मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य -भाग 02 । Baudh Jain Sahitya Aur MP
प्राचीन साहित्य और मध्यप्रदेश का इतिहास मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में साहित्य -भाग 02
मध्यप्रदेश के इतिहास अध्ययन स्त्रोत के रूप में बौद्ध, जैन एवं पालि- प्राकृत साहित्य
- बौद्ध, जैन एवं कुछ पालि- प्राकृत साहित्यिक ग्रंथ भी मध्यप्रदेश के इतिहास-संस्कृति संबन्धित जानकारी के महत्वपूर्ण साधन हैं।
बौद्ध साहित्य और मध्य प्रदेश
- बौद्ध ग्रंथ सुत्तनिपात (श्लो.976-77:1011-13) के अनुसार ब्राह्मण बावरी अपने शिष्यों सहित बुद्ध के दर्शन हेतु जाते समय उज्जयिनी, गोनद्ध (गोनर्द), वेदिसा (विदिशा) और वनसव्हय (तुम्बवन, तुमैन) हो कर गुजरे थे जो सभी मध्यप्रदेश में स्थित है।
- अंगुत्तरनिकाय (I.213; IV, 252, 256, 260) में सोलह जनपदों की सूची दी गई है जिन्हें महावस्तु, विनय एवं निद्देश में भी उल्लेख किया गया है। इनमें दो- चेदि और अवन्ति मध्यप्रदेश से संबन्धित हैं।
- चेतीय जातक (क्र. 422) के अनुसार चेदि की राजधानी सोत्थीवती (शुक्तिमती) थी।
- महावस्तु दशार्ण (पूर्व मालवा) को भी सोलह महाजनपदों की सूची में सम्मिलित करता है।
- दीघनिकाय (II.236) के अनुसार अवन्ति का शासक वेस्सबाहु भरत का समकालीन था।
- बौद्ध ग्रंथों ने अवन्ति की दो राजधानियों- उज्जयिनी और माहिष्मती का उल्लेख किया है जिनमें कालान्तर में माहिष्मती स्वतंत्र राज्य बन गया जैसा की दीपवंश में वर्णित है।
- महावंश में इसे महिषमण्डल के नाम से जाना गया है। दीपवंश के अनुसार (ओल्डनबर्ग, सं. पृ. 57) उज्जयिनी की स्थापना अच्युतगामी द्वारा की गई थी।
- जातकों (III.338, VI.238) के अनुसार बुद्धयुगीन विदिशा उच्चकोटि की तलवारें बनाने का एक प्रमुख केन्द्र था।
- बुद्धघोष के कथनानुसार मौर्य सम्राट अशोक ने वेस्सनगर (बेसनगर) में निवास किया था और देवी से उसका विवाह हुआ जिससे जुड़वा पुत्र उज्जेनिया तथा महिन्दा तथा एक कन्या संघमित्रा का जन्म हुआ। यह घटना महावंश (सं. टनौर, पृ. 76) में भी उल्लिखित है परन्तु स्थान का नाम चेतियगिरि (साँची) बताया गया है।
जैन साहित्य और मध्यप्रदेश
- जैन ग्रंथ परिशिष्टपर्वन् (XII 2-3) में पूर्वी मालवा और तुम्बवन को अवन्ति जनपद का भाग दर्शाया गया है।
- विनयपिटक के अनुसार मालवा के शासक प्रद्योत के मगध के शासक बिम्बिसार के साथ अच्छे संबन्ध थे। जब प्रद्योत बीमार हुआ तो बिम्बिसार ने अपने चिकित्सक जीवक को उनके उपचार हेतु अवन्ति भेजा परन्तु बिम्बिसार के उत्तराधिकारी अजातशत्रु के काल मे ये सोहार्द संबन्ध बिगड़ गये।
- मज्झिम निकाय (III.7) के अनुसार प्रद्योत के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने राजगृह की घेराबन्दी कर ली थी।
- महाजनपद काल और नन्द-मौर्य युग में मगध और मालवा के शासकों के बीच अनेकों बार संघर्ष की स्थिति बनी और इनका विवरण नेपाली बृहत्कथा (सं. एफ.लकोटे, पृ. 176), जैन ग्रंथ आवश्यककथानक (IV) और कथावली, स्थविरावलीचरित (VI, 189-90) में उपलब्ध है।
