज के लिये कल्याणकारी सेवायें (General Community Welfare Services) :
- विशेष समूह के लिये अथवा विशेष समस्याओं के समाधान के लिये प्रदान की जाने वाली सेवाओं के अतिरिक्त ऐच्छिक संगठन सकल समाज के कल्याण के लिये भी कुछ कार्य संपन्न करते हैं। जैसे मेडिकल सहायता, प्रसूति सेवायें, बच्चों, वृ विकलांगों के कल्याण के लिये प्रदान की जाने वाली सेवायें आदि । इस प्रकार सेवित समाजों में गन्दी बस्तियाँ, कम आय वाली बस्तियाँ, जनजातीय क्षेत्र, अनुसूचित जातियाँ एवं देहाती समुदाय उल्लेखनीय हैं। इस क्षेत्र में ऐच्छिक संस्थायें काफी महत्वपूर्ण भूमिका और कार्य निर्वाह रही हैं। भारत सेवक समाज, YMCA (यंग मैन क्रिश्चियन असोशियेशन), YWCA (यंग वोमेन क्रिश्चियन असोशियेशन), रामकृष्ण मिशन, AIWC (आल इंडिया विमेन्स कानफरेन्स) इत्यादि संस्थायें समाज के सामान्य कल्याण की दृष्टि से कार्य करती हैं।
- अतः एच्छिक संस्थाओं के कार्य को यदि देखा जाये, जिनकी चर्चा उपर की जा चुकी है, तो हम पायेंगे कि एच्छिक संस्थायें सभी लोगों के ज्यादा निकट होने के कारण उन्हें अपने कार्यक्रमों को उनतक पहुँचाने में आसानी होती है। क्योंकि सरकारी अभिकरण उनके इतना निकट नहीं पहुँच पाते। अतः कल्याण के कार्य को जनता के बीच पहुँचाने में एच्छिक संस्थायें महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
- समाज कल्याण के कार्य को जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता। अतः समाजसेवी संगठन अथवा ऐच्छिक संस्थायें ही ये सब कार्य कर सकते हैं। इस संबंध में धर्मवीर द्वारा कहे गये शब्द महत्वपूर्ण हैं
- "Work of Voluntary organisations and citizen participation are two sides of the same coin. Citizen work in organisations but on their work depends the quality of the service the organisation render. Voluntary organisation provide a frame for citizen participation. without effective participation, the organisation would only be empty forms."
- सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्वैच्छिक संगठनों की होती है लोगों को समाज कल्याण के क्षेत्र की ओर आकर्षित करना। लोगों में समाज प्रति उत्तरदायित्व की भावना जगाना। लोगों को यह बताना की समाज कल्याण के कार्य उनकी अपने फायदे के लिये हैं, और इससे समाज का भला होगा।
- स्वयंसेवी संगठन ही लोगों के बीच जागृति फैलाने का कार्य कर सकती हैं। ये संगठन ही लोगों को बताने का कार्य कर सकती है कि जब तक लोक सामाजिक कल्याण के कार्य में अधिक से अधिक अपना योगदान करेंगी तबतक लोगों का सामाजिक और आर्थिक विकास संभव नहीं है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि स्वैच्छिक संस्थायें अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र होती है। वे किसी कानून से बंधी हुई नहीं होती हैं जिससे स्वैच्छिक संस्थाओं को एक मौका मिलता है कि वे अपने कार्यक्रमों का सही तरह से लोगों के बीच समझायें और अपने को उनकी परिस्थितियों के अनुसार ढाले ऐच्छिक संगठन एक स्वतंत्र निकाय होने की वजह से उन्हें अपने कार्यक्रमों को आसानी के साथ बदलने का मौका मिल जाता है। जैसे स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें अलग-अलग स्थानों की अलग तरह की होती हैं। अतः यहाँ भी स्वच्छिक संस्थायें ही स्थान और समय देखकर अपने कार्यक्रमों चला सकती हैं। वे ही समझ सकती हैं किस स्थान के लिये क्या आवश्यक है।
- और अंत में स्वैच्छिक संगठन अनेक प्रकार से अपने कार्यों द्वारा किसी भी प्रोग्राम को लागू करने में अथवा उसे आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है। सामाजिक न्याय का कार्य स्वैच्छिक संस्थायें जितनी अच्छी तरह करती हैं, कोई दूसरा अभिकरण नहीं कर सकता।
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