भाषा एवं व्याकरण क्या है। भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका अंग उद्देश्य शिक्षण विधियाँ प्रक्रिया महत्त्व । Language and Grammar in Hindi

 भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका अंग उद्देश्य शिक्षण विधियाँ प्रक्रिया महत्त्व 

भाषा एवं व्याकरण क्या है । भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका अंग उद्देश्य शिक्षण विधियाँ प्रक्रिया महत्त्व । Language and Grammar in Hindi


भाषा एवं व्याकरण Language and Grammar

 

  • भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए चार कौशलों की आवश्यकता होती है पढना, लिखना, बोलना एवं सुनना। इन चारों कौशलों से भाषा में शुद्धता आती है। शुद्ध भाषा सिखाने के लिए व्याकरण का ज्ञान एवं प्रयोग मुख्य आधार है।

 

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, विचारों के आदान-प्रदान के लिए कुछ सार्थक ध्वनि प्रतीकों को अपनाया। ये ध्वनि प्रतीक ही भाषा कहलाए । कालान्तर में भाषाओं के सर्वमान्य रूपों का विश्लेषण कर उनमें कुछ नियम निकाले गए। ये नियम ही भिन्न-भिन्न भाषाओं के अपने व्याकरण के अंग हैं। यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पहले भाषा का विकास हुआ, फिर व्याकरण बना।

 

  • व्याकरण ऐसा शास्त्र है जो हमें यह बताता है कि किस वाक्य में कौन-सा शब्द कहाँ रहना चाहिए? व्याकरण तो भाषा के सर्वमान्य रूप का संरक्षण करता है, लेकिन भाषा तो फिर भी व्याकरण के नियमों से इधर-उधर हो ही जाती है।

 

  • महर्षि पतंजलि ने अपने महाभाष्य में इसे 'शब्दानुशासन' कह कर परिभाषित किया है।

 

  • स्वीट महोदय के अनुसार "व्याकरण भाषा का व्यावहारिक विश्लेषण अथवा उसका शरीर विज्ञान है।"

 

  • डॉ. जैगर के अनुसार "प्रचलित भाषा सम्बन्धी नियमों की व्याख्या ही व्याकरण है।

 

  • जैगर महोदय के विचारानुसार "प्रचलित भाषा सम्बन्धी नियमों की व्याख्या ही व्याकरण है।"

 

  • भाषा व्यक्ति के जीवन की अमूल्य निधि है। इसका प्रयोग वह अपनी सुविधा के अनुसार करता है। लगातार प्रयोग होते रहने के कारण वह स्थिर नहीं रहती बल्कि परिवर्तनशील बनी रहती है। व्यक्ति विशेष का प्रभाव भी उस पर पड़ता दिखाई देता है। भाषा सदा ही विकासोन्मुख और अर्जनशील रही है। विकास का नाम ही परिवर्तन है और यह कभी वृद्धि के रूप में तो कभी ह्रास के रूप में दिखाई देता है। भाषा में कुछ प्रयोग धीरे-धीरे लुप्त होते ते हैं, तो कुछ जुड़ते भी जाते हैं। भाषा के इस बनते बिगड़ते स्वरूप को शुद्ध बनाए रखने के लिए या एकरूपता निर्धारित करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं, इन्हीं नियमों को व्याकरण की संज्ञा दी जाती है अर्थात् व्याकरण वह शास्त्र है, जो हमें किसी भाषा के शुद्ध रूप को लिखने तथा बोलने के नियमों का ज्ञान करवाता है।

 

  • कामता प्रसाद गुरु ने भी व्याकरण के विषय में लिखा है जिस शास्त्र में शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग में नियमों का निरूपण होता है, उसे व्याकरण कहते हैं।

 

भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका Role of Grammar in Language Learning

 

  • भाषा परिवर्तनशील है, विकासशील है। व्याकरण उसके इस विकास पर नियन्त्रण का कार्य करता है। व्याकरण भाषा को अव्यवस्थित होने से बचाता है। अतः भाषा के स्वरूप को शुद्ध रखने, उसको विकृतियों से बचाने के लिए व्याकरण की शिक्षा आवश्यक है। 

