आजाद हिन्द सेना (आईएनए) का भारत मुक्ति अभियान एवं मुकदमा । Indian National Army Bharat Mukhti Abhiyaan
आजाद हिन्द सेना (आईएनए) का भारत मुक्ति अभियान एवं मुकदमा
आजाद हिन्द सेना (आईएनए) का भारत मुक्ति अभियान
- सुभाष चन्द्र बोस के दिल्ली चलों के आह्वान ने दक्षिण-पूर्वी एशिया में बसे भारतीयों में तथा भारत की जनता में उत्साह भर दिया। उन्होंने तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा के उद्बोधन ने देश की स्वतन्त्रता के लिए मर मिटने की भावना का विकास किया।
- मार्च, 1944 से जून, 1944 तक आजाद हिन्द सेना (आईएनए) ने भारत की धरती पर अपना अभियान चलाया। जापानी सैनिकों के साथ इसने इम्फाल पर अधिकार कर लिया। इम्फाल से आज़ाद हिन्द फौज का इरादा आसाम पहुंचने का था जहां उन्हें अपने समर्थन में जन-आन्दोलन की आशा थी। परन्तु यह अभियान पूर्णतया असफल रहा।
- आज़ाद हिन्द फौज के पास लड़ाकू वायुयान नहीं थे, नेतृत्व की श्रृंखला बाधित हो गई थी, रसद आपूर्ति में व्यवधान आ चुका था, मित्र राज्यों की सेना अत्यन्त शक्तिशाली थी और जापानियों ने आज़ाद हिन्द फ़ौज का खुलकर साथ नहीं दिया था।
- 1945 में जापान की पराजय से आईएनए के सैनिकों को आत्म समर्पण करना पड़ा और सुभाष चन्द्र बॉस अब अपने अभियान में रूस की सहायता प्राप्त करने के लिए हवाई जहाज में रवाना हुए पर फिर रहस्यमयी परिस्थितियों में फिर लौट कर नहीं आए। ऐसा बताया गया कि वह 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में एक वायुयान दुर्घटना में मारे गए हैं परन्तु बहुत लोगों ने उनकी मृत्यु के समाचार पर विश्वास नहीं किया।
- सुभाष चन्द्र बोस के मुक्ति अभियान को सैनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता। यदि यह अभियान सैनिक दृष्टि से अधिक साधन सम्पन्न भी होता तो इसके गठन का समय प्रतिकूल परिस्थितियों में किया गया था।
- 1944 से मित्र राज्यों को हर मोर्चे पर सफलता मिल रही थी और धुरी शक्तियां हर मोर्चे पर पीछे हट रही थीं।
- सुभाष के दल भूमिगत फारवर्ड ब्लॉक को जो कि इम्फाल कोहिमा आक्रमण के बाद सुभाष के अभियान में मदद कर सकता था, उसे पहले ही निष्क्रिय कर दिया गया था। परन्तु हम सुभाष के इस असफल सैनिक अभियान द्वारा भारतीय जन-मानस पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव को नकार नहीं सकते। इस अभियान ने भारतीयों के हृदय में देशभक्ति की भावना और अपूर्व उत्साह का संचार किया।
आजाद हिन्द सेना (आईएनए) पर मुकदमा
- आईएनए के 20000 बन्दियों में से सैकड़ों पर सरकार ने नवम्बर, 1945 में दिल्ली के लाल किले में सार्वजनिक रूप से मुकदमा चलाने का फैसला किया। इसी लाल किले में सुभाष ने स्वतन्त्र भारत का तिरंगा फहराने का स्वप्न देखा था। आईएनए के 7000 सैनिकों को बिना मुकदमा चलाए बन्दी बनाया गया और उनको ब्रिटिश भारतीय सेना से बगावत करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया।
- आईएनए के तीन सैनिक अधिकारी, लाल किले पर हुए मुकदमे के बाद बरी किए गए शाह नवाज़, जी. एस. ढिल्लों तथा प्रेम कुमार सहगल हिन्दू पी० के० सहगल, मुसलमान शाहनवाज खां, सिख - गुरुबख्श सिंह ढिल्लों का फौजी अदालत में कोर्ट मार्शल किया गया। उनके ऊपर ब्रिटिश सम्राट के प्रति षडयन्त्र रचने का आरोप लगाया गया।
- उनकी पैरवी भूलाभाई देसाई, सर तेजबहादुर सप्रू आसफ अली और जवाहर लाल नेहरू ने की। जवाहर लाल नेहरू ने लगभग 29 साल बाद बैरिस्टर के रूप में अदालत में कदम रखा था।
