कहानी विधा का विकास अर्थ एवं तत्व । कहानी के भेद प्रकार । Kahani ka vikas evam Prakar

 कहानी विधा का विकास अर्थ एवं तत्व 

कहानी विधा का विकास अर्थ एवं तत्व । कहानी के भेद प्रकार । Kahani ka vikas evam Prakar



कहानी का विकास अर्थ एवं तत्व 

 

  • उपन्यास के समान कहानी भी अत्यंत लोकप्रिय विधा है। हिन्दी में कहानी का प्रारंभ अनूदित कहानियों से हुआ। मौलिक कहानी-रचना बाद में शुरू हुई । आधुनिक हिंदी कहानी पर पश्चिम का प्रभाव है। 
  • अमरीकी कहानीकार "एडगर एलन पो" ने कहा है, "कहानी एक ऐसा आख्यान है जो एक ही बैठक में पढ़ा जा सके और पाठक पर किसी एक प्रभाव को उत्पन्न कर सके ।" उसमें उन सभी बातों को छोड़ दिया जाता है जो इस प्रभाव को अग्रसर करने में सहायक नहीं होतीं । वह अपने आप में पूर्ण होती है ।

 

कहानी के तत्व

 

1) कथावस्तु 

2) चरित्र चित्रण 

3) परिवेश 

(4) संरचना-शिल्प

5) प्रतिपादय

 

कहानी विधा की कथावस्तु 

  • जैसा कि उपन्यास की चर्चा करते हुए बताया जा चुका है— कथावस्तु का अर्थ है कथा में वर्णित घटना। कहानी में कथावस्तु संक्षिप्त होती है। कथा के विस्तार के लिए इसमें अवसर नहीं रहता। कथावस्तु का आरंभ घटना से किया जा सकता है और साधारण बात से भी "पूस की रात कहानी में घटना एक रात की है। इसी प्रकार "ठाकुर का कुआँ" में भी एक रात की ही घटना है।

 

  • कहानी में किसी ऐसी अनावश्यक बात का वर्णन नहीं होना चाहिए जो मूल कथा से जुड़ी न हो । घटनाओं स्थितियों और भावों का मांकेतिक रूप में वर्णन करना चाहिए। कल्पना की जगह जीवन के यथार्थ से जुड़ी घटना आज की कहानी में आदर्श समझी जाती है ।

 

  • कथावस्तु का विकास विवरणवार्तालापअंतर्द्धद्धडायरी या पत्र शैली के द्वारा किया जा सकता है । राधिका रमण की कहानी "कानों में कंगना" का प्रारंभ वार्तालाप शैली में हैजबकि प्रसाद की "गुण्डा" कहानी का परिचयात्मक रूप में।

 

कहानी विधा में चरित्र चित्रण 

  • कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है। सामान्यतः कहानी में किसी एक प्रमुख पात्र के इर्द-गिर्द सारी घटना घूमती है। "पूस की रात" कहानी में मुख्य पात्र हल्कू है। हल्कू के चरित्र को ही इस क कहानी के केंद्र में रखा गया है ।

 

  • उपन्यास में जहाँ चरित्र के विकास के लिए पर्याप्त अवसर रहता हैवहाँ कहानी में सांकेतिक रूप से चरित्र विकास की आवश्यकता होती है। कहानी के मूल भाव को लेकर ही चरित्र चित्रण किया जाता है। सफल कहानीकार अपने पात्रों का पूरा चरित्र संक्षेप में ही निर्मित करते हैं। आप अगले पाठ में "उसने कहा था" कहानी में इस विशेषता को देखेंगे। कहानी में आज ऐसे चरित्रों का चित्रण किया जाता है जो जीवन की वास्तविकता से जुड़े होते हैं। कल्पित पात्रों के कारण कहानी में अस्वाभाविकता का दोष आ जाता है। कहानीकार वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करने वाले अथवा मानव के अंतर्द्धद्ध को चित्रित करने वाले पात्रों को ले सकते हैं। प्रेमचंद ने कृषक वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में हल्कू का चित्रण किया है ।

 

  • कहानीकार चरित्र चित्रण के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाता है। कभी वह पात्रों के कार्यों अथवा विचारों से उनके चरित्र को उभारता है तो कभी पात्रों के पारस्परिक वार्तालाप अथवा एक-दूसरे के बारे में व्यक्त विचारों के द्वारा भी चरित्र चित्रण करता है। कभी-कभी लेखक स्वयं भी पात्रों के गुण-दोषों को बताता है। इनके अलावा चरित्र चित्रण की कुछ और विधियाँ भी हो सकती हैं। यथा सांकेतिक चरित्र चित्रण ।

