आज़ाद हिन्द फौज अर्थात् इण्डियन नेशनल आर्मी (आईएनए INA) की स्थापना।सुभाष चन्द्र बोस सम्बोधन ।Aazad Hindi Sena Ki Sthapna

आज़ाद हिन्द फौज अर्थात्  इण्डियन नेशनल आर्मी (आईएनए INA)  की स्थापना

आज़ाद हिन्द फौज अर्थात्  इण्डियन नेशनल आर्मी (आईएनए INA)  की स्थापना


आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना अर्थात्  इण्डियन नेशनल आर्मी (आईएनए INA) 

 

  • 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के निर्मम दमन के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने भारत से बाहर रहकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अपना साहसिक अभियान चलाया। 
  • 1941 में वह अफ़गानिस्तान के रास्ते रूस और इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे थे। 
  • जर्मनी में सुभाष ने 1941 में एक सेना गठित की थी किन्तु जर्मन उसका प्रयोग रूस के विरुद्ध करना चाहते थे इसलिए उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया जाने का फैसला किया दक्षिण पूर्वी एशिया में प्रीतम सिंह ने 'इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स लीग की स्थापना की थी।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल होने से पहले ही जापान भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में दिलचस्पी लेने लगा था। 
  • जापान ने मेजर फूजीवारा को दक्षिण पूर्व एशिया भेजकर इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स लीग' से सम्बद्ध प्रवासी भारतीयों से सम्पर्क करने के लिए भेजा। 
  • दिसम्बर, 1941 में मलाया के जंगल में ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सैनिकों ने जापानी फौज के सामने आत्म समर्पण किया था जिनमें एक कैप्टिन मोहन सिंह भी थे।
  • मोहन सिंह और फूजीवारा ने मिलकर जापान के अधिकार में भारतीय युद्धबन्दियों में से एक सेना भारत को स्वतन्त्र करने के लिए बनाने का समझौता किया और मार्च, 1942 में इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स लीग' की टोक्यो में स्थापना की। 


कैप्टिन मोहन सिंह आज़ाद हिन्द फौज के कमाण्डर

  • बैंकाक में जून, 1942 में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में दक्षिण-पूर्वी एशिया में बसे भारतीयों की प्रतिनिधि संस्था के रूप में यूनाइटेड इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स लीग की स्थापना की गई और यहीं कैप्टिन मोहन सिंह ने इण्डियन नेशनल आर्मी की स्थापना की और वही इसके कमाण्डर बनाए गए। 
  • कैप्टिन मोहन सिंह आजाद हिन्द फ़ौज का विस्तार चाहते थे जब कि जापानी उसको केवल एक प्रतीक के रूप में प्रयुक्त करना चाहते थे। कैप्टिन मोहन सिंह से मतभेद होने के बाद उन्हें इसके कमाण्डर पद से हटाकर बन्दी बना लिया गया। 1943 तक आजाद हिन्द फौज का पहला प्रयोग असफल रहा। 
  • आज़ाद हिन्द फौज को एक करिश्माई नेतृत्व की आवश्यकता थी और वह इस समय जर्मनी में मौजूद सुभाष दे सकते थे। 
  • सुभाष के नेतृत्व वाला प्रस्ताव जापानियों को भी पसन्द आया। वह जर्मनी से एक पनडुब्बी में सवार होकर 2 जुलाई 1943 को जापान द्वारा अधिकृत सिंगापुर पहुंचे जहां से उन्होंने 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया और 21 अक्टूबर, 1943 को आईएनए तथा आज़ाद हिन्द की अनन्तिम सरकार का गठन किया।
  • अनन्तिम सरकार को जापान ने तुरन्त मान्यता दे दी और बाद में जर्मनी तथा इटली सहित आठ और राष्ट्रों ने उसका अनुकरण किया। इस अनन्तिम सरकार में उन्होंने 1915 से जापान में रह रहे वरिष्ठ क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस को सम्मान देते हुए सुप्रीम एडवाइजर नियुक्त किया।
  • गांधीजी से वैचारिक मतभेद होते हुए भी सुभाष ने अपने अभियान की सफलता के लिए उनका आशीर्वाद मांगा। जापानी शिविर में भारतीय युद्ध बन्दियों में से आईएनए के सैनिकों की भर्ती सहज रूप में हो गई। 60000 भारतीय युद्ध बन्दियों में से 20000 आईएनए में भर्ती हो गए। 
  • सुभाष के अभियान को वित्तीय सहायता दक्षिण-पूर्व में बसे भारतीय व्यापारियों ने प्रदान की। 
  • आईएनए एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्रीय सेना थी। इसके अनेक अधिकारी और जवान मुसलमान थे। 
  • सुभाष ने आईएनए में महिलाओं की सहभागिता को महत्व देते हुए झांसी की रानी के नाम से एक महिला टुकड़ी का गठन किया।


सुभाष चन्द्र बोस का आज़ाद हिन्द फौज (आईएनए) प्लाटून को सम्बोधन

 

  • यदि हम यह आशा करेंगे कि ब्रिटेन अपनी इच्छा से भारत पर अपना आधिपत्य छोड़ देगा तो यह हमारी भूल होगी। हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने इस बात को समझ लिया था और 1929 में ही उन्होंने पूर्ण स्वराज्य अथवा पूर्ण स्वतन्त्रता की प्राप्ति को अपना लक्ष्य बना लिया था। मेरी दृष्टि में पूर्वी एशिया और भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की प्रकृति एक जैसी है। भारतीयों का पूर्ण स्वराज का लक्ष्य और पूर्वी एशिया के भारतीय समुदाय की इण्डिपेन्डेन्स लीग का लक्ष्य भी एक है। अखिल एशिया सहयोग के लिए भारत-जापान मैत्री अत्यन्त महत्वपूर्ण है। स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और आईएनए का लक्ष्य उसे प्राप्त करना है।

