रॉयल इण्डियन नेवी विद्रोह बम्बई में नौ- सैनिकों की हड़ताल । नौ सैनिक हड़ताल का विद्रोह के रूप में विकास । Royal Indian Navy Revolt

रॉयल इण्डियन नेवी विद्रोह 
नौ सैनिक हड़ताल का विद्रोह के रूप में विकास

रॉयल इण्डियन नेवी विद्रोह  बम्बई में नौ- सैनिकों की हड़ताल । नौ सैनिक हड़ताल का विद्रोह के रूप में विकास । Royal Indian Navy Revolt



बम्बई में नौ- सैनिकों की हड़ताल

 

  • अंग्रेज 1945 के मध्य से ही भारत में एक उथल-पुथल की आशा करते आ रहे थे लेकिन जिस बात ने उन्हें परेशान कियावह सेना की वफादारी पर आजाद हिंद फौज के मुकद्दमों का प्रभाव थीऔर भारत छोड़ो आंदोलन के बाद तो यह सेना ही उनके शासन का एकमात्र भरोसेमन्द सहारा थी। युद्ध के दौरान और बाद में सैरयरकर्मियों में बढ़ती राजनीतिक चेतना अधिकारियों के लिए पहले ही चिंता का विषय बनी हुई थी। उसमें आजाद हिन्द फौज के मुकद्दमों ने और योगदान किया। 


  • जनवरी 1946 में वायु सेना के लोग अपनी विभिन्न शिकायतों और तकलीफों को लेकर हड़ताल में उतरे। लेकिन अंग्रेजी राज के लिए सचमुच गंभीर खतरा फरवरी 1946 में राजकीय भारतीय नौसेना की खुली बगावत ने किया सबसे बड़ा खतराराजकीय भारतीय नौसेना की बगावत था जो बम्बई में 18 - 23 फरवरी 1946 में हुआ। 
  • औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह सबसे खतरनाक बगावत थी। दुर्भाग्य से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में इसे समुचित महत्व नहीं मिला हैं। युद्ध के समय राजकीय भारतीय नौसेना का विस्तार किया गया जिसमें देश के हर भाग से लोगों को इसमें नियुक्त किया गया जिससे पुराने सैनिक रिवाज कमजोर हुआ। क्योंकि पहले राजनीतिक रूप से अविकसित सैनिक नस्लोंज की सेना में भर्ती की जाती थी। 
  • इस विद्रोह की शुरूआत 18 फरवरी 1946 में हुई जो कि जलयान में समुद्र से बाहर स्थित नौसेना के ठिकानों पर भी हुआ। यद्यपि यह बम्बई से आरम्भ हुआ किन्तु करांची से लेकर कलकत्ता तक पूरे ब्रिटिश भारत में इसे भरपूर समर्थन मिला। 
  • यह विद्रोह एच० एम० आई० एस० तलवार के नौसैनिकों ने खराब भोजन और नस्ली भेदभाव के खिलाफ भूख हड़ताल द्वारा शुरू किया। 
  • हड़ताल के अगले ही दिन हैसल फोर्ट बैरकों और बम्बई बन्दरगाह के 22 जहाजों तक फैल गयी। 


19 फरवरी को एक हड़ताल कमेटी का चुनाव किया गया। नाविकों की माँग निम्न थी -

 

  • बेहतर खाना, 
  • भारतीय और अंग्रेज नौसेनिक के लिए समान वेतन,
  • आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की रिहाई, 
  • राजनीतिक बन्दियों की रिहाई, 
  • सैनिकों के साथ सभ्य बर्ताव एवं व्यवहार, 
  • हिन्द-चीन तथा जावा से सैनिकों की वापसी इत्यादि