- उत्तरकालीन बौद्ध एवं जैन ग्रंथ मंजुश्रीमूलकल्प (जायसवाल, पृ.43), कुवलयमाला, हरिवंश पुराण में गुप्तोत्तरकालीन मध्यप्रदेश की राजनीतिक परिस्थिति पर कुछ प्रकाश पड़ा है।
प्राचीन बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति
- प्राचीन बौद्ध एवं जैन ग्रंथों द्वारा समकालीन मध्यप्रदेश की भौगोलिक स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है।
- अवन्ति प्रदेश में पपात पर्वत पर स्थित कुररघर में बुद्ध के शिष्य महाकच्चान ने पर्याप्त समय तक निवास किया था (संयुक्तनिकाय एंव अंगुत्तरनिकाय) ।
- घनसेल पर्वत, वेदिसगिरि का भी बौद्ध ग्रंथ उल्लेख करते हैं।
- जैन ग्रंथ आवश्यकचूर्णी दशा स्थित वसन्नकुण्ड पर्वत, चित्रकूट पर्वत एवं पयस्वनी नदी का वर्णन करता है।
- प्राकृत साहित्य में चित्रकूट एवं गोपालगिरि पर्वतों का उल्लेख है। जैन ग्रंथ मरणसमाधि में विदिशा के निकट स्थित कुंजरापर्वत का उल्लेख है।
- बौद्ध ग्रंथों में उल्लिखित नदियों के विवरण में बेसनगर स्थित बेस अथवा बेसली, शुक्तिमती (केन) प्रमुख हैं।
- जैन ग्रंथ आवश्यकचूर्णि में दशपुर (आधुनिक मन्दसौर) नगर संदर्भित है जिसकी राजधानी मृत्तिकावती का उल्लेख पूर्ववर्ती ग्रंथों में पाया जाता है।
- स्थविरावली (IX श्लो. 177) के अनुसार उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का निर्माण अवन्ति सुकुमार के पुत्र द्वारा किया गया था और मंदिर प्रांगण में कोटि-तीर्थ नामक कुण्ड का निर्माण करवाया गया था।
पाणिनि के अष्टाध्यायी में मध्य प्रदेश का उल्लेख
- पाणिनि के अष्टाध्यायी में उपलब्ध छुट-पुट जानकारियों में अवन्ति, मालव, चेदि, करूष आदि जनपदों एवं चर्मणवती नदी का उल्लेख आया है। (IV, I, 176; I, 171; V, 3, 114; IV, 2, 116; VIII, 2, 12 इत्यादि) ।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मध्यप्रदेश
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार (2, 2, 15) चेदि जनपद में उच्चकोटि के हाथी उपलब्ध थे जब कि दशार्ण के हाथी मध्यमवर्गीय थे। करूष जनपद का उल्लेख अर्थशास्त्र (2,2,2) में भी आया है। कुछ विद्वानों के मतानुसार पन्ना से 37 कि.मी. दक्षिण-पूर्व स्थित चनक, चाणक्य का जन्मस्थान था (जर्नल, म.प्र.इ. परिषद, 8, पृ. 33 ) ।
पतञ्जलि की रचना महाभाष्य में मध्यप्रदेश
- ईसा पूर्व दूसरी शती की पतञ्जलि की रचना महाभाष्य, जो मूलत: अष्टाध्यायी की व्याख्या है, में उदाहरण स्वरूप समकालीन मध्यप्रदेश सम्बंधित कई राजनीतिक और सांस्कृतिक घटनाओं, व्यक्तियों, नगरों एवं भौगोलिक स्थलों का उल्लेख किया गया है।
- पतञ्जलि का जन्म स्थान मालवा स्थित गोनर्द था जो बौद्ध सुत्तनिपात के अनुसार उज्जयिनी और विदिशा के मध्य स्थित था।