  • व्याकरण भाषा का सहचर है। भाषा रूप भवन की रचना शब्द रूपी ईंट व्याकरण रूपी सीमेन्ट के समुचित योग से सम्भव है।
  • भाषा अनुकरण से सीखी जाती है पर भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए हमें उसके से सर्वमान्य रूप को सीखना होता है। भाषा के सर्वमान्य रूप को जानने के लिए व्याकरण को जानना होता है।

 

  • व्याकरण के बिना कोई भी भाषा शिक्षण अधूरा है। व्याकरण के सम्पूर्ण ज्ञान के अभाव का शुद्ध बोलना और लिखना सम्भव नहीं है। जिस प्रकार किसी शासन को सुचारू रूप से चलाने हेतु पर्याप्त नियमों का होना आवश्यक है, बिना नियमों के सत्ता में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है उसी प्रकार भाषा में व्याकरण के बिना अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अतः भाषा को विकृति से बचाने, उसके शुद्ध रूप को सुरक्षित रखने के लिए तथा भाषा में स्थायित्व लाने के लिए भाषा में व्याकरण की आवश्यकता है।

 

व्याकरण के अंग

 

  • भाषा ध्वनियों पर आधारित होती हैं। ध्वनियों से शब्द और शब्दों से वाक्य बनते हैं। इस आधार पर व्याकरण के तीन अंग होते हैं वर्ण विचार, शब्द विचार एवं वाक्य विचार।
  • वर्ण विचार के अन्तर्गत वर्णों से सम्बन्धित उनके आकार, उच्चारण, वर्गीकरण तथा उनके मेल से शब्द बनाने के नियम आदि का उल्लेख किया जाता है। 
  • शब्द विचार के अन्तर्गत शब्द से सम्बन्धित उसके भेद, उत्पत्ति, व्युत्पत्ति तथा रचना आदि का विवरण होता है। 
  • वाक्य विचार के अन्तर्गत वाक्य से सम्बन्धित उसके भेद, अन्वय, विश्लेषण, संश्लेषण, रचना, अवयव तथा शब्दों से वाक्य बनाने के नियमों की जानकारी दी जाती है।
 

व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य Objectives of Grammar Teaching

 

  • छात्रों को शुद्ध बोलने, लिखने तथा पढ़ने की प्रेरणा देना। 
  • छात्रों को शुद्ध भाषा के प्रयोग सीखना ।
  • व्याकरण के द्वारा छात्रों में रचना तथा सर्जनात्मकता। 
  • छात्रों को ध्वनियों, ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर शब्द-योजना, शब्द शक्तियों एवं शुद्ध वर्तनी का ज्ञान कराना। 
  • छात्रों को वाक्य रचना के नियम, विराम चिह्नों का शुद्ध प्रयोग आदि का ज्ञान कराना। 
  • छात्रों को शब्द सूक्ति, लोकोक्ति, मुहावरे आदि का प्रसंगानुकूल अर्थ निकालना और स्वराघात एवं बलाघात के अनुसार अर्थ बोध कराने के योग्य बनाना। 
  • छात्रों में भाषा के गुण-दोष परखने की रुचि उत्पन्न कराना। 
  • भाषा रचना का ज्ञान प्राप्त करना। 
  • नवीन भाषा को सीखने में मदद करना। 
  • भाषा की प्रकृति एवं गठन का व्यावहारिक ज्ञान कराना। 
  • भाषिक तत्वों की संरचनाओं का ज्ञान प्रदान करना
  • विद्यार्थियों को विविध ध्वनियों की जानकारी देना। इन ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर का ज्ञान कराना। 
  • चारों कौशल, पढ़ना, लिखना, बोलना और सुनने का विकास करना।
  • भाषा की अशुद्धता की क्षमता को पहचानने की शक्ति का विकास करना। 
  • भाषा सम्बन्धी नियमों से अवगत कराकर उनका प्रयोग करना चाहिए। 
  •  शब्द योजना तथा शुद्ध वर्तनी का ज्ञान करना । 
  • शुद्ध उच्चारण की शिक्षा प्रदान करना । 
  • शब्दों मुहावरों का प्रसंगानुकूल प्रयोग करना सिखाना 
  • शुद्ध भाषा सीखने में रुचि उत्पन्न करना। 
  • मौखिक अभिव्यक्ति हेतु सर्वमान्य भाषा सिखाना। 