  • विद्रोही बेड़े के मस्तूलों पर कम्यूनिस्ट पार्टी कांग्रेस और मुस्लिम लीग के झंडे एक साथ फहरा दिये गये। 20 फरवरी को विद्राहे को कुचलने के लिए सैनिक टुकड़िया बम्बई लाई गयीं। नौ सेनिकों ने अपनी कार्रवाईयों के तालमेल के लिए पांच सदस्यीय कार्यकारिणी चुनी। 20 फरवरी को उन्होंने अपने अपने जहाजों पर लौटने के आदेश का पालन किया जहां सेना गार्डो ने उन्हें घेर लिया। अगले दिन कैसल बैरकों में नाविकों द्वारा घेरा तोड़ने की कोशिश करने पर लड़ाई शुरू हो गई और दोपहर चार बजे युद्ध विराम घोषित कर दिया गया।
  • एडमिरल गॉडफ्रे अब बम्बारी करके नौसेना को नष्ट करने की धमकी दे रहा था। इसी समय लोगों की भीड़ गेटवे ऑफ इण्डिया पर नौसैनिकों के लिए खाना तथा अन्य मदद लेकर उमड़ पड़ी। विद्रोह की खबर फैलते ही कराचीकलकतामद्रास और विशाखापटनम के भारतीय नौसैनिकों तथा दिल्लीठाणे और पूर्ण स्थित कोस्ट गार्ड भी हड़ताल में शामिल हो गये।
  • 22 फरवरी हड़ताल का चरम बिन्दु थाजब 78 जहाज 120 तटीय प्रतिष्ठान और 20000 नौसैनिक इसमें शामिल हो चुके थे। इसी दिन कम्युनिस्ट पार्टी के आह्वान पर बम्बई में आम हड़ताल हुई। नौसैनिकों के समर्थन में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे मजदूर प्रदर्शनकारियों पर सेना और पुलिस की टुकडियों ने बर्बर हमला कियाजिससे करीब तीन सौ लोग मारे गये और 1700 घायल हुए। इसी दिन सुबह कराची में भारी लड़ाई के बाद ही हिन्दुस्तानजहाज से आत्मसमर्पण कराया जा सका। ठीक इसी समय बम्बई के वायु सेना के पायलट और हवाई अड्डे के कर्मचारी भी नस्ली भेदभाव के विरूद्ध हड़ताल पर थे तथा कलकता और दूसरे कई हवाई अड्डों के पायलटों ने भी उनके समर्थन में हड़ताल कर दी थी। कैन्टोनमेंट क्षेत्रों में सेना के भीतर भी असन्तोष और विद्रोह की सम्भावना की खुफिया रिपोर्टों ने अंग्रेजों को भयाक्रान्त कर दिया था। ऐसे हालात में कांग्रेस तथा लीग के नेता आगे आयेक्योंकि सेना के सशस्त्र विद्रोहमजदूरों द्वारा उसके समर्थन तथा कम्युनिस्टों की सक्रिय भूमिका से भारतीय पूँजीपति वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन का बुर्जुआ नेतृत्व स्वयं आतंकित हो गया था। 
  • जिन्ना की सहायता से पटेल ने काफी कोशिशों के बाद 23 फरवरी को नौसैनिकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया। इन्हें आश्वासन दिया गया कि कांग्रेस और लीग उन्हें अन्याय व प्रतिशोध का शिकार नहीं होने देंगें। बाद में पटेल ने यह वादा तोड़ दिया। सेना में अनुशासन पर बल देने के कारण पटेल ने यह कहा था कि स्वतन्त्र भारत में भी हमें सेना की आवश्यकता होगी। 
  • उल्लेखनीय है कि 22 फरवरी को कम्युनिस्ट पार्टी ने जब हड़ताल का आह्वान किया था तो कांग्रेसी समाजवादी अच्युत पटवर्धन और अरुणा आसफ अली ने तो उसका समर्थन किया था लेकिन पटेल ने लोगों से सामान्य ढंग से काम करने की अपील की थी।
  • नेहरू और गाँधी ने सेना द्वारा हिंसात्मक रवैये की निन्दा की कांग्रेस और लीग के नौसेना विद्रोह के प्रति रवैये ने उनके वर्ग चरित्र को उजागर कर दिया। साम्राज्यवादियों के द्वारा इस विद्रोह के दमन पर लीग और कांग्रेस खामोश रहे। जन आन्दोलनों की जरूरत उन्हें बस साम्राज्यवाद पर दबाव बनाने के लिए और समझौते की बेहतर शर्त हासिल करने के लिए थी। 
  • इस प्रकार नौसैनिकों का विद्रोह ज्यादा दिन नहीं चल पाया इसके दो प्रमुख कारण सम्भवत समझे जा सकते हैं। प्रथमब्रिटिश सरकार की पूर्ण सेना की ताकत इनसे कहीं ज्यादा थी। द्वितीयबल्लभ भाई पटेल और जिन्ना ने 23 फरवरी को नौसैनिकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासकों को यह बात समझा दी कि अब सेना की वफादारी पर भारत में ज्यादा समय तक शासन नहीं कर सकते। दूसरी तरफ नौसैनिक इस विद्रोह को लेकर गौर्वान्वित थे राष्ट्र के जीवन में यह एक ऐतिहासिक घटना है पहली बार सेना और आम आदमी का खून राष्ट्रहित में एक थे और एक साथ बहाया गया था ।


