मध्यप्रदेश का इतिहास एक परिचय ।MP History Introduction
मध्यप्रदेश का इतिहास एक परिचय
मध्यप्रदेश का परिचयात्मक इतिहास MP History Introduction
- इतिहासकार ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन हेतु काल सीमा को सामान्य तौर पर प्रागैतिहासिक, प्राचीन, मध्य एवं आधुनिक कालखण्डों में विभाजित करते हैं।
- कालखण्ड कोई भी हो भौगोलिक क्षेत्रों के भौतिक तत्वों यथा पर्वत, पहाड़ियाँ, नदियों, पठार और मैदानों की स्थिति में कोई अन्तर नहीं आता और यदि आता भी है तो वह बहुत साधारण होता है।
- भौगोलिक तत्वों में सांस्कृतिक तत्व यथा नगर, ग्राम, किले कृषि क्षेत्र, मार्ग इत्यादि में पर्याप्त परिवर्तन आते हैं।
- समय और दूरियों के अनुसार भाषा या बोली में परिवर्तन आते हैं। इन परिवर्तनों को ध्यान में रखकर ही किसी भी क्षेत्र के इतिहास को समझा जाता है।
- मध्यप्रदेश में मनुष्य की उपस्थिति मध्य प्लीस्टोसीन काल से है जिसका प्रमाण है हथनौरा से प्राप्त प्राचीन मानव के कपाल का टुकड़ा जो मध्यप्रदेश का ही नहीं भारत का सबसे प्राचीन मानव अवशेष है।
- मध्यप्रदेश के अनेक स्थलों से पाषाण युग, उत्तर पाषाण युग, ताम्रयुग इत्यादि के हस्त कुठार आदि अनेक उपकरण प्राप्त हुये हैं। मध्यप्रदेश के अनेक स्थलों पर मृतकस्तंभ जिन्हें मेन्हर आदि अनेक नामों से पुकारा जाता हैं, प्राप्त हुये हैं।
- पुरासभ्यताओं में चाल्कोलिधिक काल के मृदभाण्ड इत्यादि अवशेषों का मध्यप्रदेश विशेषतः पश्चिमी मध्यप्रदेश तक प्रसार था।
- मध्यप्रदेश में भारत ही नहीं विश्व के कुछ प्राचीनतम मानवीय अधिवास हैं जिन्हें रॉकशेल्टर कहा जाता है। इनमें से अधिकांश रॉकशेल्टर या शैलाश्रय चित्रित हैं जिनसे आदि सभ्यता पर प्रकाश पड़ता है। रॉकशेल्टर या शैलाश्रय चित्रण यूरोपीय प्रागैतिहासिक गुहाचित्रण से तुलनीय माना जाता है। भीमबेठका के शैलाश्रय विश्व धरोहर हैं।
- भौगोलिक अध्ययनों में इस वर्ग की प्रागैतिहासिक विषय वस्तु को ऐतिहासिक भूगोल की परिधि से बाहर भौगोलिक इतिहास की परिधि में रखा जाता है। भौगोलिक इतिहास को तकनीकी तौर पर पैलियोज्याग्रफी कहा जाता है।
- पुरातन इतिहास पाषाण एवं ताम्रकालीन सभ्यताओं का इतिहास है। पुरातात्विक खोजों से प्राप्त पाषाण, ताम्र, लौह उपकरण एवं मृदभाण्डादि प्राचीन मानव सभ्यता के साक्ष्य हैं।
- कुछ इसी तरह प्राचीनतम् ग्रंथ यथा वेद पुराणादि भी प्राचीन भारतीय सभ्यता के साक्ष्य हैं परंतु अब तक पुरातात्विक साक्ष्यों एवं प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों का ठीक ऐतिहासिक तालमेल नहीं बैठ सका है। रामायण, महाभारत, पुराण तथा जैन और बौद्ध ग्रंथ प्राचीन भारतीय इतिहास के ज्ञान के स्त्रोत रहे हैं, तथापि बीसवीं सदी में 1990 तक भारतीय इतिहासकारों का एक प्रभावी वर्ग प्राचीन ग्रंथों को मिथकीय मानने का आग्रही रहा है।
