मध्यप्रदेश का मध्यभारत का पठार-भौगोलिक प्रदेश
मध्यभारत पठार भौगोलिक प्रदेश
- मध्यप्रदेश का मध्यभारत का पठार
वस्तुतः पश्चिम भारत के वृहत्तर पठार जिसे सिंह (1971) 'उदयपुर ग्वालियर भौगोलिक प्रदेश' कहते
हैं का पूर्वी भाग है।
- इस पठार का अधिकतर भाग राजस्थान में है।
- मध्यप्रदेश में
फैले इस पठार का पूर्वी भाग वस्तुतः इस भौगोलिक प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण नदी
चंबल और कालीसिंध नदी की घाटियों का क्षेत्र है।
- मध्यभारत के पठार का संपूर्ण भाग स्थलाकृतिक
विन्यास की दृष्टि से उबड़ खाबड़ है। सबसे ऊँचे पठारी भाग 500 से 600 मीटर है परन्तु पठार की सामान्य ऊँचाई 300 से 500 मीटर है।
- मध्यप्रदेश में चंबल घाटी के प्रवाह
क्षेत्र का यह भाग 24°0' से 26°48' उत्तरी अक्षांश तथा 74°50' से 79°10' पूर्वी देशांश के मध्य स्थित है।
- यह
पठार पश्चिम में राजस्थान की उच्च भूमि (बूंदी की पहाड़ियां तथा करौली डांग) उत्तर
में यमुना के मैदान तथा पूर्व में बुंदेलखण्ड की पहाड़ियों से घिरा है।
मध्यप्रदेश के प्रकृतिक विभागों का अध्ययन करने के लिए यहाँ क्लिक करें
मध्यभारत के पठार का ऐतिहासिक भूगोल
- मध्यप्रदेश के इस पठार का ऐतिहासिक
भूगोल अपने पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र से सदा ही प्रभावित रहा है। मध्यभारत के
पठार पर विस्तृत राजवंशो में से बहुतेरे इसी पठार के वृहत्तर क्षेत्र के निवासी
थे। यही कारण है कि इस पठार का इतिहास मात्र चंबल घाटी के प्रवाह क्षेत्र का
इतिहास नहीं है। उत्तर का यमुना का मैदान प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास की
केन्द्रिय शक्तियों का क्षेत्र रहा है अतः इस क्षेत्र के शासक सदैव ही मालवा के
पठार पर अधिकार जमाने के लिये इस क्षेत्र पर आक्रमण करते रहे हैं।
- मध्यभारत का पठार इतिहास के कुछ अवसरों
पर स्वयं भी शक्तिशाली राज्यों का केन्द्र हुआ है। प्राचीन नागवंश का मुख्य
शक्तिकेन्द्र पद्मावती आधुनिक ग्वालियर के समीप ही था। नागों का दूसरा प्रमुख नगर
कांतिपुरी भी ग्वालियर से अधिक दूर न था।
- इस भौगोलिक प्रदेश के विवरण में
नागवंशी राजाओं के संबंध में प्रकाश डाला गया है। नागवंश इस क्षेत्र का अत्यंत
महत्वपूर्ण राजवंश था। अन्य महत्वपूर्ण राजवंश परवर्तीकाल के तोमरों का था।
- इस भौगोलिक प्रदेश को राजनैतिक
प्रसिद्धि लगभग छठवीं शताब्दी से मिलनी प्रारंभ हुई। इस काल में ग्वालियर दुर्ग
एवं नगर का निर्माण प्रारंभ हुआ। ग्वालियर का दुर्ग इतना विशाल व सुदृढ़ है कि इसे
भारत के किलों का सिरमौर कहा जाता है। संभवतः इस दुर्ग का निर्माण 525 ईस्वी में सूरजसेन ने कराया था।
- ग्वालियर के इतिहास में उस समय नया
मोड़ आया जब ईस्वी सन् में 1394
वीरसिंह तोमर ने इसे जीत लिया और दिल्ली के सुल्तानों के बारम्बर प्रयास करने पर
भी उसे अपने हाथ से नहीं निकलने दिया। तोमर शासकों की श्रृंखला में ग्वालियर का
प्रसिद्ध शासक मानसिंह तोमर (ईस्वी सन् 1486) हुआ जिसके समय के ललित कलाओं की अभूतपूर्व उन्नति हुई।
- ग्वालियर
दुर्ग के मान मंदिर और गुजरी महल राजा मानसिंह तोमर ने (ईस्वी सन् 1486 से 1516 ) बनवाये । दुर्ग की तलहटी में पंद्रहवी शताब्दी में राजा डोंगर सिंह
के शासन काल में जैन मंदिर बनवाये गये, यहाँ
17 मीटर ऊँची जैन तीर्थकर आदिनाथ की
प्रतिमा है, यह एलोरा की भांति पत्थरों को तराश कर
बनाई गई है।
MP PSC Study......
Post a Comment