अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार |अरस्तू के अनुसार विद्रोह कब पैदा होता है |Arastu Ke Kranti Vichar
अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार
- प्लेटो परिवर्तन को पतन और भ्रष्टाचार से जोड़ते थे, दूसरी ओर अरस्तू परिवर्तन का अनिवार्य और आदर्श की शिक्षा में गति मानते थे। प्लेटो के विपरित वे प्रगति को सम्पूर्णता की ओर विकास समझते थे लेकिन साथ ही अनावश्यक ओर निरतंर परिवर्तन के खिलाफ थे। अरस्तू का परिवर्तन सम्बन्धी विचार विज्ञान और प्रकृति के अध्ययन का नतीजा था।
क्रान्तियों के सामान्य कारणों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया
(1) मनोवैज्ञानिक कारण
(2) मस्तिष्क में उद्देश्य
(3)
राजनैतिक उथल-पुथल और आपसी टकराव को जन्म देने वाली परिस्थितियां।
- मनोवैज्ञानिक कारण औलिगार्की में समानता और जनतंत्र में असमानता की इच्छा है। उद्देश्यों में मुनाफा सम्मान, घमण्ड, डर किसी रूप में बेहतरी घृणा, राज्य के किसी हिस्से में असंतुलित विकास चुनाव के जोड़-तोड़, उदासीनता विरोध का डर, राज्य के अवपयवों के बीच टकराव होते हैं। क्रान्तिकारी परिस्थितियों को जन्म देने वाले अवसर घमण्ड, मुनाफा और आदर के लिए इच्छा, श्रेष्ठता, डर घृणा और राज्य के इस या उस अवयव का असमान विकास है।
हर संविधान में विशेष कारण खोज निकाले गए। जनतन्त्र में कुछ लफ्फाज जनता को भड़काकर धनिकों पर हमला करते थे। इस कारण का निदान का दमन और शासकों में मन-मुटाव से अस्थिरता पैदा होती थी। कुलीनतन्त्र में से सरकार समिति करने का अर्थ अस्थिरता का कारण था।
अरस्तू के अनुसार विद्रोह तब पैदा होता है जब-
(1) आम जनता स्वयं को शासको के बराबर समझती है।
(2) जब महान व्यक्तियों का शासकों द्वारा अपमान किया जाता है।
(3) जब क्षमतावान लोगों को सम्मान से दूर रखा जाता है।
(4) जब शासक वर्ग के
अन्दर कुछ गरीब होते है और परिवर्तन का शिकार बनते है। गरीबों से उचित व्यवहार न
होने पर वे विद्रोह करके कुलीनतन्त्र को जनतन्त्र में बदल देते है।
- राजतन्त्र में क्रान्ति का निदान कानून के प्रति वफादारी की भावना है। ओलिगार्की और कुलीनतन्त्रों में निदान नागरिक समाज और संवैधानिक अधिकारों वाले लोगों के साथ शासकों के अच्छे सम्बन्ध है। किसी को भी अन्य नागरिकों की तुलना में बहुत ऊँचा उठाना चाहिए क्योंकि धन के मुकाबले पदों में असमानता लोगो को क्रान्ति की ओर धकेलती है। सबको कुछ सम्मान दिया जाय।
- निरंकुश तानाशाह विभाजन और शासक की नीति के जरिए, धनी और गरीबों के बीच वर्गीय घृणा तेज करके तथा खुफियों का जाल बिछाकर अस्थिरता पर विजय पाते हैं। ऐसे शासक को धार्मिक दीख पड़ना चाहिए, गरीबों के रोजगार के लिए जन कार्य करने चाहिए, फिजूल खर्चों में कटौती करनी चाहिए और परम्पराओं का पालन करना चाहिए।
- अरस्तू ने बताया कि क्रान्तियाँ और बगावत आमतौर पर सरकार की छवि के कारण होती हैं। सरकारी पदों का व्यक्तिगत फायदे के लिए दुरूपयोग नहीं किया जाना चाहिए। संवैधानिक स्थायित्व के लिए पदाधिकारियों में तीन गुण होने चाहिए, एक संविधान के प्रति वफादारी, दो असाधारण प्रशासनिक क्षमता, तीन चरित्र की एकाग्रता, अच्छाई और न्याय-प्रियता। उन्होंने सरकारी प्रचार में शिक्षा, कानून, न्याय और समानता इत्यादिा पर जोर दिया।
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