  • 18 फ़रवरी से 23 फ़रवरी, 1946 को बम्बई में रॉयल इण्डियन नेवी का विद्रोह हुआ। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में इस विद्रोह को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रॉयल इण्डियन नेवी में भर्ती किए जाने के समय राजनीतिक दृष्टि से कम जागरूक लड़ाकू जातियों में से ही भर्ती बम्बई में नौ-सेना का विद्रोह किए जाने की पुरानी परम्परा के विपरीत सभी क्षेत्रों के अनेक जवानों की भर्ती की गई थी। इन जवानों की विचारधारा लड़ाकू जातियों के जवानों की तुलना में अधिक उन्मुक्त और प्रगतिशील थी। 
  • विश्वयुद्ध के दौरान भी अंग्रेज़ों का जातीय अहंकार तथा जातिभेद का भारतीय नौ- सैनिकों को सामना करना पड़ा था। अब भारतीय नौ-सैनिक युद्ध के दौरान विदेश में हो रही गतिविधियों से भी अवगत हो रहे थे और देश में आईएनए के सैनिकों पर चल रहे मुकदमे की तथा युद्धोपरान्त भारतीयों द्वारा स्वतन्त्रता की मांग किए जाने की भी उनको जानकारी मिल रही थी। 
  • 18 फरवरी, 1946 को सिग्नल्स प्रशिक्षण संस्थान तलवार में खराब खाने तथा जातीय अपमान को लेकर नौ सैनिकों के द्वारा भूख हड़ताल कर दी गई। अगले दिन यह हड़ताल तट पर स्थित कैंसल तथा फोर्ट बैरक्स और बाम्बे हार्बर में मौजूद 22 जहाजों में भी फैल गई। इस हड़ताल में कांग्रेस के तिरंगे, मुस्लिम लीग के अर्धचन्द्र वाले झण्डे और कम्युनिस्टों के हंसिया और हथौड़े वाले झण्डे विद्रोही जहाजों के मस्तूलों पर एक साथ फहरा दिए गए। 
  • नौ सैनिकों ने एम० एस० खान के नेतृत्व में नौ सैनिकों की केन्द्रीय हड़ताल समिति चुनी और राजनीतिक नारे लगाते हुए अपनी मांगे रखीं।


नौ सैनिक हड़ताल का विद्रोह के रूप में विकास

 

  • हड़ताल कर रहे नौ सैनिकों ने इस विद्रोह में हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया और 20 फरवरी, 1946 के अपरान्ह तक शान्त होकर उन्होंने अपने अधिकारियों का आदेश मानकर अपने-अपने जहाजों तथा अपनी-अपनी बैरकों में जाना प्रारम्भ भी कर दिया पर वहां सेना के सुरक्षा सैनिकों ने घेर लिया। 
  • 21 फरवरी 1946 को कैंसल बैरकों में नौ-सैनिकों ने सुरक्षा सैनिकों के घेरे को तोड़ने का प्रयास किया और जहाजों को तथा यूरोपियन अधिकारियों को अपने कब्जे में कर लिया।
  • विद्रोही नौ-सैनिकों ने आत्म समर्पण करने के स्थान पर शस्त्र उठाना उचित समझा एडमिरल गॉडफ्रे ने बम वर्षक विमान मंगवा कर विद्रोही बेड़े को बमबारी कर नष्ट करने की धमकी दी। इसी अपरान्ह जनता ने विद्रोही नौ-सैनिकों के साथ अपना समर्थन जताते हुए गेट वे ऑफ इण्डिया पर उन्हें भोजन उपलब्ध कराया और दुकानदारों ने उन्हें अपनी आवश्यकता का सभी सामान अपने यहां से ले जाने का न्यौता दिया। इस नौ-सैनिक विद्रोह तथा 1905 की रूसी क्रान्ति के समय हुए ब्लैक सी फ्लीट पर हुए विद्रोह में बहुत समानता थी। उस विद्रोह में भी नौ सैनिकों के खराब खाने को लेकर विद्रोह हुआ था और नौ-सैनिकों को जनता का पूर्ण समर्थन मिला था। 
  • 22 फरवरी तक नौ-सैनिक हड़ताल पूरे भारत के नौ-सैनिक ठिकानों में तथा समुद्र में तैनात जहाजों में भी फैल गई। अपने चरम शिखर पर यह विद्रोह 78 जहाजों, 20 तटीय नौ-सैनिक केन्द्रों तक पहुंचा जिसमें लगभग 20000 नौ-सैनिक शामिल हुए। कराची में 'हिन्दुस्तान' बेड़े ने विद्रोह किया और मुठभेड़ में गोलीबारी करने के बाद ही आत्म समर्पण किया। 
  • कराची शहर में छात्रों तथा श्रमिकों ने खुलकर विद्रोही नौ- सैनिकों का साथ दिया। विद्रोही नौ सैनिकों के समर्थकों की पुलिस तथा सेना से हिंसक मुठभेड़ भी हुई। बम्बई में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया ने विद्रोही नौ-सैनिकों के समर्थन में 22 फरवरी को आम हड़ताल का आह्वान किया जिसका कांग्रेस के समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन तथा अरुणा आसफ अली ने समर्थन किया किन्तु सरदार पटेल तथा बम्बई कांग्रेस के प्रान्तीय अध्यक्ष एस० के० पाटिल ने जनता को इस विद्रोह से दूर रहकर अपने काम पर वापस जाने की सलाह दी। 
  • बम्बई मुस्लिम लीग के प्रान्तीय अध्यक्ष चुन्द्रीगर ने भी शान्ति व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने में सहयोग देने का प्रस्ताव रखा। कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के विरोध के बावजूद 300000 श्रमिकों ने 22 फरवरी को हड़ताल रखी और बम्बई के लगभग समस्त मिलों में काम बन्द हो गया। दो दिन तक अशान्ति और पुलिस व सेना से झड़पों का दौर चलता रहा। 
  • बम्बई में शान्ति व्यवस्था को पुनर्स्थापित करने के लिए सेना की दो बटालियनों की मदद लेनी पड़ी तब जाकर दो दिन बाद स्थिति नियन्त्रण में आ सकी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस आन्दोलन के दौरान 228 नागरिक मारे गए और 1046 घायल हुए। पुलिस की ओर से 3 जवान मारे गए और 91 घायल हुए।

