रविन्द्र नाथ टैगोर का चिन्तन। टैगोर के शिक्षा पर विचार। Ravindra Nath Tagore Ethics
रविन्द्र नाथ टैगोर का चिन्तन, टैगोर के शिक्षा पर विचार
रविन्द्र नाथ टैगोर का चिन्तन
- विश्व साहित्यिक क्षेत्र में टैगोर का नाम गौरव के साथ लिया जाता है। उनकी विशेषता थी, चिन्तन की गहराई, प्रकृति का सजीव चित्रण एवं जीवन के विभिन्न पहलुओं का मार्मिक वर्णन। वे भावना में उदार, मानवता के प्रति चिंतित, सौन्दर्य के प्रेमी, अत्यधिक सार्वभौमिक, विचारशील तथा अपूर्व व्यक्तित्व के मालिक थे। भारत में व्याप्त विभिन्न बुराइयों तथा उसकी दासता से वह मर्माहत थे। उन्होंने भारत को बुराइयों एवं दासता से मुक्त कराने हेतु जीवनपर्यन्त संघर्ष किया तथा स्वयं को गाँधी, नेहरू जैसे भारत के महानतम सपूतों की श्रृंखला में जोड़ लिया।
रविन्द्र नाथ टैगोर के चिन्तन पर प्रभाव
- टैगोर के मानसिक पटल पर सबसे पहला प्रभाव उनके पिता देवेन्द्रनाथ की चारित्रिक श्रेष्ठता और गहन धार्मिक आस्था का पड़ा। जिससे उन्होंने अपने विचारों में जीवन की एकता और ब्रह्म की सर्वव्यापकता को आत्मसात किया।
- टैगोर के साहित्य पर वैष्णव कवियों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। टैगोर विज्ञान के क्षेत्र में पाश्चात्य सभ्यता द्वारा की गई प्रगति से प्रभावित थे तथा इसे उन्होंने मानवता के हित में पाश्चात्य सभ्यता का योगदान बताया।
- इन सबके अतिरिक्त टैगोर अपने समय के तीन प्रमुख आंदोलनों राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज के माध्यम से किया गया धार्मिक सामाजिक सुधार आंदोलन, बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा साहित्य के क्षेत्र में की गयी क्रांति तथा 1857 का विप्लव जिसमें उनका परिवार तथा संबंधी सम्मिलित थे, से पूरी तरह प्रभावित थे। इन प्रभावों के कारण उनमें अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति आलोचनात्मक भाव विकसित हो गया।
टैगोर एक मानवतावादी कवि के रूप में
- टैगोर के काव्य ने सुस्पष्ट रूप में अत्यन्त समृद्ध काव्यात्मक विचार दिये हैं। टैगोर ने विश्व काव्य धारा में एक अभिनव और अनूठा काव्यप्रवाह लाया जिसकी विशेषता हैं सार्वभौमिकता। उनकी साधना में व्यक्ति और सार्वभौमिकता के बीच सामंजस्य मूल संकल्पना पायी जाती है, जो कि भारतीय संस्कृति का आधार है।
- टैगोर के हृदय में क्रियात्मक सौंदर्य के प्रति गहरा झुकाव था। टैगोर ने विश्व के समक्ष उपनिषद के सच्चे अर्थ को उजागर किया। निष्क्रिय जीवन और स्थिर चिन्तन, संसार के प्रति उदासीनता और अनभिज्ञता की जगह टैगोर ने जीवन की दृढ़ता तथा अमरता पर जोर दिया, जिसे उन्होंने उपनिषदों में पाया।
- टैगोर की कविता एवं सुन्दरता के प्रति उनका निश्चित झुकाव आपस में सद्भावपूर्ण आबद्ध है। टैगोर की दृष्टि में सत्य को सुंदरता से अलग नहीं किया जा सकता। टैगोर का काव्य-सौंदर्य अत्यधिक नैतिक तनाव एवं मानवता के प्रति उनके से ओतप्रोत है। कमजोर एवं निर्धनों के प्रति उनमें गहरी सहानुभूति थी जो सामाजिक न्याय पर आधारित थी। यह ज्ञान युग की भी उत्कृष्ट आकांक्षा है।
टैगोर के शिक्षा पर विचार
- टैगोर ने इस तथ्य को अत्यन्त निकटता से महसूस किया कि विद्यालय प्रणाली ( जो उस जमाने में प्रचलित थी) छात्रों समाज और प्रकृति से पृथक करती हैं तथा असामान्य स्कूली वातावरण तैयार करती है।
