मौखिक संप्रेषण अवधारणा और प्रकार । अपभाषा का अर्थ और मुख्य लक्षण । Oral Communication Apbhasha
मौखिक संप्रेषण अवधारणा और प्रकार, अपभाषा का अर्थ और मुख्य लक्षण
मौखिक संप्रेषण (Oral Communication) : अवधारणा और प्रकार
- किसी भाषा का उल्लेख होते ही उसमें प्रयुक्त ध्वनियाँ, शब्दावली आदि के साथ उसके वर्णों तथा लेखन (लिपि) की संकल्पना भी हमारे मस्तिष्क में उत्पन्न होती है। यह सही है कि लिपि आज चाहे जितनी भी महत्वपूर्ण हो गई हो, किंतु इसका विकास भाषा में अपेक्षाकृत देर से हुआ। यह एक निर्विवाद सत्य है कि भाषा का आरंभ मौखिक या उच्चरित रूप से हुआ।
- आदि मानव को जब अपने मस्तिष्क में उत्पन्न विचारों को दूसरों तक संवाद अथवा बातचीत के द्वारा पहुँचाने की आवश्यकता अनुभव हुई, तभी से उच्चरित या मौखिक संप्रेषण का उद्भव हुआ संप्रेषण केवल दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सीधे संवाद का ही नहीं बल्कि आत्माभिव्यक्ति का भी माध्यम है।
- जब व्यक्ति केवल अपने आपको अभिव्यक्त करना चाहता है और उसके समक्ष श्रोता न हो, वहाँ उसे अभिव्यक्ति या संप्रेषण की दूसरी सरणियों अथवा तरीकों की आवश्यकता अनुभव होती है। अनेक पर्वत श्रेणियों और गुफाओं आदि में उकेरित चित्र एवं चित्र लिपि अभिव्यक्ति के ऐसे ही माध्यम हैं। इसी क्रम में आगे चलकर लिपि का विकास भी हुआ।
- आदि मानव के शैल चित्रों के बाद लिपि का सबसे पहला रूप चित्रलिपि ही था। इसमें आज की तरह ध्वनि प्रतीक न होकर वस्तु प्रतीक ही चित्रित होते थे। उदाहरण के लिए मनुष्य, पशु, बर्तन, हथियार जैसी वस्तुओं के द्योतन के लिए इन वस्तुओं से मिलते-जुलते चित्र बना लिए जाते थे। ये चित्र ही लिपि चित्र होते थे और उस वस्तु का प्रतीक भी। आज भी यातायात संबंधी संकेतों का प्रयोग ऐसे चित्रों या प्रतीकों के रूप में किया जाता है। इस लिपि के संप्रेषण की विशेषता इसकी स्पष्टता तथा अर्थबोधन की सहजता है।
संप्रेषण का मौखिक रूप प्रयोग के आधार पर कई प्रकार का मिलता है। प्रयोक्ता किस वर्ग, शिक्षा, वय, जाति, धर्म, आदि से संबद्ध है, तदनुसार संप्रेषण के अनेक रूप उभर कर आते हैं, जैसे- साहित्यिक, बोलचाल, शुद्ध-अशुद्ध एवं ग्राम्य । प्रयोग के आधार पर संप्रेषण के जो भेद किए जा सकते हैं उसके तीन आधार प्रयोग का क्षेत्र, साधुत्व ( शुद्ध एवं अशुद्ध) और प्रचलन (भाषा जीवित है या मृत) हैं।
- निर्माता के आधार पर संप्रेषण का मौखिक रूप बदलता रहता है। भाषा का निर्माता कौन है? उसका क्या स्तर है? इस आधार पर भी संप्रेषण के अनेक रूप हो जाते हैं। यदि किसी भाषा का निर्माता समाज या देश हैं तो उस भाषा का संप्रेषण क्षेत्र विस्तृत होता है। वह मौखिक रूप में भी परंपरागत रूप से प्रचलित रहती है। इसके विपरीत यदि भाषा का संबंध व्यक्ति विशेष से है या छोटे वर्ग से है तो वह कृत्रिम भाषा या बोली का रूप लेकर संप्रेषण के मौखिक रूप में व्यवहृत होती है।
