बाल गंगाधर तिलक के स्वराज्य का शाब्दिक अर्थ । लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक । Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Swarajya
स्वराज और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक
लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक: स्वराज
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को भारतीय राष्ट्रवाद का भागीरथ ऋषि कहा जाता है। वे एक महान पत्रकार, शिक्षक जननायक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन को एक नया मोड़ देकर इंडियन नेशनल कांग्रेस को देश के स्वाधीनता संघर्ष के लिए आमूल परिवर्तनवादी कार्यक्रम (Radical Programmed ) अपनाने के लिए विवश कर दिया। इस तरह उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अमूल्य योगदान दिया। वह एक अच्छे समाज सुधारक भी थे।
बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय
तिलक के प्रारम्भिक जीवन के बारे में बताए?
- बाल गंगाधर तिलक का जन्म 28 जुलाई 1856 को भारत के पश्चिमी तट पर कोंकण के रत्नागिरी जिले के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। यह परिवार पवित्रता, विद्धता और प्राचीन परम्पराओं और कर्मकांडो में लगन के लिए जाना जाता था। उनके पिता का नाम गंगाधर पंत था वे व्यवसाय से अध्यापक और संस्कृत के विद्वान थे। इस तरह बाल का पालन-पोषण रूढ़िवाद और परंपराओं के वातावारण में हुआ। इससे उनमें संस्कृति के प्रति लगाव और प्राचीन भारतीय सोच और संस्कृति के सम्मान का भाव बना। जब वह दस वर्ष के थे, उनके पिता का तबादला पुणे के लिये हो गया। इससे उन्हें उच्च शिक्षा का अवसर मिला। 1876 में ग्रेजुएशन करने के बजाय उन्होंने देश सेवा करने का निश्चय किया।
- इस विश्वास के साथ कि देश सेवा करने का सबसे अच्छा माध्यम लोगों (या जनता) को शिक्षित करना था, तिलक और उनके मित्र गोपाल गणेश अगरकर ने शिक्षा के लिये अपने जीवन को समर्पित करने का निश्चय किया।
- उन्होंने 1876 में पूर्ण में न्यू इंग्लिश स्कूल शुरू किया और स्कूल अध्यापकों के रूप में अपने कैरियर (या कार्य जीवन) की शुरूआत की। लेकिन तिलक को यह लगने लगा कि छोटे बच्चों को शिक्षित करना काफी नहीं हैं और बड़ी उम्र के लोगों को भी सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ से परिचित कराया जाना चाहिये, इसलिए 1881 में उन्होंने दो साप्ताहिक शुरू किये- अंग्रेजी में मराठा और मराठी में 'केसरी' 1885 में उन्होंने एक कॉलेज शुरूकरने के उद्देश्य से दक्कन एजूकेशन सोसाइटी की स्थापना की। बाद में इस कॉलेज का नाम बम्बई के तत्कालीन राज्यपाल के नाम पर 'फर्ग्युसन कॉलेज' रखा गया।
बाल गंगाधर तिलक की रचनाए:-
- तिलक को भारत का एक अग्रणी संस्कृत ज्ञाता माना जाता था। उन्होंने तत्व (मेटाफिजिक्स) खगोल शास्त्र और दूसरे संबंधित क्षेत्रों के साहित्य का अध्ययन किया था। उनकी महत्वपूर्ण कृति, "ओरायनः स्टीडज इन दी एंटीबिटीज ऑफ वेदाज" ( वेदो की प्राचीनता का अध्ययन ) है। इस किताब में उन्होंने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि ऋग्वेद का लेखन 4500 ई०पू० में हुआ था। इस किताब से उन्हें प्राच्य (पूर्वी) विषयों के विद्वान के रूप में मान्यता मिली। उनकी दूसरी किताब "दि आर्कटिक होम ऑफ वेदाज" थी। इस किताब में उन्होंने खगोल शास्त्रीय और भौगोलिक आकड़ों के आधार पर यह मत दिया कि आर्य मूल रूप से आकिठिक क्षेत्र के निवासी थे। लेकिन उनकी महत्वपूर्ण कृति "गीता रहस्य थी। इसमें गीता के उपदेशों की दार्शनिक मीमासा है। गीता की विवेचना करते हुए, तिलक ने इसके मूल सदेश के रूप में त्याग की जगह कर्मयोग पर जोर दिया।
बाल गंगाधर तिलक समाज सुधारक के रूप में
एक समाज सुधारक के रूप में तिलक के विचारों का वर्णन करे?
