भीम राव अम्बेडकर के समाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचार। Dr. Bhim Rao ambedhar's views about social change
डॉ० भीम राव अम्बेडकर के समाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचार
भीम राव अम्बेडकर के समाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचार
- डॉ० भीम राव अम्बेड़कर मूलतः एक समाज सुधारक अथवा समाजिक चिंतक थे वह हिन्दु समाज द्वारा स्थापित समाजिक व्यवस्था से काफी असंतुष्ट थे और उन में सुधार की मांग करते थे ताकि सर्व धर्म सम्भाव पर आ आरित समाज की स्थापना की जा सके।
- अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के उन्मूलन और अस्पृश्यों की भौतिक प्रगति के लिए अथक प्रयास किये। वे 1924 से जीवन पर्यन्त अस्पृश्यों का आंदोलन चलाते रहे। उनका दृढ विश्वास था कि अस्पृश्यता के उन्मूलन के बिना देश की प्रगति नहींहो सकती। अम्बेडकर का मानना था कि अस्पृश्यता का उन्मूलन जाति व्यवस्था की समाप्ति के साथ जुड़ा हुआ है और जाति व्यवस्था धार्मिक अवधारणा से संबद्ध है।
समाजिक सुधारों को प्रमुखता / वरीयता
- समाज सुधार सदैव डॉ० अम्बेडकर की प्रथम वरीयता रहे। उनका विश्वास था कि आर्थिक और राजनीतिक मामले समाजिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति के बाद निपटाये जाने चाहिए। अम्बेडकर का विचार था कि अर्थिक विकास सभी समाजिक समस्याओं का समाधान कर देगा। जातिवादी हिंदुओं की मानसिक दासता की अभिव्यक्ति है। इस प्रकार जातिवाद के पिशाच / बुराई के निवारण के बिना कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। हमारे समाज में क्रांतिकारी बदलाव के लिए समाजिक सुधार पूर्व शर्त है।
- समाजिक सुधारों में परिवार व्यवस्था में सुधार और धार्मिक सुधार भी शामिल है। परिवार सुधारों में बाल-विवाह जैसे कुप्रथाओं की समाप्ति भी शामिल है। अम्बेडकर ने भारतीय समाज में महिलाओं की गिरती स्थिति की कटु आलोचना की। उनका मानना था कि महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार मिलने चाहिए और उन्हें भी शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म में महिलाओं को सम्मति के अधिकार से वचिंत रखा गया है।
- हिंदू कोड बिल जो उन्होंने ही तैयार करवाया था, उन्होंने यह ध्यान रखा कि महिलाओं को भी सम्पति में एक हिस्सा मिलना चाहिए। उन्होंने अस्पृश्यों को संगठित करते समय अस्पृश्य समुदाय की महिलाओं का आगे आने के लिए सदैव आहवान किया कि वे राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भाग ले।
जाति प्रथा का विरोध (Opposition the Costesism)
- डॉ० भीम राव अम्बेडकर जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे। जाति प्रथा का विरोधी होने का मुख्य कारण उनके स्वयं का भुक्त भोगी होना था वह जाति प्रथा को वर्ण व्यवस्था का आधुनिक और घृणित रूप मानते थे क्योंकि समयानुसार वर्ण व्यवस्था में जटिलता आ गई और उसने जाति प्रथा का रूप धारण कर लिया था। अब व्यक्ति को उसके कार्यों की अपेक्षा जाति से जाना जाने लगा था। जहां समान जाति की उपजातियों के लोगों में भोजन, सदाचार व्यवसाय की समानता होने से विवाह सम्बन्धों की स्थापना हुई और उसने जाति व्यवस्था को मजबूती एवं स्थायित्व प्रदान किया।
डॉ० भीम राव अम्बेडकर ने जाति प्रथा के विरोध के निम्नलिखित कारण बताए
1. यह प्रथा निम्न वर्गों के लोगों के गुणों एवं प्रतिभा की उपेक्षा करती है।
2. जति प्रथा अंतर्जातीय विवाह सम्बधों का बहिष्कार करती हैं।
3. यह समाज में विद्यमान विभिन्न जातियों में परस्पर द्वेष और तनाव को पैदा करती है।
4. यह व्यवस्था प्रजातन्त्र विरोधी है क्योंकि प्रजातन्त्र समानता स्वतन्त्रता न्याय और बंधुत्व पर बल दिया जाता है।
5. डॉ० अम्बेडकर ने जाति प्रथा को मानवीय विरोधी माना क्योंकि यह
निम्न वर्गों को घृणित कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
इन्ही आधारों पर डॉ० भीम राव अम्बेडकर ने जाति प्रथा का विरोध किया
।
भीम राव अम्बेडकर द्वारा अस्पृश्यता का अन्मूलन
अस्पृश्यता को कैसे समाप्त किया जाए
