उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन उदय के कारण। क्रांतिकारी या उग्रवादी आन्दोलन का प्रथम चरण । Ugravaadi aandolan ke karan

 उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन उदय के कारण

उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन उदय के कारण। क्रांतिकारी या उग्रवादी आन्दोलन का प्रथम चरण । Ugravaadi aandolan ke karan



उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन (1906-1919 ई.)

 

  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के द्वितीय चरण को नवराष्ट्रवाद या उग्रवाद के उदय का काल कहा जाता है। उग्रवादी उदारवादी नेताओं के आदर्शों व नीतियों के घोर विरोधी थे और उन्होंने उदारवादियों की अनुनय-विनय की प्रवृत्ति को राजनीतिक भिक्षावृत्ति की संज्ञा दे डाली। इनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से अपने अधिकारों की भीख मांगना नहीं वरन् सरकार का विरोध करते हुए स्वराज्य प्राप्त करना था। 

  • उदारवादियों तथा उग्रवादियों में विरोध बंगाल विभाजन की घटना के बाद इतना बढ़ गया कि 1907 में कांग्रेस दो भागों में बँट गई और आगामी कई वर्षों तक ये अलग-अलग अपने-अपने ढंग से कार्य करते रहे। 
  • उग्रवादी नेताओं में लाला लाजपतराय बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल एवं अरविन्द घोष थे। लाला लाजपतराय ने 'पंजाबी बालगंगाधर तिलक ने केसरी' तथा विपिनचन्द्रपाल ने 'न्यू इंडिया नामक पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार पर करारा प्रहार किया।

 

उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन उदय के कारण

 

उग्रवाद के उदय के राजनीतिक कारण इस प्रकार से हैं

 

1. सरकार द्वारा कांग्रेस की मांगों की उपेक्षा करना - 

  • 1892 ई. के भारतीय परिषद् अधिनियम द्वारा जो भी सुधार किये गये थे, अपर्याप्त एवं निराशाजनक थे। लाला लाजपत राय ने कहा, 'भारतीयों को अब भिखारी बने रहने में ही संतोष नहीं करना चाहिए और न उन्हें अंग्रेजों की कृपा पाने के लिये गिड़गिड़ाना चाहिए।" इस प्रकार इस समय के महान उग्रवादी नेताओं (लाल, बाल एवं पाल) को उदारवादियों को भिक्षावृत्ति की नीति में एकदम विश्वास नहीं रहा। उन्होंने निश्चय किया कि स्वराज्य की प्राप्ति रक्त और शस्त्र से ही संभव हैं।

 

2. ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के प्रति दमनकारी नीति - 

  • 1892 से 1906 ई. तक ब्रिटेन में अनुदार दल सत्तारूढ़ रहा। यह दल अत्यंत ही प्रतिक्रियावादी था। 1897 ई. में श्री तिलक को राजद्रोह के अपराध में कैद कर लिया गया और उन्हें 18 महीने का कठोर कारावास दिया गया। श्री तिलक की गिरफ्तारी से सारा देश रो पड़ा। सरकार के क्रूर कृत्यों से सारे देश में क्रोध एवं प्रतिशोध की भावना उमड़ पड़ी।

 

2. उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन के आर्थिक कारण

 

1. दुर्भिक्ष एवं प्लेग का प्रकोप - 

  • 1876 से 1900 ई. तक देश के विभिन्न भागों में 18 बार दुर्भिक्ष पड़ा। 
  • 1896-97 ई० में बंबई में सबसे भयंकर अकाल पड़ा। लगभग दो करोड़ लोग इसके शिकार हुए। सरकार अकाल पीड़ितों की सहायता करने में असमर्थ रही। अतः भारतीयों ने यह निश्चय किया कि उन्हें ब्रिटिश सरकार अंत करना ही है चाहें इसके लिये उन्हें हिंसात्मक साधनों का सहारा ही क्यों न लेना पड़े ? अभी अकाल का घाव भरा भी नहीं था कि बंबई प्रेसीडेंसी में 1897-98 ई. में प्लेग का प्रकोप छा गया। पूना के आसपास भयंकर प्लेग फैला जिसमें लगभग 1 लाख 73 हजार व्यक्तियों को प्राण गंवाने पडे। सरकार के द्वारा प्लेग की रोक-थाम के लिये जो साधन अपनाये गये इससे जनता में बड़ा असंतोष छा गया।

 

