मध्यप्रदेश के नागवंशी राजाओं का राज्यक्षेत्र। पद्मावती का इतिहास । MP Men Nangvanshi Raja
मध्यप्रदेश के नागवंशी राजाओं का राज्यक्षेत्र, पद्मावती का इतिहास
मध्यप्रदेश के नागवंशी राजाओं का राज्यक्षेत्र
- मध्यप्रदेश के इतिहास में नागवंशी राजाओं का शासनकाल इतिहास में अपनी विशिष्ट महत्ता रखता है।
- मध्यप्रदेश में नागवंशी राजाओं के राज्य के मुख्य केन्द्र पद्मावती, एरण, विदिशा तथा कान्तिपुरी रहे हैं। मध्यप्रदेश से बाहर मथुरा में भी उनका शासन रहा है। नागवंशी राजाओं के संबंध में जानकारी अनेक प्राचीन स्रोतों से मिलती है जिनमें संस्कृत काव्य, पुराण तथा सिक्के उल्लेखनीय हैं।
- नागवंश के शासकों के स्वयं के कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं हैं परन्तु इनके सिक्के प्रचुर मात्रा में प्रचलित किये गये और इन्हीं से इनके इतिहास के ताने बाने बुने गये। नागवंश के संबंध में पुराणों के विवरणों के इतिहासकारो ने अनेक और परस्पर विरोधी अर्थ लगाये हैं।
मध्यप्रदेश के नागवंशी राजाओं के संबंध में विष्णुपुराण लिखता है :
'नवनागा: पद्मावत्यां कान्तिपुयां, मथुरा, यामुन
गंगा प्रयाग मागधा गुप्ताश्च मौक्ष्यंति ।'
- (इसका तात्पर्य है कि जब नवनाग पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा में राज्य कर रहे थे तब मगध के लोगों के साथ गुप्त गंगा तट वाले प्रयाग में राज्य करने लगे। उपर्युक्त कथन में 'नवनाग' का अर्थ इतिहासकारों ने दो प्रकार से किया है। पहला अर्थ संख्यावाचक नौ का द्योतक है तो दूसरा नये का। इन दो अर्थो से नागों के इतिहास पर बड़ा फर्क पड़ता है (आरके शर्मा, 2006 ) ।
- गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के इलाहाबाद प्रस्तर स्तम्भ लेख में उन राजाओं की सूची है जिन्हें समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, इसमें गणपति नाग का नाम आता है जो संभवतः इस वंश का अंतिम राजा था। समुद्रगुप्त के उपरोक्त अभिलेख में आर्यावर्त के नागदत्त तथा नागसेन नामक दो शासकों का भी उल्लेख आया है जिनका समुद्रगुप्त द्वारा नाश किये जाने का वर्णन है। नागसेन का उल्लेख पद्मावती के राजा के रूप में बाण रचित 'हर्षचरित' में आया है। परन्तु इस नागसेन के कोई सिक्के अब तक प्राप्त नहीं है।
- उपर्युक्त साक्ष्यों से नागों के परवर्ती काल के संबंध में तो जानकारी मिलती है पर प्रारंभिक काल के बारे में काफी कुछ जानकारी मिलना शेष है।
- इतिहासकारों के अनुसार नागवंश का संस्थापक वृषनाग था जिसने दूसरी शताब्दी के अंत में विदिशा में इस वंश की स्थापना की। कालांतर में यहीं से वे पद्मावती, कांतिपुरी और मथुरा गये।
- विदिशा नागवंश का एक महत्वपूर्ण गढ़ था बेसनगर उत्खनन (1913-14) में यहाँ पर नागों के सिक्के मिले थे। ऐसा समझा जाता है वृषनाग के पश्चात् भीमनाग का शासन हुआ तथा उसने अपनी राजधानी को विदिशा से पद्मावती स्थानांतरित किया। भीमनाग के उत्तराधिकारियों ने भी पद्मावती को राजधानी बनाकर राज्य किया।
- नवनाग को यदि नये नाग माना जाये तब यह कहा जा सकता है कि पुराने नाग वे थे जो शुंगों के पूर्ववर्ती थे तथा नये नाग वे हुये जो शुंगों के पश्चात् हुये। पुराने नागों का काल मौर्यों के समय से प्रारंभ होता है उस समय वे मगध एवं मालवा में (विदिशा) दोनों जगह थे यद्यपि यह ठीक ज्ञात नहीं है कि उस समय इन दोनों जगहों के नागों में क्या संबंध था। प्राचीन नाग वंश का राजा शिशुनाग था जिसकी राजधानी राजगृह (बिहार) में थी।
- मध्यप्रदेश के नागवंश या नवनागों के अधिकार में विदिशा, पद्मावती, कान्तिपुरी और मथुरा तक का क्षेत्र था ये सभी नगर शुंगकाल और उसके पश्चात् के कालखण्ड में उस महापथ पर स्थित थे जिसमें तत्कालीन भारत का अधिकतम् व्यापार होता था। यह देशी विदेशी व्यापार का प्रधान मार्ग था। पद्मावती का महत्व नागवंश के राजाओं के शासन काल में बहुत अधिक बढ़ा नाग राजाओं की टकसाल पद्मावती में थी, इस टकसाल से निकले लाखों सिक्के मिल चुके हैं।
पद्मावती के नवनाग शासकों के नाम
- पद्मावती के नवनाग शासकों के नाम क्रमशः वृषनाग, भीमनाग, स्कन्दनाग, वसुनाग, वृहस्पतिनाग, व्याघ्रनाग, विभूनाग, रविनाग, भवनाग, प्रभाकरनाग और गणपति नाग हैं गणपति नाग इस वंश का अंतिम राजा था।
पद्मावती हिन्दु संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र
