टंट्या भील (तंट्या मामा) भारतीय “रॉबिन हुड” बलिदान दिवस विशेष । Tantiya Bhil History Balidan Divas GK in Hindi

 टंट्या भील (तंट्या मामा) भारतीय “रॉबिन हुड” बलिदान दिवस  विशेष 

टंट्या भील (तंट्या मामा) भारतीय “रॉबिन हुड” बलिदान दिवस  विशेष । Tantiya Bhil History Balidan Divas GK in Hindi



शहीद टंट्या मामा के 4 दिसम्बर - बलिदान दिवस 

  • मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि शहीद टंट्या मामा के 4 दिसम्बर - बलिदान दिवस को श्रद्धा पूर्वक मनाया जाएगा। शहीद क्रांतिकारी टंट्या मामा ने मध्यप्रदेश की धरती पर खण्डवा जिले में जन्म लिया था। उनके बलिदान के बाद उनका अंतिम संस्कार इंदौर जिले के महू के निकट पातालपानी में हुआ था। अमर शहीद टंट्या मामा का दिसम्बर को बलिदान दिवस है । 


टंट्या भील (तंट्या मामा) भारतीय “रॉबिन हुड” के बारे में (इतिहास)


  • जन्म- 1840, खण्डवा
  • मृत्यु-  4 दिसंबर 1889, जबलपुर
  • उपनाम - रॉबिन हुड” एवं मामा 
  • टंट्या का वास्तविक नाम - तांतिया भील
  • मध्य प्रदेश खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में 1842 में टंट्या भील जन्म हुआ।
  • टंट्या भील के पिता का नाम भाऊसिंह था ।
  • टंट्या भील के दुबला-पतला होने के कारण उन्हें टंट्याकहकर पुकारा जाने लगा।
  • टंट्या भील  का संबंध मध्य प्रदेश के निमाड क्षेत्र से रहा है  और| निमाड में ज्वार के पौधे को सूखने के बाद लंबा, ऊँचा, पतला होने पर तंटाकहते है इसीलिए टंट्याकहकर पुकारा जाने लगा। 
  • टंट्या भील  के पिता उन्हे लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया. |
  • टंट्या भील ने धर्नुविद्या में दक्षता हासिल कर ली, लाठी चलाने और गोफन कला में भी महारत प्राप्त कर ली। 
  • टंट्या भील का विवाह कागजबाई से हुआ । 


टंट्या भील का इतिहास History of Tantya Bhil

  • टंट्या भील (तंट्या मामा) वर्ष 1878 और 1889 के बीच ब्रिटिश भारत में एक बड़े सक्रिय  क्रांतिकारी नेता थे। महान टंट्या भील का वर्णन ब्रिटिश काल में अपराधी के रूप में और नकारात्मक रूप से वर्णित किया गया है, लेकिन स्थानीय मान्यता है की वह एक वीर और साहसी व्यक्ति थे। उन्हे डाकू के बजाय भारतीय रॉबिन हुडके रूप में वर्णित किया है।


  • टंट्या भील स्वदेशी आदिवासी समुदाय के भील जनजाति के सदस्य थे। टंट्या ने इस जीवन के तरीके को 1857 का भारतीय विद्रोह के बाद अंग्रेजों द्वारा किए गए कठोर उपायों के कारण अपनाया था। टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास बुरा जीवनयापनके लिए गिरफ्तार किया गया था और एक साल की सजा के बाद चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में उनकी सजा बदल कर उन्हे रिहा करने से रोक दिया।

 

  • उन्हें 1878 में दूसरी बार हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई द्वारा गिरफ्तार किया गया था और केवल तीन दिनों के बाद खंडवा में जेल में डाल दिया गया था, फिर वहां से एक डकैत के रूप में उन्होंने अपना जीवन में परिवर्तन कर लिया। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश शासन द्वारा विद्रोही कहा गया है।

 

  • टंट्या भील उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया और विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के अपने अदम्य साहस और जुनून के कारण जनता के लिए खुद को तैयार किया। राजनीतिक दलों और शिक्षित वर्ग ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए जोरदार आंदोलन चलाया।

 

  • लेकिन इन आंदोलनों से बहुत पहले आदिवासी समुदायों और तांत्या भील जैसे क्रांतिकारी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया था। वह आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बन गए। लगभग एक सौ बीस साल पहले तांत्या भील जनता के एक महान नायक के रूप में उभरा और तब से भील जनजाति का एक गौरव बन चुका है। उन्होंने अदम्य साहस, असाधारण चपलता और आयोजन कौशल का प्रतीक बनाया।

 

  • कहा जाता है की, टंट्या भील ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने को लूटता था और उनके चाटुकारों की संपत्ति को गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देता था। वास्तव में, वह वंचितों का मसीहा था। उन्हें सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा लोकप्रिय रूप से मामा कहा जाता था।



  • टंट्या भील का जन्म 1840 में तत्कालीन मध्य प्रांत के पूर्वी निमाड़ (खंडवा) की पंधाना तहसील के बडाडा गाँव में हुआ था, जो वर्तमान में भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में स्थित है। माना जाता है की वह बचपन से ही साहसी, होशियार थे, जो बाद में नकारात्मक रूप से डाकू बने। टंट्या भील गुरिल्ला युद्ध में निपुण था। वह एक महान निशानेबाज भी थे और पारंपरिक तीरंदाजी में भी दक्ष थे। दावाया फलिया उसका मुख्य हथियार था। उन्होंने बंदूक चलाना भी सीख लिया था।

 

  • अपनी छोटी उम्र से ही वह घने जंगलों, घाटियों और पहाड़ों में जीवन भर अंग्रेजों और होलकर राज्य की सेनाओं के साथ तलवारों को साथ पले। उन्होंने शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य की पुलिस पर उलटफेर किया और कई वर्षों तक उनसे दूर रहे। टंट्या की मदद करने के आरोप में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनमें से सैकड़ों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया।

 

टंट्या भील की मृत्यु 

  • टंट्या भील को उसकी औपचारिक बहन के पति गणपत के विश्वासघात के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें इंदौर में ब्रिटिश रेजीडेंसी क्षेत्र में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया था। बाद में उन्हे सख्त पुलिस सुरक्षा में जबलपुर ले जाया गया। उन्हें भारी जंजीरों से जकड़ कर जबलपुर जेल में रखा गया जहां ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें अमानवीय रूप से प्रताड़ित किया। उस पर तरह-तरह के अत्याचार किए गए। सत्र न्यायालय, जबलपुर ने उन्हें 19 अक्टूबर 1889 को फांसी की सजा सुनाई। उन्हे फिर 4 दिसम्बर 1889 को फासी दी गई, इस तरह टंट्या भील की मृत्यु हुई।

 

  • ब्रिटिश सरकार भील विद्रोह के टूटने से डरी हुई थी। आमतौर पर यह माना जाता है कि उसे फांसी के बाद इंदौर के पास खंडवा रेल मार्ग पर पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया गया था। जिस स्थान पर उनके लकड़ी के पुतले रखे गए थे, वह स्थान तांत्या मामा की समाधि मानी जाती है। 


टंट्या भील का वास्तविक नाम

  • टंट्या भील का वास्तविक नाम तांतिया था, जिन्हे प्यार से टंट्या मामा के नाम से भी बुलाया जाता था। टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर न्यूयॉर्क टाइम्स के 10 नवंबर 1889 के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। इस समाचार में उन्हें भारत के रॉबिन हुडके रूप में वर्णित किया गया था।

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