निबंध का शाब्दिक अर्थ । निबंध के तत्व निबंधों के प्रमुख भेद । Nibandh Ka Arth Evam Prakar
निबंध का शाब्दिक अर्थ , निबंध के तत्व निबंधों के प्रमुख भेद
निबंध का शाब्दिक अर्थ
- 'निबंध' संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'संवार कर सीना। प्राचीन काल में हस्तलिखित ग्रंथों को संवार कर सिया जाता था और इस प्रक्रिया को निबंध कहते थे । धीरे-धीरे इस शब्द का प्रयोग ग्रंथ के लिए होने लगा---वह ग्रंथ जिसमें विचारों को बांधा जाता था, निबंध कहलाने लगा। किंतु हिंदी में निबंध शब्द का अलग ही अर्थ है ।
- आज 'निबंध' अंग्रेजी के 'एस्से' शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इस प्रकार निबंध में नये अर्थ जुड़े हैं और अनावश्यक अर्थों का त्याग हुआ है । फ्रांसिस बेकन ने 'एस्से' को 'डिस्पर्ड मैडिटेशन अर्थात् विखरे विचार माना है। इस धारणा के अनुसार साहित्यकार के मन में उठने वाले विचारों का लिखित रूप 'एस्से' है ।
हिंदी में निबंध शब्द का प्रयोग
- हिंदी में निबंध शब्द का प्रयोग गद्य की उस विधा के लिए होता है जिसमें विचारों को क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है । कविता की अपेक्षा गद्य लिखना कठिन है और गद्य की अपेक्षा निबंध लिखना। इसका कारण यह है कि निबंध में विचारों को एक सुनिश्चित क्रम में ठूंस-ठूंस कर रखा जाता है । निबंध के लेखन के लिए अध्ययन और विषय का ज्ञान आवश्यक है। इन्हीं कारणों से हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने निबंध को 'गद्य की कसौटी माना है ।
हिंदी में निबंध की विशेषताएं
- निबंध एक सीमित आकार वाली रचना है। इसमें विषय का प्रतिपादन निजीपन के साथ किया जाता है। विषय का विकास इस प्रकार से किया जाता है कि उसमें कोई बिखराव न हो ।
- दूसरे शब्दों में विषय के प्रतिपादन में आवश्यक संगति तथा संबद्धता की आवश्यकता होती है । इसमें विवेचन की स्पष्टता के साथ भाषा की स्वच्छता तथा सजीवता की भी आवश्यकता होती है ।
बाबू गुलाब राय के अनुसार निबंध की परिभाषा
- निबंध की इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर बाबू गुलाब राय ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है— 'निबंध सीमित आकार वाली वह रचना है जिसमें विषय का प्रतिपादन, निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता एवं आवश्यक संगति तथा संबद्धता के साथ किया जाता है। इन विशेषताओं के अतिरिक्त निबंध में बुद्धि और हृदय के योग को भी आवश्यक माना गया है।
- इसका अर्थ यह है कि निबंध लेखन में केवल विचारों की ठूंस-ठांस ही नहीं होती, लेखक उसे सरस, सजीव, और रोचक बनाने के लिए उसमें अपने हृदय को भी उडेंलता है इसके लिए कभी तो वह अपने जीवन की घटनाओं का उल्लेख करता है और कभी कुछ अन्य रोचक उदाहरणों का उपयोग कर लेता है। संक्षेप में यह कह सकते हैं कि निबंध लेखन के पीछे लेखक छिपा रहता है। उसका व्यक्तित्व निबंध में कहीं-न-कहीं झलक जाता है और यदि ऐसा नहीं हो पाता तो निबंध अपना सौंदर्य खो बैठता है ।
निबंध के तत्व
निबंध के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं:
i) लेखक का व्यक्तित्व
ii) वैचारिक और भावात्मक आधार
iii) भाषा-शैली
निबंध लेखन में -लेखक का व्यक्तित्व
- लेखक का व्यक्तित्व जब कोई लेखक किसी विषय पर निबंध लिखता है तो उस निबंध में उसका व्यक्तित्व भी आ जाता है। उदाहरण के लिए हम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल या आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंधों को देख सकते हैं। इन निबंधकारों के निबंधों में इनका व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है। इन्होंने जब किसी विषय वस्तु या विचार पर निबंध लिखे तो उनमें इनके व्यक्तित्व की छाप अवश्य पड़ी ।
निबंध लेखन में वैचारिक और भावात्मक आधार
- निबंध की रचना हवा में नहीं की जा सकती। निबंधकार निबंध में या तो किसी विचार की अभिव्यक्ति करता है या किसी भावना का चित्रण करता है। उदाहरण के लिए आप आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंधों को लें। 'चिन्तामणि शीर्षक निबंध संग्रह में संकलित 'कविता क्या हैं', 'तुलसी का भक्ति मार्ग आदि उनके विचारात्मक निबंध हैं। इसी प्रकार सरदार पूर्ण सिंह के मजदूरी और प्रेम', 'सच्ची वीरता' आदि भावात्मक निबंध है ।
