लेखन कौशल अर्थ गुण लेखन शिक्षण उद्देश्य प्रविधियाँ लेखन अभ्यास । Writing Skill Development in Child

लेखन कौशल अर्थ गुण लेखन शिक्षण उद्देश्य प्रविधियाँ लेखन अभ्यास 

Writing Skill Development in Child

लेखन कौशल अर्थ गुण लेखन शिक्षण उद्देश्य प्रविधियाँ लेखन अभ्यास ।  Writing Skill Development in Child


लेखन कौशल Writing Skill

 

  • मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप एवं भावों की मौखिक अभिव्यक्ति है। जब इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया जाता है और इन्हें लिपिबद्ध करके स्थायित्व प्रदान करते हैंतो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस प्रतीक रूप की शिक्षाप्रतीकों को पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना लिखना है।

 

लेखन शिक्षण के उद्देश्य Objectives of Writing Skill 

  • छात्र सोचने एवं निरीक्षण करने के उपरान्त भावों को क्रमबद्ध रूप में व्यक्त कर सकेगा।
  • छात्र सुपाठ्य लेख लिख सकेगा। शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिख सकेगा। 
  • छात्र ध्वनिध्वनि समूहोंशब्दसूक्तिमुहावरों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। 
  • विराम-चिह्नों का यथोचित प्रयोग कर सकेगा। 
  • अनुलेखअतिलेख तथा श्रुतलेख लिख सकेगा। 
  • व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करने में सक्षम होंगे। 
  • वह वाक्यों में शब्दोंवाक्यांशों तथा उपवाक्यों का क्रम अर्थानुकूल रख सकेगा। 
  • विभिन्न रचना वाले वाक्यों का शुद्ध गठन करेगा। 
  • छात्र अभीष्ट सामग्री ही प्रस्तुत करेंगे। 
  • क्रमबद्धता बनाए रखेंगे। 
  • छात्र भाव की दृष्टि से अभिव्यक्ति में संक्षिप्तता ला सकेंगे। 
  • विद्यार्थी लिखित अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों की तकनीक का विधिवत् पालन करने में समर्थ होंगे। 
  • वह लिखित अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों के माध्यम से अभिव्यक्ति कर पाने में सक्षम होंगे।

 

लेखन कौशल के गुण Merits of Writing Skill

 

  • लेखनसुन्दरस्पष्ट एवं सुडौल हो। 
  • उसमें प्रवाहशीलता एवं क्रमबद्धता हो । 
  • विषय (शिक्षण) सामग्री उपयुक्त अनुच्छेदों में विभाजित हो। 
  • भाषा एवं शैली में प्रभावोत्पादकता हो । 
  • भाषा व्याकरण सम्मत हो । 
  • अभिव्यक्ति संक्षिप्तस्पष्ट तथा प्रभावोत्पादक हो ।

 

लेखन शिक्षण की प्रविधियाँ Techniques of Writing Skill

 

मॉण्टेसरी विधि 

  • माण्टेसरी ने लिखना सिखाने में आँखकान और हाथ तीनों के समुचित प्रयोग पर बल दिया है। उनके मतानुसारपहले बालक को लकड़ी अथवा गत्ते या प्लास्टिक के बने अक्षरों पर ऊँगली फेरने को कहा जाएफिर उन्हें पेन्सिल को उन्ही अक्षरों पर घुमवाना चाहिए। पेन्सिल प्रायः रंगीन होनी चाहिए। इसी प्रकार बालक अक्षरों के स्वरूप से परिचित होकर उन्हें लिखना सीख जाता है।

 

रूपरेखानुकरण विधि

  • इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर चॉक या 18 पेन्सिल से बिन्दु रखते हुए शब्द या वाक्य लिख देता और छात्रों से उन निशानों पर पेन्सिल से लिखने के लिए बोलता हैजिससे शब्दवाक्य या वर्ण उभर आए। इस प्रकार अभ्यास के माध्यम से वह वर्गों को लिखना सीख जाता है।

 

स्वतन्त्र अनुकरण विधि

  • शिक्षण इस प्रविधि में श्यामपट्टअभ्यास पुस्तिका या स्लेट पर अक्षरों को लिख देता है। छात्रों को कहा जाता है कि उन अक्षरों को देखकर उनके नीचे स्वयं इसी प्रकार के अक्षर बनाए। प्रारम्भ में बच्चे इस विधि से लिखना सीखते हैं।

