लाला लाजपत राय के राजनीतिक जीवन पर महत्वपूर्ण जानकारी
लाला लाजपत राय के राजनीतिक जीवन पर महत्वपूर्ण जानकारी
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा में हुआ।
लाला लाजपत राय काफी मेधावी छात्र थे एवं
इन्होंने लाहौर से लॉ की डिग्री हासिल की।
लाला लाजपत राय ने आर्य समाज के प्रचार-प्रसार
के साथ साथ हिंदी भाषा के भी प्रसार में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लाला लाजपत राय जल्द ही स्थापित हुए कांग्रेस
से जुड़ गए एवं कांग्रेस में उनका कद काफी मजबूत हो गया जब उन्होंने सर सैयद अहमद
खान द्वारा मुस्लिमों के कांग्रेस से दूर रहने की अपील पर उन्होंने सर सैयद के नाम
से खुले पत्र लिखे। उनके यह पत्र “कोहे-नूर” में “आपके एक पुराने अनुयायी के पुत्र”के
नाम से प्रकाशित किये गये थे। लाला लाजपत राय के इन पत्रों का संकलन कांग्रेस के
अगले अधिवेशन के पूर्व भी प्रकाशित किया गया।
1988
में में कांग्रेस के मंच से दिए गए भाषण में उनकी दूरदर्शिता का पता चलता है जहां
इन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि ‘शिक्षा
के साथ-साथ उद्योगों के लिए भी विचार विमर्श किया जाए’ जिसके उपरान्त औद्योगिक प्रदर्शनी का
आयोजन किया जाना लगा।
लाला लाजपत राय की कर्मठता का इससे अंदाजा
लगाया जा सकता है कि 1893 में वे कई दायित्व का एक साथ निर्वहन
कर रहे थे, जिसमें शामिल था- डी.ए.वी. कॉलेज कमेटी
का जनरल सेकेटरी, लाहौर आर्य समाज का प्रधान, ‘दयानन्द एंग्लो-वैदिक कॉलेज समाचार’ का सम्पादक, ‘भारत सुधार’ और ‘आर्य समाज मैसेंजर’ के
लेख लिखना एवं आजीविका चलाने के लिए वकालत करना।
लाहौर अधिवेशन 1893 में लाला लाजपत राय का परिचय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान
नायक गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक से हुई जो आगे चलकर बहुत घनिष्ट
मित्रता में परिवर्तित हो गई।
भारतीय लोगों में राष्ट्रवाद के उद्भव हेतु
इन्होंने कई महापुरुषों की जीवनी को लिखा जिनमे मेजिनी, गेरिबाल्डी, दयानन्द सरस्वती,छत्रपति शिवाजी और भगवान श्री कृष्ण पर
किए गए कार्य उल्लेखनीय है। लाला लाजपत के कुछ अन्य चर्चित पुस्तकें निम्नलिखित
है- अनहैप्पी इण्डिया, आर्य समाज, यंग इण्डिया, एन इंटरप्रिटेशन एंड ए हिस्टरी ऑफ द
नेशनलिस्ट मुवमेंट फॉर्म विद इन, पॉलिटिकल
फ्यूचर ऑफ इण्डिया इत्यादि हैं।
19वीं
सदी के अंत में लाला लाजपत राय ने अकाल और विपदा से ग्रसित भारतीय लोगों के लिए
कल्याण के लिए काफी कार्य किया। इसके अलावा इन्होंने महिलाओं, विधवाओं, अल्पवयस्क बच्चों एवं अनाथ बच्चों के लिए काफी कार्य किया।
लाला लाजपत राय ने भारतीय जनमानस की राजनैतिक
जन जागृति हेतु ‘पंजाबी’ पत्र का संपादन प्रारंभ किया।
आगें चलकर विचारधारा और कार्यप्रणाली के
अंतर्विरोध के आधार पर कांग्रेस का विभाजन दो दलों नरम दल और गरम दल के रूप में हो
गया। नरम दल का नेतृत्व जहां दादा भाई नौरोजी, गोपाल
कृष्ण गोखले व फिरोजशाह मेहता द्वारा किया गया तो वही गरम दल का नेतृत्व अरविंद
घोष, विपिन चन्द्र पाल, बाल गंगाधर तिलक व लाला लाजपत राय
द्वारा किया गया।
बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप भारतीय राष्ट्रीय
आंदोलन में लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बाल
गंगाधर तिलक एवं विपिन चन्द्र पाल) की तिकड़ी वाले नेतृत्व का उद्भव हुआ जिसमें