- भारतीय इतिहासकार इस बात पर अब तक अनिश्चय की स्थिति में हैं कि सिंधु सभ्यता तथा प्राचीन ग्रंथों में वर्णित भारतीय इतिहास में कितना और कैसा संबंध रहा है। हड़प्पा लिपि को लेकर लगभग एक दर्जन भाषाशास्त्री उसे पढ़ने का असफल दावा कर चुके हैं।
- प्राचीनकाल अर्थात् मौर्य काल के कुछ पहले से लेकर परवर्ती पूर्व मध्यकाल एवं उत्तर-मध्यकाल के इतिहास के अनेक सूत्र मध्यप्रदेश में फैले हैं। मध्यप्रदेश का इतिहास भी महाजनपद काल या ईसा पूर्व छठवीं सदी से क्रमबद्ध रूप से मिलता रहा है।
- भारत में नंद वंश के पश्चात् चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्यवंश की स्थापना की। चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र अशोक अपने पिता बिंदुसार के समय लगभग 11 वर्षो तक अवंति का राज्यपाल रहा। अशोक ने विदिशा (मालवा) के नगर सेठ की पुत्री देवी से विवाह किया था।
- अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म अशोक की इसी पत्नी से हुआ था बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु वे दोनों चैत्यगिरि (सांची) आकर श्री लंका गये थे।
- मध्यप्रदेश में सांची का बौद्ध स्तूप विद्यमान है। मौर्यकाल में विदिशा का क्षेत्र केन्द्रीय सत्ता मगध का प्रदेश था।
- अशोक के शिलालेख जबलपुर के निकट रूपनाथ में, होशंगाबाद के पास पानगुराड़िया में तथा दतिया के पास गुर्जरा में प्राप्त हुये हैं जिसका तात्पर्य यह है कि मौर्य साम्राज्य के काल में मध्यप्रदेश का मालवा, नर्मदाघाटी एवं चम्बलघाटी के क्षेत्र में मौयों का राज्य था।
- मौर्यों के पश्चात् भारत का सम्राट शुंगवंशीय पुष्यमित्र हुआ। मौर्यो की तरह शुंगों ने भी मालवा को महत्व दिया। पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने अपने पिता के राज्यकाल में विदिशा में रहकर इस क्षेत्र का शासन सूत्र सम्हाला। इस तरह भारत के दो प्राचीनतम राजवंशो के समय मध्यप्रदेश का एक बड़ा भाग तत्कालीन मगध की केन्द्रीय राजसत्ता के अंतर्गत रहा।
- शुंगों के पश्चात् नर्मदा के दक्षिण क्षेत्र में सातवाहनों का अभ्युदय हुआ।
- सातवाहनो के सिक्के मालवा में विदिशा तथा नर्मदा घाटी में होशंगाबाद और जबलपुर क्षेत्र से प्राप्त हुये हैं। अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सातवाहन साम्राज्य के अंतर्गत अनूप (निमाड़), विन्ध्य और रिक्षवत पर्वतीय क्षेत्र था।
- सातवाहनों को राज्य के उत्तरी भाग के वर्चस्व के लिए जो कि नर्मदा का भी उत्तरी भाग था तथा जिसमें मालवा शामिल था, में मध्य एशियाई मूल के शकों से युद्ध करना पड़ा।
- मौर्यों और शुंगो के पश्चात् भारत की केन्द्रीय सत्ता मगध उतनी शक्तिशाली नहीं रह गई थी तभी नर्मदा के दक्षिण में शक्तिशाली सातवाहनों का अभ्युदय हुआ। इस काल से हर्षवर्धन के काल तक कुछ अपवादों को छोड़कर जिनमें समुद्गुप्त का साम्राज्य प्रमुख है।
- भारत उत्तराखण्ड और दक्षिणापथ में विभाजित माना जाता रहा समुद्रगुप्त ने जिन अठारह प्रदेशों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया था उनमें मालवा एवं चेदि (डहाल) देश भी थे।
