भागीरथ भील का विद्रोह खाताखेड़ी पर टिप्पणी लिखिए ?
भागीरथ भील का
विद्रोह
- मालवा में गौंड़
व भील समय-समय पर मुगल अधिकारियों के लिए कठिनाई का कारण बनते थे। दिसम्बर सन् 1632 ई. में भागीरथ
भील ने जो कि खाताखेड़ी का जमींदार था मुगल सेना के विरुद्ध कई एक मुगल शासन विरुद्ध कार्य कर
दिये । अतः उन्हे दण्ड देने हेतु मालवा के मुगल सूबेदार नासिरखान ने उस पर आक्रमण कर
दिया।
- इससे भागीरथ भील भयभीत हो गया और उसने अपने पड़ोसी कुनार (संभवतः गिन्नौर)
के जमींदार संग्रामसिंह से याचना की कि वह उसके व मुगल सूबेदार के बीच मध्यस्थता करके
उसे क्षमा दिलवाये
- भागीरथ ने यह भी स्वीकार किया कि वह भविष्य में आज्ञाकारी व
निष्ठावान बना रहेगा, परन्तु इसी
स्थिति में जबकि, उसे उसी के गढ़
में रहने दिया जाये, क्योंकि वह
दीर्घकाल से उसी में निवास कर रहा है, तथा उसे दरबार में हाजिरी से मुक्त रखा जाये, परन्तु नासिरखान
इन शर्तों से सन्तुष्ट नहीं था, उसे ये बातें टालमटोल सी प्रतीत हुई, अतः जब नासिरखान
खाताखेड़ी के समीप पहुँच गया तब भागीरथ ने जीवनदान का आश्वासन प्राप्त कर गढ़ी उसे
सौंप दी तथा आत्मसमर्पण कर दिया ।
- 24 दिसम्बर 1632 ई. को नासिरखान
ने दुर्ग में प्रवेश किया तथा मन्दिर व मूर्तियों को तोड़ा गया।
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