- महाभाष्य में पुष्यमित्र शुंग के व्यक्तित्व और यज्ञों के अतिरिक्त यवनों के आक्रमण स्वरूप साकेत और मध्यमिका की घेराबन्दी का उल्लेख आया है। माहिष्मती और उज्जयिनी के बीच दूरी का वर्णन करते हुये कहा गया है कि यह अधिक है परन्तु विशेष प्रयास स्वरूप सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच इस दूरी को तय किया जा सकता है।
भरत के नाट्यशास्त्र में मध्यप्रदेश
- ईसा की तीसरी शती की रचना भरत के नाट्यशास्त्र में अवन्ति और मालवा को स्वतंत्र राज्य बताये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि दशार्ण (आकर) और अवन्ति के लिये मालवा शब्द का उपयोग बाद की घटना है।
वात्स्यायन के कामसूत्र में मध्यप्रदेश
- वात्स्यायन का कामसूत्र भी तीसरी सदी ई. का ग्रंथ है। कामसूत्र की व्याख्या में भी मालवा और अवन्ति को अलग अलग प्रदेश बताये गये हैं। मालवा का समीकरण पूर्व-मालवा के साथ और अवन्ति का उज्जैन के साथ किया गया है।
शूद्रक रचित मृच्छकटिक और मध्यप्रदेश
- चौथी-पाँचवी शती ई. का शूद्रक रचित मृच्छकटिक अवन्ति के प्राचीन इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश डालने वाला महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
- अवन्ति के इतिहास में चण्डप्रद्योत का उत्तराधिकारी पालक ज्ञात है जो गोपाल का छोटा भाई था।
- मृच्छकटिक के अनुसार पालक लोकप्रिय शासक नहीं था, इसलिये उपरोक्त गोपाल के पुत्र आर्यक ने उसे पदच्युत कर सिंहासन हथिया लिया।
- मृच्छकटिक में तत्कालीन उज्जयिनी की सामाजिक स्थिति पर पर्याप्त जानकारी उपलब्ध है।
कालिदास के काव्यों में मध्यप्रदेश
- गुप्तकालीन शासक द्वितीय चन्द्रगुप्त और प्रथम कुमारगुप्त के समकालीन विख्यात लेखक कालिदास ने अपना अधिकांश जीवन उज्जयिनी में व्यतीत किया। इसलिये उनके ग्रंथों में मध्यप्रदेश के विशेष संदर्भ में समकालीन भारत के इतिहास, राजनीति और संस्कृति पर विपुल सामग्री उपलब्ध है।
- कुछ विद्वान कालिदास को ई.पू. दूसरी शती में उज्जैन सम्राट एवं विक्रम संवत् के प्रणेता विक्रमादित्य के राजकवि के रूप में स्वीकार करते हैं।
- कालिदास ने दो खण्ड काव्य ऋतुसंहार और मेघदूत; दो महाकाव्य कुमारसंभव और रघुवंश और तीन नाटक मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञान शाकुन्तलम् की रचना की। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने वाकाटक सम्राट् प्रवरसेन कृत प्राकृत काव्य सेतुबन्ध को संपादित और संशोधित भी किया।
- कालिदास कृत ग्रंथ समकालीन मध्यप्रदेश की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास की जानकारियों से परिपूर्ण विश्वकोष जैसा हैं।
वराहमिहिर के ग्रंथ बृहत्संहिता में मध्यप्रदेश
- पाँचवी शती ई. के उत्तरार्द्ध के लेखक वराहमिहिर के ग्रंथ बृहत्संहिता में तत्कालीन मध्यप्रदेश की भौगोलिक, राजनीतिक, नगर और नागरिक जीवन और सांस्कृतिक पक्षों पर जानकारी उपलब्ध है।
