विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश मध्यप्रदेश :प्राचीन काल में प्रादेशिक नाम।Vindhyanchal Region Geography

 विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश, मध्यप्रदेश :प्राचीन काल में प्रादेशिक नाम

विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश मध्यप्रदेश :प्राचीन काल में प्रादेशिक नाम।Vindhyanchal Region Geography



विन्ध्याचल या विन्ध्यांचल भौगोलिक प्रदेश

 

विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश का विस्तार मध्यप्रदेश के ग्यारह जिलों दतिया, टीकमगढ़,निवाड़ी, छतरपुर, पन्ना, सतना, रीवा, सीधी, शहडोल, सागर, और दमोह तथा उत्तर प्रदेश के पांच जिलों बांदा, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर और जालौन में हैं। इस आर्टिकल में मध्यप्रदेश के जिलों के अंतर्गत आये भौगोलिक क्षेत्र पर मुख्य रूप से विचार किया गया है। ऐतिहासिक घटनाओं का नियंत्रण वर्तमान राजनैतिक सीमाओं से नहीं होता अतः आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसी राज्य के जिलों के कुछ स्थानों का वर्णन करना आवश्यक है जो इस भौगोलिक प्रदेश की ऐतिहासिक घटनाओं के नियंत्रक थे।

 

  • विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश का मध्यप्रदेश में विस्तार 23°10' से 26°22' उत्तरी अक्षांश तक तथा 77°51' से 82°35' पूर्वी देशांश के मध्य में है।

 

  • जैसा कि इस भौगोलिक प्रदेश के नाम से ज्ञात होता है यह संपूर्ण भूभाग विन्ध्याचल पर्वतमाला से आवृत्त है। विन्ध्य पर्वतमाला में अनेक पहाड़ियाँ हैं, इन पहाड़ियों के बीच बहने वाली नदियों के अपने छोटे-छोटे प्रवाह क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र के पूर्वी भाग में जिसे बघेलखण्ड के नाम से जाना जाता है सोन नदी के प्रवाह का क्षेत्र है। 
  • सोन एवं नर्मदा दोनों ही नदियाँ इस क्षेत्र के घुर दक्षिणी भाग की अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है। सोन नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ छोटी महानदी, जोहिला, गोपद, बनास, रिहन्द तथा कन्हार इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं। इस क्षेत्र की मैकल पहाड़ियाँ विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वतों को जोड़ती हैं। 
  • सोन द्रोणी इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भू-रचना है। पूर्व से पश्चिम के विस्तार वाली इस घाटी की लंबाई 250 किमी. है। कैमूर स्कार्प सोन द्रोणी के उत्तर में दीवार की तरह फैला है इसकी औसत ऊँचाई 610 मीटर है। स्कार्प की विशेषता इसकी असाधारण लंबाई है।

 

  • विन्ध्याचल पर्वतमाला की लंबाई लगभग 1000 किमी. है। वस्तुतः यह पर्वत दक्षिणी उत्तरप्रदेश से लेकर गुजरात तक फैला हुआ है किन्तु पूर्व से पश्चिम में फैली इस विशाल पर्वत श्रृंखला के अनेक क्षेत्रीय नाम हैं। इसकी चौड़ाई सर्वत्र एक सी नहीं है इस विवरण में विन्ध्याचल क्षेत्र पश्चिम में सागर जिले के दक्षिणी पूर्व से सीधी तक माना गया है। भारतीय परंपरा में मिर्जापुर की विन्ध्याचल श्रेणी पर स्थापित विन्ध्येश्वरी देवी वाले पर्वत शिखर को विन्ध्याचल की पूर्वी सीमा माना जाता है।

 

  • प्राचीनकाल में विन्ध्याचल के विस्तृत पर्वतीय क्षेत्र को विन्ध्याटवी भी कहा जाता था। विन्ध्यपर्वत की गणना महाभारत में कुल पर्वतों में की गई है।

 

महेन्द्रो मलयः सह्य शुक्ति मानृक्षवानपि विन्ध्यश्च पारियावश्च सप्तैते कुलपर्वताः (महा. 6/10/8)

 