व्याकरण की शिक्षण विधियाँ Teaching Methods of Grammar


व्याकरण शिक्षण की निगमन विधि Deductive Method

 

  • प्राचीन काल में जब छात्र आश्रमों में रह कर शिक्षा प्राप्त करते थे, जब उन्हें कुछ नियम, उपनियम बता दिए जाते थे, छात्र उन्हें रट लेते थे, इस विधि को निगमन विधि कहते हैं। इस प्रणाली के दो रूप हैं सूत्र विधि एवं पुस्तक विधि । 

 

  • सूत्र विधि में अध्यापक छात्रों को कुछ सूत्र बता देते हैं और शिक्षार्थी उन्हें समझे बिना ही कण्ठस्थ कर लेते हैं। 

  • पुस्तक विधि यह सूत्र विधि का ही परिवद्धित रूप है। इस विधि में नियमों का ज्ञान कराने हेतु छात्रों को व्याकरण की पुस्तक दे दी जाती है। छात्र उनमें से नियम रट लेते हैं।
  • अधिकांश विद्वान निगमन विधि को मनोवैज्ञानिक व अरुचिकर मानते हैं, क्योंकि इस विधि के नियम केवल रटने होते हैं। इस प्रणाली में चिन्तन, निरीक्षण और नियमीकरण का अवसर नहीं मिलता। अतः यह विधि त्याज्य है।

 

व्याकरण शिक्षण की  आगमन विधि Inductive Method

 

इस विधि में छात्र उदाहरणों की सहायता से सामान्य सिद्धान्त निकालते हैं। आगमन विधि में चार पदों का अनुसरण करके छात्र व्याकरण के नियम व उपनियम खुद निकालते हैं।

 

आगमन विधि के चारं पद Four Steps of Inductive Method

 

1. उदाहरण सर्वप्रथम बच्चों के सामने एक ही प्रकार के कई उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं। 

2. निरीक्षण छात्र इन उदाहरणों को देखते है, इनका विश्लेषण करते हैं और इनमें जो समानता होती है उसका पता लगाते हैं। 

3. सामान्यीकरण इस समानता को वे नियम का रूप देते हैं। 

4. परीक्षण निकाले गए नियमों की सत्यता हेतु उनके परीक्षण करते हैं।

 

  • यह विधि सरस, रुचिकर व ग्राह्य है, क्योंकि इस प्रणाली में छात्रों को स्वयं सीखने का अवसर मिलता है, जिससे उनका मानसिक विकास होता है, इस प्रकार सीखा हुआ ज्ञान स्थायी होता है। अतः इस प्रणाली में कुछ शिक्षण सूत्रों 'ज्ञात और अज्ञात', 'मूर्त से अमूर्त' 'सरल से कठिन' आदि का पालन किया जाता है।

 

व्याकरण शिक्षण की  भाषा संसर्ग विधि Language Incorporation Method

 

यह विधि उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। इसमें पर अधिकार रखने वाले कतिपय लेखकों की कृतियाँ पढ़ाई जाती हैं, जिससे छात्र भाषा के सही रूप का ज्ञान प्राप्त करते हैं। लेकिन यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है। इसमें हमे अग्रलिखित चार (बातों) तथ्यों को ध्यान में रखना पड़ता। 


1. इस विधि से केवल व्यावहारिक व्याकरण शिक्षा दी जा सकती है। नियमित व्याकरण पढ़ाने के लिए हमें आगमन विधि का ही सहारा लेना पड़ता है। 

2. इस विधि से भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान देने में अधिक समय लगेगा। 

3. शुद्ध एवं अशुद्ध विवेचन करने का कोई आधार न होने के कारण शुद्धता में कमी स्वाभाविक होगी। 