- अस्पृश्यता सम्पूर्ण हिंदू समाज की दासता का संकेत है। अम्बेड़कर ने कहा था कि जाति के आधार पर कुछ भी सार्थक सृजित नहीं हो सकता। इसलिए एक जातिविहीन समाज का सृजन किया जाना चाहिए।
- अंतर्जातीय विवाह जाति को प्रभावी तरीके से नष्ट कर सकते है लेकिन समस्या यह है कि जब तक लोगों के विचारों पर जातिवाद का दबदबा रहेगा तब तक लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करने को तैयार नहीं होगे। वह छुआछुत को हिन्दु सामाजिक व्यवस्था के लिए एक कलंक मानते थे।
- अम्बेडकर ने ऐसे उपायों को खत्म करने के कुछ उपाय बताये। इसलिए तीव्र परिवर्तन के लिए जरूरी है कि लोगों को धर्मग्रंथों की पकड़ और परम्पराओं से मुक्त कराया जाए। प्रत्येक हिन्दु शास्त्रों और वेदों का दास है।
- जाति उन्मूलन धर्मग्रंथों की महिमा के सम किये जाने पर आधारित है। जब तक धर्मग्रंथ हिन्दुओं पर प्रभुत्वशाली रहेंगे तब तक वे अपनी अंर्तआत्मा के अनुसार कार्य करने को स्वतंत्र नहीं होगें।
- वंशानुगत पदसोपान में अन्यायपूर्ण सिद्धांतों के स्थान पर हमें समानता, स्वतन्त्रता और भातृत्व के सिद्धान्तों की अपनाना चाहिए। ये किसी भी धर्म की आधारशिला हो सकते हैं।
शिक्षा
- अम्बेडकर का विश्वास था कि शिक्षा अस्पृश्यों के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान देगी। उन्होंने अपने अनुयायियों को सदैव ज्ञान के क्षेत्र में उच्चता तक पहुंचाने के लिए प्रेरित किया शिक्षा व्यक्ति को अपने आत्म-सम्मान के प्रति जागरूक बनाती है और उन्हें बेहतर भौतिक जीवन की ओर पहुंचने में सहायता प्रदान करती है।
- अम्बेडकर ने ब्रिटिश शिक्षा नीति की आलोचना की है कि इसने निम्न जातियों में शिक्षा को समुचित रूप में बढ़ावा नहीं दिया। उन्होंने महसूस किया कि अंग्रेजी राज में भी शिक्षा पर उच्च जातियों का एकाधिकार जारी रहा। इसलिए उन्होंने निम्न जातियों और अस्पृश्यों को गतिशील बनाया और सीखने के कई केंद्रो की नीव रखी।
- अम्बेडकर अस्पृश्यों को उदार शिक्षा और तकनीकि शिक्षा प्रदान करना चाहते थे। वे धार्मिक सहयोग से शिक्षा दिए जाने के विरोधी थे। उन्होंने चेतावनी दी कि केवल धर्मनिरपेक्ष शिक्षा छात्रों में स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों की प्रस्थापना कर सकती है।
आर्थिक प्रगति
- एक अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन के बारे में भी अम्बेडकर ने कहा कि अस्पृश्य स्वयं को ग्रामीण समुदाय और इसकी आर्थिक जकड़न से मुक्त कर ले। परंपरागत ढ़ांचे में अस्पृश्य कोई विशेष व्यवसाय करने को बाध्य थे। वे अपने जीवनयापन के लिए हिंदू जातियों पर आश्रित थे।
- उनका हमेशा यही मानना था कि अस्पृश्यों को अपने परंपरागत व्यवसाय बंद कर देने चाहिए। इसके स्थान पर उन्हें नई तकनीकी हासिल करनी चाहिए और नये व्यवसाय शुरू करने चाहिए। उन्हें रोजगार दिलाने में शिक्षा भी सहायक होगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आश्रित रहने का कोई बिंदू ही नहीं रह गया था।
- बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण के परिणाम स्वरूप शहरों में रोजगार के व्यापक अवसर विद्यमान थे। इसलिए अस्पृश्यों को यदि जरूरी है तो गांव भी छोड़ देना चाहिए और नये व्यवसाय या कार्य की तलाश करके स्वयं को उसमें लगा देना चाहिए। इसलिए अस्पृश्यों के लिए पहले ग्रामीण बंधनों से मुक्त होना जरूरी है। इसके बावजूद यदि अस्पृश्यों को गांव में रहना पड़े तो उन्हें अपने परंपरागत कार्य बंद कर देने चाहिए और आजीविका के नये साधन ढूंढने चाहिए। यह काफी सीमा तक उनका आर्थिक सुधार करेगी।
- अम्बेडकर जी का मानना था कि दलित वर्ग को अपने आप आत्म सम्मान पैदा करना चाहिए एवं सहायता की नीति उनके उत्थान की सर्वोतम नीति है। वे कठिन परिश्रम के समर्थक थे। वे मानवतावाद, सहानुभूति, परोपकार आदि के आधार पर समाज सुधारों में विश्वास नहीं करते थे। उनका मानना था कि सघर्ष द्वारा ही अपने अधिकारों को जीतना चाहिए।
राजनीतिक सुदृढ़ता
- इस दिशा में एक कदम के रूप में अम्बेडकर ने दलित वर्गों को राजनीति में सहभागीता देने को काफी महत्व दिया।
