यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य क्या होते हैं । यात्रावृत्त और संस्मरण में अंतर । Yaatra Vrat Kya Hote Hain
यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य क्या होते हैं
यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य
- जब लेखक अपनी यात्रा के दौरान देखे गये स्थानों का वर्णन करता है तो उसे यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य कहते हैं । लेखक वर्ण्य विषय का वर्णन आत्मीयता तथा निजता के साथ करता है जिस विषय का वह वर्णन करता है उसके साथ उसका जुडाव होता है तथा उसके अपने जीवन-संदर्भ भी उसमें आते हैं।
क्या यात्रावृत्त या यात्रा साहित्य निबंध हैं ?
- आत्मीयता तथा निजता का यह गुण निबंध-शैली की भी विशेषता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि यात्रावृत्त की वर्णन प्रक्रिया निबंध की सी होती है। फिर भी यात्रावृत्त निबंध नहीं है, क्योंकि इसमें जिस किसी विषय का समावेश नहीं हो सकता. इसमें तो यात्रा के दौरान देखे गये स्थानों का वर्णन ही अपेक्षित है।
यात्रावृत्त और संस्मरण में अंतर
- यात्रावृत्त के लेखक अपनी यात्रा के दौरान देखे गये स्थानों का वर्णन प्रायः स्मृति के आधार पर करते हैं, इसलिए किसी अच्छे यात्रावृत्त में संस्मरण की प्रवृत्ति भी रहती है। फिर भी यात्रावृत्त और संस्मरण एक-दूसरे से भिन्न हैं। यात्रावृत्त में समय तथा स्थान का उल्लेख अनिवार्य रूप से होता है, किंतु संस्मरण में स्थान तथा समय का उल्लेख अनिवार्य नहीं है।
- इसके अतिरिक्त यात्रावृत्त में यात्रा के दौरान देखे गये स्थानों, दृश्यों अथवा घटनाओं से जुड़ी सामयिक स्मृतियों का वर्णन होता है, जबकि संस्मरण में स्थायी एवं अमिट स्मृतियों का वर्णन किया जाता है।
- इस प्रकार हम देखते हैं कि वर्णन की दृष्टि से यात्रावृत्त निबंध और संस्मरण दोनों के कुछ गुणों को लेकर चलता है, फिर भी वह उन दोनों से अलग है । यात्रावृत्त का लेखक यात्रा के विवरणों में स्थान, दृश्य, घटना तथा व्यक्ति आदि से सम्बंधित कटु एवं मधुर स्मृतियों का चित्रण कर सकता है ।
- हिन्दी में यात्रावृत्त विधा को समृद्ध करने वालों में 'अज्ञेय' ( अरे यायावर रहेगा याद), मोहन राकेश (आखिरी चट्टान तक ) भगवतशरण उपाध्याय ( वो दुनिया ) आदि मुख्य हैं ।
2.13 रिपोतार्ज
'रिपोतार्ज़' फ्रेंच भाषा का शब्द है तथा अंग्रेजी के 'रिपोर्ट' शब्द से इसका घनिष्ठ संबंध है। किसी घटना के यथातथ्य विवरण को 'रिपोर्ट' कहते हैं जो प्रायः समाचारपत्रों के लिए लिखी जाती है। रिपोर्ट के साहित्यिक और कलात्मक रूप को हम 'रिपोतार्ज' कह सकते हैं ।
'रिपोतार्ज़' का लेखक रिपोतार्ज़ में युद्ध, महामारी, अकाल, बाढ़ आदि के दुष्परिणामों का आँखों देखा समाचार वर्णित करता है पर उसका उद्देश्य सूचना देना-भर नहीं होता। इसके पीछे उसकी एक विशेष दृष्टि होती है। लेखक का मुख्य उद्देश्य महामारी, बाढ़, अकाल आदि से उत्पन्न विषम स्थितियों से लाभ उठाने वाले मुनाफाखोरों पर व्यंग्य करना होता है । वह ऐसे नीच व्यक्तियों पर व्यंग्य कर मानव जीवन के विकास में सहायक जीवन-मूल्यों के हास पर चिन्ता प्रकट करता है और पाठकों को इनके विषय में सोचने पर बाध्य करता है। यों तो, रिपोतार्ज़ में विनाशकारी घटना के वर्णन पर लेखक की दृष्टि टिकी होती है और पात्र उसके लिए विशेष महत्वपूर्ण नहीं होते, तथापि मानव-मूल्यों का नाश करने वाले कुछ पात्रों के अमानवीय कार्यों का वर्णन भी लेखक करता ही है। इस प्रकार एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि जब कोई समाचार केवल समाचार नहीं रहता, वरन् मानव-मूल्यों से जुड़कर साहित्य की स्थायी सम्पत्ति बन जाता है तब उसे 'रिपोतार्ज़' कहने हैं हिंदी के रिपोतार्ज़-लेखकों में शिवदान सिंह चौहान, अमृत राय, प्रभाकर माचवे, लक्ष्मीचंद जैन, धर्मवीर भारती, प्रकाशचंद्र गुप्त आदि के नाम लिये जा सकते हैं.
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