4. बिना विवेचन के आत्मविश्वास नहीं होगा और आत्मविश्वास के अभाव में भाषा पर अधिकार करने की कल्पना सार्थक नहीं। अतः व्याकरण शिक्षण की यह विधि अपने आप में पूर्ण न होने के कारण इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।

 

व्याकरण शिक्षण की प्रयोग विधि Experiment Method

 

  • इसमें उदाहरण प्रस्तुत करके समान लक्षण वाले अंशों के कार्य एवं गुण निकलवाए जाते हैं तश्चात् उसका अभ्यास कराया जाता है जिसमें निम्न सौपानों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण, तुलना एवं विश्लेषण, नियमीकरण एवं निष्कर्ष, प्रयोग और अभ्यास।

 

व्याकरण शिक्षण की सह सम्बन्ध विधि Coordination Method 

  • इस विधि का प्रयोग शब्द शिक्षण, वर्तनी, शिक्षण, उच्चारण शिक्षण आदि के समय किया जाता है यह व्याकरण शिक्षण की कोई पृथक विधि न होकर गद्य रचना के अभ्यास के दौरान आए व्याकरण के नियमों की जानकारी प्रदान करती है।

  

प्रत्यक्ष भाषा शिक्षण विधि Direct Language Teaching Method 

  • यह विधि बिना व्याकरण नियमों का ज्ञान कराए भाषा के शुद्ध रूप का अनुकरण करने के अवसर प्रदान करता है। ऐसे लेखक जिनका भाषा पर पूर्णाधिकार है उनसे बालको = को वार्तालाप के अवसर प्रदान किए जाते हैं, प्राथमिक स्तर के लिए यह विधि उपयुक्त है।

 

समवाय विधि Multitude Method

 

  • इस विधि के प्रतिपादकों का मत है कि व्याकरण की शिक्षा स्वतन्त्र रूप से न देकर साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वानों की रचनाएँ पढ़ाई जाएँ। इसके अन्तर्गत मौखिक एव लिखित कार्य कराते समय, गद्य की पुस्तक पढ़ाते समय, रचना कार्य कराते समय प्रासंगिक रूप से व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराया जाता मनोवैज्ञानिक है, लॉर्ड मैकाले के अनुसार "बालक उस भाषा को शीघ्र सीखता है, जिसका व्याकरण वह नहीं जानता।" यह विधि उच्च कक्षाओं के अनुरूप है। यह विधि

 

व्याकरण शिक्षण की  खेल विधि Play Method 

  • इस प्रणाली से खेल-खेल में व्याकरण सिखाने से व्याकरण में बाधक नहीं बनेगी। खेल विधि से छात्र (व्यक्तिगत तथा सामूहिक खेलों में) सिद्धान्तों को हृदयंगम कर लेंगे। खेल-खेल में, शब्द-भेद, लिंग भेद, वचन आदि का ज्ञान करा सकते हैं।

 

व्यावहारिक व्याकरण शिक्षण विधि Behavioural Grammar Teaching Method 

  • इसमें भाषा शिक्षक द्वारा रोचक व आकर्षक विधि द्वारा ज्ञान कराते हुए ध्वनि, वर्तनी, वचन, शब्द, लिंग, क्रिया, काल आदि विकारों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसके सोपान हैं उदाहरण, प्रश्नोत्तर, नियमीकरण।

 

व्याकरण शिक्षण प्रक्रिया Grammar Teaching Process

 

  • व्याकरण शिक्षण प्रक्रिया हेतु निम्नलिखित सोपानों को प्रयुक्त करना अनिवार्य है
  • पूर्वज्ञान विद्यार्थी को सर्वनाम पढ़ाने हेतु संज्ञा शब्द का पूर्व ज्ञान होना चाहिए।
  • प्रस्तावना पूर्व ज्ञान के आधार पर प्रश्नों का विकास कराया जाता है। 
  • उद्देश्य कथन समस्यात्मक प्रश्न को मुख्य प्रकरण से सम्बन्धित करते हुए, उद्देश्य कथन बोले जाते हैं जो संक्षिप्त व सारगर्भित होते हैं।

 

व्याकरण शिक्षण को रुचिकर बनाने के उपाय Interesting Remedies for Grammar Teaching

 