  • पुराणों (वायुपुराण) से इसकी पुष्टि होती है। बौद्ध ग्रंथों महावंश (19/6) एवं दीपवंश (16/2) के अनुसार विन्ध्य और उसकी उपत्यकाओं से होता हुआ एक मार्ग ताम्रलिप्ति से पाटलिपुत्र तक जाता था। इस मार्ग से ही अशोक बोधिवृक्ष ले गया था। (महावंश 15/87) बौद्ध धर्मग्रंथों में 'विन्ध्याटवी' शब्द का प्रयोग भी है। इसे प्रेतों का निवास भी कहा गया है (पेतवत्थु टीका 42/192) अमरकोश (2/3/3) वृहत्संहिता (42/35, 8/17 ) जैसे प्राचीन ग्रंथों में विन्ध्य पर्वत का उल्लेख है। 


  • संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों यथा मेघदूत ( 1/19), उत्तररामचरित (पृ. 52/421) तथा कथासरित्सागर की अनेक कथाओं में इस पर्वत का उल्लेख है। बाणभट्ट ने कादम्बरी (पृ. 85) में विन्ध्याटवी का विशद एवं रोचक वर्णन करते हुये उसका विस्तार समुद्र के पूर्वी किनारे से लेकर समुद्र के पश्चिमी किनारे तक बतलाया है।

 

  • भौगोलिक दृष्टि से विन्ध्याचल को अनेक श्रृंखलाओ में बांटा जाता है। प्राचीन साहित्य में विन्ध्याचल की कतिपय श्रृंखलाओं और पर्वत शिखरों के वर्णन मिलते हैं। इनमें से अधिकांश की पहिचान सुनिश्चित नहीं है। चित्रकूट विन्ध्यश्रेणी का ही एक भाग है। इसकी पहिचान सुनिश्चित है। 
  • विन्ध्यांचल की इन श्रृंखलाओं में से कुछ अन्य की भी पहिचान अपेक्षाकृत स्पष्ट है, जैसे अमरकंटक जो मेकल पर्वत का पूर्वी शिखर है तथा जो विन्ध्य और सतपुड़ा को आपस में मिलाता है। मार्कण्डेय पुराण (अध्याय 57 ), मत्स्य पुराण (22/28) तथा पद्मपुराण में इसका उल्लेख है। मार्कण्डेय पुराण में इसे सोमपर्वत तथा सुरथाद्रि नामों से भी पुकारा गया है। इसी पर्वत में नर्मदा और शोण नदियों का उद्गम है।

 

  • नन्दलाल डे इसी पर्वत की एक श्रृंखला भाण्डेर की पहिचान महाभारत में वर्णित कोलाहल पर्वत से करते हैं। इस पर विद्वान एकमत नहीं हैं। 
  • बौद्ध साहित्य में अनेक पर्वतों का उल्लेख है जो वर्तमान सांची के आस पास की पहाड़ियां हैं। इनमें वेदिसगिरि, चेतियगिरि इत्यादि उल्लेखनीय हैं। जैन ग्रंथों का दशार्णकूट भी संभवतः इन्हीं पहाड़ियों में से एक था।

 

  • हर्ष के पश्चात् विन्ध्यक्षेत्र में चंदेलो ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इस वंश के प्रसिद्ध शासकों में राहिल, हर्ष, यशोवर्धन, धंग और विद्याधर हैं। धंग ने महमूद गजनवी के आक्रमण से विरूद्ध अफगानिस्तान के नरेश जयपाल को सैनिक सहायता दी थी।

 

