परीक्षा : मूल्यांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि । परीक्षा किसे कहते हैं । Exams and Types in Hindi

 परीक्षा : मूल्यांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि 

परीक्षा : मूल्यांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि । परीक्षा किसे कहते हैं । Exams and Types in Hindi

 

परीक्षा किसे कहते हैं 

  • मूल्यांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि परीक्षा है। कक्षा में पढ़ाए गए विषय के आधार पर छात्रों के सम्मुख कुछ प्रश्न प्रस्तुत किए जाते हैं और उनके उत्तरों के आधार पर छात्रों की विषयगत योग्यता की जाँच की है। इस प्रक्रिया को ही परीक्षा कहते हैं। 


परीक्षा तीन प्रकार की होती है

 

1. लिखित परीक्षा परीक्षा 

2. मौखिक परीक्षा 

3. प्रायोगिक

 

लिखित परीक्षा Written Test

 

  • छात्रों की उपलब्धियों एवं व्यवहार परिवर्तन की जाँच जब लिखित रूप से की जाती है तो उसे लिखित परीक्षा कहते हैं। आज के युग लिखित परीक्षा ही सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसमें एक समय में लाखों छात्रों को विभिन्न केन्द्रों में प्रश्न-पत्र वितरित कर दिए जाते हैं और उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच कर उनकी योग्यता का मापन कर सकते हैं। इससे सभी कार्य का लिखित रूप में अभिलेख सुरक्षित रहता है। कभी भी आवश्यकता पड़ने पर उसका पुर्नमूल्यांकन किया जा सकता है। छात्रों को पढ़कर अर्थ ग्रहण करने एवं लिखित रूप से विचारों को अभिव्यक्त करने की योग्यता की जाँच करने की यह एक सर्वोत्तम विधि है। 


लिखित परीक्षा के रूप हैं

 

1. निबन्धात्मक 

2. लघु उत्तर 

3. वस्तुनिष्ठ

 

निबन्धात्मक परीक्षा Essay Type Test

 

  • जिन प्रश्नों के उत्तर छात्रों को विस्तृत निबन्ध के रूप में देना होता हैऐसे प्रश्नों पर आधारित लिखित परीक्षा को निबन्धात्मक परीक्षा कहा जाता है। इसमें बच्चों को विषय से सम्बन्धित प्रश्नों पर आधारित प्रश्न-पत्र दिया जाता है। प्रश्न-पत्र में 8-9-10 प्रश्न होते हैंउनमें से छात्रों को 5-6 प्रश्नों का उत्तर एक निश्चित समयावधि में देना होता है।

 

निबन्धात्मक परीक्षा के गुण 

  • इस परीक्षा के द्वारा छात्रों की लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच होती है। पढ़कर अर्थ ग्रहण करनाविचारों का संग्रह करनाविचारों का विश्लेषण करनाविचारों को व्यवस्थित करना एवं उचित भाषा तथा क्रम में अभिव्यक्ति करनातीव्र गति से लिखना आदि योग्यताओं का मूल्यांकन करने के लिए निबन्धात्मक परीक्षाएँ सबसे अच्छा साधन है।

 

निबन्धात्मक परीक्षा के दोष 

  • उपरोक्त गुणों के होने पर भी यह परीक्षा दोषमुक्त नहीं है। प्रश्न-पत्र के 10-12 प्रश्नों में से केवल 5-6 प्रश्नों का उत्तर देने की परम्परा के कारण छात्र विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं करते हैंबल्कि कुछ सम्भावित प्रश्नों को तैयार कर लेते हैं। प्रश्न-पत्र में भी पाठ्यक्रम के कुछ ही अंश पर प्रश्न पूछे जाते हैं। अतः छात्र पूरे पाठ्यक्रम का अध्ययन नहीं करते हैं। इनसे विषय की आंशिक जाँच ही हो पाती है।

 

लघु उत्तरीय परीक्षा Short Answer Type Test

 

  • जिन प्रश्नों का उत्तर बहुत छोटा अर्थात् एकदोतीन या चार पंक्तियों में देना होता हैं लघु उत्तर परीक्षा कहा जाता है। यह निबन्धात्मक परीक्षा का ही परिष्कृत रूप है। 
  • इनमें निबन्धात्मक परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं अतः यह पाठ्यक्रम के अधिक अंश से सम्बन्धित ज्ञान की जाँच करती हैं।
  • इनके उत्तर भी अपेक्षाकृत अधिक निश्चित होते हैं। इनमें छात्रों की बोधशक्ति तथा ज्ञान की जाँच भी होती है। 
  • ये छात्रों की वाक्य-रचना की योग्यता की जाँच करने में भी सहायक हैंपरन्तु ये न तो छात्रों की तर्कविचार आदि मानसिक शक्तियों की जाँच कर सकती हैं और न ही भाषाशैली एवं विचाराभिव्यक्ति की जाँच भी पूरी तरह से करने में सक्षम होती हैं।