- नवम्बर, 1945 में जब आईएनए के बन्दी अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया तो पूरे देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। मुस्लिम लीग ने भी इस देशव्यापी आन्दोलन में भाग लिया।
- 20 नवम्बर, 1945 के इंटैलीजेन्स ब्यूरो की एक टिप्पणी में यह स्वीकार किया गया कि शायद ही कभी जनता ने किसी मुकदमे में इतनी दिलचस्पी दिखाई हो और आरोपियों के प्रति इतनी अधिक सहानुभूति का प्रदर्शन किया हो। इन आरोपियों का साथ देने वालों में सभी धर्मों और सभी वर्गों के भारतीय शामिल थे।
- अंग्रेज़ों को आईएनए की विद्रोही भावना का भारतीय सेना में प्रसार का खतरा परेशान करने लगा था। जनवरी, 1946 में पंजाब के गवर्नर ने यह सूचना दी कि लाहौर में आईएनए के मुक्त बन्दियों के स्वागत समारोह में अनेक वर्दीधारी फौजी शामिल थे।
- कांग्रेस के नेताओं ने जनता का रुख देखकर आईएनए के सैनिकों को मुक्त किए जाने के लिए किए जा रहे आन्दोलन में भाग लिया था क्योंकि वो जानते थे कि इस समय सुभाष या आईएनए की आलोचना को जनता किसी भी मूल्य पर सहन नहीं करेगी।
- 21 से 23 नवम्बर 1945 तक कलकत्ते में आईएनए के सैनिकों की रिहाई के लिए कलकत्ते में फॉरवर्ड ब्लॉक ने छात्रों के जुलूस निकाले जिसमें कम्युनिस्ट फेडरेशन तथा इस्लामिया कॉलेज के छात्र भी शामिल हो गए। जब पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए तो पूरे शहर में सिख टैक्सी ड्राइवरों तथा कम्युनिस्ट ट्रामवे चालकों ने हड़ताल कर दी। विरोध आन्दोलन के दौरान पुलिस की गोलियों से 33 लोग मारे गए सैकड़ों घायल हुए। जवाब में आन्दोलनकारियों 150 पुलिस तथा सैनिक वाहनों को क्षति पहुंचाई तथा 100 से अधिक ब्रिटिश तथा अमेरिकन सैनिक घायल हुए।
- फरवरी, 1946 में आईएनए के अब्दुल रशीद को सात वर्ष के कठोर कारवास दिए जाने के विरोध में छात्रो, श्रमिकों, हिन्दू तथा मुसलमानों ने मिलकर आन्दोलन किया। पुलिस से मुठभेड़ में 84 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए।
- सरकार को जन-आन्दोलन के दबाव में आकर आईएनए के अधिकांश बन्दियों को मुक्त करना पड़ा। सरकार को यह आशा नहीं थी कि आईएनए के सैनिक गद्दार न समझे जाकर पूरे देश में जन-नायक की तरह पूजे जाने लगेंगे और सभी राजनीतिक दल उनकी रिहाई की मांग करेंगे। सहगल, खान तथा ढिल्लों को दोषी ठहराया गया। इन अधिकारियों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई।
- आईएनए में भाग लेने वालों को सेना से बर्खास्त कर दिया गया। किन्तु सेनाध्यक्ष ऑचिनलेग ने सहगल, खान तथा ढिल्लों की सजा माफ कर दी क्योंकि उन्हें दण्डित करने में पूरे देश में आन्दोलन और सेना में विद्रोह फैलने का खतरा था।
- आजाद हिन्द फौज का अभियान भारतीयों के लिए स्वप्नलोक के किसी साहसिक अभियान से कम नहीं था। गांधीजी जैसा अहिंसा का पुजारी भी सुभाष का प्रशंसक बन गया था।
- 1946 में उनके हिन्द पत्र हरिजन सेवक में नेताजी को जन-नायक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। इससे स्पष्ट था कि सुभाष से वैचारवैभिन्य रखने वाले भी उनके अभियान की आलोचना करने का साहस नहीं कर रहे थे। यह बात और है कि बाद में सुभाष तथा आज़ाद हिन्द फौज की स्वतन्त्रता आन्दोलन में भूमिका को उतना महत्व नहीं दिया गया जितना कि उन्हें मिलना चाहिए था।
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