- अतः उन्होंने शान्ति निकेतन में एक विद्यालय खोलने का निर्णय किया। जिसका उद्देश्य शिक्षा को एक प्रभावशाली औजार बनाना तथा आनन्दायक अनुभवों में परिणत करना था। टैगोर ने शिक्षण संस्थाओं की ग्रामीण-पद्धति पर जोर दिया जो कि प्राचीन काल की तपोवन शिक्षा का ही एक रूप था। उन्होंने एक तर्क प्रस्तुत किया कि जीवन खुले आकाश के नीचे, धरती के अन्तस्थल में बच्चों के शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी है।
- टैगोर ने यह भी महसूस किया है कि कम से कम विकासशील बच्चों के लिए बनावटी शहरी वातावरण, जो मूल्यों के प्रति दुश्चिता का परिणाम है, शत्रु के समान है, यह आध्यात्मिक वृद्धि में बाधक है। उन्होंने सोचा कि इस प्रकार की खुली हवा बच्चों को पढ़ाया जाना प्रकृति के साथ गहरे सम्पर्क को बढ़ावा देना है तथा शिक्षा को में अनौपचारिकता प्रदान कर उसे ज्यादा आनंददायक बनाना है। सबसे बढ़कर तो यह शिक्षा को सस्ता बनाता है। टैगोर चाहते थे कि स्कूलों में कुछ ऐसा प्रावधान हो जिससे में नैतिक चरित्र का निर्माण करने में मदद मिले।
- टैगोर यह भी चाहते थे कि शिक्षण की प्रक्रिया में कुछ सुधार हो तथा इसको इस ढंग से साकार किया जाए कि यह ज्यादा आनंददायक और रुचिकर हो । इस आधारभूत सुधार के लिए टैगोर ने ऐसी आवासीय संस्थाओं की आवश्य महसूस किया जहां शिक्षक छात्र साथ-साथ रह सकें तथा अपने वीच वैयक्तिक संबंध स्थापित कर सकें। टैगोर ने ब्रह्मचर्य व्यवस्था को फिर से बहाल करना चाहा ताकि छात्रों को अनुशासन की शिक्षा दी जा सके और शिक्षा के लिए आधार तैयार किया जाये। टैगोर की योजना में अनुशासन और आवासीय प्रणाली एक दूसरे के पूरक हैं। अत: दोनों को साथ-साथ चलना चाहिए। उन्होंने यह अनुभव किया कि नैतिक शिक्षा को तभी आत्मसात किया जा सकता है जब साथ रह रहे शिक्षकों का भी नैतिक चरित्र उच्च हो ।
- उन्होंने यह भी अनुभव किया कि छात्रों के जीवन के निर्माण काल में छात्रों को जन साधारण की परेशानियों के बारे में नहीं बताया जाना चाहिए। क्योंकि, निम्न चरित्र वाले व्यक्तियों के क्रियाकलाप उनके मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं एवं उनमें अनुचित और अपरिपक्व इच्छा जागृत हो सकती है। इसमें छात्रों को ऐसी शिक्षा देने पर बल दिया जो उनमें आन्तरिक बल उत्पन्न करे ताकि वे बाद के जीवन में दूसरों के अशोभनीय क्रिया कलापों का सामना करने में समर्थ हो सके।
- टैगोर में शिक्षण संस्थाओं को चलाने में छात्रों की सक्रिय भागीदारी का खुलकर पक्ष लिया। यह सक्रिय भागीदारी छात्रों की अधिशेष ऊर्जा की निकासी एवं उनके चरित्र के बहुमुखी विकास में सहायक हो सकती हैं। परिसर में एक स्वस्थ और सुन्दर वातावरण का निर्माण करने में योगदान देकर उन्होंने सक्रिय भागीदारी का आनंद महसूस किया। इसमें एक सौन्दर्यानुभूति भी विकसित होती है। छात्रावास चलाने की जिम्मेदारी छात्रों में अपनापन का भाव और जिम्मेदारी का अहसास कराती है तथा संस्थान की सेवा के लिए सहयोगात्मक प्रयास अपनाना भी सिखाती है। विद्यालय शिक्षा के इन आदर्शों को साकार करने के लिए टैगोर ने शान्ति निकेतन को कालांतर में विश्वविद्यालय में परिणत कर दिया गया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा के मुख्य उद्देश्य हैं
1. मनुष्य की सम्पूर्ण प्रकृति को सुस्पष्ट बनाना।
2. छात्रों को अपने आपको अभिव्यक्त करने में समर्थ बनाना।
- टैगोर ने सोचा कि इसे एक ऐसी शिक्षा प्रणाली द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जहाँ छात्रों को भावों, पंक्तियों के विचार, ध्वनि तथा शरीर के क्रियाकलापों द्वारा व्यक्त करने का अवसर मिलता है जैसे- चित्रकला, संगीत और नृत्य द्वारा ।