  • व्याकरण के अध्ययन और अध्यापन की दशा आजकल बड़ी शोचनीय है, इस ओर अध्यापकों को ठोस कदम उठाने चाहिएँ । 
  • बोलचाल और लिखित भाषा में जिन नियमों का प्रयोग होता है, उन्हें व्यावहारिक व्याकरण की संज्ञा दी जाती है। इन्हीं नियमों का सूक्ष्म विवेचन नियमित व्याकरण कहलाता है। 
  • व्याकरण शिक्षण को सरस एवं रुचिकर बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए ज सकते हैं. 
  • व्याकरण की पाठ्यचर्या छात्रों के स्तरानुकूल बनाई जाए। 
  • प्रारम्भिक कक्षाओं में बच्चों को व्याकरण की व्यावहारिक शिक्षा दी जाए।  
  • व्यावहारिक व्याकरण की शिक्षा भाषा-संसर्ग विधि से दी जाए।
  • बच्चों के भाषा सम्बन्धी ज्ञान को ध्यान में रखते हुए उनके सामने उत्तरोत्तर कठिन रचनाएँ प्रस्तुत की जाएँ।
  • व्याकरण शिक्षण को दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग से रोचक बनाया जाए।
  •  छात्रों को नियम व परिभाषाएँ रटने से हतोत्साहित किया जाए। 
बच्चों को सिखाए गए नियमों का अभ्यास कराने के लिए रोचक एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के अभ्यास कराए जाए।

 

  • रिक्त स्थान की पूर्ति 
  • वाक्य निर्माण 
  • वचन परिवर्तन 
  • पर्यायवाची शब्द 
  • लिंग परिवर्तन 
  •  विलोम शब्द

 

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अध्यापक व्याकरण शिक्षण को सरल एवं सरस बना सकता है।

 

सम्प्रेषण कौशल के विकास में व्याकरण का महत्त्व Importance of Grammar in Development of Communication Skill

 

  • व्याकरण बालकों के अशुद्ध उच्चारण को शुद्ध करने में सहायक है। 
  • व्याकरण शुद्ध एवं सही वाचन का अभ्यास कराने में सहायक है। 
  • यह बालकों की अभिव्यक्ति में स्पष्टता लाने में सहायक है।
  • यह बालकों में सृजनात्मक कौशल का विकास करने में सहायक है। 
  • यह बालकों में ऐसी क्षमता पैदा करने में सहायक है, जिससे कि वे अपने भावों को शुद्धतापूर्वक व्यक्त कर सकें। 
  • यह बालकों में ऐसी क्षमता का विकास करने में सहायक है, जिससे कि वे अपने भावों को शुद्धतापूर्वक व्यक्त कर सकें। 
  • यह बालकों में ऐसी क्षमता का विकास करने में सहायक है, जिससे कि वे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर प्रवाहपूर्ण तरीके से दे सकें। 
  • ह बालकों को साधारण वार्तालाप में शुद्ध भाषा का प्रयोग सिखाने में सहायक है। 
  • यह बच्चों में भाषण सम्बन्धी अभिव्यक्ति का विकास करने में सहायक है।

 

लेखन कौशल के विकास में व्याकरण का महत्त्व Importance of Grammar in Development of Writing Skill 


  • यह बच्चों को पढ़ी या सुनी हुई बातों को शुद्ध वर्तनी तथा विराम चिह्नों का सही प्रयोग करते हुए लेखन कौशल का विकास करने में सहायक है। 
  • यह बच्चों के लेखन में संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विश्लेषण, प्रत्यय, उपसर्ग, तत्सम शब्द, तद्भव शब्द आदि के प्रयोग से उनके लेखन कौशल में विकास करने में सहायक है। 
  • यह बच्चों में विभिन्न सन्दर्भ शब्दों की समझ पैदा करने में सहायक है। 
  • यह बच्चों की लेखन शैली में मुहावरों का प्रयोग करने का शिक्षण देकर उनके लेखन कौशल में विकास करने में सहायक है। 
  • यह बच्चों को लेखन क्रिया में गद्य-पद्य में अन्तर समझाकर उनके लेखन कौशल का विकास करने में सहायक है।

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