  • इस राजवंश का सर्वाधिक महत्व यह है कि इस वंश के शक्तिशाली शासक विद्याधर ने महमूद गजनवी जैसे दुर्दान्त आक्रमणकर्ता का दो बार सफलतापूर्वक सामना किया और उसे दो बार भारत से बिना सफलता के वापस लौटना पड़ा। इस तरह तत्कालीन भारत का विद्याधर अकेला एक ऐसा शासक था जिसने विदेशी आक्रान्ताओं के पैर भारत में नहीं टिकने दिये। 
  • विद्याधर मध्यप्रदेश क्षेत्र के उन गिने चुने राजाओं में था जो संपूर्ण भारत में अपनी शक्ति के लिये जाने गये। 
  • विद्याधर को परमेश्वर परम भट्टारक महाराजाधिराज' की उपाधि से अलंकृत किया गया था। 
  • विद्याधर की राष्ट्रीय दृष्टि का परिचय उसकी युद्धनीतियों से मिलता है। विद्याधर ने सर्वप्रथम उन देशद्रोही, कायर और विघटनकारी शक्तियों को नष्ट करना आवश्यक समझा जिन्होंने अपनी कायरता से महमूद गजनवी जैसे आक्रान्ता के सामने बिना युद्ध किये ही हार मानी ली। 
  • प्रतिहार शासक राज्यपाल (ई. सन् 1018-19) ने महमूद के आक्रमण के समय युद्ध के मैदान से पलायन कर दिया था और कन्नौज को महमूद के हाथ लूट के लिये खुला छोड़ दिया। 
  • यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस काल तक प्रतिहारों का प्रभामंडल सुदीप्त था। प्रतिहार राजा के इस कायरतापूर्ण पलायन ने भारतीय नरेशों का आत्मविश्वास तोड़ दिया। यही कारण है चम्बल के उत्तर में स्थित राजा आक्रान्ता के सामने घुटने टेकने लगे। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार उस काल में विद्याधर जिसे उन्होंने 'बीदा' लिखा है सबसे . शक्तिशाली राजा था, उसने कन्नौज के राजा को इस कायरता का सबक सिखाने के लिये उस पर आक्रमण किया और एक युद्ध में उसे मौत के घाट उतार दिया।

 

  • महमूद गजनवी द्वारा इस चंदेल शासक पर किये गये आक्रमण के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। साथ ही दोनों युद्धों के विवरणों, परिणामों इत्यादि पर भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं क्योंकि साक्ष्य के तौर पर जो कुछ भी लिखा हुआ मिलता है वह उन मुसलमान लेखकों का है जो गजनवी के आश्रित थे। कोई भी इतिहासकार अपने अन्नदाता की पराजयों को या तो कूटनीति का नाम दे सकता है या फिर उदारता का या फिर किसी इसी वर्ग की चाटुकारिका भरी बात से तथ्यों को नकारा भी जा सकता है।
  • ऐतिहासिकता कुल इतनी है कि यदि महमूद ने विद्याधर को परास्त किया होता तो उसे दुबारा आक्रमण करने की आवश्यकता न थी। दुबारा किये गये आक्रमण की विफलता को मुसलमान इतिहासकारों ने खूबसूरती से महमूद की गुणग्राहकता कहा, इसमें लिखा गया कि विद्याधर की स्तुति मूलक कविताओं से महमूद प्रसन्न हुआ और उसने विद्याधर को 15 किलों की किलेदारी का अधिकार दे दिया। 
  • महमूद जैसे धर्मान्ध लुटेरे के लिये लिखी गई ये गढ़ी हुई कहानियाँ बाद के इतिहासकारों के लिये मान्य साक्ष्य हो गये। वास्तविकता केवल इतनी थी कि दूसरे युद्ध में विद्याधर ने महमूद द्वारा जीते गये 15 किलों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इतना तथ्य अवश्य था कि दोनों पक्षों ने किसी प्रकार की कूटनीति आधारित संधि कर ली थी। परवर्ती इस्लामी इतिहासकारों ने महमूद और विद्याधर के पहले युद्ध में ही जीत लिख दी जबकि विद्याधर ने रणनीति के तहत् सेना को सुरक्षित स्थान में प्रत्यार्पित किया था।
  • विशुद्धानन्द पाठक के अनुसार वास्तविकता तो यह है कि युद्ध हुआ ही नहीं, दोनों ने एक दूसरे की शक्ति का अनुमान लगा संधि कर ली, जिसे मुसलमानों ने बढ़ाचढ़ाकर महमूद की विजय कहा है। संतलाल कटारे के अनुसार विद्याधर ने महमूद को परास्त किया था।

 

मध्यप्रदेश :प्राचीन काल में प्रादेशिक नाम

 

अवन्ति - वर्तमान मालवा का पश्चिमी भाग इसकी राजधानी उज्जयिनी थी। 

आकर- वर्तमान मालवा का पूर्वी भाग इसकी राजधानी वेदिस नगर या विदिशा थी। 

अनूप - नर्मदा घाटी के इस क्षेत्र की राजधानी महेश्वर माहिष्मती थी।

चेदि - महाभारत कालीन चेदि का विस्तार शोणभद्र की घाटी से लेकर नर्मदा तक था, परवर्ती चेदि राज्य कलचुरियों का था जिसका अधिकतम विस्तार उत्तर में कालिंजर तक था, किन्तु अधिकतर यह राज्य ऊपरी नर्मदा घाटी के चारों ओर ही विस रहा। महाभारत कालीन चेदि राज्य की राजधानी शुक्तिमती (या शुक्तिसाहवय) थी जो जातकों में सोत्थिवती कहलाई। कलचुरियों की राजधानी त्रिपुरी थी। 