2. ब्रिटिश सरकार की पक्षपात पूर्ण कर व्यवस्था

  •  सरकार की आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेज व्यापारियों तथा उद्योगपतियों का हित साधन था, न कि भारतीयों का कपास पर आयात कर बढ़ाया गया तथा भारतीय मिलों से तैयार किये हुए माल पर उत्पादन कर लगाया गया जिसके फलस्वरूप विदेशी माल सस्ता रहा और भारतीय कपड़ा उद्योग को बड़ी हानि पहुंची सरकार की आर्थिक नीति के विरूद्ध भारतीयों में असंतोष छा गया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना आरंभ कर दिया।

 

3. धार्मिक तथा सामाजिक कारण

 

1. भारतीयों में जागृति - 

  • 19 वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक, विपिनचन्द्र पाल, अरविन्द घोष इत्यादि ने प्राचीन भारतीय धर्म एवं संस्कृति को श्रेष्ठ बताकर भारतीय युवकों में आत्म विश्वास की भावना उत्पन्न की पुनरूत्थानवादी नेता धर्म की ओट में उग्र राष्ट्रीयता का प्रचार करने लगे। विपिनचन्द्र पाल ने काली एवं दुर्गा का आह्वान कर बताया कि "स्वतंत्रता हमारे जीवन का ध्येय है एवं इसकी प्राप्ति हिन्दू धर्म से ही संभव है।"


2. भारतीयों के साथ विदेश में अभद्र व्यवहार - 

  • विदेशों में भी भारतीयों के साथ अभद्र एवं अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता था। अंग्रेज भारतीयों को काला आदमी समझते थे एवं उनको घृणा की दृष्टि से देखते थे। अंग्रेजी समाचार पत्र जातिभेद का तीव्र प्रचार कर रहे थे। दक्षिण अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों के साथ तिरस्कारपूर्ण और निन्दनीय व्यवहार किया जाता था। उन्हें मकान बनाने, संपत्ति खरीदने एवं रेलवे के ऊँचे दर्जे में यात्रा करने का अधिकार न था।

 

3 लार्ड कर्जन की निरकुंशतापूर्ण प्रशासनिक नीति 

  • लार्ड कर्जन की स्वेच्छाचारिता - तथा निरंकुशता ने भी भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में उग्रवाद के जन्म को अवश्यंभावी कर दिया। उसने भारतीयों की भावनाओं पर बिल्कुल ध्यान न दिया। 

 

4 पाश्चात्य क्रांतिकारी सिद्धान्तों का प्रभाव 

  • भारतीय नवयुवकों के विचार एवं दृष्टिकोण को परिवर्तित करने में पश्चिमी देशों के क्रांतिकारी सिद्धान्तों का जबर्दस्त हाथ रहा। फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमरीका के राष्ट्रीय आन्दोलनों में क्रांतिकारी विचारों को जगा दिया तथा इन देशों में स्वतंत्रता संग्राम की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल संवैधानिक मांग से ही साम्राज्यवाद से मुक्ति नहीं मिल सकती है। 
  • उग्रवादियों के उद्देश्य उग्रवादियों का उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था। उनके अग्रणी नेता तिलक कहा करते थे, "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।" 
  • अरविन्द घोष ने भी कहा था, "स्वराज्य हमारे जीवन का लक्ष्य है और हिन्दू धर्म के माध्यम से ही इसकी पूर्ति संभव है।" इस प्रकार, उग्रवादी स्वतंत्रता के महान पुजारी थे। पूर्णतया राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के समर्थक थे तथा इंग्लैण्ड से संबंध विच्छेद चाहते थे।

 

बंगाल विभाजन (1905 ई.)

 

  • सम्भवतः कर्जन का सबसे घृणित कार्य बंगाल को दो भागों में विभाजित करना था। यह कार्य बंगाल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कडे विरोध की उपेक्षा करके किया गया। बंगाल प्रेसीडेन्सी तत्कालीन सभी प्रेसीडेन्सियों में बड़ी थी। इसमें पश्चिम और पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) सहित बिहार (वर्तमान झारखण्ड भी) और उड़ीसा शामिल थे। 
  • असम बंगाल से 1874 में ही अलग हो चुका था। अंग्रेज सरकार ने बंगाल को विभाजित करने का कारण यह बताया कि इतने बड़े प्रांत को विभाजित किए बिना इसका शासन सुव्यवस्थित रूप से नहीं किया जा सकता। जबकि विभाजन का वास्तविक कारण यह था कि बंगाल उस समय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिन्दु था और इसी चेतना को नष्ट करने हेतु बंगाल विभाजन का निर्णय लिया गया और 20 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा कर दी। 
  • विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रांत बनाया गया जिसमें राजशाही, चटगाँव और ढाका नामक तीन डिवीजन सम्मिलित थे। ढाका यहाँ की राजधानी थी। विभाजित बंगाल के दूसरे भाग में पं. बंगाल, बिहार और उड़ीसा शामिल थे। 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन प्रभावी हो गया। यह दिन समूचे बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया, लोगों ने उपवास रखा वन्देमात्रम का गीत गाया और सारे बंगाल के लोगों ने चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान हों या ईसाई हों, एक दूसरे को राखी बाँधी।

