मालवा पठार भौगोलिक प्रदेश विशेषतायेँ । मालवा के मानवीय अधिवास । Malwa Patha Geographic Region
मालवा पठार भौगोलिक प्रदेश, मालवा के मानवीय अधिवास
मालवा पठार भौगोलिक प्रदेश
- मालवा के पठार का परिसीमन भूगोलवेत्ताओं ने दो तरह से किया है। सिंह (1968) ने नर्मदाघाटी एवं सतपुड़ा पर्वत को मालवा पठार के उपविभाग मानते हुये उन्हें इसी प्राकृतिक प्रदेश के अंतर्गत रखा है जबकि जैन (1986) मालवा के पठार का विस्तार 20°17' से 25°8' अक्षांश तथा 74°20 से 7920' देशांश तक निर्धारित करते है। इस वर्गीकरण में नर्मदाघाटी और सतपुड़ा पर्वत को उपविभाग न मानते हुये पूर्ण विभाग माना गया है।
- मालवा पठार की भौगोलिक विशेषताओं का सर्वाधिक विशिष्ट लक्षण है यहाँ का उच्चावच तथा उर्वर मृदा मालवा की उच्चसम भूमि हल्के उतारचढ़ाव वाली पठारी भूमि है जिसमें जहाँ तहाँ छोटी छोटी, गहरे तथा ऋतुक्षरित, चपटे शिखर वाली पहाड़ियाँ पाई जाती हैं।
- संपूर्ण पठार में प्रवाहित होने वाली नदियाँ गंगा यमुना के जलग्रहण क्षेत्र की नदियाँ हैं। ये नदियाँ उत्तरगामिनी हैं। इस पठार की सामान्य औसत ऊँचाई समुद्र सतह से 500 मीटर है। कुछ कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों की ऊँचाई 300 से 450 मीटर भी है। अधिक ऊँचे क्षेत्र 600 मीटर तक ही ऊँचाई वाले क्षेत्र हैं।
- मालवा क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ चंबल, काली सिंध, निवाज, पार्वती एवं बेतवा इत्यादि हैं। मालवा का पठार अपनी दक्षिणी सीमा पर अधिक ऊँचा हो जाता है। इस पठार की मध्य दक्षिणी सीमा पर विन्ध्याचल पर्वत का उच्च भाग है, यहाँ इसकी ऊँचाई 800 मीटर के लगभग है। सियारचोरी (881 मीटर) एवं हजारी (810 मीटर) इस पठार के सीमान्त की ऊँची पहाड़ियाँ है।
- मालवा पठार के भौगोलिक घटकों में सबसे महत्वपूर्ण घटक यहाँ की उर्वर मृदा है। किसी भी क्षेत्र की मिट्टी का स्वरूप मूलतः चट्टानों की प्रकृति एवं जलवायु द्वारा निर्धारित होता है। यहाँ की मिट्टियों के निर्माण में यहाँ सर्वत्र व्याप्त दकन ट्रैप शैलिक आवरण का मूल योगदान रहा है।
- मालवा के विस्तृत क्षेत्र में आधारी चट्टानो की लगभग एकरूपता तथा जलवायु की एकरूपता ने पठार के अधिकांश भाग पर दोमट काली मिट्टी का आवरण निर्मित किया है। इसे रेगुर या सामान्य व्यवहार की भाषा में काली कपास वाली मिट्टी भी कहते हैं। यह एक गहरे रंग की मिट्टी है जिसके दो प्रधान अवयव हैं चीका तथा बालू मालवा के पठार में यह मिट्टी 1.5 से 2 मीटर की गहराई तक पाई जाती है।
- मालवा की मृदा अत्यंत उपजाऊ है इसमें गेहूँ, ज्वार, चना, दलहन, तिलहन और कपास की फसलें हजारों वर्षों से पैदा की जाती रही हैं और यही मालवा की समृद्धि का मूलाधार है। लोकोक्ति 'देश मालवा गहन गंभीर, डग डग रोटी पग पग नीर' मालवा की सम्पन्नता का बयान करती है।
मालवा के मानवीय अधिवास