 

  • हम जानते हैं कि भारत के नागरिकों और उसके सैनिकों में विद्रोह तथा प्रतिरोध की भावना पहले से विद्यमान है। भारतीय सेना में कभी भी विद्रोह हो सकता है। अराकान में तैनात सैनिक टुकड़ियां ब्रिटिश सत्ता के प्रति विद्रोह करके जापान की सेना के साथ जा मिली हैं और भारतीय जनता भी अपने कष्टों का निवारण करने हेतु विद्रोह पर आमादा है। इस तरह भारत में क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। हमको साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और विदेशी आधिपत्य को समाप्त करना है।

 

  • इस निर्णायक दौर में हमको धर्म, जाति के अपने सारे मतभेद, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ आदि को भुलाकर देश को आज़ाद कराने के अभियान में जुट जाना चाहिए। हम पूर्व एशिया में आईएनए के अधिकारी और जवान वास्तव में क्रान्तिकारी हैं और हमने अपने लक्ष्य को पाने या फिर मर जाने की शपथ ली है।

 

21 अक्टूबर, 1943 को आज़ाद हिन्द की अनन्तिम सरकार की घोषणा

 

  • 1757 में अंग्रेज़ों से पराजित होने के बाद से भारतीय अपनी स्वतन्त्रता के लिए वीरतापूर्वक संघर्ष और बलिदान कर रहे हैं। 1857 में हमने बहादुर शाह के झण्डे तले स्वतन्त्रता के लिए संग्राम लड़ा पर कुशल नेतृत्व के अभाव में हम हार गए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद पुनः जागृति आई। हमने अपने खोए हुए अधिकारों को पाने के लिए आन्दोलन, बहिष्कार, आतंक और क्रान्ति, सारे तरीके अपनाए। 1920 में महात्मा गांधी असहयोग और सविनय अवज्ञा के नए अस्त्र लेकर आए। इस युद्ध के दौरान जर्मनी ने यूरोप में हमारे शत्रु पर भीषण प्रहार किए जब कि  जापान ने अपने सहयोगियों के साथ पूर्वी एशिया में हमारे शत्रु को निष्कासित कर दिया। पूर्वी एशिया के बीस लाख से भी अधिक भारतीय सम्पूर्ण लामबन्दी के नारे से प्रेरित होकर संगठित हो गए हैं और उनके सामने दिल्ली चलो का नारा लगाती मुक्ति सेना तैयार खड़ी है।

 

  • अपनी लूटमार की नीति के कारण अंग्रेज़ भारतीयों की सद्भावना खो चुके हैं। अब भारत में उनकी स्थिति संकटपूर्ण है। मुक्ति सेना का काम इस असन्तोष की चिंगारी को विद्रोह की ज्वाला में बदलना है। उसे भारतीय जनता तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के एक बड़े हिस्से सहयोग का पूरा भरोसा है और साथ में अपने अजेय विदेशी साथियों के सहयोग का। भारत के सभी बड़े नेता जेल में है और हमारी जनता निहत्थी है अतः भारत में सशस्त्र क्रान्ति करना अथवा अनन्तिम सरकार का गठन करना असम्भव है। अतः पूर्वी एशिया में इण्डियन इण्डिपेन्डेन्स लीग का यह कर्तव्य बनता है कि वह भारतवासियों तथा विदेशों में रह रहे देशभक्त भारतीयों के सहयोग से आज़ाद हिन्द की अनन्तिम सरकार की स्थापना करे। हम शपथ लेते हैं कि हम अपनी मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए उसके कल्याण के लिए और उसे दुनिया के देशों में सम्मानित स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा देंगे।

 

  • इस अनन्तिम सरकार का पहला लक्ष्य होगा अंग्रेज़ों तथा उसके सहयोगियों को भारत की धरती से खदेड़ना फिर उसका कार्य होगा भारतीयों की इच्छानुसार आजाद हिन्द की एक स्थायी राष्ट्रीय सरकार का गठन। यह सरकार सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता, समान अधिकार और समान अवसर का आश्वासन देती है। 


हस्ताक्षर 

  • सुभाष चन्द्र बोस (राज्याध्यक्ष, प्रधान मन्त्री, युद्ध तथा रक्षा मन्त्री) 
  • कैप्टिन श्रीमती लक्ष्मी (महिला संगठन) 
  • एस० ए० अय्यर ( प्रचार) 
  • लेफ्टिनेन्ट कर्नल ए० सी० चटर्जी (वित्त) 
  • लेफ्टिनेन्ट कर्नल भगत, लेफ्टिनेन्ट कर्नल भोसले, लेफ्टिनेन्ट कर्नल गुलजारा सिंह, लेफ्टिनेन्ट कर्नल कियानी, लेफ्टिनेन्ट कर्नल लोगनाथन, लेफ्टिनेन्ट कर्नल कादिर, लेफ्टिनेन्ट कर्नल शाह नवाज़ खान, रास बिहारी बोस (सुप्रीम एडवाइजर), ए० एन० सरकार (कानूनी सलाहकार ) ।

 

अनन्तिम सरकार इस घोषणा में सुभाष की नीतियों तथा के लिए उनकी योजनाओं की विस्तृत जान मिलती है। उनका विश्वास था कि उनका मुक्ति अभियान शीघ्र ही जन-आन्दोलन में विकसित हो जाएगा और भारतीय सेना उनका इसमें भरपूर साथ देगी। 

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