 

  • बंगाल विभाजन के विरोध में जो आंदोलन चलाया गया उसे स्वदेशी आंदोलन या बंग भंग विरोधी आंदोलन कहते हैं। कलकत्ता के टाउन हॉल में सम्पन्न इस सभा में स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार एवं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार का प्रस्ताव पास हुआ जिसे दिसम्बर 1905 के बनारस में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में अनुमोदित किया गया। इस समय चलाए गए बहिष्कार आंदोलन के अंतर्गत न केवल विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया बल्कि स्कूलों, अदालतों, उपाधियों एवं सरकारी नौकरियों आदि का भी बहिष्कार किया गया। जबकि स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार के अन्तर्गत हथकरघा उद्योगों में वृद्धि हुई। 
  • पहला राष्ट्रीय स्कूल रंगपुर में 1905 में खोला गया। टैगोर ने इसी समय 'आमार सोनार बांग्ला नामक गीत लिखा जो 1971 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत बना। स्वदेशी आंदोलन में जमींदार, शहरी निम्न मध्यम वर्ग, छात्र तथा औरतें शामिल थी जबकि किसान एवं बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय इस आंदोलन से अलग रहा। 
  • इसी बीच 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना आगा खाँ एवं सलीमुल्ला खाँ ने की। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों में निष्ठा को बढ़ाना, मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति मुसलमानों में घृणा फैलाना था।
  • 1907 में सूरत कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में उदारवादियों एवं उग्रवादियों में अध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस का विभाजन हो गया। उग्रवादी जहाँ लाला लाजपतराय को सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष बनाना चाहते थे वहीं उदारवादी रासविहारी घोष को। 
  • उदारवादियों के बहुमत में होने से रासबिहारी घोष अध्यक्ष बनने में सफल हुए। सम्मेलन में उग्रवादियों द्वारा 1906 में पास करवाए गए चार प्रस्ताव स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वशासन के प्रयोग को लेकर विवाद और गहरा हो गया। अन्ततः दोनों पक्षों में खुले संघर्ष के बाद कांग्रेस में पहला विभाजन हो गया। 
  • 1908 में इलाहाबाद में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में कांग्रेस का एक नया संविधान और बैठकों को आयोजित करने के लिए एक नियमावली तैयार की गई। नवीन संविधानों के प्रावधानों के बाद उग्रवादियों का अगले 7 वर्ष तक कांग्रेस में प्रवेश प्रतिबंधित हो गया।

 

  • 1909 में मार्ले मिन्टो सुधार पारित किया गया जिसके अन्तर्गत मुसलमानों के लिए पृथक मताधिकार तथा पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की स्थापना की गई इस सुधार ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई और चौड़ी कर दी। 

  • दिसम्बर 1911 में ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम और महारानी मेरी के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया। दिल्ली दरबार में ही 12 दिसम्बर 1911 को सम्राट ने बंगाल विभाजन को रद्द घोषित किया। 
  • दिल्ली दरबार में ही कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने की अनुमति प्रदान की। 23 दिसम्बर 1912 को कलकत्ता से दिल्ली के लिए राजधानी हस्तांतरण का दिन तय किया गया, जिस समय वायसराय हार्डिंग अपने परिवार तथा ब्रिटेन के शाही राजवंश के साथ एक लंबे जुल स में समारोहपूर्वक दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे। 
  • उस समय रासबिहारी बोस ने हार्डिंग पर बम फेंका जिसमें वो घायल हो गए। इसके परिणामस्वरूप 13 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए। जिनमें से दीनानाथ दबाव में आकर सरकारी गवाह बन गए और मास्टर अमीचन्द, अवधबिहारी लाल बाल मुकुंद तथा बसंत कुमार विश्वास को फांसी दे दी गई।

 

क्रांतिकारी या उग्रवादी आन्दोलन का प्रथम चरण (1905 – 15 ई.)