 

जेकॉटॉट विधि

  • इस प्रणाली (विधि) में शिक्षक बालकों द्वारा पढ़े हुए वाक्य को स्वयं लिखकर छात्रों को लिखने के लिए दे देता है। छात्र एक-एक शब्द लिखकर अध्यापक द्वारा लिखित शब्द से मिलाते हुए स्वयं संशोधन करते चलते हैं और पूरा वाक्य लिखने के पश्चात् शिक्षक मूल वाक्य को बिना देखे हुए उन्हें लिखने को कहता हैछात्र स्वयं लिखते हैं।

 

लेखन अभ्यास Writing Practice 

 

लेखन अभ्यास को आगे तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है - सुलेखअनुलेख एवं श्रुतलेख ।

 

सुलेख 

  • सुन्दर लेख को सुलेख कहते हैं। लिखना सिखाते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिएछात्रों की लिखावट खराब न होने पाए। सुलेख शिक्षित व्यक्ति का आवश्यक लक्षण है।

 

अनुलेख 

  • सुन्दर लिखावट के लिए प्रतिलेख और अनुलेख का भी आश्रय लिया जाता है।
  • अनुलेख का अर्थ है किसी लिखावट के पीछे या बाद में लिखना है अनुलेख के लिए अभ्यास पुस्तिका की प्रथम पंक्ति में मोटे और सुन्दर ढंग के अक्षरशब्द या वाक्य लिखे होते हैंउनके नीचे की पंक्तियाँ रिक्त रहती हैं। विधि में छात्र छपे हुए अक्षरों के नीचे देखकर स्वयं अक्षर बनाता है। अनुलेख का प्रारम्भिक कक्षाओं में विशेष महत्त्व है । कक्षा तीन तक अनुलेख का अभ्यास कराना चाहिए । 

 

श्रुतलेख 

  • 'श्रुतलेखसुना हुआ लेख है। इस विधि में अध्यापक बोलता जाता हैछात्र सुनकर अभ्यास-पुस्तिका या तख्ती पर लिखता जाता है। श्रुतलेख में सुन्दर लिखावट का महत्त्व नहीं है। महत्त्व भाषा की शुद्धता का हो जाता है। श्रुतलेख वर्तनी शिक्षण के लिए आवश्यक है। सुनकर लिखने में एक निश्चित गति से लिखने का अभ्यास हो जाता है।

 

लिखना सिखाने में ध्यान देने योग्य बातें

 

बैठने का ढंग 

  • लिखते समय छात्रों की रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। झुककर लिखने की आदत न पड़ने पाए। 

अभ्यास पुस्तिका की आँखों से दूरी

  • छात्र अभ्यास पुस्तिका को आँखों से लगभग 1 फुट की दूरी पर रखकर लिखें। 

कलम पकड़ने की विधि 

  • पहली और दूसरी उँगली के बीच में कलम रखकर उसे अँगूठे से पकड़ना चाहिएकलम की निब को  लगभग एक इंच से ऊपर पकड़ना चाहिए 

पढ़ना 

  • लिखने के साथ-साथ पढ़ना भी होनहीं तो लिखना निरर्थक हो जाएगा।

 

उपयुक्त वातावरण 

  • समयस्थान आदि की उपयुक्तता पर शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए । सुडौल अक्षर छात्र अक्षरों को सुन्दर बनाने का प्रयत्न करें। अक्षर पूरे. लिखे जाएँतभी वह सुडौल होंगे।

 

शिरारेखा

  •  शिरारेखा अक्षर का आवश्यक अंग है। अतः इस का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

 

बाएँ से दाएँ 

  • सभी वर्गोंवाक्यों के लिखने का क्रम बाएँ से दाएँ रहे। सीधी लिखाई अध्यापक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्णों की खड़ी रेखाएँ तिरछी ना होकर सीधी हों।

 

नमूना उपयुक्त हो

  • अध्यापक द्वारा बनाए गए शब्द व अक्षर (मॉडल) आदर्श होजिनके आधार पर छात्र लिख सके।


लिपि प्रतीक

  • अनुस्वारविकृत हो जाता है। विसर्गहलन्तमात्राओं के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। छोटे-छोटे लिपि प्रतीकों की भूल से लेख  विकृत हो जाता है । 


अभ्यास

  • लिखना एक कला हैअतः छात्रों के बौद्धिक एवं मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए अभ्यास करवाए।

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