 

वस्तुनिष्ठ परीक्षा Objective Test

 

  • जिन प्रश्नों के उत्तर किसी चिह्न विशेष या एक-दो शब्द के द्वारा दिए जाते हैंउन्हें वस्तुनिष्ठ परीक्षा कहते हैं। निबन्धात्मक परीक्षा के दोषों को दूर करने की दृष्टि से इस परीक्षा का विकास किया गया है।

 

  • प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में होने के कारण इसमें कम समय में अधिक-से-अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अतः प्रश्न पूरी पाठ्यचर्चा से सम्बन्धित होते हैं। छात्रों को विषय तरह से तैयार करना पड़ता हैविषय का कोई भी अंश छोड़ा नहीं जा सकता है। 

  • इसमें प्रश्नों के उत्तर निश्चित होने कारण हर परिस्थिति में परीक्षक को निश्चित अंक देने पड़ते हैं अर्थात उत्तर सही है तो पूर्ण अंक और गलत है तो शून्य। 
  • प्रश्न के उत्तर की विषय वस्तु निश्चित होने के कारण ही इसे वस्तुनिष्ठ कहा जाता है । 
  • ये परीक्षाएँ विश्वसनीय एवं प्रमाणिक होती हैं। इनके द्वारा बच्चों के ज्ञान सही-सही जाँच होती है। 
  • उपरोक्त गुणों के होने पर भी वस्तुनिष्ठ परीक्षा दोषमुक्त नहीं है। इससे बच्चों की विचार तर्क आदि मानसिक शक्तियोंभाषा-शैली का प्रयोगविचारों की अभिव्यक्ति आदि की जाँच नहीं हो पाती है। ये तो केवल बच्चों की स्मरण शक्ति की जाँच करती हैं। कभी-कभी ये अनुमान कार्य को प्रोत्साहन देती हैं। 
  • वस्तुनिष्ठ परीक्षा पर पूरी तरह से निर्भर रहने की अपेक्षा निबन्धात्मक एवं लघु उत्तर परीक्षाओं के साथ समन्वित करके इसका प्रयोग करना चाहिए। वस्तुगत प्रश्नों का निर्माण बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए। परस्पर विचार-विमर्श एवं पर्याप्त अभ्यास के उपरान्त ही इनका निर्माण किया जा सकता है।
  • प्रश्नों की संख्या इतनी होनी चाहिए कि छात्र दिए गए समय में उनका उत्तर दे सकें। प्रश्न छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल होने चाहिए। कुछ प्रश्न ऐसे हो जिनका उत्तर 5 से 10 % तक असाधारण प्रतिमा के छात्र दे सकें। कुछ प्रश्न ऐसे हों जिनका उत्तर 40 से 65 % तक सामान्य प्रतिभा के छात्र दे सकें और कुछ प्रश्न ऐसे हों जिनका उत्तर सभी छात्र दे सकें। इससे सभी छात्रों की मानसिक क्षमतायोग्यता आदि की जाँच भी हो सकेगी।। 

 

मौखिक परीक्षा Oral Test

 

  • मौखिक रूप से छात्रों से प्रश्न पूछकर उनके उत्तर भी मौखिक रूप से ही देने को कहा जाता है। इसे ही मौखिक परीक्षा कहते हैं।
  • हिन्दी भाषा के मूल्यांकन में मौखिक परीक्षा का बहुत महत्त्व है क्योंकि हिन्दी भाषा शिक्षण में पढ़ने लिखने की योग्यता का विकास करने से पहले छात्रों को सुनकर विचार ग्रहण करने और बोलकर विचारों को अभिव्यक्त करने के योग्य बनाना भाषा की शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।
  • हम दैनिक जीवन में पढ़ने-लिखने से अधिक कार्य सुनने और बोलने का करते हैं। भाषा के दो रूपों मौखिक एवं लिखित में से व्यावहारिक जीवन में मौखिक रूप का प्रयोग अधिक होता है। 
  • मौखिक रचना ही लिखित रचना का आधार है अतः हिन्दी के मूल्यांकन में मौखिक अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच करना भी उतना ही आवश्यक है जितना लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच करना।

 