- मध्यप्रदेश की अनेक नदियों की घाटियों की समीपवर्ती पहाड़ियों में चित्रित शैलाश्रय मिलते हैं, इन शैलाश्रयों में बेतवा घाटी के चित्रित शैलाश्रय जिन्हें विष्णु श्रीधर वाकणकर ने सर्वप्रथम खोजा था। ये अब 'विश्व धरोहर' सूची में शामिल हैं, ये संभवतः मनुष्य के प्राचीनतम अधिवास हैं। इस प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य स्थाई कृषि नहीं करता था।
- मालवा के अनेक स्थानों के उत्खननों से ज्ञात होता है कि चाल्कोलिथिक काल में यहाँ ग्राम अधिवास बनने प्रारंभ हो चुके थे तथा मनुष्य स्थाई कृषि करने लगा था।
- मालवा की चौथी और पांचवी शताब्दी की गुफायें भित्ति चित्रों के लिये तो प्रसिद्ध हैं ही साथ ही इनका सांस्कृतिक महत्व भी बहुत अधिक है। इन गुफाओं में विदिशा जिले की उदयगिरि की बीस गुफायें गुप्तकाल की अद्भुद निर्माण कला का भी उदाहरण हैं गुफा नं 5 में विष्णु वराह की विशाल प्रतिभा है। बाघ की गुफायें धार से 97 किलोमीटर दूर हैं। ये गुफायें अजन्ता की गुफाओं के समान कलापूर्ण भित्ति चित्रों से युक्त हैं। उज्जैन से 12 किलोमीटर दूर भर्तृहरि की गुफायें हैं जिनकी संख्या 9 है। इन चित्रित गुफाओं में सभी चित्र रंगीन हैं इन्हें परमारवंशी राजाओं ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था।
- मालवा में पांच सदियों तक गुफायें बनाई जाती रहीं। गुप्तकालीन गुफायें चौथी शती से प्रारंभ हुई तथा वे परमार काल या ग्यारहवीं शती तक बनाई जाती रही। प्राचीन गुफाओं में बौद्ध जैन तथा ब्राह्मण भिक्षु एवं साधु रहते थे।
- मालवा की गुफाओं के समान ही मालवा के बिहार और बौद्ध स्तूपों का भी महत्व है। बिहारों में बड़ी संख्या में भिक्षु रहा करते थे इस तरह ये भी अधिवास ही थे। बिहारों की उपस्थिति स्तूपों से ज्ञात होती है मध्यप्रदेश में ज्ञात स्तूपों की सर्वाधिक संख्या एवं घनत्व मालवा में ही है।
- प्राचीन ब्राह्मण मंदिरो में से कुछ मंदिर मठ भी थे। ये धर्मशिक्षा के केन्द्र थे, इनमें शिक्षकों एवं छात्रों के अध्ययन के साथ रहने की भी व्यवस्था होती थी। उज्जैन, धार तथा कुछ अन्य स्थान अध्ययन केन्द्रों के रूप में विख्यात थे।
प्राचीनकाल में नगरों के चार वर्ग थे -
(अ) व्यवसाय एवं उद्योग प्रधान नगर या व्यापारिक नगर
(ब) राजधानियाँ या सत्ता केन्द्र
(स) धर्मो से संबंधित पवित्र नगर
(द) अन्य सभी वर्गों के नगर जैसे दस्तकारी एवं कलाकेन्द्र
- साधारण तौर पर एक ही नगर में एक से अधिक विशेषतायें हुआ करती थीं।
- भूगोल में नगरों की संकुलता क्षेत्रीय सम्पन्नता की द्योतक मानी जाती है। मालवा के इतिहास में मध्यप्रदेश के किसी भी दूसरे क्षेत्र से संख्या में अधिक नगर विकसित हुये। इन नगरों के विकास अनूठे हैं। अनेक नगर अपने आस पास के एक विशाल क्षेत्र के भी घोतक थे।
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