- स्कन्दगुप्त के राजत्वकाल में ही हूणों के आक्रमण प्रारंभ हो चुके थे। हूणों ने सम्पूर्ण मध्य एशिया एवं पूर्वी यूरोप को पददलित कर रखा था। यूरोप के महान साम्राज्य हूणों के सामने न टिक सके थे किन्तु स्कन्दगुप्त के जीवित रहते हूण भारत में पैर न टिका सके। स्कन्दगुप्त के पश्चात् हूणों ने चंबल घाटी और फिर मालवा को जीत लिया। तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के अधीन सम्पूर्ण पश्चिमी मध्यप्रदेश आ गया। एरण से तोरमाण तथा ग्वालियर के किले में मिहिरकुल के शिलालेख प्राप्त हुये हैं।
- नृसिंहगुप्त बालादित्य ने हूणों को परास्त किया, लगभग 525 ईस्वी में यशोधर्मन ने हूणों को देश से निकाल बाहर किया।
- गंगा यमुना के मैदान में स्थित राजवंश भारत की केन्द्रीय सत्ता रहे हैं, जब भी वे निर्बल हुये तब क्षेत्रीय शासकों का महत्व बढ़ा और उनमें से कुछ इतने महत्वपूर्ण हुये कि उन्होंने केन्द्रीय सत्ता को भी किसी सीमा तक नियंत्रित किया।
- मालवा में उज्जयिनी के शासक विक्रमादित्य की ऐसी ही ख्याति थी। परम्परा और साहित्य में विक्रमादित्य को भारत का सम्राट कहा गया है परंतु इतिहासकारों में तो इस बारे में भी मतान्तर है कि विक्रमादित्य नाम का कोई शासक उज्जयिनी में हुआ इतिहास में विक्रमादित्य उपाधिधारी एकाधिक शासकों का उल्लेख है।
- समुद्रगुप्त से पूर्व चंबल क्षेत्र में नागवंशीय राजाओं का प्रभुत्व रहा। ग्वालियर का समीपवर्ती क्षेत्र पद्मावती या पदम पवाया ईसा की पहली शताब्दी से ही नागवंशीय राजाओं के शासन में था।
- पवाया में नाग राजाओं द्वारा राज्य करने का विवरण उनके द्वारा चलाये गये सिक्कों द्वारा मिलता है।
- नागवंशीय राजाओं के राज्य का विस्तार मध्यप्रदेश में मालवा, चंबलघाटी और बुन्दलेखण्ड तक था तथा मध्यप्रदेश के बाहर गंगा यमुना के मैदान में मथुरा तक ।
- इतिहासकारों ने राज्य विस्तार के आधार पर उनकी तीन शाखायें मानी है जो पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा के केन्द्रों से भारत के एक बड़े भाग पर राज्य करती रही।
- छठवीं शताब्दी के द्वितीय चरण में हैहयवंशी कलचुरी राजाओं का अभ्युदय हुआ हैहयवंश पौराणिक काल से ही नर्मदा घाटी का प्राचीन राजवंश रहा है।
- नर्मदा घाटी में परवर्ती हैहयवंशी राजाओं या कलचुरियों के दो सत्ता केन्द्र विकसित हुये एक सत्ता केन्द्र माहिष्मती या महेश्वर था। इस वंश के तीन राजाओं कृष्णराज, शंकरगण और बुद्धराज ने सम्पूर्ण निचली नर्मदा घाटी अर्थात् गुजरात से मालवा तक एक विशाल राज्य की स्थापना की।
- इसी वंश के एक राजा वामदेव ने सातवीं शताब्दी के अन्त में डहाल मंडल में एक नये राज्य की स्थापना की। इस नये वंश की राजधानी जबलपुर के निकट त्रिपुरी में थी। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुये जिन्होंने मध्यप्रदेश के एक बड़े भू-भाग पर तथा मध्यप्रदेश के बाहर के भी एक बड़े भू-भाग पर राज्य किया। उनके अनेक शिलालेखों से तत्कालीन कला, समाज संस्कृति एवं आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था ज्ञात होती है।
