लघुकथा का अर्थ एवं विशेषताएँ | Laghu Katha Ka Arth
लघुकथा का अर्थ एवं विशेषताएँ
लघुकथा किसे कहते हैं ?
- गल्प साहित्य के अनेक रूप हिंदी में प्रचलित हैं, जिनमें से एक है लघुकथा । ऊपर से देखने पर "लघुकथा" "शार्ट स्टोरी" का अनुवाद प्रतीत होता है, पर हिंदी लघुकथा से वही ध्वनि नहीं निकलती जो अंग्रेजी "शार्ट स्टोरी" से निकलती है । अंग्रेजी में कहानियों को उपन्यास की तुलना में आकार की दृष्टि से लघु होने के कारण "शार्ट स्टोरी" कहा गया, पर हिंदी की. "लघुकथा" कहानी से भी आकार में छोटी है ।
- लघुकथा भारतीय साहित्य और उसकी परंपरा से जुड़ी है । इसके विकास में जातक कथाओं, बोष कथाओं, दृष्टांतों आदि का योगदान स्वीकार किया गया है । कुछ लघुकथाकारों ने बौद्ध कथाओं का उपयोग आधुनिक लघुकथा लेखन के लिए किया भी है ।
लघुकथा की विशेषताओं का समझे
पर
"लघुकथा" हिंदी-साहित्य की आधुनिक विधा है। लघुकथा की विशेषताओं को
समझने के लिए उदाहरण-रूप में आप श्री अरविंद ओझा की 'अभिनय' शीर्षक
निम्नलिखित लघुकथा को पढ़िए :
अभिनय-
- शहर के खुले मैदान में नेताजी आए हैं।
- भीड़-भीड़ लोग सुन रहे हैं उनका भाषण
- कि वर्तमान नीतियाँ खराब हैं ।
- कि हमें कुर्सी से मोह नहीं ।
- कि हम यह बदलेंगे, वह बदलेंगे।
- कि हम यह मिटाएँगे, हम वह मिटाएँगे ।
- दो बहरे पेड़ पर चढ़े हैं
एक ने बताया- "यह पहले से अच्छा अभिनय करता है।" दूसरे ने हाँ में गरदन हिलाई। फिर अपार भीड़ की तरफ आँख फैलाकर समझाया-"तभी तो भीड़ ज्यादा है ।”
- इस लघुकथा को पढ़कर आप समझ सकते हैं कि लघुकथा आकार में लघु अर्थात् संक्षिप्त होती है । यह लघुता लघुकथा की एक प्रमुख विशेषता है। इस लघुकथा में न कोई भारी-भरकम घटना है, न विस्तृत विवरण (ब्यौरे) और न प्रत्यक्ष रूप से कोई उपदेश; फिर भी इसमें नेताओं पर करारा व्यंग्य है। इससे स्पष्ट है कि लघुकथा में घटनाविहीनता और विवरणविहीनता के गुण होते हैं।
- लघुकथाकार की दृष्टि अपने उद्देश्य पर टिकी होती है और वह तीव्र गति से अंत की ओर बढ़ता है। वह सीधे-सीधे उपदेश तो नहीं देता पर व्यंग्य का सहारा लेकर एक दूसरे ढंग से अपनी बात को कह सकता है । जैसे इस लघुकथा में प्रकारांत से लघुकथाकार ने यह बता दिया है कि नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है—वे केवल अभिनय (दिखावा) करते हैं और जो जितना अच्छा अभिनय करता है वह उतनी ही ज्यादा भीड़ जुटा लेता है, उतना ही लोकप्रिय हो जाता है ।
- लेखक ने पाठकों को ऐसे नेताओं से सावधान रहने की नेक सलाह भी दे दी है। जब लेखक किसी और बहाने से किसी और को उपदेश देता है तो इसे अन्योक्तिपरकता कहते हैं। यहाँ दो बहरे व्यक्तियों के माध्यम से लघुकथाकार ने यही किया है। बहरा व्यक्ति दूसरे की बात नहीं सुन सकता। बात न सुनने के प्रतीक रूप में लेखक ने दो बहरे व्यक्तियों को रखा है। उन्हें रखकर मानो उनके बहाने से लेखक ने पाठकों को यह उपदेश दे दिया है कि नेताओं की बात मत सुनो उनके कहे का विश्वास मत करो। इस प्रकार इस लघुकथा की विशेषताओं के जरिए हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि लघुता, घटनाविहीनता, विवरणविहीनता, प्रतीकात्मकता, व्यंग्य और अन्योक्तिपरकता लघुकथा की विशेषताएँ है ।
- विद्वानों के बीच "लघुकथा" को लेकर मतभेद है कि यह कहानी का ही एक रूप है या स्वतंत्र विधा है। एक बात आपके सामने स्पष्ट हो जानी चाहिए कि जिस प्रकार कहानी उपन्यास का संक्षिप्त रूप नहीं है, उसी प्रकार "लघुकथा" कहानी का संक्षिप्त रूप नहीं है। यह एक नयी विधा के रूप में उभर रही है।
- लघुकथाओं एवं लघुकथा से जुड़े समीक्षकों ने वास्तविक लघुकथा का आरंभ बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक से माना है, किंतु कुछ समीक्षकों ने प्रेमचंद, सुदर्शन, रामनारायण उपाध्याय, विष्णु प्रभाकर, श्यामसुन्दर व्यास आदि की पूर्व प्रकाशित लघुकथाओं में समकालीन लघुकथा के पूर्व रूप खोजे हैं । लघुकथा के विकास में वर्तमान युग की यांत्रिकता और व्यस्तता का जो योगदान है, उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। इस बढ़ती व्यस्तता के ही कारण आठवें दशक से लघुकथा का तीव्र गति से विकास हुआ है ।
- लघुकथा के विकास में कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रावी, सतीश दुबे, जगदीश कश्यप, विक्रम सोनी, रमेश बतरा, मधु दीप, शंकर पुणतांबेकर, अशोक भाटिया, कमल चोपड़ा, अशोक लव, मुकेश कुमार जैन "पारस", सोमेश पुरी आदि का विशेष योगदान है।
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