- तिलक ने भारत में समाज सुधार का कार्यक्रम लागू करने के लिए ब्रिटिश सरकार का मुहं ताकना उचित नहीं समझा तिलक ने स्वयं समाज सुधार आंदोलन के नेतृत्व का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होंने भारतीयों को विदेश यात्रा करने की प्रेरणा दी ताकि उनके ज्ञान और विचार शक्ति का विस्तार हो विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया ताकि स्त्रियों के प्रति अन्याय को रोका जा सके, स्त्री शिक्षा की पैरवी की अस्पृश्यता जैसी अमानवीय प्रथा का विरोध किया और जात-पात पर आधारित भेदभाव की निंदा की। उन्हें निर्धन और दलित लोगों के प्रति असीम सहानुभूति थी। लोकमान्य के अनुसार, सच्चा समाज-सुधार, समाज के भीतर जन्म लेता है, अतः लम्बे-चौड़े कानून बनाकर उन्हें बाहर से समाज पर थोपने से कोई लाभ नहीं होगा, स्वयं समाज के भीतर सुधार की प्रेरणा जगना जरूरी है। प्रगतिशील शिक्षा और ज्ञान के प्रसार से स्वस्थ सामाजिक परिवर्तन का वातारण तैयार किया जा सकता है।
बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु:-
- 2 अक्तूबर 1920 को उनका निधन हो गया। तिलक का यह विश्वास था कि दुनिया ईश्वर का क्षेत्र है और वास्तविक है। व्यक्ति को दुनिया में ही रहना और प्रयास करना है यही उसे अपने कर्म करने है। इस तरह से व्यक्ति आध्यात्मिक आजादी पायेगा और अपने साथी प्राणियों के कल्याण को बढ़ावा देगा।
- वेदात दर्शन में विश्वास के बावजूद तिलक सामान्य अर्थ में धर्म के महत्व को मानते थे प्रतीकों के उपयोग और लोकप्रिय कर्मकांडो को वह इसलिए स्वीकार करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इनसे सामाजिक एकजुटता और एकता की भावना को बनाने में मदद मिलती है।
- मरणोपरांत श्रद्धांजलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रांति का जनक बतलाया स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।" का नारे देने वाले स्वतंत्रता के महानायक गंगाधर तिलक का 2 अक्तूबर 1920 ई० को मुम्बई में देहांत हो गया ।
- भारत की गुलामी के दौरान अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले लोकमान्य तिलक ने देश को स्वतंत्र कराने में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दिया। वे जनसेवा में त्रिकालदर्शी, सर्वव्यापी परमात्मा की झलक देखते थे। स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है मैं इसे लेकर रहूगां।" के उद्घोषक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्थान स्वराज के पंथगामियों में अग्रणी हैं। उनका महामंत्र देश में नहीं अपितु विदेशों में भी तीव्रता के साथ गूंजा और एक अमर संदेश बन गया।
- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान धीरे-2 यह स्पष्ट होता जा रहा था कि कांग्रेस के नरम दल ने ब्रिटिश सरकार के पास प्रार्थनाएं और याचिकाएं (Prayers and Petitions) भेजने तथा संवैधानिक तरीके (Constitutional Method) से संर्घष चलाने से वे भारतवासियों को कुछ भी देने वाले नहीं । तिलक ने इन तरीकों की जगह निष्क्रिय प्रतिरोध का समर्थन किया। उसके बाद तिलक ने श्री अरविंद, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय के साथ मिलकर 'स्वदेशी' आंदोलन चलाया और और स्वराज' का नारा बुलंद किया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक अधिकार मांगने से कभी नहीं मिलते ये अधिकार लड़कर प्राप्त किये जाते है। उन्होंने देशवासियों को स्वाधीनता संघर्ष के निर्णायक दौर में पदार्पण करने के लिए तैयार किया। उन्होंने याद दिलाया कि कर्तव्य का मार्ग कभी फुलों से भरा नहीं होता, यह कांटो से भरा मार्ग है। भारतवासियों को अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए आत्म-बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए।
स्वराज्य का शाब्दिक अर्थ है- "स्वशासन" या "अपना राज्य"
बालगंगाधर तिलक के द्वारा स्वराज' का अर्थ स्पष्ट करे ?