 

कहानी में परिवेश

  • कहानी किसी स्थान और किसी समय से संबंधित होती है। इन्हें परिवेश कहते हैं। कहानी में उचित स्थान तथा काल का वर्णन सजीवता लाता है। यदि कहानी की घटनाएँ गाँव में घटित हुई हैं तो उसके स्थान पर शहर का चित्रण उचित नहीं होगा। गाँव से संबंधित सारी बातें उसमें आनी चाहिए। घर-आंगन, खेत-खलिहान, पशु चौपाल, लोगों के रीति-रिवाज, रहन-सहन सभी परिवेश के अंतर्गत आते हैं। कहानी में लबे-चौड़े विवरण का स्थान नहीं रहता, इसलिए कहानीकार थोड़े में कहानी के अनुकूल परिवेश का चित्रण करता है। परिवेश के स्वाभाविक चित्रण के लिए यह जरूरी है कि कहानीकार जिस स्थान एवं काल की घटना को ले, उसके बारे में उसे सही जानकारी हो इसके अभाव में कहानी में अस्वाभाविकता आ जायेगी ।

 

कहानी में संरचना शिल्प

 

कहानी की शैली

  • कहानी लिखने का जो ढंग रचनाकार अपनाता है उसे शैली कहते हैं। प्रत्येक कहानीकार अपने ढंग से कहानी लिखता है, इसी कारण कहानी की शैली में विभिन्नता रहती है। विषयवस्तु एवं लेखक की अभिरुचि के अनुसार भी कहानी की शैली भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए आप प्रेमचंद की कहानियों में शैली की विभिन्नता देख सकते हैं। कथानक के अनुसार कहानीकार डायरी शैली, आत्मकथात्मक शैली, पूर्वदीप्ति आ का प्रयोग करता है। आप आगे की इकाई में उसने कहा था कहानी पढ़ेंगे। इसमें पूर्वदीप्ति शैली है। व्यक्तिगत रुचि के अनसार प्रेमचंद ने प्रायः बाहय घटनाओं पर आधारित वर्णनात्मक कहानियों की रचना की है, जबकि जैनेन्द्र एवं 'अज्ञेय' ने मनोविश्लेषण को कहानी का आधार बनाया है ।

 

कहानी में संवाद

  • कहानी के पात्र आपस में जो बातचीत करते हैं उन्हें संवाद कहते हैं। संवादों से कहानी आगे बढ़ती है। उसने कहा था में कहीं-कहीं वार्तालाप ही कहानी को आगे बढ़ाते हैं। सफल कहानीकार पात्रों के अनुकूल संवादों का आयोजन करता है। यदि एक अनपढ़ पात्र शिक्षित की तरह बोलने लगे तो इसमें अस्वाभाविकता आ जाएगी। काल एवं स्थान के अनुसार पात्रों के संवादों में भी परिवर्तन होता है। यदि कहानी ऐतिहासिक है और स्थान राजस्थान है तो कहानी के पात्र उसी स्थान के अनुकूल वार्तालाप करेंगे । यदि कहानी लखनऊ से संबंधित है तो पात्रों के वार्तालाप में उर्दू के शब्दों का प्रयोग स्वभावतः होगा ।

 

कहानी में भाषा :

  • भाषा के द्वारा कहानीकार कहानी में सजीवता, स्वाभाविकता एवं रोचकता ला सकता है । इस के लिए यह आवश्यक है कि कहानीकार का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो । कहानी में जहाँ लेखक अपना विचार रखता है वहाँ उसकी अपनी भाषा होगी। लेकिन जब कोई बात पात्रों के द्वारा कहलवाई जाए, तब पात्रों के अनुकूल भाषा का प्रयोग आवश्यक है। कहानी की भाषा सरल सुबोध एवं बातचीत के रूप में होनी चाहिए । कठिन भाषा का प्रयोग कहानी समझने में बाधा उत्पन्न करता है।

 

कहानी में प्रतिपाद्य 

  • प्रतिपाद्य कहानी के द्वारा लेखक जो संदेश देना चाहता है, उसे प्रतिपाद्य कहते हैं। सफल कहानी कथावस्तु, पात्र, परिवेश, शिल्प आदि तत्वों से निर्धारित नहीं होती, बल्कि उसकी सफलता गंभीर उद्देश्य पर निर्भर होती है। उदाहरण के लिए "शतरंज के खिलाड़ी" में प्रेमचंद का उद्देश्य यह दिखाना था कि तत्कालीन राज्य एवं समाज की अवस्था इतनी अवनत हो गयी थी कि बिना प्रतिरोध के अंग्रेजों ने "अवध" राज्य पर अधिकार कर लिया था ।