अच्छी परीक्षा के गुण या मूल्यांकन का महत्त्व

Merits of Good Test or Importance of Evaluation 

विश्वसनीयता

  • एक अच्छी परीक्षा विश्वसनीय होती है। इसका तात्पर्य यह है कि परीक्षा द्वारा होने ला मापन प्रायः अविचल होता है।

वैधता 

  • वैधता का अभिप्राय है 'अभिप्राय सापेक्षताअर्थात जब परीक्षा द्वारा अभीष्ट लक्ष्य का मापन होता हैतभी उसे वैध कहा जा सकता है। 

वस्तुनिष्ठता

  • एक अच्छी परीक्षा वस्तुनिष्ठ होती है। एक वस्तुनिष्ठता में व्यक्तिनिष्ठ तत्वों का लोप होता है। छात्र-छात्राओं का मूल्यांकन निष्पक्ष होता है।

 

व्यापकता 

  • व्यापकता से तात्पर्य है मापित होने वाली राशि में अधिक तत्वों को सम्मिलित करना।


विभेदीकरण

  • एक अच्छी परीक्षा की पाँचवी विशेषता हैउसका विभेदी होना। ऐसी परीक्षा के द्वारा उच्च और निम्न योग्यता वाले छात्र-छात्राओं में विभेद हो जाता है।

उपयोगिता तथा व्यवहारशीलता 

  • उपयोगिता या व्यवहारशीलता एक अच्छी परीक्षा की अन्तिम विशेषता है। एक अच्छी परीक्षा का अर्थ है कि अच्छी परीक्षा उपयोगी तो होती हैसाथ में सफलतापूर्वक व्यवहार में लाई जा सकती है। हिन्दी में मूल्यांकन का अन्त में यही सार निकलता है कि मूल्यांकन द्वारा यह ज्ञात हो जाता है कि उद्देश्यों की पूर्ति कहाँ तक हो सकी है तथा यह भी ज्ञात हो जाता है कि समुचित उपचारत्मक अनुदेशन दिया गया है कि नहीं। मूल्यांकन द्वारा छात्र छात्राओं की कमजोरियों को ज्ञात किया गया है कि नहीं।

 

प्रश्न-पत्र निर्माण एवं ब्लू प्रिन्ट Formation of Question Paper and Blue Print

 

  • प्रचलित शिक्षा प्रणाली में लिखित परीक्षा वह महत्त्वपूर्ण माध्यम है जिसमें उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी कक्षा दर कक्षा आगे बढ़ते हैं। परीक्षा प्रश्न-पत्रों के माध्यम से ली जाती है। प्रश्न-पत्र पर ही विद्यार्थियों का मूल्यांकन निर्भर करता है। अतः प्रश्न-पत्र बनाने के पूर्व एक योजना तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है जिसमें प्रश्नों का प्रकार उद्देश्यअंको का अधिभार आदिसम्मिलित हैं इसे ब्लू प्रिन्ट कहते हैं।

 

  • ब्लू प्रिन्ट बनाकर प्रश्न पत्र बनाने से सभी शैक्षिक उद्देश्य की पूर्ति करने वाले प्रश्न-पत्र का निर्माण किया जा सकता है इससे शिक्षक को यह स्पष्ट होता हैकि किस इकाई से कितने अंक के कितने प्रश्न पूछने हैं तथा प्रत्येक इकाई को उचित अधिभार दिया जा सकता है। इस प्रकार त्रुटियों की सम्भावना नहीं है एवं आ प्रश्न-पत्र बनता है। ब्लू प्रिन्ट में आवश्यकतानुसार एवं पूर्व के परीक्षा परिणामों के आधार पर वांछित परिवर्तन किए जाते हैं।

 

  • अच्छा प्रश्न-पत्र बनाने के लिए सन्तुलित ब्लू प्रिन्ट तैयार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए नियोजन निर्धारित पाठ्यक्रम से लिया जाना चाहिए।

 

ब्लू प्रिन्ट के निर्माण में ध्यान रखने योग्य बातें 

Important Things to Remember in Formation of Blue Print

 

प्रश्न के उद्देश्य 

  • परीक्षा में पूछे जाने वाले कितने प्रश्न ज्ञानात्मककितने अवबोधात्मककितने कौशलात्मक अथवा कितने अनुप्रयोगात्मक होंगे इनके लिए प्रतिशत द्वारा अंकों का निर्धारण पूर्णांक में होना चाहिए।

 

