आलोचना (समालोचना) का अर्थ प्रकार। आलोचक (समालोचक के गुण ) । Aalochna Ka arth Evam Prakar
आलोचना (समालोचना) का अर्थ प्रकार, आलोचक (समालोचक के गुण )
आलोचना किसे कहते हैं
- रचना की सम्यक् व्याख्या और उसका ठीक-ठीक मूल्यांकन ही 'समालोचना' है । इसे हम 'समीक्षा' भी कहते हैं ।
- समालोचना में समालोचक किसी रचनाकार की रचना की परीक्षा करता है दूसरे शब्दों में वह रचना के गुण-दोषों को निष्पक्ष रूप में प्रकट कर उसके विषय में अपना मत भी प्रस्तुत करता है।
- सहानुभूतिपूर्वक रचना के मर्म को उद्घाटित करना समीक्षक का पहला कर्त्तव्य है। अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं और राग-द्वेष से ऊपर उठकर उसे यह काम पूरी ईमानदारी के साथ करना होता है । आलोचक के इस गुण को हम उसकी 'तटस्थता कह सकते हैं। यह तटस्थता आलोचना की प्राणशक्ति है। आलोचना के आलोचना बने रहने के लिए निष्पक्ष और तटस्थ मूल्यांकन आवश्यक है ।
- किसी रचना की समीक्षा करते समय समीक्षक को उस रचना के विषय में अपना स्पष्ट मत प्रस्तुत करना होता है। दूसरे शब्दों में उसे रचना के विषय में स्पष्ट निर्णय देना होता है। जिस समीक्षक का निर्णय जितना निर्मान्त और निष्पक्ष होगा, उसकी समीक्षा उतनी ही उत्तम बन पड़ेगी ।
- आलोचना के स्वरूप को जान लेने के बाद अच्छे समालोचक के गुणों को जान लेना ज़रूरी है, क्योंकि जिस समीक्षक में ये गुण जितनी मात्रा में होंगे उसकी समीक्षा उतनी ही सशक्त बन सकेगी।
समालोचक के गुण
अच्छे समालोचक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए
विद्वता
- किसी भी साहित्यिक मुद्दे या रचना की सही-सही आलोचना के लिये यह आवश्यक है कि आलोचक विद्वान हो । विद्वान लेखक ही विषयवस्तु को भलीभांति समझ सकता है। अपनी बुद्धि और ज्ञान के द्वारा वह सही और गलत की पहचान कर सकता है।
निष्पक्षता
- आलोचक का साहित्यिक मुद्दे या रचना का मूल्यांकन करते समय निष्पक्ष रहना आवश्यक है। अगर वह पक्षपातपूर्ण नीति का पालन करेगा तो संतुलित और निष्पक्ष मूल्यांकन न कर सकेगा। उसे बिना पक्षपात के सही और गलत या गुण-अवगुण की परख करनी चाहिए ।
तर्कपूर्ण संगति
- सफल आलोचक वही हो सकता है जिसमें तर्क करने की शक्ति हो । रचना क्यों अच्छी है या क्यों बुरी है, रचना में कौन-कौन से गुण हैं और क्या-क्या कमियाँ है. इसे आलोचक को तर्कों द्वारा सिद्ध करना होगा। दूसरे शब्दों में आलोचक तर्क द्वारा ही अपने मत को सिद्ध कर सकता है।
विवेचन विश्लेषण :
- समालोचक में विवेचन की क्षमता होनी चाहिए। निष्पक्ष भाव से विवेचन विश्लेषण द्वारा मूल्यांकन करना ही सच्चे आलोचक का गुण है। आलोचक का यही गुण आलोचना को गंभीर बनाता है।
आलोचना के प्रकार
यों तो आलोचना के अनेक प्रकार हैं, किंतु मोटे तौर पर इसे निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :
1) सैद्धांतिक आलोचना
ii) व्यावहारिक आलोचना ।
सैद्धांतिक आलोचना
- सैद्धांतिक आलोचना में उन सिद्धांतों की चर्चा की जाती है जिनके आधार पर किसी रचना की समीक्षा की जा सकती है। रस, अलंकार आदि ऐसे ही सिद्धांत हैं। इस प्रकार के सिद्धांतों को समीक्षा का आधार माना जाता है। समीक्षा के इन आधारभूत सिद्धांतों के विषय में दी जाने वाली जानकारी सैद्धांतिक समीक्षा के अंतर्गत आती है। आधुनिक दृष्टि से समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि के आधार पर किया जाने वाला सैद्धांतिक विवेचन भी इसी प्रकार का है।
- जब समीक्षा के आधारभूत सिद्धांतों के आधार पर किसी कृति की समीक्षा की जाती है तो वह आलोचना का व्यावहारिक रूप होता है। दूसरे शब्दों में इसे व्यावहारिक समीक्षा कहते हैं। उदाहरण के लिए सूरदास के काव्य का रस, मनोविज्ञान अथवा समाजशास्त्र की दृष्टि से किया जाने वाला विश्लेषण व्यावहारिक समीक्षा के अन्तर्गत आएगा ।
- हिंदी समीक्षा के विकास में भारतेन्द्र हरिश्चन्द्र आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ० नगेन्द्र आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ० रामविलास शर्मा आदि का उल्लेखनीय योगदान है।
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