भारतीय राष्ट्रवाद की धारा को पूरे देश में प्रवाहित कर दिया। इस दल के द्वारा “केसरी”, और “पंजाबी” पत्र के माध्यम से स्वदेशी और बहिष्कार के आन्दोलन को एक मजबूत आधार
प्रदान किया गया।
स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के
कारण एवं व्यापक विद्रोह होने की आशंका से लाला लाजपत राय को ब्रिटिश प्रशासन के
द्वारा 1907 में अजीत सिंह के साथ माण्डले जेल के
लिये निर्वासित कर दिया गया।हालांकि अंग्रेजों उन्हें ज्यादा दिन तक निर्वासित
नहीं कर सके।
निर्वासन से लौटने के बाद तिलक के द्वारा उनका
नाम गरम दल की ओर से कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया लेकिन
लाला लाजपत राय ने कांग्रेस में संभावित फूट की आशंका से कांग्रेस अध्यक्ष की
उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लिया। हालांकि तिलक और लाजपत राय के अथक प्रयास के
बावजूद कांग्रेस का विभाजन नहीं रुक सका।
बाल गंगाधर तिलक और अरविंद घोष की गिरफ्तारी के
उपरांत स्वदेशी आंदोलन के निष्क्रिय पर जाने पर इन्होंने भारतीय आंदोलन के समर्थन
हेतु यूरोप का रुख किया। यूरोप से लौटने के उपरांत उन्होंने पुनः आर्य समाज पर
अपना ध्यान केंद्रित किया।
1913
में यह कांग्रेस के शिष्टमंडल मंडल के साथ यूरोप की यात्रा पर गया है लेकिन प्रथम
विश्व युद्ध प्रारंभ हो जाने के उपरांत उन्हें 5 साल तक विदेश में निर्वासित जीवन जीना पड़ा।
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत खिलाफत आंदोलन और
जलियांवाला बाग हत्याकांड के उपरांत असहयोग आंदोलन में इन्होंने पंजाब का नेतृत्व
किया। लाला लाजपत राय के नेतृत्व में पंजाब में आंदोलन काफी बड़ा रूप ले लिया
जिसके कारण इन्हें ‘शेर-ए-पंजाब’ की उपाधि से संबोधित किया जाने लगा।
असहयोग आंदोलन के दौरान सार्वजनिक सभा करने के
आरोप में इन्हीं 2 साल की सजा दी गई लेकिन खराब
स्वास्थ्य के आधार पर इन्हें रिहा कर दिया गया। लगातार अस्वस्थता के कारण लाला
लाजपत राय जलवायु परिवर्तन के सुझाव पर सिलोन गए एवं वहां अपना इलाज करवाने लगे।
लाला लाजपत राय के द्वारा 1924 में अछूतों के उद्धार के लिये
अछूतोद्धार आन्दोलन चलाया,
जिसका उद्देश्य समाज में व्याप्त
ऊँच-नीच के भेद को कम करना था।
ब्रिटिश सरकार के द्वारा औपनिवेशिक राज्यों में
सुधार के लिए गठित साइमन कमीशन का भारतीय पक्ष के द्वारा विरोध किया गया क्योंकि
इस समिति में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया था। साइमन कमीशन भारत
में जिस स्थान पर भी गई वहां इसका विरोध किया गया एवं पंजाब में इस विद्रोह का
नेतृत्व लाला लाजपत राय के द्वारा किया गया।
लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का
विरोध कर रहे शांतिपूर्ण रैली पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया एवं ब्रिटिश
पुलिस अधिकारी साण्डर्स ने लाला लाजपत राय को निशाना बनाते हुये उन पर लाठियों से
बार-बार प्रहार किया।
उपरोक्त घटना में लाला लाजपत राय को सिर में
गहरी चोट लगी एवं लगातार उपचार के बावजूद उनके ख़राब होता चला गया। आखिरकार जीवन
पर्यंत भारत के लिए लड़ने वाले स्वराज्य के इस महान उपासक ने 17 नवम्बर 1928 को सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह
दिया।
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