- पद्मावती ईसा की प्रथम चार पाँच शताब्दियों तक हिन्दु संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र रही। पद्मावती ग्वालियर से दक्षिण पश्चिम 40 मील दूर पवाया गाँव है इसे पदम पवाया भी कहा जाता है। यह कालीसिंध तथा पार्वती नदियों के संगम पर बसा है।
- पद्मावती गुप्त काल से पूर्व भी एक ऐश्वर्यशाली नगर था। इस नगर के संबंध में सर्वप्रथम साक्ष्य प्रस्तुत करने वाली कृतियाँ है पुराण पुराणों मे अश्वमेध करने वाले स्वतंत्र शासकों की सूची दी गई है।
- आज जिन नागराजाओं के पद्मावती पर शासन करने का उल्लेख मिलता है उनमें अनेक नागशासकों के नामोल्लेख पुराणों में हैं, जिन राजाओं का उल्लेख पुराणों में नहीं है उस कमी को सिक्के पूरा कर देते हैं।
- पद्मावती का उल्लेख करने वाली दूसरी कृति है बाणभट्ट की हर्षचरित संस्कृत कवि एवं नाटककार भवभूति ने अपने नाटक 'मालतीमाधव' में भी पद्मावती का उल्लेख किया है। नागवंशी राजाओं ने बहुत बड़ी संख्या में तांबे के सिक्के चलवाये जो नाप तौल आकार में समानता लिये है
पद्मावती से अब तक तेरह राजाओं के सिक्के प्राप्त हो चुके है, ये राजा है
1. वृषनाग
2. वृषभवनाग
3. भीमनाग
4. स्कन्दनाग
5. वसुनाग
6. वृहस्पतिनाग
7. विभुनाग
8. रविनाग
10.प्रभाकर नाग
9.भवनाग
11.देवेन्द्रनाग
12.गणपतिनाग
13. व्याघ्रनाग
- इन सभी राजाओं में गणपति नाग का शासन नागवंश का चरमोत्कर्ष काल था। गणपतिनाग, नागसेन और अच्युत, नन्दी कौशाम्बी के युद्ध में गुप्तों द्वारा पराजित कर दिये गये। गणपतिनाग तथा अन्य राजाओं के अंतिम दिनों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
- पद्मावती नगरी कैसे और क्यों नष्ट हुई इसका ठीक पता नहीं है किंतु बाणभट्ट ने एक घटना का 'हर्षचरित' में उल्लेख किया है। 'हर्षचरित' के षष्ठोच्छवास में उल्लेख है कि पद्मावति नागसेन की सारिका द्वारा भेद खोल दिये जाने के कारण नष्ट हुई।
- पद्मावती ईसा की प्रथम चार पांच शताब्दियों तक हिन्दू संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र थी। इसके स्थान निर्धारण में विद्वानों में मतभेद था परन्तु अब यह सभी मानते हैं कि पद्मावती ग्वालियर से दक्षिण-पश्चिम की ओर थी, आज वह पवाया या पदम पवाया के नाम से एक छोटा सा गांव है।
- सिंधु (कालीसिंध) और पार्वती नदियों के संगम पर बसी पद्मावती का अस्तित्व 11वीं शताब्दी तक रहा। ऐसा समझा जाता है कि नागवंश का शासन किसी तरह की संघीय प्रणाली पर आधारित था।
- पद्मावती समृद्ध नगरी थी। यह नगरी सांस्कृतिक संस्थान और धार्मिक स्थल होने के साथ ही व्यापार का एक बड़ा केन्द्र थी। भारत के मुख्य व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण दूर-दूर से आये व्यापारी यहाँ ठहरते थे तथा वस्तुओं का आदन प्रदान करते थे।
पद्मावती से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष
पद्मावती से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों में से दो विशेष उल्लेखनीय है, वे हैं
- 1. यक्ष मणिभद्र की प्रतिमा जिस पर शिवनन्दी के शासन का लेख उत्कीर्ण है
- 2. खंडित ताड़ स्तंभ शीर्ष आदि।
- पद्मावती से प्राप्त नागयुगीन मृणमूर्तियाँ जो कि विष्णु मंदिर से मिली हैं मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने की कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं।
- तिवारी (1997) के अनुसार यहाँ की मृणमूर्तियों में नारी शीर्षों की केश सज्जा और चेहरे के भाव अत्यंत भावोत्प्रेरक हैं। मृण्मय मूर्तियों में ऐसे कम उदाहरण मिलते हैं जहाँ भावों को सफलता से प्रदर्शित किया गया हो..... जिन पशु पक्षियों को मृदा शिल्प में दर्शाया गया है वे मयूर, तोता, कबूतर, मछली, शूकर और वानर हैं। पद्मावती से प्राप्त अवशेष ग्वालियर संग्रहालय में संरक्षित हैं।
भवभूति के मालती माधव नाटक में पद्मावती की समृद्धि का विवरण उल्लेखनीय है:
'पद्मावती विमल वारिविशाल सिंधु
पारासरि त्परिकज्छलतौ विभर्ति
उत्तुंग सौध सुरमंदिर गोपुराट्ट
संघट्टषाटिव विमुक्तमिवांतरिक्षम् ॥
- पद्मावती नागों के शासन काल में भारत की गौरवशाली नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रही, कालांतर में नागों के पतन के साथ ही उसकी ख्याति भी धूमिल होती चली गई। मध्यकाल में यद्यपि स्थापत्य कला के कुछ नमूने तैयार हुये परन्तु उत्तर मध्यकाल तक पद्मावती खण्डहर में बदलकर गुमनामी में खो गई।
Jay सुहेलदेव राजभर जी
ReplyDeleteजय भारशिव नागवंशी