- आठवीं शताब्दी में परमार राजाओं ने मालवा में अपने राज्य की स्थापना की। मालवा में वे पवार राजपूत के नाम से विख्यात हुये। प्रारंभ में वे राष्ट्रकूटों के अधीन थे।
- राजा भोज (1011 ईस्वी) इस वंश का महाप्रतापी शासक था। शिलालेखों में उसे सार्वभौम कहा गया है जबकि त्रिभुवन नारायण एवं त्रिलोक नारायण उसकी उपाधियाँ थीं। परमारों की राजधानी धारा (आधुनिक धार) थी। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का पूर्वनाम भोजपाल था। तेरहवीं शताब्दी तक मालवा में परमारों का शासन था।
- कन्नौज के प्रतिहार साम्राज्य के विघटन के पश्चात् अनेक स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई उनमें से एक राज्य बुन्देलखण्ड के चन्देलों का था।
- नवीं शताब्दी के प्रथम चरण में नन्नुक ने इस राज्य की स्थापना की। नन्नुक के पौत्र जयशक्ति जो जेज्जक और जेज्जा भी कहलाता था के नाम पर चंदेल राज्य जेज्जाकभुक्ति कहलाया। चन्देलों की कलाप्रियता खजुराहो के विश्वप्रसिद्ध मंदिर में देखी जा सकती है।
- ऊपरी नर्मदा घाटी में त्रिपुरी के कलचुरियों के पतन के पश्चात् राजगोंड़ो ने गढ़ामंडला नाम के नये राज्य की स्थापना की। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा संग्रामशाह हुआ जिसने 1480 ई. से 1541 ई. तक शासन किया।
- 1564 ई. में अकबर के सूबेदार आसफ खाँ ने इस राज्य पर आक्रमण किया जिसका सामना इस राज्य की संरक्षिका रानी दुर्गावती ने रणभूमि में किया 1564 में वीरांगना दुर्गावती की वीरगति के पश्चात् गढ़ा मंडला राज्य का पतन हो गया। बाद के गोंड राजा मुगलों की अधीनता में रहे।
- मध्यप्रदेश में मुसलमानी शासन दिल्ली के चौहानों की पराजय (1192) के चार वर्ष पश्चात् ही प्रारंभ हो गया जब 1196 ई. में गोरी और कुतुबुद्दीन एबक ने ग्वालियर नरेश सुलक्षण पाल को पराजित कर दिया, किंतु मालवा का पतन 1231-32 में हुआ जब ग्वालियर का राजा मंगल देव मुस्लिम आक्रान्ताओं से पराजित हो गया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा के सभी प्रमुख स्थान जीते तथा एन-उल-मुल्क मुल्तानी को मालवा का सूबेदार बनाया। फिर मालवा तुगलकों के अधीन रहा।
- तुगलकों की सत्ता कमजोर होने पर मालवा में पहली बार मुसलमान सुल्तानों ने स्वतंत्र सत्ता का डंका बजाया। यह स्वतंत्र सत्ता दिलवार खां गोरी ने स्थापित की थी। मुगलों के आक्रमणों के पूर्व तक यहाँ इन्हीं सुल्तानों का राज्य रहा, माँडू इनकी राजधानी बनी।
- दिल्ली सल्तनत के पतन के दिनों में ग्वालियर राज्य पुनः स्वतंत्र हो गया।
- सन् 1526 ईसवीं में बाबर ने इब्राहीम लोदी को पराजित किया, उसने मध्यप्रदेश के ग्वालियर, चंदेरी एवं रायसेन के क्षेत्र जीते। हुमायूँ ने गुजरात के बहादुरशाह को हराकर पश्चिम मध्य भारत जीता। मंदसौर, उज्जैन, धार, मांडू उसके आधीन थे।