निबंध लेखन में भाषा-शैली
- गद्य की अन्य विधाओं के समान निबंध में भी भाषा-शैली का महत्वपूर्ण स्थान है। निबंध की भाषा विषय के अनुरूप होनी चाहिए। सामान्यतया निबंधकार विषय वस्तु के अनुरूप भाषा का चयन करता है। निबंध की भाषा संस्कृतनिष्ठ, उर्दूनिष्ठ तथा बोल-चाल के निकट हो सकती है। जब निबंधकार संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग करता है तो उसे संस्कृतनिष्ठ भाषा कहा जाता है। इसी प्रकार उर्दूनिष्ठ भाषा से तात्पर्य है अरबी, फ़ारसी तथा उर्दू के शब्दों की अधिकता । कई बार यह भी देखने में आया है कि निबंधकार इन तीनों का मिश्रण करके निबंध लेखन करता है ।
निबंध लेखन की शैली
शैली वाक्य रचना की दृष्टि से निबंध की 2 प्रमुख शैलियों हैं:
(1) व्यास शैली और (2) समास शैली
निबंध लेखन की व्यास शैली
- निबंध लेखन की व्यास शैली में लेखक विस्तारपूर्वक अपनी बात को समझाता है। इसमें लंबे-लंबे वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। निबंधकार उदाहरणों के द्वारा विषय को स्पष्ट करता है। विषय को विस्तारपूर्वक समझना इस शैली की प्रमुख विशेषता है ।
निबंध लेखन की समास शैली
- समास शैली में लेखक छोटे-छोटे वाक्यों के द्वारा विषय को सूत्र रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें विचारों को ढूंस-ठूंस कर छोटे से वाक्य में भर दिया जाता है तथा इस सूत्र वाक्य को समझने के लिए बुद्धि की आवश्यकता पड़ती है। पाठक को इस शैली के वाक्यों को पढ़ कर कुछ देर के लिए रुकना पड़ता है इस प्रकार के सूत्र वाक्यों की व्याख्या की आवश्यकता होती है और इन्हें समझे बिना आगे बढ़ पाना पाठक के लिए कठिन हो जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध 'क्रोध' से एक उदाहरण देखिए–'बैर क्रोष का अचार या मुरब्बा है। यह लास शैली का उदाहरण है। इसकी व्याख्या समझे बिना पाठक आगे नहीं बढ़ पाता। सामान्यतः निबंध लेखक अपने निबंधों में इन दोनों शैलियों ( त्यास शैली और समास शैली ) का प्रयोग करते हैं ।
निबंधों के प्रमुख भेद प्रकार
मुख्य रूप से निबंधों के निम्नलिखित प्रमुख भेद माने गए हैं :
i) वर्णनात्मक निबंध इनमें किसी स्थान या वस्तु का वर्णन होता है ।
ii) विवरणात्मक निबंध जिन निबंधों में किसी घटना या चरित्र का विवरण दिया जाता है उन्हें विवरणात्मक निबंध कहते हैं।
घटनाएँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं :
क) ऐतिहासिक या पौराणिक कथाओं पर आधारित घटनाएँ,
ख) सच्ची या कल्पित कहानियों पर आधारित घटनाएँ,
ग) राजनीति, समाज या साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन पर आधारित घटनाएँ ।
iii) विचारात्मक निबंध:
- जिन निबंधों में विचारों की प्रधानता होती है उन्हें विचारात्मक निबंध कहते हैं। इस प्रकार के निबंधों में निबंधकार विषय के प्रत्येक पहलू का सोच-समझकर विवेचन करता है । निश्चय ही, इस कोटि के निबंधों में मरिक का अधिक योग रहता है तथा चिन्तन की प्रधानता होती । सैद्धान्तिक विषय का विवेचन इस प्रकार के निबंधों की सीमा में आता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का 'कविता क्या हैं शीर्षक निबंध इसका अच्छा उदाहरण है।
- उपरिलिखित वर्गों के अतिरिक्त निबंध के कुछ और प्रकार भी माने गए हैं जैसे मनोवैज्ञानिक निबंध इस प्रकार के निबंधों में मानव के मनोभावों का विश्लेषण किया जाता है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के 'उत्साह', 'क्रोध' आदि निबंध इसी प्रकार के हैं। मनोभावों का यह विवेचन विचारात्मक होता इसलिए कुछ विद्वान इन निबंधों को मनोवैज्ञानिक न कहकर विचारात्मक भी कह देते हैं ।
उपरिलिखित वर्गीकरण के स्थान पर कुछ आलोचक निबंध के निम्नलिखित दो मुख्य प्रकार मानने के पक्ष में हैं:
i) विषयप्रधान निबंध :
- इस कोटि के निबंधों में निबंधकार की दृष्टि विषय पर केन्द्रित रहती है । वह विषय का इस प्रकार विवेचन करता है कि उसके विभिन्न पहलू पाठक के सामने स्पष्ट हो जाते हैं ।
ii) विषयिप्रधान निबंध :
- इन निबंधों में लेखक का व्यक्तित्व पूरी तरह छाया रहता है । वह विषय का विवेचन भावना के घरातल पर० करता है और उसमें पूरी तरह डूब जाता है । इस प्रकार के निबंधों को ललित निबंध भी कह दिया जाता है।
Post a Comment