- अन्य कई (गौण) आधारों पर भी संप्रेषण का वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे संस्कृति, ग्राहयता, सुबोधता मिश्रण आदि के आधार पर भी मौखिक संप्रेषण के भेद, उपभेद संभव है, परंतु इस प्रकार के भेदों, उपभेदों का अध्ययन प्रचलित नहीं है।
- वास्तव में परिनिष्ठित या परिष्कृत भाषा संप्रेषण के मौखिक एंव लिखित दोनों रूपों में प्रयुक्त होती है। साहित्यिक रचनाएँ इसी में होती है। शासन, शिक्षा एवं शिक्षित वर्ग में इसका ही प्रयोग होता है। यह भाषा व्याकरण की दृष्टि से भी परिष्कृत होती है। भाषा का व्याकरण इसी को आधार मानकर निर्मित होता है। अनेक समान भाषाओं में से विशिष्ट समाज या जन-सामान्य में अधिक प्रचलित होने के आधार पर किसी एक भाषा को संप्रेषण हेतु आदर्श मान लिया जाता है। शिक्षित वर्ग इसी का प्रयोग करता है। यह भाषा राजकीय स्तर पर स्वीकृत होने के कारण आदर्श भाषा के रूप में संप्रेषण के लिए व्यवहृत होती है। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रूसी, चीनी आदि भाषाएँ इसी श्रेणी में आती हैं।
- आदर्श भाषा के प्रांतीय या प्रादेशिक रूप भी अनेक हो जाते हैं। इस भाषा के मौखिक तथा लिखित दो रूप होते हैं। मौखिक' रूप में, छोटे, सरल और सुबोध वाक्यों में संप्रेषण होता है। 'लिखित' रूप में प्रायः बड़े और कठिन वाक्यों का भी प्रयोग होता है। यह भाषा प्रायः संपादित होती है। इस मौखिक रूप की अपेक्षा सहजता कम मिलती है।
मौखिक रूप में, संप्रेषण की सबसे छोटी इकाई
- मौखिक रूप में, संप्रेषण की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति बोली (Ideolect) होती है। यह भाषा की सबसे छोटी इकाई है। एक व्यक्ति की भाषा को व्यक्तिगत बोली कहा जाता है। एक समान भाषा होते हुए भी एक व्यक्ति की भाषा का रूप दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। ध्वनि-भेद, स्वर-भेद, सुर-भेद, आदि के आधार पर अलग-अलग व्यक्ति के भाषा रूप को पहचाना जा सकता है। इसी आधार पर केवल ध्वनि को सुनकर हम किसी व्यक्ति विशेष को अंधकार में भी पहचान लेते हैं। व्यक्ति भेद से संप्रेषण में भी भेद हो जाता है। इस प्रकार व्यक्तियों की पृथक-पृथक ध्वनियों का विश्लेषण भी किया जा सकता है।
1 अपभाषा का अर्थ और मुख्य लक्षण
संप्रेषण के मौखिक रूप में ही अपभाषा (slang) भी आती है। अशिष्ट, असभ्य और अपरिष्कृत अथवा असंस्कृत भाषा को अपभाषा कहते हैं। महाभाष्यकार पतंजलि ने सर्वप्रथम अपभाषा की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
उनका कथन है - ब्राह्मणेन न म्लेच्छितवै नापभाषितवै। (महाभाष्य आह्निक – 1)
ब्राह्मण अथवा विद्वान को म्लेच्छ भाषा अर्थात् अशुद्ध भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
अपभाषा में निम्नलिखित बातें होती हैं -
व्याकरणिक असम्मतता -
- इसमें शुद्धि-अशुद्धि का ध्यान न रखते हुए अमानक रूपों का प्रयोग होता है; जैसे- एकर (इसका), ओकर (उसका), गउवाँ (गाँव), गवा (गया) आदि का प्रयोग होता है।
वाक्य रचना अपरिष्कृत
- इसमें वाक्य-रचना प्रायः परिष्कृत नहीं होती, जैसे- मैं - बोला (मैंने कहा), मेरे से यह काम न होगा (मुझसे यह काम नहीं होगा), आदि।