 

  • क्रांतिकारी या उग्रवादी आन्दोलन के उत्थान में मुख्यतः वही कारण थे जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन में उग्रवाद का जन्म हुआ। भेद केवल यह था कि उग्रवादी अधिक शीघ्र परिणाम चाहते थे। वे प्रेरणा जिसे उदारवादी दल ने लोकप्रिय बनाया था और धीमें प्रभाव की नीति' जिसे उग्रवादियों ने अपनाया था, में विश्वास नहीं करते थे। यद्यपि भारत के भिन्न-भिन्न भागों में क्रांतिकारियों के राजनैतिक दर्शन को निश्चित रूप से वर्णन करना संभव नहीं है फिर भी उन सबका उद्देश्य, मातृभूमि को विदेशी शासन से मुक्त कराना था। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए क्रांतिकारियों द्वारा हत्या करना, डाका डालना, बैंक, डाकघर अथवा रेलगाड़ियाँ लूटना सभी कुछ वैध था। 

 

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन :

 

  • 1896 में पूना में प्लेग फैलने के समय अपने कार्यों के लिए कुख्यात पुणे के प्लेग कमिश्नर रैण्ड तथा एमर्स्ट नामक दो अंग्रेज अधिकारियों की चापेकर बंधुओं ने 22 जून 1897 को हत्या कर दी। कालांतर में चापेकर बंधुओं को फांसी दे दी गई। 
  • महाराष्ट्र के क्रांतिकारी संघों में से प्रथम स्थान विनायक दामोदर सावरकर द्वारा पुणे में 1904 में स्थापित अभिनव भारत समाज का था। 
  • विनायक दामोदर सावरकर द्वारा नासिक में 1899 ई. में स्थापित 'मित्र मेला' नामक संस्था ही कालांतर में अभिनव भारत समाज के रूप में प्रसिद्ध हुई। 
  • अभिनव भारत संस्था के मुख्य सदस्य अनन्त कन्हारे ने नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या कर दी। इस हत्याकाण्ड से जुड़े लोगों पर नासिक षडयंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया जिसमें विनायक दामोदर के भाई गणेश भी शामिल थे। उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली तथा अनन्त कन्हारे को फांसी दे दी गई।

 

बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन :

 

  • बंगाल में पहले क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति की स्थापना मिदनापुर में ज्ञानेन्द्रनाथ वसु द्वारा तथा कलकत्ता में जतीन्द्रनाथ बनर्जी और वारीन्द्र कुमार घोष द्वारा की गई। 
  • युगान्तर अखबार के नाम पर युगान्तर नामक क्रांतिकारी संगठन का भी बंगाल में अस्तित्व था। 
  • प्रफुल्ल चाकी ने लेफ्टिनेंट गवर्नर बैमफील्ड फुलर की हत्या का प्रयास किया किन्तु वह सफल न हो सका। बाद में प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर के सेसन जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए बम फेंका, किन्तु वह घोड़ा गाड़ी किन्हीं कैनेडी दम्पत्ति की निकली जिसमें उन दोनों की मृत्यु हो गई। 
  • खुदीराम बोस को वेणी स्टेशन से गिरफ्तार कर क्रांतिकारियों में सबसे कम उम्र अर्थात् 15 वर्ष की अवस्था में 1908 को फांसी दे दी गई और प्रफुल्ल चाकी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्महत्या कर ली।

 

  • किंग्सफोर्ड घटना के बाद पुलिस ने मणिकतल्ला पर छापा मारा वहाँ से 34 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें बारीन्द्र और अरविन्द घा`ष भी शामिल थे। इन सब पर अलीपुर षडयंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया। वारीन्द्र को आजीवन कारावास तथा अरविन्द को उचित साक्ष्य के अभाव में छोड़ दिया गया।

 

  • बंगाल के ही एक अन्य महान क्रांतिकारी रास बिहारी बोस थे। कलकत्ता से दिल्ली राजधानी परिवर्तन के समय लार्ड हार्डिंग पर फेंके गए बम की योजना रास बिहारी बोस ने ही बनाई थी। गिरफ्तारी से बचने के लिए रासबिहारी बोस जापान चले गए तथा गिरफ्तार किए गए 13 लोगों पर दिल्ली षडयंत्र केस के तहत मुकदमा चलाया गया। सरकार के दमनचक्र से बचने के लिए कुछ क्रातिकारी भूमिगत होकर कार्य करने लगे तो कुछ ने विदेशी धरती से ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन का निर्णय लिया। कालांतर में अरविन्द घोष क्रांतिकारी क्रियाकलापों से अलग होकर संन्यासी हो गए तथा पाण्डिचेरी में अपना आश्रम स्थापित कर लिया।


पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन :

 

  • पंजाब में अजीत सिंह,  सूफी अम्बा प्रसाद तथा लाला लाजपतराय जैसे नेताओं ने क्रांतिकारी आन्दोलन को जन्म दिया। कालांतर में अजीत सिंह एवं सूफी अम्बा प्रसाद देश छोड़कर अफगानिस्तान चले गए तथा अजीतसिंह ने लाहौर में अंजुमने मोहिब्बाने वतन' नामक एक संस्था की स्थापना की तथा भारत माता नाम से एक अखबार निकाला। लाला लाजपतराय के कुछ समय तक क्रा तिकारियों के साथ रहने के उपरांत विचारों में परिवर्तन हो गया तथा वे इन गतिविधियों से अलग हो गए।

 

भारत से बाहर क्रांतिकारी गतिविधियां

 

  • देश में क्रांतिकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने के बाद यहाँ से अधिकांश क्रांतिकारी ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, अमरीका, अफगानिस्तान तथा सिंगापुर आदि देशों में पलायन कर गए। 
  • भारत से बाहर विदेशी धरती पर स्थापित सबसे पुरानी क्रांतिकारी संस्था 'भारत स्वशासन समाज' ( India Homerule Society) थी जिसकी स्थापना 1905 में लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने की थी। 
  • इस सोसायटी के प्रमुख सदस्यों में वी. डी. सावरकर, लाला हरदयाल तथा मदनलाल ढींगरा थे। सोसाइटी का प्रमुख उद्देश्य भारत के लिए स्वशासन प्राप्त करना था। 
  • इसी सोसाइटी ने ही 'इण्डियन सोसियोलॉजिस्ट' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया तथा 'इण्डिया हाउस' की स्थापना की। 
  • इण्डिया हाउस के सदस्य मदनलाल ढींगरा ने 1 जुलाई 1909 को भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार विलियम हट कर्नल वाइली की लंदन में गोली मारकर हत्या कर दी। 
  • वायली अनेक भारतीय युवकों को मौत की सजा देने तथा गणेश सावरकर को आजन्म कारावास का दण्ड दिलाने के लिए उत्तरदाई था। शीघ्र ही मदनलाल ढींगरा को फांसी पर लटका दिया गया। 
  • श्यामजी कृष्ण वर्मा की एक अन्य सहयोगी "मैडम भीखाजी रूस्तम के आर कामा" जिन्हें भारतीय क्रान्ति की मां भी कहा जाता था, फ्रांस आदि यूरोप के विभिन्न देशों तथा अमरीका में प्रचार के लिए भारत छोड़ दिया। 
  • 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ड में होने वाले "द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के सम्मेलन में मैडम कामा ने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया तथा ब्रिटिश शासन के दुष्परिणामों के बारे में विचारोत्तेजक भाषण दिया एवं मैडम कामा ने यहीं पहली बार हरा, पीला और लाल रंग के राष्ट्रीय झण्डे को फहराया। 
  • 1913 में पोर्टलैण्ड में सोहन सिंह भाखना ने हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमरीका की स्थापना की। इस संस्था ने कालांतर में अंग्रेजी, उर्दू, मराठी और पंजाबी में एक साथ गदर या हिन्दुस्तान गदर (1857 के विद्रोह की स्मृति में) का प्रकाशन किया। 
  • गदर पत्रिका के नाम पर ही हिन्द एसोसिएशन ऑफ अमरीका का नाम गदर आंदोलन पड़ गया। 
  • 1 नवंबर 1913 को अनेक भारतीयों ने लाला हरदयाल के नेतृत्व में अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को में गदर पार्टी की स्थापना की एवं यहीं 'युगान्तर आश्रम की स्थापना कर यहीं से अपनी गतिविधियों का संचालन किया। 
  • राजा महेन्द्रप्रताप ने जर्मनी के सहयोग से अफगानिस्तान के काबुल में दिसम्बर 1915 को अंतरिम भारत सरकार की स्थापना की। इसी दौरान राजा महेन्द्र प्रताप अपनी सरकार के समर्थन हेतु लेनिन से मिले। भारत में चले हिजरत आंदोलन से जुड़े कई नेता कालांतर में अफगानिस्तान और तुर्किस्तान चले गए जहाँ उन्होंने 'खुदाई सेना' की स्थापना की। खुदाई सेना के मौलवी उबेदुल्ला सिंधि से ही रेशमी रूमाल षडयंत्र जुड़ा है।

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