प्रश्नों का प्रकार

  • पाठ्यक्रम से प्रत्येक प्रकार के प्रश्न जैसे— वस्तुनिष्ठअति लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाने चाहिए। इसके लिए पहले प्रतिशत का निर्धारण फिर कुल अंकों के प्रश्नों का निर्धारण करना चाहिए। 


प्रश्न-पत्र को हल करने में सम्भावित

  • समय प्रश्न प्रत्र में प्रश्नों की व्यवस्था ऐसी हो कि विद्यार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने एवं हल किए गए प्रश्नों के उत्तर पुनः जाँचने का समय मिल सके।

 

विषय-वस्तु पर अधिभार

  •  प्रत्येक इकाई की विषय-वस्तु के महत्त्व के आधार पर अंको का निर्धारण किया जाना चाहिए।


प्रश्नों का कठिनाई स्तर 

  • सरल प्रश्नसामान्य प्रश्न एवं कठिन प्रश्नों का प्रतिशत निश्चित करना चाहिए।

 

विकल्प का दिया जाना

  • यह पहले से निर्धारण कर लेना चाहिए कि किन प्रश्नों में आन्तरिक विकल्प दिया जाना है। विकल्प वाले प्रश्नों में कठिनाई स्तर एवं प्रश्न का प्रकार समान होना चाहिए।

 

प्रश्न-पत्र का खण्डों में विभाजन

  • शिक्षक स्वयं विवेक से प्रश्न पत्र में खण्ड निर्धारित कर सकते हैं जैसे-खण्ड अवस्तुनिष्ठखण्ड ब अति लघुउत्तरीय एवं लघुउत्तरीय इत्यादि।

 

परिणामों का विश्लेषण Analysis of Results

 

  • उत्तर पुस्तिकाएँ विद्यार्थियों का मूल्यांकन करने का एक विश्वसनीय माध्यम हैं। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का उद्देश्य यह जानना होता है कि विद्यार्थियों द्वारा कौन-कौन से प्रश्न अधूरे हल किए गएकौन-कौन से प्रश्न हल नहीं किए गएऐसे कौन से प्रश्न है जिन्हें अधिकांश विद्यार्थियों ने हल नही कियाविद्यार्थियों को होने वाली कठिनाइयों का ज्ञान हो जाता है तथा शिक्षक अगले सत्र के लिए शिक्षण की रणनीति तैयार कर सकता है जैसे किस विषय-वस्तु पर अधिक ध्यान देना हैकौन-सी सही शिक्षण विधि अपनानी हैइत्यादि ।

 

  • उत्तर पुस्तिकाओं का सही मूल्यांकन अत्यन्त आवश्यक हैक्योंकि इसी पर विद्यार्थियों का भविष्य निर्भर करता है। प्रश्नों के सही उत्तर के सम्बन्ध में आश्वस्त होने पर ही शिक्षक को मूल्यांकन का कार्य करना चाहिए। विद्यार्थी द्वारा किए गए उत्तर शब्दशः आदर्श उत्तर से नहीं मिलने की स्थिति में विद्यार्थी द्वारा लिखे गए उत्तरों का अर्थभाव स्पष्ट होने पर भी अंक प्रदान किए जाने चाहिएँ। आदर्श उत्तर में दिए गए विभाजन के अनुसार उत्तरों पर अंक प्रदान किए जाने चाहिएँ। 

 

  • कई बार ऐसे प्रकरण भी देखने में आते हैं जब विद्यार्थी एक ही प्रश्न का उत्तर दो बार देते हैंमूल्यांकनकर्ता को सजगता पूर्वक उचित क्रमांक के प्रश्न वाले उत्तर पर अंक प्रदान करना चाहिए। उत्तर पुस्तिकाओं के विश्लेषण से कठिन विषयांश ज्ञात होते हैं तथा आगे की रणनीति बनाने में सहयोग मिलता है।

 

आदर्श उत्तरों की रचना To Construct Ideal Answers 

  • प्रश्न-पत्र निर्माण के साथ-साथ आदर्श उत्तरों की रचना करना भी महत्त्वपूर्ण होता है। 
  • वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के लिए आदर्श उत्तर निर्माण करने में विशेष कठिनाई नहीं होतीकिन्तु लघुउत्तरीय व निबन्धात्मक प्रश्नों के आदर्श उत्तरों की रचना में अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। 
  • भाषा में अभिव्यक्ति के अनेक स्तर हो सकते हैंहर विद्यार्थी अपने विचारों की विविधता के साथ अभिव्यक्ति करता हैअतः आदर्श उत्तरों की भाषा सहजसरल और प्रश्नों की माँग के अनुरूप होनी चाहिए।

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