अशिष्ट शब्द का प्रयोग
- शिष्ट समाज में अनुचित माने गए शब्दों का प्रयोग करना, जैसे- रंडी - पुत्रः, वंध्यापुत्र, अबे-तबे आदि का संबोधन, गाली वाचक शब्द ।
अपरिष्कृत मुहावरों का प्रयोग
- इसके अंतर्गत मनगढ़ंत मुहावरों का प्रयोग सम्मिलित है। अर्थ विस्तार या अर्थसंकोच आदि की दृष्टि से मारकर भुस भरना, मक्खन लगाना, मक्खनबाजी, पिटाई के लिए हजामत बनाना या कचूमर निकालना आदि मौखिक संप्रेषण प्रयोग में आते हैं।
- अपभाषा, संप्रेषण के मौखिक रूप में शैक्षिक और सामाजिक दृष्टि से प्रायः निम्न वर्ग में प्रचलित होती है। इसका प्रयोग भी वर्ग विशेष या समाज विशेष में ही प्रचलित है। निम्न वर्ग के व्यक्तियों और समवयस्क लोगों के हास्य-विनोद में भी इसका प्रयोग मिलता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से अपभाषा का अध्ययन भाषा विषयक एवं संस्कृति विषयक अनेक तथ्यों का परिचायक होता है।
2 मौखिक संप्रेषण और मानसिक पक्ष
- विचार हमारे लिए निर्देशक तत्व का कार्य करते हैं और ध्वनियंत्र संवाहक का वक्ता जब अपनी हृदयगत भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है तो उसके मन में उस भाव का एक स्वरूप अनिश्चित होता है। तदनुकूल शब्द चयन का कार्य भी उसका मानसिक पक्ष या बुद्धि ही करती है।
- मन में उत्पन्न भावनाओं की उग्रता, व्यग्रता या प्रफुल्लता के अनुरूप ही वाणी में तदनुकूल कंपन होता है। वक्ता की भावनाओं का बोध उसकी मौखिक उच्चरित ध्वनि से स्पष्ट हो जाता है। कुछ विद्वानों ने इसे आंतरिक भाषा (Inner speech) की संज्ञा दी है।
- मानसिक पक्ष में व्यक्त वाक की प्रकाशन क्षमता नहीं है, इसलिए इसे पंगु कहा गया है। ध्वनियंत्र में प्रकाशन या अभिव्यक्ति की क्षमता हैं, गतिशीलता है किंतु उसमें विचार की क्षमता नहीं है। अतः मानसिक पक्ष एवं वाक् पक्ष के समन्वय से ही संप्रेषण का मौखिक रूप प्रकट होता है। अतः मानस पक्ष और मौखिक पक्ष में क्रमशः आत्मा और शरीर का संबंध है।
- मौखिक उच्चारण या संप्रेषण प्रक्रिया में शरीर के किन-किन अवयवों की सहायता ली जाती है, यह ध्वनि-विज्ञान के विवेचन तथा विश्लेषण का विषय है। ध्वनि-विज्ञान, स्वरतंत्री, कंठ तालु घोष-अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण आदि भौतिक आधार को लेकर चलता है। भौतिक आधार से ही भाषा अपने संप्रेषण का मौखिक स्वरूप ग्रहण करती है। यह भाषा का बाह्य पक्ष है। भौतिक आधार साध्य है। दोनों का समन्वय ही संप्रेषण की सृष्टि करता है।
- यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार उच्चरित ध्वनियों का सूक्ष्म विश्लेषण संभव है, उसी प्रकार भाषा के मूल में विद्यमान वैचारिक पक्ष का विश्लेषण संभव नहीं है। इसीलिए अलग से भाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा-दर्शन तथा भाषा- मनोविज्ञान जैसे नवीन अध्ययन क्षेत्रों की संकल्पना प्रस्तुत की गई ताकि वैचारिक पक्ष लेकर उसका अध्ययन मनन एवं विश्लेषण अलग से किया जा सके।
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