 

  • किसी कहानी को समझने के लिए यह जरूरी है कि आप के उसके प्रतिपाद्य को समझें। इसके लिए प्रथमतः कहानी को समझें, फिर उसमें निहित संदेश को पहचानें तथा उसके उपयोग पर विचार करें। 


उपन्यास एवं कहानी के तत्वों पर विचार करने पर हम दोनों में स्पष्ट अंतर पाते हैं:

 

उपन्यास की मुख्य विशेषताएँ 

 

  1. उपन्यास का आकार बड़ा होता है। 
  2. उपन्यास में जीवन का व्यापक चित्रण रहता है । 
  3. उपन्यास में पात्रों की संख्या अधिक होती है । 
  4. उपन्यास में घटनाओं का बाहुल्य रहता है 
  5. उपन्यास में विचार को विस्तार से रखा जाता है । 
  6. उपन्यास में स्थान और काल की सीमा विस्तृत हो सकती है । 

 

कहानी की मुख्य विशेषताएँ 

  1. बड़ी से बड़ी कहानी भी छोटे से छोटे उपन्यास से छोटी होती है । 
  2. कहानी में जीवन के किसी एक अंश का चित्रण रहता है
  3. कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है । 
  4. कहानी में घटनाओं की संख्या सीमित होती है ।
  5. सामान्यतः किसी एक घटना को लेकर कहानी लिखी जाती है । 
  6. कहानी में विचार को सांकेतिक रूप में रखा जाता है । 
  7. कहानी में प्रायः एक स्थान और एक काल का चित्रण रहता है

 

विषय के अनुरूप कहानियों के निम्नलिखित भेद किये जा सकते हैं :

 

1) घटना प्रधान 

2) वातावरण प्रधान 

3) चरित्र प्रधान 

4) ऐतिहासिक 

5) सामाजिक 

6) मनोवैज्ञानिक

 

1) घटना प्रधान कहानियाँ 

  • वे कहानियाँ हैं जिनमें घटना मुख्य है – - अर्थात् घटनाओं के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है। उदाहरण के लिए प्रेमचंद की "सारन्या" घटना कहानी है

 

2) वातावरण प्रधान 

  • जब किसी कहानी को पढ़ने के बाद हमें ऐसा लगे कि जैसे पूरी कहानी में वातावरण ही हावी है, तब उसे वातावरण प्रधान कहानी कहते हैं। उदाहरण के तौर पर आप 'शतरंज के खिलाड़ी को देख सकते हैं। यह वातावरण प्रधान कहानी है ।

 

(3) चरित्र प्रधान

  • ऐसी कहानी जिसमें चरित्र का प्रभाव महत्वपूर्ण हो अर्थात् कहानी को पढ़ने के बाद आप महसूस करें कि लेखक ने पात्र के चरित्र को उभारने के लिए ही कहानी लिखी है, उसे चरित्र प्रधान कहानी कहते हैं। गुलेरी जी की उसने कहा था' में लहनासिंह के चरित्र को उभारा गया है । इसे चरित्र प्रधान कहानी कह सकते हैं।

 

4) ऐतिहासिक कहानी

  • ऐसी कहानी जो इतिहास की घटनाओं से संबंधित हो, ऐतिहासिक कहानी कही जाती है। जैसे प्रेमचंद की "शतरंज के खिलाड़ी" तथा "राजा" ।

 

5) सामाजिक कहानी 

  • जिन कहानियों में परिवार एवं समाज की समस्याओं को प्रमुखता दी जाती है, उन्हें हम सामाजिक कहानियाँ कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर प्रेमचंद की 'अलग्योझा तथा 'ठाकुर का कुआँ कहानियों को देख सकते हैं। ये सामाजिक कहानियाँ हैं ।

 

6) मनोवैज्ञानिक कहानी 

  • जिन कहानियों में मानव मन को प्रमुखता दी गयी हो अर्थात् पात्रों के अंदर उठने वाले भाव-विचारों को व्यक्त किया गया हो, उन्हें मनोवैज्ञानिक कहानी के अंतर्गत रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए यशपाल की "ज्ञान दान", "अभिशप्त" आदि ।

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