- विन्ध्य और चित्रकूट पर्वत और उनके निवासियों को उन्होंने दक्षिण-पूर्वी खण्ड में रखा है। मध्यप्रदेश की नदियों में मन्दाकिनी, नर्मदा (रेवा), पयोष्णी, शिप्रा, शोण, वेदस्मृति (बेसुला), पारा (पार्वती), वेत्रवती (बेतवा), तापी (ताप्ति) और निर्विन्ध्या (कालीसिंघ) का उल्लेख किया है।
- विभिन्न मण्डलों के जनपद, नगर और निवासियों में निम्नांकितों को वर्णित किया है: अवन्ति, अवन्तिका (अवन्ति के निवासी), चेदि, चेदिका(चेदि के निवासी), चेदि प-(चेदि के शासक), चैद्य, चित्रकूट, दशपुर (मन्दसौर), गोनर्द, दशार्ण, दाशार्णा (दशार्ण के निवासी), हैहय, मालवा, निषाद, पुलिंद और पुलिंद गण, पुरिका, त्रिपुरी, तुम्बवन (तुमैन), उदयगिरी, उज्जयिनी और विदिशा।
विशाखदत्त की कृति देवीचन्द्रगुप्त में मध्यप्रदेश
- विशाखदत्त (6वीं शती ई.) की कृति देवीचन्द्रगुप्त नाटक के आधार पर गुप्त सम्राट् रामगुप्त की ऐतिहासिकता प्रमाणित है। रामगुप्त के सिक्के विदिशा से प्राप्त है। विदिशा से प्राप्त तीन जैन मूर्तियों के पादपीठ पर उत्कीर्ण लेख भी उनकी ऐतिहासिकता प्रमाणित करते हैं। विशाखदत्त के एक अन्य ग्रंथ मुद्राराक्षस में शोण (सोन) नदी का उल्लेख है।
दण्डिन
- दण्डिन के दशकुमारचरित (6वीं शती ई.) में उपलब्ध एक विवरण के अनुसार विन्ध्यवासिनी देवी का विख्यात मंदिर नर्मदा तट पर स्थित था।
बाण कृत हर्षचरित में मध्यप्रदेश
- हर्ष (606-647 ई.) के राजकवि बाण कृत हर्षचरित में उत्तर- गुप्त शासक कुमारगुप्त एवं मालवा के शासक महासेनगुप्त के पुत्र माधवगुप्त का उल्लेख हुआ है। विद्वानों के मतानुसार बाण का जन्मस्थान सीधी जिला स्थित चन्द्रेह था।
- यही कारण है कि स्वअनुभव आधारित सोन नदी घाटी के वनों का चित्रण उनके हर्षचरित में उल्लिखित हुआ है जो संस्कृत साहित्य में अद्वितीय है। सोन को उन्होंने हिरण्यवाह के नाम से जाना है। उनके उल्लेखों में वेत्रवती, विदिशा एवं मालवा की महिलायें, विन्ध्य के उत्कृष्ट वन और उज्जयिनी के विवरण उपलब्ध हैं।
अमर कृति अमरकोश में मध्यप्रदेश
- अमर ( 8वीं शती ई. के पूर्व) ने अपनी कृति अमरकोश में मध्यप्रदेश से संबंधित कुछ भौगोलिक तथ्यों की जानकारी दी है। इसमें विन्ध्य, हिमवान, माल्यवान, पारियात्र पर्वतों एवं नर्मदा (मेकल कन्या), सोन (हिरण्यवाह) नदियों का उल्लेख है।
भवभूति की कृति मालतीमाधव में मध्यप्रदेश
- सुप्रसिद्ध नाटककार भवभूति ( 8वीं शती ई. का मध्य) की कृति मालतीमाधव में नागों की राजधानी पद्मावती नगरी, जिसके पुरावशेष ग्वालियर से 60 कि.मी. दूर सिन्धु नदी के तट पर पदम-पवाया में हैं, का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। निकटस्थ पारा (पार्वती), लवना (लूना), मधुमती (मधुवर) और पटलवती नदियों के सौंदर्य का भी विवेचन है। पद्मावती को ऊँचे भवनों वाली एक महान नगरी एवं वैदिक शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र बताया गया है। पद्मावती से भवभूति को विशेष लगाव था। यहाँ उन्होंने कुछ समय तक स्वयं निवास कर मालतीमाधव नाटक की रचना की।
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