- ("Self-governance" or "or Home Rule") भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्मा निर्णय तथा स्वाधीनता की मांग पर बल देता था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए स्वशासन के स्थान पर अच्छी सरकार ब्रिटिश सरकार के लक्ष्य को वरीयता दी उसके बाद उग्रवादी काल में यह शब्द लोकप्रिय हुआ, जब बाल गंगाधर तिलक ने यह उद्घोषणा की कि "स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूगां स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए तिलक ने तर्क दिया कि जब तक हम विदेशों में बनी वस्तुओं का बहिष्कार या वॉयकॉट (Boycott) नहीं करते, तब तक स्वदेशी में विश्वास का कोई अर्थ नहीं है।
- ब्रिटेन में बनी वस्तुओं को खरीदना बंद करके हम ब्रिटिश व्यावासायिक हितो को हानि पहुंचा सकते है जो ब्रिटिश सरकार की जड़ो को हिला देगी। इससे भारत में बने माल की मांग बढ़ जाएगी, अतः भारत के औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। स्वदेशी का एक पक्ष यह भी था कि भारवासी ब्रिटिश शासन तंत्र को चालू रखने से अपना हाथ खींच लें, क्योंकि यही तंत्र उन्हें पैरों तले रौंद रहा था। तिलक ने विचार रखा कि स्वदेशी केवल आर्थिक अस्त्र नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक और आध्यात्मिक अस्त्र थी है। उन्होंने घोषणा की यदि हम गोरी जातियों का दास नहीं बनना चाहते तो हमें पूरी निष्ठा के साथ स्वदेशी आंदोलन चलाना होगा। यही हमारी मुक्ति का साधन है।
- जहां नरम दल के सदस्य ब्रिटिश शासन के अंतर्गत सीमित प्रशासनिक सुधारों की मांग कर रहे थे, वहां तिलक ने गरम दल या उग्रपंतियों का नेतृत्व करते हुए 'स्वराज' या स्वशासन (Self-Rule) की मांग को बढ़ावा दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वराज' का अर्थ है, अधिकारितंत्र (Bureaucracy) की जगह 'जनता का शासन' (Peoples Rule) जो समाज सुधारक ब्रिटिश सरकार से समाज सुधार लागू करने की आशा करते थे, उन्हें तिलक ने यह • विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि किसी भी सार्थक समाज सुधार से पहले स्वराज प्राप्ति जरूरी है। स्वराज और स्वधर्म हमारे इतिहास के गौरवशाली अंग रहे है; परंतु आज वे ध्वस्त अवस्था में है। उनका जीणोद्वार समय की मांग है। टुकड़े-टुकडे सुधार से कुछ नहीं होने वाला है। ब्रिटिश प्रशासन इस देश के विनाश पर उतारू है। अतः तिलक ने यह प्रसिद्ध नारा दिया, "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूगां।" उन्होंने तर्क दिया कि स्वराज- प्राप्ति भारतीय राष्ट्रवाद की महान् विजय होगी। तिलक यह चाहते थे कि साम्राज्य परिषद् ( Imperial Council) की सांकेतिक प्रभुसता (Nominal Sovereignty) के अंतर्गत भारत की अपनी प्रतिनिधि सभा पूर्ण स्वराज का प्रयोग करे। उन्होने कहा कि हमारी मांग पूर्ण स्वराज की है; आंशिक स्वराज कुछ नहीं होता यह शब्द की निरर्थक है 'धर्मराज्य' के अंतगर्त पूर्ण स्वराज ही रह सकता है। केवल प्रशासनिक सुधार लागू करने से हमारा लक्ष्य पूरा नहीं होगा।
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