मध्यप्रदेश का सामान्य भूगोल । मध्यप्रदेश के भौगोलिक प्रदेशों का वर्गीकरण। MP Geography General Knowledge
मध्यप्रदेश का सामान्य भूगोल,मध्यप्रदेश के भौगोलिक प्रदेशों का वर्गीकरण
मध्यप्रदेश का सामान्य भूगोल
- भौगोलिक दृष्टि से मध्यपदेश भारत के मध्य में 20°46' उ. से 26°30' उ. अक्षांश एवं 74°09' पू. से 83°51' पू. देशांतर तक फैला हुआ है।
- भारत को सामान्यतः तीन विशाल प्राकृतिक विभागों उत्तरी पर्वतमाला या हिमालयी विभाग, मध्य का गंगा सिन्धु का मैदान एवं दक्षिण के दक्कन का पठार में बाँटा जाता है। इन विभागों में से मध्यप्रदेश दक्कन पठार के उत्तरी भाग में स्थित है।
- मध्यप्रदेश की उत्तरी सीमा गंगा-यमुना की दक्षिणी सीमा के लगभग समानान्तर है। मध्यप्रदेश का अधिकांश भाग पठारी है।
- मध्य प्रदेश के पठारों को क्षेत्रीय विस्तार के अनुसार क्रमशः मध्य भारत का पठार मालवा का पठार एवं विन्ध्यक्षेत्र का पठारी भाग कहा जा सकता है। इन तीनो पठारों के उच्चावच में पर्याप्त भिन्नतायें हैं।
- विन्ध्यक्षेत्र के पठारी भाग को तथा उसके दक्षिणी भाग को क्रमशः विन्ध्यपर्वत माला एवं सतपुड़ा पर्वत कहा जाता है।
- विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वतों की संरचना हिमालय पर्वत की तरह नहीं है। विकास क्रम में हिमालय पर्वत नूतन पर्वत है और इसीलिये बहुत ऊँचे हैं तथा अभी भी बढ़ रहे हैं, इसके विपरीत विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा प्राचीन, घर्षित और अवशिष्ट वर्ग के कम ऊँचाई के पर्वत हैं। इन पर्वतों की ऊँचाई सामान्यतौर पर समुद्र सतह से 300 से 600 मीटर तक है।
- मध्यप्रदेश का अपवाह तंत्र मुख्यतः दो वर्गों का है। मध्यप्रदेश की अधिकांश नदियों दक्षिण से उत्तर की ओर बहकर गंगा या यमुना नदी में मिल जाती हैं। यद्यपि मध्यप्रदेश के किसी भाग से गंगा या यमुना नदी नहीं प्रवाहित होती फिर भी इस प्रदेश का तीन चौथाई जलग्रहण क्षेत्र गंगा यमुना नदियों का ही है। गंगा यमुना नदियों में मिलने वाली प्रमुख नदियाँ सोन, केन, बेतवा, कालीसिंध एवं चंबल हैं। दूसरा बड़ा जलग्रहण क्षेत्र नर्मदा का है।
- नर्मदा भारत की सबसे बड़ी पश्चिमवर्ती नदी है मध्यप्रदेश की अधिकांश नदियों का समापन पड़ोसी राज्यों में होता है। नर्मदा विन्ध्याचल और सतपुड़ा के बीच में से बहती हैं।
- नर्मदा नदी देश की पांचवीं बड़ी नदी है तथा मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा नदी का कुल जल संग्रहण क्षेत्र 33790 वर्ग मील है। नर्मदा नदी के कछार में कुल 160 लाख एकड़ कृषि योग्य भूमि है इसमें से 144 लाख एकड़ भूमि मध्यप्रदेश में है।
- पूरे भारत की तरह मध्यप्रदेश की जलवायु भी पूर्णतः मौसमी अर्थात् मानसूनी है। मध्यप्रदेश के किसी भी भाग में उच्च हिमालय या अंडमान निकोबार जैसी हिमपात प्राप्त करने वाली या वर्ष के अधिकांश भाग में वर्षा प्राप्त करने वाली जलवायु नहीं है।
- यह प्रदेश भारत के मध्य में स्थित होने के कारण अधिकांश भारत जैसी जलवायु का क्षेत्र है जिसमें शीत ऋतु (नवम्बर से फरवरी तक) में औसत तापमान 15° से.ग्रे. रहता है। ग्रीष्म ऋतु (मार्च से जून तक) में औसत तापमान 42° से. ग्रे रहता है। वर्षा ऋतु (जुलाई से अक्टूबर तक) मे सर्वत्र वर्षा समान नहीं है।
- पश्चिमी मध्यप्रदेश (औसत वार्षिक वर्षा 75 से. मी.) की तुलना में पूर्वी मध्यप्रदेश (औसत वार्षिक वर्षा 125 से. मी.) में अधिक वर्षा होती है।
- मध्यप्रदेश का लगभग एक तिहाई भाग वनों से आच्छादित है इस प्रदेश में मुख्यतः पतझड़ वाले वन एवं कंटीले वन पाये जाते हैं।