दशार्ण - दशार्ण कभी मालवा का भाग था तो कभी स्वतंत्र प्रदेश धसान नदी की घाटी के इस प्रदेश की राजधानी एरण रही। 

वत्स - ग्वालियर क्षेत्र का प्राचीन जनपद 

तुण्डिकेर - दमोह क्षेत्र का प्राचीन जनपद

 

  • पूर्व मध्यकाल तक भारत में मुसलमान आक्रमणकारी लगातार आक्रमण करने लगे थे। भारत के पश्चिमी तट, सिंध, गुजरात तथा गंगा सिंधु के मैदान में इस्लामी लुटेरों ने मंदिरों और कस्बों को लूटना प्रारंभ कर दिया था।

 

  • आधुनिक मध्यप्रदेश का उत्तरी भाग जो बुंदेलखण्ड-बघेलखण्ड के नाम से जाना जाता है एक पठारी भाग है, इस क्षेत्र में मैदानों जैसी समतल भूमि का अभाव है परिणामतः यह समूचा क्षेत्र मुसलमानी आक्रमणों से वैसा प्रभावित कभी भी नहीं हो पाया जितना गंगा सिन्धु का मैदान या गंगा-यमुना का मैदान हुआ था। यहाँ भारी भरकम सेनाओं की सहायता से कुछ समय तक के लिये ही अस्थाई विजय बनाये रखी जा सकती थी। पूर्वमध्यकाल से उत्तर मध्यकाल तक का इतिहास भूगोल के पठारी उच्चावच से प्रभावित रहा।


मध्यप्रदेश: नाग राजाओं का राज्य एवं राजधानियाँ (मालवा, मध्यभारत पठार)

 

1- मथुरा 

2- पद्मावती (ग्वालियर) 

3- विदिशा

4- एरिकेण 

( कान्तिपुरी संभवतः ग्वालियर के समीप )

 

 

  • विन्ध्याचल भौगोलिक प्रदेश में नदियों की घाटियों के छोटे ओर संकरे सामान्य उर्वरता वाले मैदान रहे हैं। पर्वतीय उपत्यकाओं के इस क्षेत्र की संपूर्ण उत्पादकता के क्षेत्र भी यहीं थे। अपने उच्चावच के कारण से उत्पादक क्षेत्र छोटे-छोटे केन्द्रों में बंटे रहे जिनकी सुरक्षा छोटे बड़े किलों से होती रही। सामान्य तौर पर यहाँ के इतिहास में छोटे राज्यों की संख्या सदैव ही बड़ी रही है। फिर भी कुछ अवसरों पर जब प्रतापी राजा हुए तब उन्होंने इन राज्यों को ही एकीकृत नहीं किया अपितु इस क्षेत्र के बाहरी क्षेत्रों पर भी राज्य विस्तार किया। 

 

  • विन्ध्यांचल क्षेत्र की अनेक उपत्यकायें मालवा के भीतरी क्षेत्रों तक फैली हैं यही कारण है कि अनेक पर्वतीय दुर्ग उस क्षेत्र में भी स्थित हैं तथा उन्हें भी विन्ध्याचल के दुर्ग ही कहा जाता है। विन्ध्यक्षेत्र के प्रमुख दुर्ग कालिंजर, अजयगढ़, ओरछा, बान्धवगढ़ हैं किंतु मालवा के जिन दुर्गों को विन्ध्यांचल के दुर्ग माना जाता है वे रायसेन तथा मंदसौर के दुर्ग हैं।

 

  • क्षेत्रीय सीमित संसाधनों के बावजूद जब यहाँ पर पराक्रमी चंदेल राजाओं के राज्य की स्थापना हुई तब उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। इस स्थिति में उनके पास धन की कमी नहीं रही, जिसका उपयोग उन्होंने मंदिरो के बनवाने में किया ।

 


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