- हुमायूँ की पराजय के साथ ही शेरशाह मालवा का सुल्तान बना । शेरशाह ने शुजात खां को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया। शेरशाह की मृत्यु के बाद मालवा के शासक पुनः स्वतंत्र हो गये।
- अकबर के काल में मध्यप्रदेश के मालवा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हुआ, वहाँ का सुल्तान बाजबहादुर परजित हुआ। जैसा कि लिखा जा चुका है ऊपरी नर्मदा घाटी जो अब गोंडवाना कहलाती थी पर भी अकबर के सेनापति आसफ खाँ ने आक्रमण किया। यहाँ की रानी दुर्गावती ने आधीनता स्वीकार करने के स्थान पर युद्धभूमि में वीरता से लड़कर वीरगति प्राप्त की। अकबर के काल में संपूर्ण मध्यप्रदेश मुगल साम्राज्य का अंग बना जो औरंगजेब के अंतिम वर्षों तक रहा।
- औरंगजेब के जीवन काल में ही चम्पतराय के पुत्र छत्रसाल बुन्देला ने बुन्देलखण्ड में एक स्वतंत्र राज्य की नींव रख दी।
- मुगलों के साम्राज्य की जड़ें मराठों ने खोखली कर दी। 1722 23 ई. में पेशवा बाजीराव ने मालवा पर हमला कर उसे लूटा।
- सन् 1731 में अंतिम रूप से मालवा का एक बड़ा भाग तीन प्रमुख मराठे सरदारों पवार (धार एवं देवास), होल्कर (पश्चिम निमाड़ से रामपुरा भानपुरा तक) और सिंधिया ( बुरहानपुर, खण्डवा, टिमरनी, हरदा, उज्जैन, मंदसौर व ग्वालियर) के आधीन हो गया।
- हैदराबाद के निजाम ने मराठों को रोकने की योजना बनाई लेकिन पेशवा बाजीराव ने शीघ्रता की तथा सीहोर एवं होशंगाबाद का क्षेत्र उसने अपने आधीन कर लिया।
- सन् 1737 ईस्वी में भोपाल के युद्ध में उसने निजाम को हराया। युद्ध के उपरान्त निजाम ने नर्मदा चंबल क्षेत्र के बीच के सारे क्षेत्र में मराठों का अधिपत्य मान लिया। रायसेन में मराठों ने एक मजबूत किले का निर्माण किया।
- मराठों की अंतर्कलह के चलते अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद खाँ ने भोपाल में स्वतंत्र नवाबी राज्य की स्थापना की।
- अंग्रेजों के आने के पश्चात् मराठे उनसे पराजित हुये। अंत में मध्य भारत के छोटे-छोटे राजाओं को जो मराठों के अधीनस्थ सामंत थे, राजा मान लिया गया।
- मध्यभारत में सेन्ट्रल इंडिया एजेंसी स्थापित की गई, मालवा कई रियासतों में बंट गया। संपूर्ण विन्ध्य क्षेत्र जो मुगल सत्ता के दिनों में भी हिन्दू राजाओं के अधिकार में था अब तक बहुत से छोटे राज्यों में बंट चुका था सभी ने अंग्रेजों की सत्ता स्वीकार कर ली थी। शेष मध्यप्रदेश जिसमें नर्मदा घाटी का क्षेत्र था अंग्रेजों ने अपनी सत्ता में सीधे नर्मदा टेरिटरीज के अंतर्गत रखा।
- 15 अगस्त 1947 को भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तदनन्तर पुराने राज्यों को पुनर्गठित किया गया, तथा नये मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ।
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