रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा दर्शन ( Tagore's Philosophy of Education)
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शिक्षा दर्शन का
विकास (Tagore's Development of Philosophy Education )
टैगोर ने अपने जीवन दर्शन
के विकास के साथ-साथ शिक्षा दर्शन का भी विकास किया। अतः उनके जीवन दर्शन के विकास
में जिन तत्वों का प्रभाव पड़ा उन्हीं तत्वों का प्रभाव उनके शिक्षा दर्शन के
विकास में भी पड़ा। टैगोर के शिक्षा दर्शन के निर्माण पर उनके परिवार का विशेष प्रभाव
पड़ा जो कि सभी प्रकार के प्रगतिशील विचारों एवं कार्यो और विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक, धार्मिक आन्दोलनों का केन्द्र था।
श्री एस. सी. सरकार ने इस
तथ्य की खोज करते हुए लिखा है- उन्होंने स्वयं ही शिक्षा के उन सभी सिद्धान्तों की
खोज की, जिनका आगे चलकर उन्हें अपने लिए प्रतिपादन करना
था। इसके अतिरिक्त टैगोर ने अपनी तीव्र बुद्धि द्वारा प्राकृतिक एवं सामाजिक
विज्ञानों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था, जिनका कि उनके
शिक्षा दर्शन के निर्माण में पर्याप्त प्रभाव पड़ा। इस प्रकार टैगोर के विकास में
अनेक महत्वपूर्ण बातों का प्रभाव पड़ा।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन
परिचय एवं शिक्षा ( Tagore's Life and Education)
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन वर्णन (Birth Sketch)-टैगोर का जन्म एवं शिक्षा
टैगोर का जीवन वर्णन
रवीन्द्रनाथ टैगोर का
जन्म बंगाल के ख्यातिप्राप्त, सुसभ्य, सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत परिवार में सन् 1861
में कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता का नाम महर्षि देवेन्द्र नाथ टैगोर था। उस समय
उनका परिवार अपनी समृद्ध, कला एवं संगीत के
लिए सारे बंगाल में प्रसिद्ध था। टैगोर को अपने माता पिता से विद्वता, देशभक्ति, धर्मप्रियता, साधुता आदि गुण उत्तराधिकार के रूप हैं। इनके
प्राप्त हुए पिता इन्हें एक साथ गायक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, डॉक्टर, साहित्यिक सभी कुछ बना देना चाहते थे। इनका
जीवन नौकरों के संरक्षण में व्यतीत हुआ, जो इन्हें घर की
चारदीवारी में रखते थे, जिसके कारण उनमें
प्रकृति के प्रति प्रेम जागृत हो गया।
टैगोर की शिक्षा (Education )
प्रारम्भ से ही स्कूलों
में गलत शिक्षा पद्धति व अध्यापक के तानाशाही व्यवहार के कारण ये स्कूल में न पढ़
सके। घर पर ही बड़े भाई देवेन्द्रनाथ टैगोर व अन्य शिक्षकों की देख-रेख में
उन्होंने अंग्रेजी, संगीत, साहित्य, कुश्ती-व्यायाम, इतिहास, भूगोल, गणित आदि की शिक्षा प्राप्त की।
इसके अतिरिक्त टैगोर का
परिवार स्वयं समाज के सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं राष्ट्रीय कार्य का एक केन्द्र
था, जिसका बालक टैगोर के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव
पड़ा और उसमें राष्ट्रीय भावना का बीज बो दिया गया। इस प्रकार सोलह वर्ष तक
अस्त-व्यस्त ढंग से शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त सन् 1869 में टैगोर उच्च शिक्षा
प्राप्त करने हेतु इंग्लैण्ड गये। वहां से विचार परिवर्तन करने के कारण लंदन चले
गये किन्तु वहां किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं लिया और घर वापस आ गये। लेकिन
कुशाग्र बुद्धि तथा भावुक हृदय होने के कारण टैगोर ने अपनी जन्मजात प्रतिभा को और
अधिक विकसित कर लिया।
टैगोर का
व्यावहारिक जीवन एवं गतिविधियां (Practical Life and Activities of Tagore)
सन् 1881 में जब वे
इंगलैण्ड से स्वदेश लौटे तो उनका व्यावहारिक जीवन और भी अधिक व्यावहारिक हो गया।
उन्होंने सर्वप्रथम भारत लौटकर सामाजिक, जातीय एवं
राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर लेखक के रूप में अपना व्यावहारिक जीवन प्रारम्भ
किया। शुरू में वे सन् 1881 तक मासिक पत्रिका 'भारती' में तथा इसके बाद सन् 1891 से 1894 ई. तक 'साधना' नामक पत्रिका में
अपने लेख देते रहे।
'गीतांजली' उनके सबसे प्रमुख रचना थी, जिस पर उन्हें नोबल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
अपने विचारों का प्रसार करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य 'शान्ति निकेतन' की स्थापना सन्
1901 में की, जिसे आज हम 'विश्व भारती
विश्वविद्यालय' के नाम से संबोधित करते हैं।
शान्ति निकेतन में
उन्होंने घरेलू उद्योग, ग्राम स्वायत्त
शासन, सहकारिता, प्रारंभिक एवं
प्रौढ़ शिक्षा का विकास, ग्रामोद्धार, कृषि विश्वविद्यालय, प्रयोगशाला, पुस्तकालय आदि के
लिए आध्यात्मिक अनुभूति की ओर कदम बढ़ाये। सन् 1912 से 1916 तक उन्होंने विश्व
भ्रमण किया और सर्वत्र विश्व शान्ति एकता एवं मातृत्व का संदेश दिया। सन् 1915 में
ब्रिटिश सरकार ने 1916 में ने उन्हें नाइटहुड की उपाधि प्रदान की। सन् 1941 में
इनकी मृत्यु हो गयी।
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