- उन्होंने कहा कि राजनीतिक शक्ति प्राप्त करके अस्पृश्य अपनी सुरक्षा करने में सक्षम होंगे और शक्ति में पर्याप्त हिस्सा ले सकेंगे।
- अम्बेड़कर चाहते थे कि अस्पृश्य अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष करे और शक्ति में पर्याप्त हिस्सा प्राप्त करे। इसलिए उन्होंने अस्पृश्यों के राजनीतिक संगठन बनाये।
धर्म परिवर्तन
- अम्बेडकर ने जीवन भर हिंदूवाद के दार्शनिक आधार को सुधारने का प्रयास किया लेकिन वे जानते थे कि हिंदूवाद अस्पृश्यों के प्रति अपनी धारणा में कोई परिवर्तन नहीं लाएगा। इसलिए उन्होंने हिन्दूवाद के विकल्प की खोज की। काफी सोच विचार करने के बाद उन्होंने बौद्धवाद को अपनाया और अपने अनुगामियों से भी ऐसा करने को कहा।
- बौद्धवाद में उनके धर्म परिवर्तन का मतलब था मानवतावाद पर आधारित धर्म में उनकी आस्था अम्बेडकर मानते थे कि बौद्धवाद न्यूनतम वाला धर्म है। इसमें समानता और स्वतंत्रता की भावना का आदर किया जाता है।
- अन्याय और शोषण का उन्मूलन बौद्धवाद का लक्ष्य था। द्ववाद अपनाने के बाद अस्पृश्य अपने लिए एक नई पहचान बना पाने के योग्य होगें। हिन्दुवाद ने उन्हें उत्पीड़न के अलावा कुछ भी नहीं दिया है। एक नया भौतिक जीवन पाने के लिए उदार भावना के साथ साथ एक नया आध्यात्मिक आधार जरूरी है। बौद्धवाद यह आधार प्रदान करेगा।
समानता पर आधारित समाज की स्थापना पर बल
- डॉ० भीम राव अम्बेडकर ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जहां पर जाति, धर्म, भाषा, लिंग, नस्ल, क्षेत्र आदि के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार न किया जाता हो।
- उन्होंने भारतीय समाज में विद्यमान जातीय भेदभाव को स्वयं भोगा था जिसके कारण उन्हें जाति भेदभाव से काफी घृणा हो गई थी। जब वह शिक्षा ग्रहण करने लंदन गए तो उन्होंने देखा कि वहां पर भारतीयों को निम्न स्तर का माना जाता है और उनकी क्षमता पर सन्देह प्रकट किया जाता है। इसे उन्होने नस्लीय भेदभाव माना।
- वह ऐसे राज्य की स्थापना के इच्छुक थे जिसमें किसी तरह का भेदभाव न हो, सभी नागरिक अपनी-2 क्षमता के अनुसार देश की प्रगति में योगदान दे ताकि देश को उन्नति के नए शिखर पर ले जाया जा सके।
भीम राव अम्बेडकर द्वारा तीन विचारों पर बल
डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने अपने समाजिक विचारों
में तीन मुख्य विचारों शिक्षित बनों, संगठित
रहो, और 'संघर्ष करो'
का जोरदार समर्थन किया।
- उनके विचार द्वारा ही दलितों का उद्दार तब तक सम्भव नहीं है जब तक वे शिक्षित नहीं होते, संगठित नहीं होते और संघर्ष के लिए प्रेरित नहीं होते है। डॉ० अम्बेडकर के विचारानुसार शिक्षा द्वारा दलित समाज के मन से हीनता और मानसिक गुलामी को दूर किया जा सकता है। उन्होंने दलित बालकों और दलित बालिकाओं दोनों की शिक्षा पर बल दिया था।
- बाबा साहब ने दलित वर्ग को संगठित होकर अपनी शक्ति दिखाने के लिए प्रेरित किया था।
- उनका तीसरा विचार संघर्ष करने का था अर्थात् शिक्षा के प्रसार और संगठित करने के उद्देश्य से उनमें आत्मा चेतना जागृत होगी जिससे वह अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए तैयार होगें।
स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृत्व- भीम राव अम्बेडकर
- वे स्वतन्त्रता समानता और भातृत्व के सिद्धांतो से गहरे रूप से प्रभावित थे। उन्होंने इन सिद्धांतों पर आधारित एक नये समाज का स्वपन देखा।
- स्वतंत्रता और समानता को साथ - साथ विद्यमान रहना चाहिए सभी लोगों के नैतिक और भौतिक जीवन के गुणों में सुधार सुनिश्चित करेगें। सामाजिक लोकतन्त्र और आर्थिक न्याय के बिना राजनीतिक लोकतंत्र बेकार ।
- लेकिन स्वतंत्रता और समानता की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि समाज के लोगों में एकता की सुदृढ़ भावना हो।
- समाज में भातृत्व की भावना पैदा होनी चाहिए। अम्बेडकर ने यह स्पष्ट कर दिया था कि उनकी धारणा के अनुरूप एक आर्दश समाज स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित समाज होगा।
Post a Comment