नाटक के भेद करते समय हमें एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि नाटक उस रूप में साहित्य का अंग नहीं है जिस रूप में कहानी, उपन्यास या कविता आदि हैं।
नाटक की दृश्यवत्ता इसे साहित्य की अन्य विधाओं से भिन्न धरातल पर ला खड़ा करती है।
नाटक का लिखित आलेख संपूर्ण नाट्य नहीं है। संपूर्ण नाट्य तो तब बनता है जब नाटककार द्वारा लिखित नाट्यालेख को निर्देशक अभिनेताओं के सहयोग से रंगमंच पर प्रेक्षक समुदाय के सामने प्रस्तुत करता है।
नाटक वर्गीकरण के आधार
अब हम देखेंगे कि किन आधारों पर नाटक के भेद किए जा सकते हैं। एक आधार तो विषयवस्तु का हो सकता है । विभिन्न विषयों को लेकर नाटकों की रचना की जाती है।
यदि नाटक का विषय ऐतिहासिक हो तो उसे हम ऐतिहासिक नाटक कहेंगे और यदि सामाजिक हो तो सामाजिक नाटक । इसी प्रकार - नाटक के धार्मिक, पौराणिक आदि भेद भी किए जा सकते हैं ।
नाट्य का दूसरा वर्गीकरण नाटक की मंचीय प्रस्तुति को ध्यान में रखकर किया जाता है, क्योंकि नाट्यालेख (नाटक का लिखित रूप) को नाट्य बनने के लिए रंगमंच पर उसकी प्रस्तुति प्रायः आवश्यक मानी गयी हैं । यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि रंगमंच कई प्रकार के होते हैं-खुला रंगमंच, बॉक्स या बंद रंगमंच, चक्राकार या एक ही स्थान पर चक्र की तरह चारों ओर घूमने वाला रंगमंच आदि । कई नाटक लिखे ही इस तरह जाते हैं कि वे किसी विशेष प्रकार के रंगमंच पर ही प्रस्तुत हो सकते हैं। जैसे चक्राकार रंगमंच पर प्रस्तुत होने वाले नाटक में यह विशेषता होगी कि वह केवल एक ओर से ही दर्शकों के सामने नहीं होगा, बल्कि मंच के चारों ओर दर्शक बैठे होंगे और अभिनेता इस प्रकार अभिनय करेंगे कि चारों ओर बैठे दर्शकों को देख सकें, उन्हें अभिनय दिखा सकें। स्पष्ट शब्दों में, हर और बैठा दर्शक अभिनेताओं के क्रिया-कलाप को देख सकेगा ।
रेडियो नाटक क्या होते हैं
नाटक को रंगमंच पर देखने के अलावा आप रेडियो पर भी अक्सर नाटक सुनते होंगे। रेडियो नाटक रंगमंचीय नाटक से अलग एक नयी विधा है । मूलतः नाटक दृश्य विधा है, किन्तु रेडियो नाटक में शब्द और ध्वनि का विशेष महत्व है ।
रेडियो नाटक मंचीय नाटक से इस अर्थ में भिन्न है कि जहाँ मंचीय नाटक में विभिन्न रंगमंचीय उपकरणों का प्रयोग होता है तथा अभिनेताओं के अभिनय, हाव-भाव, गति आदि के द्वारा दर्शकों तक बात पहुँचाई जाती है, वहाँ रेडियो नाटक में केवल ध्वनि के माध्यम से ही सब कुछ करना होता है। इसमें ध्वनि के द्वारा ही अभिनेताओं का चलना-फिरना, हँसना-रोना, आह भरना आदि प्रस्तुत किया जाता है ।
रेडियो नाटक बहुत हद तक संवादों पर भी निर्भर करता है । रेडियो नाटक के संवाद लिखे ही इस प्रकार जाते हैं कि उनमें ऐसी बातें, ऐसे संकेत दे दिए जाएँ जिनकी कि मंचीय नाटक में आवश्यकता नहीं होती। जैसे मंचीय नाटक पर यदि कोई अभिनेता फटे कपड़े पहन कर आता है तो दर्शकों । को देखने मात्र से ही पता चल जाता है कि उसने फटे कपड़े पहन रखें हैं, जबकि रेडियो नाटक में इस स्थिति की अभिव्यक्ति किसी पात्र के संवाद से ही करनी पड़ेगी ।
रेडियो नाटक के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें विभिन्न भावपूर्ण स्थितियों की अभिव्यक्ति के लिए पार्श्व संगीत का बहुत प्रयोग होता है। जैसे किसी की मृत्यु पर करुण संगीत का बजना, किसी आश्चर्यजनक घटना पर चौकाने वाली घुन का बजना आदि ।
रेडियो नाटक रंगमंचीय नाटक से इस अर्थ में भिन्न है कि रंगमंचीय नाटक में तो अन्य ललित कलाएँ - चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य आदि सम्मिलित रहती हैं, किन्तु रेडियो नाटक में इनका उपयोग उस रूप में नहीं किया जा सकता। केवल ध्वनि के सहारे नृत्य की गति का बोध कराया जा सकता है ।
दूरदर्शन नाटक
आजकल तो आप लगभग हर रोज़ रात को दूरदर्शन पर नाटक देखते होंगे। अब तो दूरदर्शन पर धारावाहिक नाटक दिखाये जाते हैं जिन्हें 'सीरियल' कहा जाता है। दूरदर्शन नाटक भी नाटक की एक नयी विधा है जो फिल्म के अधिक करीब दूरदर्शन नाटक और रंगमंचीय नाटक में बहुत अंतर है। सबसे बड़ा अंतर तो यह है कि नाटक में कैमरे का इस्तेमाल होता है।
यहाँ हर चीज़ कैमरे की आँख से ही देखी जाती है। यह बात तो आप सभी जानते होंगे कि दूरदर्शन में और फिल्म में भी कैमरा ट्रिक का बहुत इस्तेमाल किया जाता है। दूसरा अंतर यह है कि रंगमंच पर सब कुछ नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि रंगमंच की अपनी सीमाएँ हैं, किन्तु दूरदर्शन पर लगभग सभी कुछ दिखाया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि रंगमंच पर कश्मीर का दृश्य दिखाना हो तो यह कार्य परदे के द्वारा सम्पन्न हो सकता है, किंतु दूरदर्शन पर यह यथार्थ दृश्य के रूप में ही दिखाया जाएगा।
तीसरा अंतर यह है कि रंगमंच पर अभिनेताओं और दर्शकों का प्रत्यक्ष संबंध होता है। यदि कोई अभिनेता मंच पर कोई भूल कर बैठे तो वह साफ दिखाई देगी और उससे नाट्य प्रस्तुति में भी अंतर आ जाएगा, लेकिन दूरदर्शन नाटक में ऐसी भूलों की गुंजाइश प्रायः नहीं रहती, क्योंकि भूल हो जाने की स्थिति में यहाँ दृश्य को बार-बार "शूट किया जाता है, तब कहीं जा कर वह 'ओ० के०' होता, है।
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