 

नौ- सैनिक विद्रोह का शान्त होना

 

  • सरदार पटेल और मुहम्मद अली जिन्ना ने मिलकर विद्रोही नौ-सैनिकों को 23 फरवरी को आत्म समर्पण करने के लिए इस आश्वासन पर राजी किया कि उनके साथ बदले की भावना से कार्यवाही नहीं होने दी जाएगी पर शीघ्र ही इस वादे को भुला दिया गया क्योंकि सरदार पटेल की दृष्टि में सेना में अनुशासन के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता था। गांधीजी की दृष्टि में भी यह नौ सैनिक विद्रोह अनुचित था और नौ-सैनिकों को चाहिए था कि हिंसा का मार्ग अपनाने के स्थान पर वो अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए त्यागपत्र दे सकते थे। 


  • अरुणा आसफ अली ने गांधीजी के दृष्टिकोण की कटु आलोचना की। फरवरी, 1946 के नौ सैनिक विद्रोहियों को आज़ाद हिन्द फौज के सेनानियों के बराबर सम्मान नहीं मिला और न ही उन्हें स्वतन्त्रता सेनानी माना गया। 


  • सुमीत सरकार अपनी पुस्तक मॉडर्न इण्डिया 1885-1947 में आईएनए के जवानों की तुलना में नौ-सैनिक के विद्रोह को अधिक साहसिक मानते हैं। आज़ाद हिन्द फौज के अनेक सैनिक जापानी युद्ध शिविर में कैदी जीवन की यातनाओं से बचने के लिए उसमें शामिल हुए थे जब कि नौ-सैनिक विद्रोहियों के लिए के लिए ऐसी कोई विवशता नहीं थी। 


नौसैनिक केन्द्रीय हड़ताल समिति के भारतीय जनता के नाम अन्तिम सन्देश का उल्लेख आवश्यक है -

 

    हमारी हड़ताल हमारे राष्ट्र के जीवन की एक ऐतिहासिक घटना है। पहली बार सेना के जवान और आम जनता किसी सार्वजनिक मसले पर विरोध के लिए एकजुट होकर सड़कों पर आए हैं। हम सैनिक इसको कभी नहीं भूलेंगे और हमको विश्वास है कि हमारे भाई-बहन भी इसको नहीं भूलेंगे। हमारे महान देशवासी जिन्दाबाद ! जयहिन्द ! 


  • भारतीय इतिहास में 1946 के नौ सैनिक विद्रोह को राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वर्णिम अध्याय के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। वास्तव में आईएनए के भारत मुक्ति अभियान तथा नौ-सैनिक विद्रोह के अन्तः सम्बन्ध ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आधार ब्रिटिश भारतीय सेना की निष्ठा और स्वामिभक्ति पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न लगा दिया था। अब भारतीय सेना की पूरी मदद के बिना दो-ढाई लाख अंग्रेज़ों का चालीस करोड़ भारतीयों पर राज करना कठिन था और सम्भवतः इसीलिए उन्हें अब स्वयं भारत छोड़ने की और भारत को स्वतन्त्रता देने की व्यग्रता हो रही थी। गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसक आन्दोलन का देश को स्वतन्त्रता दिलाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है किन्तु स्वतन्त्रता आन्दोलन के इस उपेक्षित अध्याय का पुनर्मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है।

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