- ललित कला का प्रशिक्षण न सिर्फ भावात्मक क्षमता को विकसित करता है बल्कि छात्रों को शब्दों के अतिरिक्त अन्य माध्यम के द्वारा भी अभिव्यक्ति अर्जित करने में मदद करता है। शिक्षा की उपयोगिता सिर्फ तथ्यों को एकत्र करना मात्र ही नहीं बल्कि • मनुष्य को समझना तथा खुद को दूसरे मनुष्य को समझने योग्य बनाना है। अत: टैगोर ने लंलित कला को विद्यालयों और महाविद्यालयों में विज्ञान तथा मानविकी विषयों के समकक्ष ही मान्यता पर जोर दिया। टैगोर ने ललितकला और संगीत को राष्ट्रीय अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जिसके बिना लोग अंधेरे में रहते हैं।
- 3. छात्रों को इस लायक बना सके कि वे खुद ज्ञान की उत्पत्ति कर सकें जो कि लाया शिक्षण संस्थाओं का प्रमुख कार्य है। साथ-साथ इन संस्थाओं का अन्य कार्य है ज्ञान का वितरण। इस सक्रिय झुकाव के साथ इस विशिष्टता के लिए छात्रों को संपर्क में जाना चाहिए ताकि उनकी सक्रिय प्रतिभा का विकास हो सके।
- 4. स्थानीय लोगों की सामाजिक, आर्थिक समस्याओं के लिए ज्ञान के प्रयोग को निश्चित बनाना। इसके लिए उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थाओं को स्थानीय लोगों की सामाजिक, आर्थिक प्रगति से स्वाभाविक रूप से जुड़ा होना चाहिए। ये सभी प्रमुख बातें थीं जिनका उपयोग टैगोर ने विश्व भारती विश्वविद्यालय को साकार बनाने में किया।
टैगोर की ग्रामीण पुनर्रचना
- टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों में से एक है किसी भी शैक्षणिक संस्थान से है प्राप्त ज्ञान का प्रयोग स्थानीय लोगों के भौतिक कल्याण में करना। उन्होंने संस्थाओं और उसके आस-पास के गाँवों की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के बीच स्वभावगत संबंधों के बारे में विचार किया इसके अनुसार लियोनार्दो एमहर्स्ट (एक विद्वान अंग्रेज) की सहायता से शान्तिनिकेतन में ग्रामीण कल्याण विभाग (श्री निकेतन) जोड़ा गया। इसके द्वारा आसपास के गांवों में ग्राम पुनर्रचना का कार्य चलता रहा। इस योजना के लिए आर्थिक सहायता लियोनार्दो ने ही की थी। उसने योजना के क्रियान्वयन पर भी नजर रखी ।
- ग्रामीण पुनर्रचना के कार्य को देखते हुए टैगोर ने दो बातों पर जोर दिया, प्रथम कि इन कार्यों को पूरा करने में बाहरी व्यक्तियों की सहायता नहीं ली जानी चाहिए तथा द्वितीय कि ग्रामीण समस्याओं को समाप्त करने में समेकित दृष्टि अपनायी जानी चाहिए। इसे सिर्फ ज्ञान के द्वारा ही नहीं बल्कि शारीरिक श्रम तथा ग्रामीण मजदूरों की भावनागत हिस्सेदारी के माध्यम से प्राप्त किया जाना चाहिए।
- इस विकेन्द्रित योजना ने बाद में सामुदायिक विकास योजना को अवश्य प्रभावित किया होगा।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तीन प्रमुख लक्षण थे
- 1. एक बहुउद्देशीय योजना जिसका लक्ष्य ग्रामीण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विविध क्रियाएँ थी।
- 3. संतुष्ट होने के उपरांत लोगों को विस्तार विधि के लिए प्रेरित करना जिससे वे उन्नत प्रयासों को अपनाएँ।
- प्रथम दो विशेषताएँ टैगोर के सामान्य सिद्धांत में वर्णित हैं तथा एमहर्स्ट के प्रयोग ने विस्तार विधि के समान ही एक विधि का प्रतिपादन किया। इसके प्रभाव से कृषि का ढर्रा ही बदल गया। कुटीर उद्योगों और व्यावसायिक शिक्षण को प्रोत्साहन मिला। अत: इसके माध्यम से टैगोर ने ग्रामीण पुनर्रचना के कार्य में लोगों को ज्ञान के प्रकाश आलोकित किया।
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