- मध्यप्रदेश के इतिहास में जनजातियों का भी विशिष्ट स्थान रहा है। जनजातियाँ वनवासी समाज हैं जिनके संदर्भ प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं। जनजातीय समाज प्रागैतिहासिक काल से मध्यप्रदेश में रहते आ रहे हैं।
- नृवैज्ञानिक दृष्टि से मध्यप्रदेश के जनजातीय समुदायों को तीन प्रमुख वर्गों में रख जाता है। सबसे बड़ा वर्ग गोंड़ों का है जो मुख्यत पूर्वी और दक्षिणी मध्यप्रदेश में पाया जाता है, दूसरा प्रमुख वर्ग भीलों का है ये पश्चिमी मध्यप्रदेश के निवासी हैं; उत्तरी पूर्वी मध्यप्रदेश में कोल वर्ग के जनजातीय समाज निवास करते हैं।
- भूगोल में प्राकृतिक विभागों की संकल्पना का विशेष महत्व
है। प्राकृतिक विभागों के अनेक स्तर किये जाते हैं जिन्हें भौगोलिक प्रदेश कहा
जाता है। भौगलिक प्रदेश प्रथम और द्वितीय स्तर के भी होते हैं। भूगोलवेत्ता
हर्बर्टसन (1905) के अनुसार 'एक भौगोलिक प्रदेश
में भौतिक बनावट, जलवायु एवं
वनस्पति की समानता का संयोजन होना चाहिये।'
- मनुष्य के इतिहास, अर्थ व्यवस्था एवं राजनैतिक परिस्थितियों पर भूगोल के प्रभाव को प्राकृतिक विभागों या उनके उपवर्गो प्राकृतिक प्रदेशों को आधार मानकर विवेचित किये जाने की अकादमीय परंपरा है।
- इस आलेख में 'प्रदेश' शब्द का दो अर्थों में प्रयोग हुआ है। अंग्रेजी भाषा में स्टेट या प्राविन्स शब्दों के पर्याय के रूप में तथा भूगोल के रूढ शब्द 'रीजन' के पर्याय के रूप में इस तरह 'सेन्ट्रल प्राविन्स' तथा 'मध्यप्रदेश स्टेट' का अनुवाद जहाँ मध्यप्रदेश है वहाँ 'नर्मदाघाटी रीजन' का अनुवाद नर्मदाघाटी प्रदेश ही है।
मध्यप्रदेश के भौगोलिक प्रदेशों का वर्गीकरण
- जिन भूगोलवेत्ताओं के द्वारा सुझाये गये भारत के प्राकृतिक विभागों एवं भौगोलिक प्रदेशों के वर्गीकरण सर्वाधिक मान्य हैं उनमें स्पेट (1954) का नाम विशेष उल्लेखनीय है, उन्होंने मध्यप्रदेश को भारत के दक्षिण पठार भौगोलिक विभाग के अंतर्गत रखा।
स्पेट (1954) के वर्गीकरण के आधार पर मध्यप्रदेश उपर्युक्त विभाग में स्थित तीन भौगोलिक प्रदेशों के क्षेत्र में विस्तृत है। ये प्रदेश क्रमशः
- सेन्ट्रल विन्ध्यन कन्ट्री (अ. मालवा ब. नाइसिक बुन्देलखण्ड स. विन्ध्यश्रेणी तथा पठार एवं द. नर्मदा सोन घाटी)
- सतपुड़ा मेकल (अ. सतपुड़ा श्रेणी ब. महादेव श्रेणी स. मेकल श्रेणी)
- उत्तरी दक्कन (अ. बघेलखण्ड, अन्य उपप्रदेश जो अब छत्तीसगढ़ में हैं।)
भारत के प्रादेशिक भूगोल के अनुसार मध्य प्रदेश
(A)
- सिंह ( 1968, 1971) द्वारा संपादित भारत के प्रादेशिक भूगोल की पुस्तक में मध्यप्रदेश को भारत के दक्षिणी पठार या पेनिनसुलर अपलेण्ड' में बतलाया गया है। उन्होंने प्रथम और द्वितीय श्रेणी के विभागों को सीमांकित किया है।
- मध्यप्रदेश का विस्तार प्रथम श्रेणी के वृहद् प्रदेशों के अंतर्गत आता है। इनके नाम इस तरह है (1) उदयपुर - ग्वालियर बृहद प्रदेश (2) मालवा प्रदेश (3) बुन्देल खण्ड प्रदेश एवं विन्ध्याचल बघेल खण्ड प्रदेश।
(B)
- प्रमिला कुमार (1987) द्वारा संपादित 'मध्यप्रदेश के प्रादेशिक भूगोल' पुस्तक में पुराने मध्यप्रदेश को 10 प्रदेशों में बांटा गया। छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के पश्चात् वर्तमान मध्यप्रदेश अब 7 भौगोलिक प्रदेशों तक ही सीमित है, ये प्रदेश निम्रलिखित है (1) मध्य भारत पठार (2) बुन्देलखण्ड (3) विन्ध्यन कगार प्रदेश (4) मालवा पठार (5) नर्मदा घाटी (6) सतपुड़ा श्रेणी एवं (7) बघेलखण्ड प्रदेश।
