उच्चारण दोष के विभिन्न प्रकार, निराकरण में सहायक यन्त्र । Uchchaaran dosh ke Prakar
उच्चारण दोष के विभिन्न प्रकार
स्वर-लोप यथा- 'क्षत्रिय' का 'छत्री', 'परमात्मा' का 'प्रमात्मा,' 'ईश्वर' का 'इस्सर'।
स्वर-भक्ति यथा 'बृजेन्द्र को बढ़ाकर 'बरजेन्दर', 'श्री' को 'सिरी', 'शक्ति' को 'सकती।
स्व यथा 'स्नान' में 'अ' का आगम होकर 'अस्नान', 'स्कूल' में 'इ' का आगम होकर 'इस्कूल उच्चारण दोष के विभिन्न प्रकार
ऋ का अशुद्ध उच्चारण यथा 'अमृत' का 'अम्रित', पंजाब में 'अम्रत', मराठी में 'अम्रत ।
इ, उ का ई, ऊ के साथ भ्रम यथा 'कवि' का 'कवी', 'हिन्दू', का हिन्दु', 'ईश्वर का ईसवर', 'किन्तु' का 'किन्तू'।
न और ण का भ्रम यथा 'रणभूमि' का 'रनभूमि', 'प्रणय' का 'प्रनय', 'कर्ण' का 'करन' आदि।
क्ष और छ का झमेला यथा लक्ष्मण को लछमन अक्षर का अछर, क्षत्री का छत्री।
श और ष का भ्रम यथा प्रकाश का प्रकाष, निष्काम का निश्काम।
व और ब का भ्रम यथा 'वन' (जंगल) का 'बन', वचन का 'बचन' वसन्त का 'बसन्त |
ड और ड़ का भ्रम जैसे गुड़ का गुड
ढ और ढ़ का भ्रम यथा पढ़ाई का पढ़ाई, कढ़ाई का कढाई।
चन्द्रबिन्दु और अनुस्वार का भ्रम यथा गंगा का गँगा और चाँद का चांद कहना!
य और ज का भ्रम यथा यमराज को 'जमराज' लिखना, यज्ञ का 'जज्ञ' उच्चारित करना ।
अनुनासिकता का भ्रम यथा सोचने को सोंचना लिखना बच्चा को बँचा लिखना।
अल्पप्राण और महाप्राण सम्बन्धी भ्रम यथा बुढ़ापा को बुडापा, घूमना को गूमना, घर को गर।
शब्द विपर्यय यथा लिफाफा को लिलाफा कहना, आदमी को आमदी कहना। शब्दांश विपर्यय यथा बाल की खाल निकालने' को 'खाल की बाल निकालना।
हड़बड़ाहट या तुतलाहट यथा 'ततत तुम्मामारा घघरर कहाँ है ?
न्यूनाधिक गति शब्द या वाक्य या वाक्य खण्ड को शीघ्रता में बोलना या देर तक खींचकर बोलने से भी उच्चारण सम्बन्धी दोष आ जाते हैं।
शारीरिक दोष जिह्वा, ओष्ठ, तालु आदि में दोष आने से उच्चारण सम्बन्धी दोषों का आना स्वाभाविक है।
मनोवैज्ञानिक कारण भय, दुर्व्यवहार, शंका आदि से जिह्ना, तालु, आदि लड़खड़ाने लगते हैं और उच्चारण सम्बन्धी दोष आ जाते हैं।
ध्वन्यात्मक दोष यथा उलटा-पलटा को उल्टा - पल्टा लिखना। इसी
प्रकार हिन्दी भाषा में उच्चारण सम्बन्धी अन्य कई दोष विद्यमान हैं।
उच्चारण सम्बन्धी दोषों के निराकरण में सहायक ध्वनि यन्त्र एवं दृश्य-श्रव्य उपकरण
- ध्वनि यन्त्रों का चित्र
- सिर एवं ग्रीवा का मॉडल, जिसमें उच्चारण स्थल दर्शाए गए हों।
- दर्पण (जिसमें उच्चारण करते समय बालक अपने उच्चारण-स्थल देख सकें ) ।
- ग्रामोफोन (शुद्ध उच्चारण के लिए)।
- लिंग्वाफोन (शुद्ध उच्चारण की शिक्षा के लिए ) ।
- टेपरिकॉर्डर (कठिन उच्चारणों के आदर्श उच्चारण के अभ्यास के लिए )
- कायमोग्राफ अल्पप्राण महाप्राण, घोष अघोष, स्पर्श-संघर्षों की मात्रा आदि की शिक्षा के लिए यह उपकरण बड़ा ही उपादेय है।
- कृत्रिम तालु ध्वनियों के शुद्ध एवं सटीक उच्चारण के लिए यह उपकरण
- जीभ के ऊपर तालु पर रखा जाता है।
- एक्स-रे स्वरों एवं व्यंजनों के उच्चारण में जीभ की सही स्थिति का पता एक्स-रे के माध्यम से लगाया जा सकता है।
- लैरिंगोस्कोप स्वर तन्त्रियों की गतिविधियों के अध्ययन में इस यन्त्र की उपयोगिता जगत विख्यात है।
- अन्य उपयोगी यन्त्र इन्द्रीस्कोप, आटोफोनोस्कोप, नेमोग्राफ, फ्लास्क स्टेथोग्राफ आदि उपकरण विदेशों में उच्चारण सम्बन्धी सुधार के लिए प्रयुक्त किए जा रहे हैं।
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