- उपर्युक्त प्रादेशिक विवरणों पर यदि विचार किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि 'रीजन्स' या प्रदेशों की संख्या में घट बढ़ प्रदेशों के स्तरों या श्रेणियों के कारण है; उदाहरण लिये सिंह (1968) के प्रादेशिक वर्गीकरण में जहाँ नर्मदा घाटी के एक बड़े भाग को तथा सतपुड़ा पर्वत को मालवा के अंतर्गत रखा गया वहाँ प्रमिला कुमार (1987) ने नर्मदा घाटी और सतपुड़ा पर्वत को स्वतंत्र भौगोलिक प्रदेश माना, परंतु सिंह (1968) भी इन दोनों को उप प्रदेश या निचले स्तर का प्रदेश तो मानते ही हैं।
- कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के भौगोलिक प्रादेशीकरण में कोई महत्वपूर्ण असहमति नहीं है। यदि ऐतिहासिक घटनाक्रमों के आधार पर इन प्रदेशों पर विचार किया जाय तो प्रमिला कुमार के वर्गीकरण को मामूली अन्तर के साथ जैसा का तैसा स्वीकार किया जा सकता है। उपर्युक्त वर्गीकरण के तीन प्रदेशों बुन्देलखण्ड, विन्ध्यन कगार और बघेलखण्ड को एक ही विभाग 'विन्ध्याचल' भी कहा जा सकता है। भौगोलिक दृष्टि से एवं ऐतिहासिक विवरण के आधार पर यह संपूर्ण क्षेत्र प्राचीन विन्ध्यांचल या 'विन्ध्याटवी' ही है।
मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक भूगोल को निम्नलिखित प्रदेशों के आधार पर विवेचित किया जा रहा है-
1. विन्ध्यांचल भौगोलिक प्रदेश
2. मध्यभारत पठार भौगोलिक प्रदेश
3. मालवा पठार भौगोलिक प्रदेश
4. नर्मदा घाटी भौगोलिक प्रदेश
5. सतपुड़ा पर्वत
भौगोलिक प्रदेश
- मध्यप्रदेश के प्रादेशिक भूगोल के परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक भूगोल की विवेचना दो स्तरों पर की गई है। प्रथम भूगोल और ऐतिहासिक घटनाओं के अंर्तसंबंध की विवेचना है। तदन्तर इतिहास पर भौगोलिक प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।
- राजनैतिक प्रदेशों एवं भौगोलिक प्रदेशों की सीमाओं में मूलभूत फर्क यही है कि राजनैतिक प्रदेशों की सीमाओं का संकुचन और विस्तारण होता रहता है, भौगोलिक प्रदेशों की सीमाओं में यही बात होती तो अवश्य है पर परिमाण में नगण्य ही हैं। उदाहरण के लिये भारत की भरूभूमि प्रदेश की सीमाओं का विस्तार हुआ है पर उसके बहुत विस्तृत होने में भी हजारों वर्ष लगे परंतु दो सौ वर्ष की अवधि में मुगल साम्राज्य की सीमाये संपूर्ण भारत में फैलकर सदा के लिये तिरोहित हो गई या कि भारतीय उपमहाद्वीप मे ही पाकिस्तान का पूर्वी राजनैतिक प्रदेश 'पूर्वी पाकिस्तान' के स्थान पर एक नया गणराज्य बंगलादेश बन गया।
- मध्यप्रदेश के प्रादेशिक विवरण में प्राकृतिक प्रदेशों के साथ भूगोल का परिचय प्रस्तुत है जिसके अंतर्गत इन प्रदेशों का विस्तार, उच्चावच तथा अपवाह तंत्र का अत्यंत संक्षेप में वर्णन है। संपूर्ण मध्यप्रदेश की जलवायु मानसूनी है, इस जलवायु में वर्षा या ताप का इतना क्षेत्रीय अन्तर नहीं है कि उसमें मानवीय गतिविधियाँ बहुत अधिक बाधित हो सकें।
- मध्यप्रदेश में न तो कहीं हिमपात होता है और न ही किसी क्षेत्र में मरूभूमि है। अत्यंत विषम जलवायु अवश्य इतिहास को प्रभावित करती है। वनों का प्रभाव अवश्य किसी सीमा तक मध्यप्रदेश के इतिहास में रहा है। वे पहाड़ी क्षेत्र जिनमें वर्षा अधिक होती थी साधारण तौर पर अधिक दुर्गम रहे क्योंकि उनमें सघन वन हुआ करते थे किंतु वनाच्छादन से बड़ी ऐतिहासिक गतिविधियाँ कभी नहीं रूकीं मध्यप्रदेश समुद्र तट से दूर स्थित है। अतः इस प्रदेश का इतिहास मूलतः उपमहाद्वीपीय स्वभाव का रहा है।
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